भारत वर्ष में जैविक खेती बहुत पुराने समय से चलती आ रही है। हमारे ग्रांथों में प्रभु कृष्ण और बलराम, जिन्हें हम गोपाल और हलधर कहते हैं, कृषि के साथ-साथ गौपालन भी किया जाता था, जो दोनों बहुत फायदेमंद था, न सिर्फ जानवरों के लिए बल्कि वातावरण के लिए भी. आजादी मिलने तक भारत में यह परम्परागत खेती की जाती रही है। बाद में जनसंख्या विस्फोट ने देश पर उत्पान बढ़ाने का दबाव डाला, जिसके परिणामस्वरूप देश रासयनिक खेती की ओर बढ़ा और अब इसके बुरे परिणाम सामने आने लगे हैं। रासायनिक खेती हानिकारक होने के साथ-साथ बहुत महंगी होती है, जिससे फसल उत्पादन की लागत बढ़ जाती है|
हम सब जानते हैं कि जमीन पर पाए जाने वाले केंचुए आदमी के लिए बहुत उपयोगी हैं। भूमि में पाए जाने वाले केंचुए खेत में पढ़े हुए पेड़-पौधों के अवशेषों और कार्बनिक पदार्थों को खाकर गोलियों में बदल देते हैं, जो पौधों के लिए देशी खाद बनते हैं। इस केंचुए से 2 महीने में कई हैक्टेयर का खाद बनाया जा सकता है। इस खाद को बनाने के लिए आसानी से उपलब्ध खरपतवार, मिटटी और केंचुआ की जरूरत पड़ती है। आइए जानते हैं कि केचुएँ खेत की मिट्टी को कैसे स्वस्थ बनाते हैं।
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जैव कल्चर मिट्टी की उर्वरा शक्ति और फसल उत्पादन क्षमता को बढ़ाते हैं जब भूमि में पड़े पादप अवशेषों को पाचन किया जाता है।उर्वरक अक्सर दलहनी फसलों में नहीं प्रयोग किया जाता है इसका कारण राइजोबियम कल्चर दलहनी पौधों की जड़ों में पाया जाता है | जो वायुमंडल से नाईट्रोजन लेकर पोषक तत्वों की पूर्ति करता है, लेकिन दलहनी फसलों की जड़ों में राईजोबियम नहीं होता है दलहनी पौधों की जड़ को दूसरी फसलों में प्रयोग करने से नाईट्रोजन की आवश्यकता को पूरा करने के लिए क्या किया जा सकता है?
यदि किसान जैविक खेती करता है या करने की कोशिश करता है तो उसे जैविक पंजीयन कराना चाहिए, क्योंकि पंजीयन नहीं होने से किसान को फसल का मूल्य कम मिलता है। क्योंकि आपके पास कोई दस्तावेज नहीं है जो बताता है कि जय की फसल जैविक या रासायनिक है इसलिए कृषि समाधान ने जैविक पंजीयन की पूरी जानकारी प्राप्त की है। जिसमें किसान 1400 रुपये खर्च करके एक हैक्टेयर पंजीकृत कर सकते हैं |
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कृषि में अत्यधिक रासायनिक उर्वरक तथा कीटनाशक के उपयोग से बीमारियां और खर्च बढ़ रहे हैं जैविक कृषि को अपनाने से लागत कम होगी और बीमारी कम होगी। इसके लिए किसानों को अपने घर पर देशी खाद और रासायनिक कीटनाशक की जगह देशी कीटनाशक बनाने की जरूरत है। इसके लिए किसानों को खड़ा करने और कीटनाशक बनाने का तरीका आना चाहिए। इसलिए किसानों ने खाद और कीटनाशक बनाने की प्रक्रिया विकसित की है। गाय के गोबर, गुड और गो मूत्र से तरल जैविक खाद बनाने की आज की कड़ी में जानकारी दी गई है।
कीट किसी भी फसल में रहते हैं कीट फसल को बहुत नुकसान पहुंचाता है, जो उत्पादन को प्रभावित करता है | इस कीट को नियंत्रित करना आवश्यक है इसलिए किसान समाधान ने जैविक रूप से कीट नियंत्रण के बारे में जानकारी दी है। यह कीटनाशक तम्बाकू, नीम, महुआ, इमली की छाल और तेल से बनाया जाता है। जो सस्ता और आसानी से उपलब्ध है |
फसल की उत्पादकता मिटटी में नाईट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की मात्रा पर निर्भर करती है। जब मिटटी में पोषक तत्व की कमी होती है, तो उसे बहार से भर दें। यह पोषक तत्व रासायनिक रूप से आसानी से पाया जा सकता है, लेकिन इसकी कीमत अधिक होने से फसल का उत्पादन अधिक महंगा होता है। इसके लिए प्राकृतिक खाद का उपयोग करना चाहिए | जैविक खाद में नाईट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की मात्रा जानना महत्वपूर्ण है। यही कारण है कि किसान समाधान सभी खादों में पोषक तत्वों की सूचना लाया है।
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जैविक सब्जी और साग की मांग बढ़ गई है | इसकी लागत भी अधिक है | इसके लिए यह महत्वपूर्ण है कि सब्जी में प्रयोग किया गया खाद कीटनाशक गोबर, केंचुआ और अन्य जैविक खाद से बना हो। किसान अपने घर में कीटनाशक और खाद बनाकर जैविक सब्जी और साग उत्पादन कर सकते हैं। किसान समधान ने जैविक सब्जी और साग की खेती की पूरी जानकारी प्राप्त की है। जिससे अच्छा पैसा कमाया जा सकता है
कृषक जैविक खेती के लिए पंजीकृत होना चाहिए | जिससे फसलों और फलों का अच्छा मूल्य मिल सकता है | केंद्रीय सरकार ने जैविक खेती की प्रमाणिकता देना शुरू कर दिया है | इसके लिए राज्य में एक सरकारी संस्था बनाई गई है | पुरे देश में निजी संस्थानों का भी सहयोग लिया गया है | नियमों के साथ, यह संस्था किसी भी किसान को जैविक प्रमाणिकता देती है। इन सभी संस्थानों के नाम, कार्यालय पत्ता और दूरभाष नंबर दिए गए हैं।