Published on: 23-Aug-2021
बरसात का सीजन आते ही पशुओं में खुरपका मुंहपका रोग का संक्रमण तेज हो जाता है। इस रोग के निदान के लिए राज्य सरकार नि:शुल्क वैक्सीनेशन अभियान चलाती हैं लेकिन गाभिन पशुओं को वैक्सीन न लगाने की पृवृत्ति के चलते रोग संक्रमण एक पशु से दूसरे पशुओं में फैलता है। कई राज्यों में इस रोग का संक्रमण दिखने लगा है। दिल्ली के नजदीकी इलाकों में रोग संक्रमण की खबरें आने लगी हैं। उत्तर प्रदेश में वैक्सीनेशन अभियान चल रहा है।
खुरपका—मुंहपका रोग के लक्षण
रोग का प्रभाव नाम के अनुरूप होता है। इस रोग के संक्रमण के साथ ही पशु के खुरों व मुंह में घाव व छाले हो जाते हैं। इसके कारण पशु को एक दो दिन तेज बुखार भी आ सकता है। छाले होने के कारण पशु चारा भी खाना बंद कर देता है। यदि
दुधारू पशु है तो उसका दुुग्ध उत्पादन भी प्रभावित होने लगता है। पशु लंगड़ाकर चलने लगता है। यदि देखभाल व उपचार समय पर न मिले तो खुुरों के मध्य में कीड़े तक पड़ जाते हैं। पशु मुंह में छालों के कारण लगातार लार गिराने लगता है। इस रोग में सामान्यत: पशु मरता तो नहीं लेकिन स्थिति बेहद खराब हो जाती है। रोग प्रभाव में आने वाला दुधारू पशु ठीक होने के बाद भी आसानी से पूरे दूध पर नहीं आता। पशु की प्रजनन क्षमता प्रभावित होने के कारण वह समय से गर्मी में नहीं आता। कुल मिलाकर कीमती पशु आधी कीमत का भी नहीं रहता।
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बचाव
रोग के संक्रमण से बचाने के लिए हर हाल में समय से टीकाकरण कराना चाहिए। प्रभावित पशु को अन्य पशुओं एवं पशु बाडे से अलग कर देना चाहिए ताकि अन्य पशुओं को रोग संक्रमण न हो। पोटेशियम परमैंगनेट के घेल से पैरों व पशु को बांधने वाले स्थान की दिन में कमसे कम दो बार सफाई करें। नीम के पत्तों को पीसकर खुरों में लगा सकते हैं। पशु को खाने के लिए भूसे की बजाय मुलायम हरा चारा दें ताकि वह घावों में चुभे नहीं और पशु थोड़ा बहुत ही सही हरा चारा खाता रहे। चिकित्सक से परामर्श कर उचित उपचार कराएंं। मुंह के छालों को एक प्रतिशत फिटकरी को पानी में घोलकर या लाल दवा के घोल से धुलते रहना चाहिए।