Published on: 28-Apr-2023
लोबिया एक महत्वपूर्ण फसल है, जिसे बोड़ा के नाम से भी जाना जाता है। यह एक दलहनी पौधा है जिसकी खेती मैदानी इलाकों में मार्च से अक्टूबर के मध्य की जाती है। इसके पौधे में पतली, लम्बी फलियां होती हैं। जिनको कच्ची अवस्था में तोड़ लिया जाता है और उनका उपयोग सब्जी बनाने में किया जाता है। यह अफ्रीकी मूल की फसल है, जिसे साल भर भारत के हर राज्य में उगाया जाता है। लोबिया की फलियों को भारत में बोड़ा चौला या चौरा की फलियों के नाम से जाना जाता है। खेत में इस फसल को उगाने के कारण खेत की मिट्टी में नमी मौजूद रहती है। इसके साथ ही यह विषम परिस्थियों में उगने वाली फसल है जो सूखे को सहन करने की क्षमता रखती है। इस फसल के कारण खेत में खरपतवार पैदा नहीं हो पाते। इसकी खेती ज्यादातर पंजाब के मैदानी इलाकों में की जाती है। आजकल बाजार में इसकी जबरदस्त डिमांड है, ऐसे में किसान भाई लोबिया की खेती करके अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते हैं।
लोबिया की खेती के लिए जलवायु
समशीतोष्ण जलवायु लोबिया की खेती के लिए सबसे उत्तम मानी गई है। गर्मी के मौसम में इसके पौधे तेजी से विकास करते हैं, लेकिन जरूरत से ज्यादा गर्मी इन पौधों के लिए नुकसानदेह भी हो सकती है। लोबिया की खेती के लिए सर्दियों का मौसम अनुकूल नहीं है। इस मौसम में पौधे ज्यादा विकास नहीं कर पाते हैं। साथ ही ज्यादा बरसात भी लोबिया की खेती को बुरी तरह से प्रभावित करती है। शुरूआत में लोबिया के बीजों को अंकुरित होने के लिए 20 डिग्री के आसपास तापमान की जरूरत होती है। इसके बाद 35 डिग्री तक के तापमान पर लोबिया के पौधे आसानी से विकसित हो जाते हैं। इसलिए हम कह सकते हैं कि इस फसल के विकास के लिए शुष्क जलवायु सबसे उत्तम होती है।
इस मौसम में की जाती है लोबिया की खेती
लोबिया की खेती मुख्यतः गर्मियों के मौसम में की जाती है। इसके अलावा इसकी खेती बरसात के मौसम में भी की जाती है। गर्मियों के मौसम के लिए इसकी बुवाई मार्च और अप्रैल माह में की जाती है। जबकि बरसात के मौसम के लिए इसकी बुवाई जून-जुलाई माह में की जाती है। लोबिया के पौधे लता और झाड़ीदार दोनों रूप में पाए जाते हैं।
ये भी पढ़ें: लोबिया की खेती से किसानों को होगा दोहरा लाभ
लोबिया की फसल एक लिए ये मिट्टी होती है सबसे उपयुक्त
वैसे तो लोबिया की फसल हर प्रकार की मिट्टी में बेहद आसानी से उगाई जा सकती है, लेकिन इसके लिए मटियार या रेतीली दोमट मिट्टी को सबसे अच्छा माना गया है। देश के कई राज्यों में इस फसल को लाल, काली और लैटराइटी मिट्टी में भी उगाया जाता है। लोबिया की फसल के लिए मिट्टी का परीक्षण अवश्य करवाना चाहिए। कार्बनिक पदार्थो से युक्त उपजाऊ मिट्टी इस फसल के लिए उपयुक्त मानी जाती है। ध्यान रखें कि खेत में जल निकासी का उचित प्रबंध हो। लोबिया की खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 6 से 8 बीच होना चाहिए। इसकी खेती अधिक लवणीय और क्षारीय मृदा में नहीं करनी चाहिए। ऐसी मृदा में इसकी खेती करने पर अपेक्षाकृत परिणाम प्राप्त नहीं होते।
लोबिया की उन्नत किस्में
वैसे तो बाजर में लोबिया की बहुत सारी किस्में उपलब्ध हैं। लेकिन हम आपको ऐसी किस्मों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनकी मदद से कम समय में ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है।
पंत लोबिया : लोबिया की इस किस्म के पौधे डेढ़ फीट ऊंचे होते हैं। इस किस्म की खेती अगेती फसल के रूप में की जाती है। यह फसल बुवाई के मात्र 60 दिन बाद तैयार हो जाती है। इसमें आधा फीट लंबी फलियां होती हैं, जिसके दाने सफेद होते हैं। लोबिया की इस किस्म की बुवाई करने पर एक हेक्टेयर में 15 से 20 क्विंटल लोबिया का उत्पादन किया जा सकता है।
लोबिया 263 : यह ऐसी किस्म है जिसे खरीफ के साथ साथ रबी में भी उगाया जा सकता है। इसकी फसल तेजी से तैयार होती है। बुवाई के मात्र 45 दिनों के बाद यह तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इस किस्म में रोग का प्रकोप भी कम होता है। लोबिया 263 किस्म का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 125 किवंटल तक होता है।
पूसा कोमल : इस किस्म की बुवाई बसंत, गर्मी और बरसात में की जाती है। इसकी फलियां 20 सेंटीमीटर लंबी होती हैं। साथ ही फलियों का रंग हल्का हरा होता है। इस किस्म की पैदावार 100 से 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है।
पूसा बरसाती : लोबिया की इस किस्म की बुवाई बरसात के मौसम में की जाती है। इसकी फलियों की लंबाई 22 से 26 सेंटीमीटर तक होती है और फलियों का रंग हल्का होता है। यह फसल बुवाई के 40 दिनों बाद तैयार हो जाती है। इस किस्म की बुवाई करके किसान भाई 80 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर का उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।
अर्का गरिमा : लोबिया की इस किस्म की बुवाई बरसात के मौसम में की जाती है। इसके पौधों की ऊंचाई 6 से 8 फीट तक होती है। यह फसल रोपाई के 40 से 45 दिन बाद तक तैयार हो जाती है। इस किस्म की खेती में एक हेक्टेयर में 80 क्विंटल तक का उत्पादन हो सकता है।
पूसा ऋतुराज : लोबिया की यह किस्म ज्यादा तापमान सहन नहीं कर पाती। इसकी फलियां 20 से 25 सेंटीमीटर लंबी होती हैं। साथ ही इसका उत्पादन एक हेक्टेयर में 80 क्विंटल तक हो सकता है।
लोबिया की बुवाई
गर्मियों के मौसम में लोबिया की बुवाई समतल भूमि में की जा सकती है, जबकि बरसात के मौसम में 15 सेंटीमीटर ऊंचे मिट्टी के बेड पर बुवाई करनी चाहिए। लोबिया की बुवाई के लिए एक हेक्टेयर में लगभग 30 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है। बुवाई के पहले
बीजों को उपचारित कर लेना चाहिए। ऐसा करने पर 95 प्रतिशत बीजों का अंकुरण अच्छे से होता है। साथ ही फसल में रोग लगने की संभावना न के बराबर होती है। लोबिया के बीजों को उपचारित करने के लिए थीरम दवा का प्रयोग कर सकते हैं। लोबिया की बुवाई पक्तियों में करनी चाहिए।
खाद एवं उर्वरक की मात्रा
लोबिया के लिए खेत तैयार करने के पहले ही खेत में 10-15 टन तक गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से डालना चाहिए। इसके अलावा खेत में 30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से डाल सकते हैं। साथ ही अगर किसान भाई जिंक सल्फेट का प्रयोग करते हैं तो उनकी लोबिया की फसल ज्यादा तेजी से बढ़ेगी।
रोग नियंत्रण एवं कीट प्रबंधन
लोबिया की फसल में बीज गलन की बीमारी सबसे ज्यादा देखी जाती है। इस बीमारी की वजह से बीज सिकुड़ जाते हैं और बेरंग हो जाते हैं। कई बार देखा गया है कि बीजों का अंकुरण होने के पहले ही वो नष्ट हो जाते हैं। इससे निपटने के लिए बुवाई से पहले 'थीरम दवा' या 'बवास्टिन 50 डब्ल्यू पी' से बीजों को उपचारित करें। इसके अलावा जीवाणु झुलसा रोग भी लोबिया की खेती में देखा जाता है। यह रोग ज्यादातर नवजात पौधों में देखने को मिलता है। इसके रोकथाम के लिए 'ब्लाईटाक्स' का छिडक़ाव कर सकते हैं। एक अन्य रोग इस फसल में देखा जाता है, जिसे लोबिया मोजैक के नाम से जानते हैं। यह सफेद मक्खी द्वारा फैलती है। इस बीमारी से सबसे ज्यादा पौधे की पत्तियां प्रभावित होती हैं। इस बीमारी की रोकथाम के लिए 'मेटासिस्टॉक्स' या 'डाइमेथोएट' का छिडक़ाव करना चाहिए।
ये भी पढ़ें: जैविक पध्दति द्वारा जैविक कीट नियंत्रण के नुस्खों को अपना कर आप अपनी कृषि लागत को कम कर सकते है
अगर लोबिया की फसल में कीटों की बात करें तो सबसे ज्यादा प्रकोप रोमिल सूंडी का देखा जाता है। यह कीट इस फसल को भारी नुकसान पहुंचाता है। इस कीट के नियंत्रण के लिए फसल में 'मिथाइल पेराथियानद' का छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा तेला और काला चेपा कीटों का भी लोबिया की फसल पर जबरदस्त हमला होता है। इसके प्रबंधन के लिए 'मैलाथियॉन 50 ई सी' का पानी में घोलकर छिड़काव किया जा सकता है। लोबिया की फसल में लीफ होपर, जैसिड और एफिड कीटों की भी भारी मात्रा में आक्रमण होता है। ये कीट पौधों का रस चूसते हैं, जिससे पौधे कमजोर हो जाते हैं। इनके नियंत्रण के लिए 'डाईमेथोएट 30 ईसी' या 'मिथाइल डिमेटान 30 ईसी' का छिड़काव किया जा सकता है।
इतने दिनों में तैयार हो जाती है लोबिया की फसल
यह मैदानी इलाकों में उगाई जाने वाले गर्म एवं आर्द्र जलवायु वाली फसल है। इस फसल को तैयार होने में ज्यादा समय नहीं लगता। भारत के सभी राज्यों में यह फसल 40 से 45 दिन के अंतराल में तैयार हो जाती है।
लोबिया में इन पोषक तत्वों की होती है मौजूदगी
लोबिया पोषक तत्वों से भरपूर होती है। इसमें मुख्य तौर पर प्रोटीन, वसा, कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन, कैरोटीन, थायमीन, राइबोफ्लेविन, नियासीन, फाइबर, एंटीऑक्सीडेन्ट, विटामिन बी 2 और विटामिन सी जैसे पोषक तत्वों की भरमार होती है। इस खाने से शरीर को अतिरिक्त पोषण मिलता है। साथ ही वजन कम करने में, पाचन, दिल को स्वस्थ रखने में और शरीर को डिटॉक्स करने में सहायता मिलती है।
भारत के किसान हरी खाद, पशुओं के चारे एवं सब्जी के लिए लोबिया की खेती करते है। इस खेती से किसानों की पशु चारे की समस्या भी हल हो जाती है। साथ ही बाजार में सब्जी बेंचकर किसान बेहद कम समय में अच्छी खासी आमदनी प्राप्त कर सकते हैं।