किसान भाइयों वर्तमान समय में सरसों का तेल काफी महंगा बिक रहा है। उसको देखते हुए सरसों की खेती करना बहुत लाभदायक है। कृषि वैज्ञानिकों ने अनुमान जताया है कि इस बार सरसों की खेती से दोगुना उत्पादन मिल सकता है, यानी इस बार की जलवायु सरसों की खेती के अनुकूल रहने वाली है। तिलहनी फसल की एमएसपी काफी बढ़ गयी है। तथा बाजार में एमएसपी से काफी ऊंचे दामों पर सरसों की डिमांड चल रही है। इन संभावनाओं को देखते हुए किसान भाई अभी से सरसों की अगैती फसल लेने की तैयारी में जुट गये हैं।
जो किसान भाई खरीफ की खेती नहीं कर पाये हैं, वो अभी से सरसों की खेती की अगैती फसल लेने की तैयारी में जुट गये हैं। इन किसानों के अलावा अनेक किसान ऐसे भी हैं जो खरीफ की फसल को लेने के बाद सरसों की खेती करने की तैयारी कर रहे हैं। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि जिन किसानों ने गन्ना,प्याज, लहसुन व अगैती सब्जियों की खेती के लिए खेतों को खाली रखते हैं, वो भी इस बार सरसों के दामों को देखते हुए सरसों की खेती करने की तैयारी कर रहे हैं। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि जो किसान भाई सरसों की अगैती फसल लेंगे वे अतिरिक्त मुनाफा कमा सकते हैं। इंडियन कौंसिल ऑफ़ एग्रीकल्चर रिसर्च के कृषि विशेषज्ञ डॉ. नवीन सिंह का कहना है कि जो खेत सितम्बर तक खाली हो जाते हैं, उनमें कम समय में तैयार होने वाली सरसों की खेती करके किसान भाई अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते हैं। उनका कहना है कि भारतीय सरसों की अनेक किस्में ऐसी हैं जो जल्दी तैयार हो जाती हैं और वो फसलें उत्पादन भी अच्छा दे जाती हैं।
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किसान भाइयों, आइये जानते हैं कि सरसों की कम समय में अधिक उत्पादन देने वाली कौन-कौन सी अच्छी प्रजातियां हैं:-
1.पूसा अग्रणी:- इस प्रजाति के बीज से सरसों की फसल मात्र 110 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। इस बीज से किसान भाइयों को प्रति हेक्टेयर लगभग 14 क्विंटल सरसों का उत्पादन मिल जाता है।
2. पूसा तारक और पूसा महक:- सरसों की ये दो प्रजातियों के बीजों से भी अगैती फसल ली जा सकती है। इन दोनों किस्मों से की जाने वाली खेती की फसल 110 से 115 दिनों के बीच पक कर तैयार हो जाती है। खाद, पानी, बीज आदि का अच्छा प्रबंधन हो तो इन प्रजातियों से प्रति हेक्टेयर 15-20 क्विंटल की पैदावार मिल जाती है।
3. पूसा सरसों-25 :- कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार पूसा सरसों-25 ऐसी प्रजाति है जिससे सबसे कम समय में फसल तैयार होती है। उन्होंने बताया कि इस प्रजाति से मात्र 100 दिनों में फसल तैयार हो जाती है। इससे पैदावार प्रति हेक्टेयर लगभग 15 क्विंटल उत्पादन मिल जाता है।
4. पूसा सरसों-27:- इस प्रजाति के बीज से औसतन 115 दिन में फसल तैयार हो जाती है तथा पैदावार 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के आसपास रहती है।
5. पूसा सरसों-28:- इस प्रजाति से खेती करने वालों को थोड़ा विशेष ध्यान रखना होता है। समय पर बुआई के साथ निराई-गुड़ाई एवं खाद-पानी का प्रबंधन अच्छा करके किसान भाई प्रति हेक्टेयर 20 क्विंटल तक की पैदावार ले सकते हैं।
6. पूसा करिश्मा: इस प्रजाति से सरसों की फसल 148 दिनों के आसपास तैयार हो जाती है तथा इस प्रजाति से प्रति हेक्टेयर 22 क्विंटल तक की पैदावार ली जा सकती है।
7. पूसा विजय: इस प्रजाति के बीजों से फसल लगभग 145 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है तथा इससे प्रति हेक्टेयर 25 क्विंटल तक फसल ली जा सकती है।
8.पूसा डबल जीरो सरसों -31:- इस किस्म के बीज से सरसों की खेती 140 दिनों में तैयार होती है तथा इससे उत्पादन प्रति हेक्टेयर 23 क्विंटल तक लिया जा सकता है।
9. एनआरसीडीआर-2 :- इस उन्नत किस्म के बीज से सरसों की फसल 131-156 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। अच्छे प्रबंधन से प्रति हेक्टेयर 20 से 27 क्विंटल तक का उत्पादन लिया जा सकता है।
10. एनआरसीएचबी-506 हाइब्रिड:- अधिक पैदावार के लिए यह बीज अच्छा माना जाता है। इससे सरसों की फसल 127-145 दिनों में तैयार हो जाती है। जमीन, जलवायु और उचित देखरेख से इस बीज से प्रति हेक्टेयर 16 से 26 क्विंटल तक की पैदावार ली जा सकती है।
11. एनआरसीएचबी 101:- इस प्रजाति के बीच सेसरसों की फसल 105-135 दिनों में तैयार होती है तथा पैदावार प्रति हेक्टेयकर 15 क्विंटल तक ली जा सकती है।
12. एनआरसीडीआर 601:- यह प्रजाति भी अधिक पैदावार चाहने वाले किसान भाइयों के लिए सबसे उपयुक्त है। इस बीच से की जाने वाली खेती से फसल 137 से 151 दिनों में तैयार हो जाती है तथा प्रति हेक्टेयर 20 से 27 क्विटल तक पैदावार ली जा सकती है।
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार सरसों की अगैती की फसल की बुआई का सबसे अच्छा समय सितम्बर का पहला सप्ताह माना जाता है। यदि किसी कारण से देर हो जाये तो सितम्बर के दूसरे और तीसरे सप्ताह में अवश्य ही बुआई हो जानी चाहिये। इस अगैती फसल की कटाई जनवरी के शुरू में ही हो जाती है। अधिक पैदावार वाली प्रजातियों में एक से डेढ़ महीने का समय अधिक लगता है। इस तरह की फसलें फरवरी के अंत तक तैयार हो जाती हैं।