Published on: 14-Jan-2023
आपको बतादें, कि सासनी के अमरूद ने विगत 6 वर्षों में फल मंडी के अंतर्गत स्वयं की विशेष पहचान स्थापित की है। परंतु, अब दीमक एवं उकटा रोग जैसे रोगों की वजह से इस विशेष अमरूद के बाग काफी संकीर्ण होते जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश राज्य के सासनी क्षेत्र के प्रसिद्ध अमरूद के बागानों का क्षेत्रफल काफी कम होता दिखाई दे रहा है। इन अमरूदों ने विगत 6 दशकों के अंतर्गत फल मंडी में खुद का अच्छा खासा वर्चस्व स्थापित किया है। लेकिन वर्तमान में इन अमरूदों के बागान और पैदावार को दीमक रोग, उखटा रोग, कीट एवं मौसमिक मार की वजह से बर्बाद होती दिखाई दे रही है। हानि में होती वृद्धि की वजह से कृषकों ने अमरूद के बागों की अपेक्षा अन्य फसलों का उत्पादन करना आरंभ कर दिया है।
हालाँकि, बागवानी विभाग द्वारा कृषकों को आर्थिक एवं तकनीकी सहायता प्रदान की गई है। फिर भी कीट-रोगों के संक्रमण में वृद्धि की वजह से उत्पादन में कमी होती दिखाई दे रही है। इस वजह से किसान समुचित आय अर्जित नहीं कर पाते हैं। ऐसी स्थिति में किसान निराश और हतास होकर फिलहाल सासनी इलाके के अमरूद उत्पादक बागवानी को छोड़ते जा रहे हैं।
सासनी के अमरुद के बागानों में कमी आने की वजह
अमरूद की बागवानी करने वाले किसान वीरपाल सिंह का कहना है, कि इस वर्ष कम बारिश की वजह से अमरूद के बागों में बेहद गंभीर हानि हुई है। बागों में कीट संक्रमण भी देखने को मिल रहा है, जिससे बागवानी में काफी घटोत्तरी देखने को मिली है। साथ ही, कुछ किसानों का कहना है, कि उनके क्षेत्र का पानी बहुत बेकार है, जिसकी वजह से अमरूद के पेड़ों में दीमक का संक्रमण होना आरंभ हो जाता है। रोगों के चलते पेड़ में बहुत सूखापन हो जाता है। ऐसी स्थिति में स्वभाविक सी बात है, कि फलों की पैदावार अच्छी तरह से अर्जित नहीं हो पाती है। अधिकाँश ठंड के दिनों में पाले की वजह से पेड़ की टहनियां बेहद कमजोर हो जाती हैं एवं टूटके नीचे गिर पड़ती हैं, तो पैदावार में घटोत्तरी हो गई है।
अमरुद के बागों को कौन-कौन से रोग प्रभावित कर रहे हैं
कृषि क्षेत्र को जलवायु परिवर्तन काफी गंभीर रूप से प्रभावित करता है। बहुत से क्षेत्रों में फलों के बागान कीट-रोगों के संक्रमण की वजह से नष्ट होते जा रहे हैं। फिलहाल, मशहूर सासनी के अमरूद के बागानों के ऊपर भी दीमक और उखटा रोग का संकट काफी प्रभावित कर रहा है। पेड़ के ऊपरी भागों तक समुचित पोषण संचारित ना होने की वजह से पेड़ सूखकर नष्ट होते ही जा रहे हैं।
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बहुत से बागों में दीमक का संक्रमण आरंभ हो चुका है। ऐसी स्थिति में सामान्यतः पेड़ की जड़ें खोखली हो रही हैं। किसान अन्य पेड़ों को संक्रमण से बचाने के लिए रोगग्रस्त पेड़ पौधों को जड़ समेत उखाड़ फेंकते हैं। विशेषज्ञों का कहना है, कि दीमक का संक्रमण बढ़ने की स्थिति में पेड़ की जड़ों में गोबर की खाद सहित ट्राइकोडर्मा उर्वरक का मिश्रण कर उपयोग करना चाहिए।
बागवानी विभाग द्वारा नई पहल शुरू की गई है।
मीडिया द्वारा दी गयी खबरों के हिसाब से हाथरस की जिला उद्यान अधिकारी अनीता यादव जी ने कहा है, कि उखटा रोग जैसी बहुत-सी बीमारियों के संक्रमण बड़ने पर कृषकों ने बागवानी के स्थान पर खेती करना आरंभ कर दिया है। इन चुनौतियों का निराकरण करने हेतु राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड द्वारा वार्षिक नवीन बागों की स्थापना हेतु लक्ष्य तय किया गया है।
इस वर्ष लगभग 30 हेक्टेयर में नवीन बागान लगाए गए हैं। इसके अंतर्गत 17 हैक्टेयर में
अमरूद के बागान भी शम्मिलित हैं। पौधरोपण के उपरांत पेड़ बनने एवं फलों के पकने तक भिन्न-भिन्न कृषि कार्यों हेतु अनुदान प्रदान किया जाता है। अमरूद के बागान में कीट-रोगों के समुचित प्रबंधन हेतु कृषकों को भी शिविर के जरिए से जागरूक किया जा रहा है।
यह अमरुद बाजार में सासनी अमरुद के नाम से ही बिकता है
अगर सासनी के सुप्रसिद्ध अमरूदों की सप्लाई की बात करें तो उत्तर प्रदेश समेत उत्तराखंड, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में भी की जा रही है। सासनी के किसानों से अमरूद खरीदकर उनमें से बेहतरीन गुणवत्ता वाले अमरूदों को छांटा जाता है। अमरूद का भाव उसकी गुणवत्ता के अनुरूप निर्धारित किया जाता है। उसके बाद इन अमरूदों को पैक किया जाता है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में माँग के अनुरूप आपूर्ति की जाती है। अन्य राज्यों में अमरूद सासनी अमरुद के नाम से ही बेचे जाते हैं।