Published on: 15-Aug-2022
नींबू (Lemon) की नीली फफूंद से सुरक्षा
लीची (Lychee) खाने वाली इल्ली से रक्षा
पपीता (Papaya) पौधे को गलने से बचाएं
फलदार पौधों की बागवानी तैयार करने के लिए अगस्त का महीना अनुकूल माना जाता है। नींबू, बेर, केला, जामुन, पपीता, आम, अमरूद, कटहल, लीची, आँवला का नया बाग-बगीचा तैयार करने का काम किसान को इस महीने पूरा कर लेना चाहिए।
भाकृअनुप-
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR -Indian Council of Agricultural Research), पूसा, नई दिल्ली के कृषि एवं बागवानी विशेषज्ञों ने इनकी खेती के लिए महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं।
इस लेख में हम
नींबू (
Lemon),
लीची (
Lychee),
पपीता (
Papaya) की बागवानी से जुड़े खास बिंदुओं पर अपना ध्यान केंद्रित करेंगे।
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नींबू (Lemon) की देखभाल
नींबू के पौधे खेत, बागान या घर की बगिया में रोपने के लिए अगस्त का महीना काफी अच्छा होता है। कृषक मित्र उपलब्ध मिट्टी की गुणवत्ता के हिसाब से नींबू की किस्मों का चयन कर सकते हैं।
कृषि विज्ञान केंद्र, उद्यानिकी विभाग से संबद्ध नर्सरी के अलावा ऑन लाइन प्लेटफॉर्म से किसान, उपलब्ध लागत के हिसाब से पौधों की किस्मों का चयन कर सकते हैं। इन केंद्रों पर 20 रुपये से लेकर 100, 200 एवं 500 रुपया प्रति पौधा की दर से पौधे खरीदे जा सकते हैं। उल्लेखनीय है कि पौधे की कीमत उसकी किस्म के हिसाब से घटती-बढ़ती है।
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अगस्त का महीना नींबू और लीची के पेड़-पौधों में गूटी बांधने के लिहाज से काफी उपयुक्त माना जाता है।
ऐसे करें लेमन सिट्रस कैंकर का उपचार
नींबू के
सिट्रस कैंकर (
Citrus canker) रोग का समय रहते उपचार जरूरी है। यह उपाय ज्यादा कठिन भी नहीं है। नींबू में सिट्रस कैंकर रोग के लक्षण पहले पत्तियों में दिखने शुरू होते हैं। बाद में यह नींबू के पौधे-पेड़ की टहनियों, कांटों और फलों पर पर भी फैल जाते हैं।
इसकी रोकथाम के लिए जमीन पर गिरी हुई पौधे की पत्तियों को इकट्ठा कर नष्ट कर देना चाहिए। इसके अलावा नींबू की रोगयुक्त टहनियों की काट-छांट भी जरूरी है।
बोर्डाे (
Bordo) मिश्रण (5:5:50), ब्लाइटाॅक्स (
Blitox) 0.3 फीसदी (3 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में घोलकर) का छिड़काव भी सिट्रस कैंकर रोग से नींबू के पेड़ के बचाव में कारगर साबित होता है।
रसजीवी कीट से रक्षा
नींबू के पौधे का रस चूसने वाले कीट से भी समय रहते बचाव जरूरी है। नींबू के पौधे का रस चूसने वाले कीट से बचाव करने के लिए
मेलाथियान (
Malathion) का स्प्रे मददगार होता है। मेलाथियान को 2 मिलीलीटर पानी में घोलकर पौधे पर छिड़काव करने से नींबू की रक्षा करने में गार्डनर को मदद मिल सकती है।
लग सकता है नीला फफूंद रोग
अगस्त महीने के दौरान नींबू के पौधों पर नीला फफूंद रोग लगने की आशंका रहती है। लेमन ट्री या प्लांट की नीले फफूंद रोग से रक्षा के लिए आँवला वाला तरीका अपनाया जा सकता है।
इसके लिए नींबू के फलों को बोरेक्स या नमक से उपचारित कर नीला फफूंद रोग से रक्षा की जा सकती है। नींबू के फलों को कार्बेन्डाजिम या थायोफनेट मिथाइल की महज 0.1 प्रतिशत मात्रा से उपचारित करके भी नीला फफूंद रोग को फैलने से रोका जा सकता है।
लीची (Lychee or Litchi) की रक्षा
रस से भरी,
चटख लाल, कत्थई रंग की लीची देखकर किसके मुंह में पानी न आ जाए।
बार्क इटिंग कैटरपिलर (
Bark Eating Caterpillar) भी अपनी यही चाहत पूरी करने लीची पर हमला करती है।
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आपको बता दें बार्क इटिंग कैटरपिलर लीची का छिलका खाने की शौकीन होती है। लीची का छिलका खाने वाले पिल्लू (
बार्क इटिंग कैटरपिलर) की रोकथाम भी संभव है। इसके लिए लीची के जीवित छिद्रों में पेट्रोल या नुवाॅन या फार्मलीन से भीगी रुई ठूंसकर छिद्र मुख को चिकनी मिट्टी से अच्छी तरह से बंद कर देना चाहिए। बगीचे को स्वच्छ एवं साफ-सुथरा रखकर भी इन कीटों से लीची का बचाव किया जा सकता है।
पपीता (Papaya) का रखरखाव
पपीता का
पनामा विल्ट (
Panama wilt) एवं
कॉलर रॉट (
Collar Rot) जैसे प्रकोप से बचाव किया जाना जरूरी है।
पपीते के पेड़ में फूल आने के समय 2 मिली. सूक्ष्म तत्वों को एक लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने की सलाह वैज्ञानिकों ने दी है।
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पनामा विल्ट की रोकथाम
पनामा विल्ट के पपीता पर कुप्रभाव को रोकने के लिए बाविस्टीन(
BAVISTIN) का उपयोग करने की सलाह दी गई है। बाविस्टीन के 1.5 मि.ग्रा. प्रति लीटर पानी मिश्रित घोल से पनामा विल्ट से रक्षा होती है।
बताए गए घोल का पपीते के पौधों के चारों ओर मिट्टी पर 20 दिनों के अंतराल से दो बार छिड़काव करने की सलाह उद्यानिकी सलाहकारों ने दी है।
काॅलर राॅट की रोकथाम
काॅलर राॅट भी पपीता के पौधों के लिए एक खतरा है। पपाया प्लांट पर काॅलर राॅट के प्रकोप से पपीता के पौधे, जमीन की सतह से ठीक ऊपर गल कर गिर जाते हैं।
इस समस्या के समाधान के लिए पौधों पर रिडोमिल (
RIDOMIL)(2 ग्राम/लीटर) दवा का छिड़काव करना फायदेमंद होगा।
नींबू, लीची और पपीता के खेत में जलभराव से फल पैदावार प्रभावित हो सकती है। इन खेतों पर जल भराव न हो इसलिए कृषकों को जल निकासी के पर्याप्त इंतजाम नींबू, लीची, पपीता के खेतों पर करने चाहिए।