मौसम विभाग ने किसानों के लिए मौस्मिक पूर्वानुमान जारी किया है। इसकी वजह से किसानों की चिंता भी काफी बढ़ गई है। मोैसमिक अनिश्चिताओं की वजह से किसानों की धड़कनें थम गई हैं।
विगत फरवरी और मार्च माह में भी किसान बेहद हताश नजर आए थे। स्काईमेट (Skymet) की तरफ से एल नीनो के खतरे की ओर इशारा करते हुए भारत में इस वर्ष सामान्य से भी कम मानसून वर्षा होने की आशंका जताई गई है।
आजकल संपूर्ण विश्व में जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव साफ तौर पर दिखाई देने लगे हैं। इस वर्ष भारत में फरवरी-मार्च माह से ही मौसमिक रुझान काफी बेकार नजर आ रहा है।
फरवरी माह में आकस्मिक रूप से तापमान में वृद्धि तो मार्च के माह में कई दिनों तक निरंतर बेमौसम बरसात देखने को मिली है। यह मौसमिक अनियमितता खेती-किसानी के लिए बिल्कुल सही नहीं है।
इस वर्ष मानसून को लेकर भारतीय मौसम विज्ञान विभाग एवं प्राइवेट फॉरकास्टर स्काईमेट ने पूर्वानुमान जारी कर दिया है।
आईएमडी द्वारा जारी किए गए पूर्वानुमान के अनुरूप इस वर्ष भारत में मानसून लगभग सामान्य ही रहेगा। इससे किसान भाइयों को काफी राहत मिलेगी एवं कृषि उत्पादन की चिंता भी खत्म हो जाएगी।
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भारत में जून से चार माह तक 50 वर्ष के औसत मतलब कि सामान्य 87 सेंटीमीटर वर्षा होने की संभावना है, जो 96% और 104% के मध्य रहेगी।
इसके साथ-साथ मौसम विभाग द्वारा उत्तर पश्चिम भारत के कुछ क्षेत्र, पश्चिम-मध्य भारत के कुछ भागों एवं उत्तर पूर्व भारत के कुछ क्षेत्रों में सामान्य से भी कम बरसात होने का अनुमान जताया जा रहा है।
निजी फॉरकास्टर स्काईमेट द्वारा भी इसी तरह का पूर्वानुमान जारी किया है। जिसने अलनीनो का हवाला देते हुए सोमवार को मानसून पूर्वानुमान जारी करते हुए कहा है, कि इस वर्ष भारत में मानसून की बारिश सामान्य अथवा उससे कम ही रहेगी।
तापमान एवं नमी के संयोजन के परिणामस्वरूप नम दिन हो सकते हैं, इस वजह से गर्मी और बारिश दोनों होने की आशंका जाहिर की गई है।
विशेष रूप से भारत में अल नीनो शुष्क परिस्थितियों एवं कम बारिश को दर्शाता है। इस पर आईएमडी ने कहा है, कि अलनीनो के प्रभावों को मानसून के मौसम मतलब कि वर्ष के दूसरे छमाही में अनुभव किया जा सकता हैं।
हालांकि, विशेषज्ञों का यह भी कहना है, कि समस्त अलनीनो खराब वर्षा का संकेत नहीं होती हैं। मानसून हेतु सर्वोत्तम स्थिति अलनीना होती है,जो भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में परिवर्तित हो चुकी है।
आजकल आधुनिक तकनीकों के बावजूद भी भारत की अधिकांश कृषि मौसम पर ही निर्भर रहती है। भारत के कृषि क्षेत्र से करोड़ों की जनसँख्या का भरण-पोषण सुनिश्चित होता है।
परंतु, राष्ट्र की 60 फीसदी आबादी स्वयं का जीवन यापन करने के लिए खेती-किसानी से जुड़ी हुई है। यह अर्थव्यवस्था के 18 प्रतिशत भाग को दर्शाती है, जो कि बेहद तीव्रता से उन्नति कर रहा है।
परंतु, इसके चलते मौसम जनित समस्याऐं और जटिलताएं भी हावी रहती हैं। मीडिया के मुताबिक, स्पष्ट रूप से कहा गया है, कि भारत की तकरीबन आधी कृषि भूमि असिंचित है, जहां पर सिंचाई काफी कम की जाती है।
इन क्षेत्रों में गन्ना, कपास, सोयाबीन, धान और मक्का जैसी फसल बेहतर उत्पादन हेतु जून-सितंबर की वर्षा पर आश्रित रहती हैं।