मसूर एक ऐसी दलहनी फसल है, जिसकी खेती भारत के लगभग सभी राज्यों में की जाती है । मसूर दोमट एवं भारी मिट्टी में होने वाली दलहनी फसल है। इसे बरसात के दिनों में संरक्षित नमी में ही किया जा सकता है। इसकी बिजाई मध्य अक्टूबर से मध्य नवंबर तक की जा सकती है। चावल के साथ अरहर के बाद प्रयोग में लाई जाने वाली यह प्रमुख दलहन है। मसूर की में मेहनत व लागत दोनों कम लगती हैं। इसकी खेती धान के खाली पड़े खेतों या परती जमीन में भी की जा सकती है। राजस्थान में बाजारा की कटाई के बाद इसकी फसल लगाई जाती है। मसूर की खेती के लिए मिट्टी पलटने वाले हल से 2-3 बार जुताई कर के पाटा लगा देना चाहिए। अगर रोटावेटर या पावर हैरो से जुताई की जा रही है, तो 1 बार जुताई करना ही काफी होता है। मसूर की समय से बोआई के लिए प्रति हेक्टेयर 40-60 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है। बोआई समय से न करने की हालत में 65-80 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की जरूरत पड़ती है। बीज को खेत में बोने से पहले उपचारित किया जाना जरूरी होता है। मसूर बीज का उपचार राइजोबियम कल्चर से किया जाना ज्यादा सही होता है। 10 किलोग्राम बीज के उपचार के लिए 200 ग्राम राइजोबियम कल्चर की जरूरत पड़ती है। किसी खेत में मसूर की खेती पहली बार की जा रही हो, तो बीजोपचार से पहले बीज का रासायनिक उपचार भी किया जाना चाहिए। चूंकि मसूर की जड़ों में राइजोबियम गांठें होती हैं, इसलिए इस की फसल में ज्यादा उर्वरक की जरूरत नहीं पड़ती है। अगर सामान्य तरीके से खाली खेत में मसूर की बोआई की जा रही हो, तो प्रति हेक्टेयर 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस व 20 किलोग्राम पोटाश का इस्तेमाल करना चाहिए। अगर धान की कटाई के बाद खेत में मसूर की बोआई करनी है, तो 20 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दर से टापड्रेसिंग करना चाहिए। इसके बाद 30 किलोग्राम फास्फोरस का छिड़काव 2 बार फूल आने पर व फलियां बनते समय करना चाहिए। ये भी पढ़े: घर पर करें बीजों का उपचार, सस्ती तकनीक से कमाएं अच्छा मुनाफा मसूर की फसल में ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है। अगर बोआई के समय नमी न हो तो फली बनते समय सिंचाई करनी चाहिए। इससे पहले फूल आने पर भी सिंचाई जरूरी होती है। मसूर की बोआई के 20-25 दिनों बाद खरपतवार निकाल देने चाहिए।