Published on: 08-Jan-2023
परमाकल्चर' कृषि को 'कृषि का स्वर्ग' कहा जाए तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है, इसकी वजह फसल, मवेशी, पक्षी, मछलियां, झाड़ी, पेड़ एक पारितंत्र का निर्माण कर देते हैं। न्यूनतम व्यय करके किसानों की आमदनी बढ़ोत्तरी करने की उम्दा रणनीति है। खेती-किसानी में हुए समय समय पर नवीन परिवर्तन देखे जा रहे हैं। इस क्षेत्र में प्रयासरत कृषि वैज्ञानिकों के आविष्कार एवं कुछ किसानों के नवाचार का परिणाम है। वर्तमान में भारत भी कृषि के क्षेत्र में बहुत मजबूती से उभर कर सामने आ रहा है, यहां कृषि संबंधित काफी दिक्कतें तो हैं, साथ ही समाधान भी निकल लिया जाता है। आजकल कृषकों के समक्ष सबसे बड़ी दिक्क्त यह है कि उनको किसी भी फसल के उत्पादन हेतु काफी खर्च करना पड़ता है, जिसकी वजह से किसान समुचित लाभ अर्जित नहीं कर पते हैं। लेकिन किसानों की खेती में दिलचस्पी होने के लिए लाभ अहम भूमिका निभाता है। विदेशी किसानों के समक्ष यह चुनौती नहीं है, क्योंकि विदेशी किसान 'परमाकल्चर' कृषि पर कार्यरत हैं।
इस इको-सिस्टम के अंतर्गत पशु, पक्षी, मछली, फसल, झाडियां, पेड़-पौधे आपस में ही एक-दूसरे की आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। एक तरह से देखें तो भारत की एकीकृत कृषि प्रणाली के समरूप, जिसके अंतर्गत खेती-किसानी सहित पशु चारा उत्पादन, सिंचाई, बागवानी, वानिकी, पशुपालन, मुर्गी पालन, मछली पालन, खाद निर्माण इत्यादि का कार्य एक स्थाई भूमि पर किया जाता है। इसको स्थाई कृषि अथवा परमाकल्चर के नाम से जाना जाता है। एक बार आरंभ में व्यय करना आवश्यक होता है, उसके उपरांत इस इकोसिस्टम के माध्यम से आपस में प्रत्येक वस्तु की आपूर्ति होती रहती है एवं न्यूनतम व्यय में अत्यधिक पैदावार अर्जित कर सकते हैं।
परमाकल्चर फार्मिंग से हो सकता है अच्छा मुनाफा
यदि किसान चाहे तो स्वयं के खेत को परमाकल्चर में परिवर्तित कर सकता है। लघु किसानों हेतु तो यह उपाय वरदान वरदान के समरूप है। कम भूमि द्वारा बेहद लाभ अर्जित करने हेतु परमाकल्चर द्वारा बेहतरीन लाभ कमाया जा सकता है क्योंकि यह काफी अच्छा विकल्प होता है। इस कृषि पद्धति के अंतर्गत सर्वाधिक ध्यान जल के प्रबंधन एवं मृदा की संरचना को अच्छा बनाने हेतु रहता है। मृदा की संरचना यदि उत्तम रही तो 1 एकड़ भूमि द्वारा भी लाखों में लाभ लिया जा सकता है। परमाकल्चर कृषि आमदनी का बेहतरीन स्त्रोत होने के साथ साथ पर्यावरण संरक्षण एवं जैवविविधता हेतु भी बहुत ज्यादा लाभदायक होती है।
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परमाकल्चर के सबसे बेहतरीन बात यह है, कि इसके लिए किसी प्रकार का अतिरिक्त निवेश नहीं किया जाता है। विशेषरूप से किसानों के समीप गांव में हर तरह के संसाधन उपलब्ध होते हैं। परमाकल्चर की सहायता से किसान को कम व्यय में भिन्न-भिन्न प्रकार का उत्पादन (उत्पादन में विविधता) एवं अधिकाँश मात्रा में उत्पादन अर्जन करने में काफी सहायता प्राप्त होती है। परमाकल्चर को पैसा बचाकर, पैसा कमाने वाला सिस्टम भी कहा जाता है, क्योंकि पशुओं के अवशिष्ट द्वारा खाद-उर्वरक निर्मित किए जाते हैं, जिससे कि रसायनिक उर्वरकों पर किए जाने वाला व्यय बच जाता है। जिससे पशुओं को खेत से बहुत सारी फसलों के अवशेष खाने हेतु मिल जाते हैं, जो दूध के उत्पादन में भूमिका निभाता है।
जल का समुचित प्रबंधन करने से सिंचाई हेतु किए जाने वाला व्यय बच जाता है। साथ ही, इसी जल के अंदर
मछली पालन भी किया जा सकता है। जिसके हेतु खेत के एक भाग में तालाब निर्मित किया जाता है, जहां बारिश का जल इकत्रित किया जाता है। इस कृषि पद्धति से कोई हानि नहीं होती है। अगर किसान खेत को परमाकल्चर के जरिए सृजन करें तो पर्यावरण सहित किसान की प्रत्येक जरूरत खेत की चारदीवारी में ही पूर्ण हो सकती है।
भारत एक ऐसा देश है जहां परमाकल्चर कृषि पौराणिक काल से की जाती है
वर्तमान के आधुनिक दौर में मशीन, तकनीक एवं विज्ञान द्वारा खेती के ढ़ांचे को परिवर्तित करके रख दिया है, परंतु आज भी भारत ने अपनी परंपरागत विधियों द्वारा विश्वभर में अपना लोहा मनवाने का कार्य किया है। वर्तमान में भी देश कृषि उत्पादन में सबसे आगे है, साथ ही, भारत अनेकों देशों की खाद्य आपूर्ति को पूर्ण करने में अहम भूमिका निभाता है। देश द्वारा उच्च स्तरीय पैमाने पर कृषि खाद्य उत्पादों का निर्यात किया जा रहा है। आज हम भले ही कृषि क्षेत्र में एडवांस रहने हेतु विदेशी कल्चर एवं विधियों का प्रयोग कर रहे हों। परंतु, बहुत से ऐसी चीजें भी मौजूद हैं, जिनको विदेश में रहने वाले लोगों ने भी भारत से प्रेरित होकर आरंभ किया है। उन्हीं में से एक परमाकल्चर भी है। हो सकता है, आपको यह सुनने में अजीब सा अनुभव हो, परंतु भारत के लिए परमाकल्चर किसी नई विधि का का नाम नहीं है। देश में इस कृषि पद्धति को वैदिक काल से ही उपयोग में लिया जा रहा है। क्योंकि भारत ने आरंभ से ही जैव विविधता एवं पर्यावरण संरक्षण का कार्य करते हुए खाद्य आपूर्ति को सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाई है। हालांकि मध्य के कुछ दशकों में कृषि के क्षेत्र में तीव्रता से बहुत ज्यादा परिवर्तन देखने को मिले हैं, परिणामस्वरूप हम अपने ही महत्त्व को विस्मृत करते जा रहे हैं।
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आपको जानकारी के लिए बतादें कि परमाकल्चर की भाँति कृषि भारत में युगों-युगों से चलती आ रही है। इस कृषि में किसान परंपरागत विधि से उत्पादन करते हैं। पर्यावरण संतुलन हेतु खेत के चारों तरफ वृक्ष लगाए जाते हैं। पशुओं को पाला जाता है, जिनसे खेतों में जुताई की जा सके। इन पशुओं को खेतों से उत्पन्न चारा खिलाया जाता है, बदले में पशु दूध व गोबर प्रदान करते हैं। दूध का किसान अपने व्यक्तिगत कार्य में उपयोग करते हैं अथवा बेचकर धन कमाते हैं वहीं दूसरी तरफ गोबर का उपयोग खेती करने हेतु खाद निर्माण में किया जाता है। इस प्रकार से एक-दूजे की जरूरतें पूर्ण होती रहती हैं, वो भी किसी बाहरी अतिरिक्त व्यय के बिना ही। साथ ही, आपस में संतुलन भी कायम रहता है। आजकल कृषि करने हेतु बीज खरीदने के चलन में वृद्धि हुई है, जो कि जलवायु परिवर्तन के अनुरूप है। जबकि प्राचीन काल में फसल द्वारा बीजों को बचाकर आगामी बुवाई हेतु एकत्रित करके रखा जाता था, यही वजह है, कि पौराणिक काल से ही कृषि एक संतुलन का कार्य था ना कि किसी खर्च का।