Published on: 20-Feb-2023
अगर आप बागवानी के शौकीन हैं, तो माइक्रोग्रीन(microgreen) की खेती करना आपके लिए काफी आसान हो सकती है. जो आपको कम समय में लखपति बना देगी.
आजकल लोगों ने अपनी लाइफ स्टाइल से साथ साथ अपनी डाइट को भी काफी हद तक बदल दिया है जोकी अब काफी हेल्दी हो चुकी है. खुद को हेल्दी रखने के लिए लोग अक्सर नये नये तरीकों की खोज में रहते हैं. इन्हीं सब को देखते हुए किसानों ने भी अपने आपको बदल लिया है. पहले के मुकाबले अब के किसान आधुनिक तकनीक का खेती में भरपूर इस्तेमाल कर रहे हैं जिनकी मदद से पोषक फसलों और खाद्यानों का उत्पादन हो रहा है. बात पोष्टिकता से भरपूर फसलों की हो तो हरी सब्जियों का नाम इस मामले में हमेशा से ही अव्वल रहा है, जिसमें से एक 'माइक्रोग्रीन' जो की एक नई फसल की वैरायटी है जिसने काफी हद तक लोगों की थाली में अपनी जगह बना ली है.
क्या है माइक्रोग्रीन?
भारत जैसे देश में अंकुरित आहार में चना, मूंग और मसूर खाना काफी आम बात है. ये भी
दलहनी फसलें होती हैं. इन्हें स्प्राउट्स भी कहते हैं. माइक्रोग्रीन स्प्राउड्स का ही विकसित रूप होता है. इसके अलालवा पौधों की शुरुआती पत्तियों को माइक्रोग्रींस ही कहा जाता है, जिसमें मूली, सरसों, मूंग जैसी फसलों के बीजों के शुरूआती पत्तों को तोड़ लिया जाता है. बड़ी सब्जियों के बजाए इन छोटी पत्तियों में कहीं ज्यादा पोषक तत्व मौजूद होते हैं. हालांकि हर पौधे की शुरुआती पत्तियों का माइक्रोग्रीन की तरह नहीं जाया जा सकता. इसमें जैसे ही दो पत्तियां आती हैं, वैसे ही जमीन से थोड़ा सा ऊपर उठकर इसे काट लिया जाता है. माइक्रोग्रीन में पहली दो पत्तियों के साथ उसका तना भी शामिल होता है.
कौन सी फसलों के साथ खेती फायदेमंद?
माइक्रोग्रीन की खेती आमतौर पर मूली, ब्रोकली, शलजम,
तुलसी, चना, मेथी, मटर, मक्का, सरसों,
गेहूं और मूंग की फसलों के साथ करना सबसे ज्यादा फायदेमंद होता है.
कैसे करें माइक्रोग्रीन की खेती?
अगर आप माइक्रोग्रीन की खेती करना चाहते है, तो सबसे पहले इसकी खेती के बारे में जान लेना जरूरी है. खेतों के अलावा इसे घर पर भी उगाया जा सकता है. इसकी खेती के लिए ज्यादा जैविक खाद या मिट्टी की जरूरत होती है. इसके अलावा काफी माइक्रोग्रीन्स ऐसे भी होते हैं, जिन्हें उगने के लिए मिट्टी की जरूरत नहीं होती. वो पानी में भी उग जाते हैं. इस किस्म के माइक्रोग्रीन्स को छत से लेकर बाल्कनी और बेडरूम्स तक में उगाया जा सकता है. इसके लिए हर रोज की करीब तीन से चार घंटों की नरम धूप काफी होती है.
माइक्रोग्रीन की खेती के लिए काफी लोग फ्लोरोसेंट रोशनी का इस्तेमाल करते हैं. जिसकी मदद से इस फसल का अच्छा उत्पादन करने में मदद मिलती है. अगर आप इसकी खेती बड़े पैमाने पर करते हैं, तो इसकी फसल को तेज धूप से बचाने की जरूरत होती है.
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कब लगाएं माइक्रोग्रींस?
वैसे तो हर सीजन में माइक्रोग्रीन को लगाया जा सकता है, लेकिन इसे मौसम के हिसाब से लगाना अच्छा होता है. माइक्रोग्रीन का अच्छा उत्पादन आसपास के क्षेत्र की जलवायु पर भी निर्भर करता है.
धनिया, सरसों, प्याज, मूली, पुदीना और मूंग जैसे पौधे इसके लिए अच्छे होते हैं.
स्प्राउट्स नहीं है माइक्रोग्रीन
गर आप स्प्राउट्स को ही माइक्रोग्रीन समझने की गलती कर रहे हैं, तो बता दें की इनके बीच काफी अंतर है. स्प्राउट्स में बीजों को अंकुरित करते हैं, वहीं माइक्रोग्रीन में उसके बेहद छोटे छोटे पौधे विकसित किये जाते हैं जो करीब 5 से 6 इंच तक बढ़ते हैं जिसमें तने से लेकर पत्तियों तक का सबमें इस्तेमाल किया जाता है.
क्या है माइक्रोग्रीन का इस्तेमाल?
- माइक्रोग्रीन का इस्तेमाल खासतौर से सलाद में किया म्विन किया जाता है.
- माइक्रोग्रीन की पत्तियों के साथ तने को भी आहार में शामिल किया जाता है.
- माइक्रोग्रीन का सूप भी बनाया जाता है.
- माइक्रोग्रीन की सब्जियां भी बनाकर तैयार की जाती हैं.
- माइक्रोग्रीन का स्वाद और गुण पकी हुई सब्जियों और फलों से बेहतर होता है.
क्या हैं माइक्रोग्रीन के फायदे?
कम जगह में आसनी से माइक्रोग्रीन को विकसित किया जा सकता है. इसे धूप वाली खिड़की पर भी उगाया जा सकता है. इसकी पहली पत्तियां निकले ही इसे काट लिया जाता है. माइक्रोग्रीन सिर्फ दो हफ्तों में ही खाने लायक हो जाते हैं. ये काफी छोटे होते हैं, लेकिन पोषक तत्वों और स्वाद में अन्य सब्जियों से कहीं ज्यादा अच्छे होते हैं. इसके अलावा इसकी कुछ प्रजातियां अन्य सब्जियों की तुलना में करीब 40 फीसद पोषक भरे होते हैं. माइक्रोग्रीन में फाइटोन्यूट्रिएंट्स, विटामिन और मिनरल्स मौजूद होते हैं. इसके अलावा इसमें सूजन, मोटापे और आर्थराइटिस से लड़ने के गुण भी होते हैं.
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माइक्रोग्रीन्स को लगाते वक्त रखें ध्यान
- माइक्रोग्रीन लगाने के लिए केमिकल युक्त मिट्टी का इस्तेमाल ना करें.
- जिस भी बीज का इस्तेमाल माइक्रोग्रीन के लिए करने वाले हैं, उसका उपचार किसी केमिकल से ना किया गया हो.
- माइक्रोग्रीन को जितनी जरूरत हो, उतना ही पानी दें.
- माइक्रोग्रीन की फसलों में स्प्रे की मदद से पानी का छिड़काव करना चाहिए.
- समतल जमीन की बजाय माइक्रोग्रीन को किसी कंटेनर में लगाना ज्यादा अच्छा होता है.
- अगर कंटेनर में माइक्रोग्रीन की बुवाई कर रहे हैं, तो ध्यान रखें कि कंटेनर के निचले हिस्से में छेद हो, ताकि पानी की निकासी हो सके.
अगर घर में उगा रहे हैं माइक्रोग्रीन्स
अगर आप घर के अंदर माइक्रोग्रींस को उगाना चाहते हैं, तो आपको इसके कुछ खास बातों का ध्यान रखना जरूरी होगा.
- माइक्रोग्रींस को घर के अंदर उगाने के लिए छोटे कंटेनरों का इस्तेमाल करें.
- इस्तेमाल किये जा रहे कंटेनरों की गहरे तीन से चार इंच तक होनी चाहिए.
- इसकी बुवाई के लिए बीज्ज को मिट्टी की सतह पर फैलाना होता है, जिसके बाद उसे मिट्टी की पतली सी परत से ढंक दिया जाता है.
- कंटेनर में मिट्टी को अच्छी तरह से बिठाने के लिए मिट्ठी को हल्के हाथों से थपथपाना ना भूलें.
- मिट्टी में नमी रखने के लिए सावधानी से पानी का स्प्रे करें.
- बुवाई के दो से तीन दिनों के बाद बीज अंकुरित होने लगते हैं.
- अंकुरित बीजों को धूप में रखा जाता है. जिसमें दिन में करीब दो से तीन बार पानी का स्प्रे किया जाता है.
- एक हफ्ते में माइक्रोग्रीन्स तैयार हो जाता है, दो से तीन इंच की लम्बाई होने पर इसे निकाल लिया जाता है.
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- पाक चोई माइक्रोग्रीन घर के अंदर उगाने चाहिए.
- राकेट माइक्रोग्रीन भी घर में उगाये जा सकते हैं.
- पालक माइक्रोग्रीन घर पर उगाये जा सकते हैं.
- ब्रोकली माइक्रोग्रींस भी को पर लगाने का अच्छा विकल्प है.
- पार्सले माइक्रोग्रींस को काफी लोग घर पर लगाते हैं.
- चुकंदर माइक्रोग्रीन को घर पर लगाया जा सकता है.
माइक्रोग्रीन्स को किसी भी जगह बड़ी ही आसानी के साथ उगाया जा सकता है. घर में उगाने जाने वाले माइक्रोग्रीन्स की ये बेहद आसान सी किस्में हैं. को हेल्थ के लिए भी काफी फायदेमंद हैं.
अनगिनत खूबियों के साथ भारत के लगभग हर क्षेत्र में उगाया जाने वाला माइक्रोग्रीन घर बैठे भी अच्छी कमाई का जरिया बन सकता है. क्योंकि हर मौसम में बाजार में इसकी डिमांड ज्यादा होती है. जिसके अच्छे भाव मिलते हैं.