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इन सब बातों का रखेंगे ध्यान तो किसान सरसों की फसल से पाऐंगे शानदार उत्पादन

इन सब बातों का रखेंगे ध्यान तो किसान सरसों की फसल से पाऐंगे शानदार उत्पादन

भारत में सरसों का तेल तकरीबन सभी घरों में खाद्य तेल के तौर पर काम आती है। भारत में सरसों की खेती मुख्य तोर पर उत्तर प्रदेश, हरियाणा , महाराष्ट्र , राजस्‍ थान और मध्यप्रदेश में की जाती है। सरसों की खेती की मुख्य बात यह है , कि यह सिंचित एवं असिंचित , दोनों ही प्रकार के खेतों में उगाई जा सकती है। सोयाबीन तथा पाम के पश्चात सरसों विश्व में तीसरी सर्वाधिक महत्तवपूर्ण तिलहन फसल है। मुख्य रूप से सरसों के तेल के साथ - साथ सरसों के पत्ते का इस्तेमाल सब्जी तैयार करने में होता हैं। सरसों की खली भी बनती है , जो कि दुधारू मवेशियों को खिलाने के काम में आती है। घरेलू बाजार के साथ - साथ अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में भी सरसों की मांग में बढ़ोतरी आने की वजह से किसानों को इस वर्ष सरसों का काफी शानदार भाव मिला है। वहीं , केंद्र सरकार ने इसके न्यूनतम समर्थन मूल्य में भी इजाफा कर दिया है।  

सरसों की खेती करने से पूर्व इन बातों का रखें विशेष ध्यान

सरसों की खेती करने से पूर्व कुछ चीजों को ध्यान में रखना पड़ता है , जिससे हमें फसल की उचित पैदावार मिल सके , वो हैं।  

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सरसों की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

सरसों भारत की प्रमुख तिलहन फसल में से एक है। रबी की फसल होने की वजह से मध्य सितंबर से मध्य अक्टूबर तक सरसों की बिजाई कर देनी चाहिए। सरसों की फसल का शानदार उत्पादन हांसिल करने के लिए 15 से 25 डिग्री तापमान की जरूरत होती है।

सरसों की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

सामान्यतः सरसों की खेती हर तरह की मृदा में की जा सकती है। परंतु , सरसों की शानदार पैदावार पाने के लिए एकसार और बेहतर जल निकासी वाली बलुई दोमट मृदा सबसे उपयुक्त रहती है। परंतु , यह लवणीय एवं बंजर भूमि नहीं होनी चाहिए।

सरसों के खेत की तैयारी कैसे करें

सरसों की खेती में भुरभुरी मृदा की आवश्यकता होती है , खेत को सबसे पहले मृदा पलटने वाले हल से जुताई करनी चाहिए। इसके पश्चात दो से तीन जुताई देशी हल अथवाकल्टीवेटरके जरिए से करना चाहिए। इसकी जुताई करने के बाद खेत में नमी रखने के लिए व खेत समतल करने के लिए पाटा लगाना अति आवश्यक हैं। पाटा लगाने से सिंचाई करने में समय व पानी दोनों की बचत होती है।

सरसों की बिजाई हेतु बीज की मात्रा

आपकी जानकारी के लिए बतादें , कि जिन खेतों में सिंचाई के पर्याप्त साधन मौजूद हो वहां सरसों की फसल की बुवाई के लिए 5 से 6 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करना चाहिए। जिन खेतों में सिंचाई के पर्याप्त साधन उपलब्ध ना हो वहां सरसों की बीज की मात्रा अलग हो सकती है। बतादें , कि बीज की मात्रा फसल की किस्म के आधार पर निर्भर करती है। यदि फसल की समयावधि ज्यादा दिनों की है , तो बीज की मात्रा कम लगेगी। यदि फसल कम समय की है तो बीज की मात्रा ज्यादा लगेगी।

सरसों की उन्नत किस्में

सरसों की खेती के लिए उसकी उन्नत किस्मों की जानकारी होनी भी जरूरी है , जिससे ज्यादा पैदावार हांसिल की जा सकें। सरसों की विभिन्न प्रकार की किस्में सिंचित क्षेत्र व असिंचित क्षेत्र के लिए भिन्न - भिन्न हैं।  

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  1. आर . एच (RH) 30 : सिंचित क्षेत्र व असिंचित क्षेत्र दोनो ही स्थितियों में गेहूं , चना एवं जौ के साथ बुवाई करने के लिए अच्छी होती हैं।
  2. टी 59 ( वरूणा ) : यह किस्म उन क्षेत्रों में अच्छी पैदावार प्रदान करती हैं जहां सिंचाई के साधन की उपलब्धता नहीं होती हैं। इसकी उपज असिंचित क्षेत्र में 15 से 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। इसके दाने में तेल की मात्रा 36 प्रतिशत होती है।
  3. पूसा बोल्ड : आशीर्वाद ( आर . के ) : यह किस्म देर से बुवाई के लिए (25 अक्टूबर से 15 नवंबर तक ) उपयुक्त होती है।
  4. एन . आर . सी . एच . बी . (NRC HB) 101 : ये किस्म उन क्षेत्रों में अच्छी पैदावार प्रदान करती हैं जहां सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था होती हैं। ये किस्म 20 से 22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक का उत्पादन प्रदान करती हैं।

सरसों की फसल में सिंचाई कब और कैसे करें  

सरसों की फसल में पहली सिंचाई 25 से 30 दिन पर करनी चाहिए और दूसरी सिंचाई फलियाें में दाने भरने की अवस्था में करनी चाहिए। अगर जाड़े में वर्षा हो जाती है , तो दूसरी सिंचाई न भी करें तो भी अच्छी पैदावार हांसिल की जा सकती है। ख्याल रहे सरसों में फूल आने के समय खेत की सिंचाई नहीं करनी चाहिए।सरसों की फसल में सिंचाई सामान्यत : पट्टी विधि के माध्यम से करनी चाहिए। खेत के आकार के मुताबिक 4 से 6 मीटर चौड़ी पट्टी बनाकर सिंचाई करनी चाहिए। इस विधि से सिंचाई करने से पानी का वितरण संपूर्ण खेत में समान तौर पर होता है।

सरसों की खेती में खाद व उर्वरक का इस्तेमाल   

आपकी जानकारी के लिए बतादें , कि जिन खेतों में सिंचाई के पर्याप्त साधन मौजूद ना हों वहां के लिए 6 से 12 टन सड़े हुए गोबर की खाद , 160 से 170 किलोग्राम यूरिया , 250 किलोग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट ,50 किलोग्राम म्यूरेट व पोटाश और 200 किलोग्राम जिप्सम बुवाई से पहले खेत में मिलाना उपयुक्त होता है। यूरिया की आधी मात्रा बिजाई के समय और बची हुई आधी मात्रा पहली सिंचाई के उपरांत खेत में मिला दें। जिन खेतों में सिंचाई के उपयुक्त साधन ना हो वहां के लिए वर्षा से पूर्व 4 से 5 टन सड़ी हुई गोबर की खाद , 85 से 90 किलोग्राम यूरिया , 125 किलोग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट , 33 किलोग्राम म्यूरेट व पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई करते समय खेत में डाल दें।

सरसों की खेती में खरपतवार का नियंत्रण

सरसों की खेती में बुवाई के 15 से 20 दिन के समयांतराल में खेत से घने पौधों को बाहर निकाल देना चाहिए। इसके साथ ही उनका आपसी फासला 15 सेंटीमीटर कर देना चाहिए। खरपतवार खत्म करने के लिए सरसों के खेत में निराई और गुड़ाई सिंचाई करने से पूर्व जरूर करनी चाहिए। खरपतवार नष्ट ना होने की स्थिति में दूसरी सिंचाई के पश्चात भी निराई व गुड़ाई करनी चाहिए। रासायनिक विधि से खरपतवार का नियंत्रण करने के लिए बुवाई के शीघ्र पश्चात 2 से 3 दिन के अंदर पेंडीमेथालीन 30 ईसी रसायन की 3.3 लीटर मात्रा को 600 से 800 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से स्प्रे करना चाहिए।भारत में सर्वाधिक लोकप्रिय ट्रैक्टरों की जानकारी के लिए यहां क्लिक करें।

सरसों की फसल कटाई एवं भंडारण

सरसों की फसल में जब 75% फलियां सुनहरे रंग की हो जाए , तब फसल को मशीन से अथवा हाथ से काटकर , सुखाकर अथवा मड़ाई करके बीज को अलग कर लेना चाहिए। सरसों के बीज जब बेहतरीन तरीके से सूख जाएं तभी उनका भंडारण करना चाहिये।

सरसों की खेती से उत्पादन

जिन क्षेत्रों में सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है वहां इसकी पैदावार 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है तथा जिन क्षेत्रों में सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था हैं। वहां 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक का उत्पादन हांसिल हो सकता हैं।

सरसों का बाजार भाव और कमाई

केंद्र सरकार ने इस साल सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में 150 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि कर 5200 रुपये प्रति क्विंटल का भाव तय किया है। पिछले वर्ष सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5050 रुपये था। सरसों की बढ़ती मांग और उपलब्धता में कमी के कारण इस बार खुले बाजारों में न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी ज्यादा भाव मिल रहे हैं। खुले बाजारों में सरसों का 6500 से 9500 रुपये प्रति क्विंटल का भाव मिल रहा है। किसान अपनी सरसों की फसल भारत की प्रमुख मंडियों में जहां कीमत ज्यादा हो , वहां अपनी फसल विक्रय कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त सीधे तेल प्रोसेसिंग कंपनियों से संम्पर्क करके सीधे कंपनियों को भी बेचा जा सकता है। वहीं किसान खुले बाज़ार में व्यापारियों को भी अपनी फसल बेच सकते हैं। बतादें , कि इस साल सरसों की फसल ने किसानों को अच्छे दाम दिलाए हैं। किसानों को आगे भी सरसों के अच्छे भाव मिलने की आशा है।

इस राज्य सरकार ने सरसों की खेती करने वाले किसानों के हित में उठाया महत्वपूर्ण कदम

इस राज्य सरकार ने सरसों की खेती करने वाले किसानों के हित में उठाया महत्वपूर्ण कदम

सरसों की खेती करने वाले हरियाणा के किसानों के लिए एक खुशखबरी है। राज्य के मुख्य सचिव संजीव कौशल का कहना है, कि रबी सीजन के दौरान सरकार किसानों की सरसों, चना, सूरजमुखी व समर मूंग की निर्धारित एमएसपी पर खरीद करेगी। साथ ही, मार्च से 5 जनपदों में उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से सूरजमुखी तेल की आपूर्ति की जाएगी।

मुख्य सचिव ने फसलों के उत्पादन को लेकर क्या कहा है ?

एक बैठक में मुख्य सचिव ने कहा कि इस सीजन में 50 हजार 800 मीट्रिक टन सूरजमुखी, 14 लाख 14 हजार 710 मीट्रिक टन सरसों, 26 हजार 320 मीट्रिक टन चना और 33 हजार 600 मीट्रिक टन समर मूंग की पैदावार होने की उम्मीद है। मुख्य सचिव ने बताया कि हरियाणा राज्य वेयरहाउसिंग कारपोरेशन, खाद्य एवं आपूर्ति विभाग व हैफेड मंडियों में सरसों, समर मूंग, चना और सूरजमुखी की खरीद प्रारंभ करने के लिए तैयारियां शुरू करने के आदेश भी दिए हैं।

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सरकार कब से सरसों की खरीद चालू करेगी 

सरकार मार्च के अंतिम सप्ताह में 5 हजार 650 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से सरसों की खरीद चालू करेगी। इसी प्रकार 5 हजार 440 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से किसानों का चना खरीदा जाएगा। 15 मई से 8 हजार 558 रुपये प्रति क्विंटल की दर से समर मूंग की खरीद होगी। इसी प्रकार एक से 15 जून तक 6760 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से सूरजमुखी की खरीद होगी।

लापहरवाही करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा 

मुख्य सचिव ने खरीद प्रक्रिया के दौरान किसानों की सुविधा के लिए अधिकारियों को समस्त आवश्यक प्रबंध करने एवं खरीदी गई पैदावार का तीन दिन के अंदर भुगतान करने के लिए कहा है। साथ ही, उन्होंने कहा कि काम में लापरवाही करने वालों को बिल्कुल बख्शा नहीं जाएगा। इस फैसले से किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य भी मिल जाएगा।

अरंडी की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

अरंडी की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

किसान भाइयों, अरंडी एक औषधीय वानस्पतिक तेल का उत्पादन करने वाली खरीफ की मुख्य व्यावसायिक फसल है। कम लागत में होने वाली अरंडी के तेल का व्यावसायिक महत्व होने के कारण इसको नकदी फसल भी कहा जा सकता है। किसान भाइयों अरंडी की फसल का आपको दोहरा लाभ मिल सकता है। इसकी फसल से पहले आप तेल निकाल कर बेच सकते हैं। उसके बाद बची हुई खली से खाद बना सकते हैं। इस तरह से आप अरंडी के खेती करके दोहरा लाभ कमा सकते हैं। आइये जानते हैं कि अरंडी की खेती कैसे की जाती है।

भूमि व जलवायु

अरंडी की फसल के लिए दोमट व बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है लेकिन इसकी फसल पीएच मान 5 से 6 वाली सभी प्रकार की मृदाओं में उगाई जा सकती है। अरंडी की फसल ऊसर व क्षारीय मृदा में नहीं की जा सकती। इसकी खेती के लिए खेत में जलनिकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिये अन्यथा फसल खराब हो सकती है।
अरंडी की खेती विभिन्न प्रकार की जलवायु में भी की जा सकती है। इसकी फसल के लिए 20 से 30 सेंटीग्रेट तापमान की आवश्यकता होती है। अरंडी के पौधे की बढ़वार और बीज पकने के समय उच्च तापमान की आवश्यकता होती है। अरंडी की खेती के लिए अधिक वर्षा यानी अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि इसकी जड़ें गहरी होतीं हैं और ये सूखा सहन करने में सक्षम होतीं हैं। पाला अरंडी की खेती के लिए नुकसानदायक होता है। इससे बचाना चाहिये।

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खेत की तैयारी कैसे करें

अरंडी के पौधे की जड़ें काफी गहराई तक जातीं हैं , इसलिये इसकी फसल के लिए गहरी जुताई करनी आवश्यक होती है। जो किसान भाई अरंडी की अच्छी फसल लेना चाहते हैं वे पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें। उसके बाद दो तीन जुताई कल्टीवेटर या हैरों से करें तथा पाटा लगाकर खेत को समतल बना लें। किसान भाइयों सबसे बेहतर तो यही होगा कि खेत में उपयुक्त नमी की अवस्था में जुताई करें। इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जायेगी और खरपतवार भी नष्ट हो जायेगा। इस तरह खेत को तैयार करके एक सप्ताह तक खुला छोड़ देना चाहिये। जिससे पूर्व फसल के कीट व रोग धूप में नष्ट हो सकते हैं ।

अरंडी की मुख्य उन्नत किस्में

अरंडी की मुख्य उन्नत किस्मों मे जीसीएच-4,5, 6, 7 व डीसीएच-32, 177 व 519, ज्योति, हरिता, क्रांति किरण, टीएमवी-6, अरुणा, काल्पी आदि हैं। Aranki ki plant

कब और कैसे करें बुआई

अरंडी की फसल की बुआई अधिकांशत: जुलाई और अगस्त में की जानी चाहिये। किसान भाई अरंडी की फसल की खास बात यह है कि मानसून आने पर खरीफ की सभी फसलों की खेती का काम निपटाने के बाद अरंडी की खेती आराम से कर सकते हैं। अरंडी की बुआई हल के पीछे हाथ से बीज गिराकर की जा सकती है तथा सीड ड्रिल से भी बुआई की जा सकती है। सिंचाई वाले क्षेत्रोंं अरंडी की फसल की बुआई करते समय किसान भाइयों को इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि लाइन से लाइन की दूरी एक मीटर या सवा मीटर रखें और पौधे से पौधे की दूरी आधा मीटर रखें तो आपकी फसल अच्छी होगी। असिंचित फसल के लिए लाइन और पौधों की दूरी कम रखनी चाहिये। इस तरह की खेती के लिए लाइन से लाइन की दूरी आधा मीटर या उससे थोड़ी ज्यादा होनी चाहिये और पौधों से पौधों की दूरी भी लगभग इतनी ही रखनी चाहिये।

कितना बीज चाहिये

किसान भाइयों अरंडी की फसल के लिए बीज की मात्रा , बीज क आकार और बुआई के तरीके और भूमि के अनुसार घटती-बढ़ती रहती है। फिर भी औसतन अरंडी की फसल के लिए प्रति हेक्टेयर 12 से 15 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। छिटकवां बुआई में बीज अधिक लगता है यदि इसे हाथ से एक-एक बीज को बोया जाता है तो प्रतिहेक्टेयर 8 किलोग्राम के लगभग बीज लगेगा। किसान भाइयों को चाहिये कि अरंडी की अच्छी फसल लेने के लिए उन्नत किस्म का प्रमाणित बीज लेना चाहिये। यदि बीज उपचारित नहीं है तो उसे उपचारित अवश्य कर लें ताकि कीट एवं रोगों की संभावना नहीं रहती है। भूमिगत कीटों और रोगों से बचाने के लिए बीजों को कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रतिकिलोग्राम पानी से घोल बनाकर बीजों को बुआई से पहले  भिगो कर उपचारित करें।

खाद एवं उर्वरक प्रबंधन

किसान भाइयों खाद और उर्वरक काफी महंगी आती हैं इसलिये किसी भी तरह की खेती के लिए आप अपनी भूमि का मृदा परीक्षण अवश्य करवा लें और उसके अनुसार आपको खाद और उर्वरक प्रबंधन की अच्छी जानकारी मिल सकेगी। इससे आपका पैसा व समय दोनों ही बचेगा। खेती की लागत कम आयेगी। इसी तरह अरंडी की खेती के लिए जब आप खाद व उर्वरकों का प्रबंधन करें तो मिट्टी की जांच के बाद बताई गयी खाद व उर्वरक की मात्रा का प्रयोग करें। अरंडी की खेती के लिए उर्वरक का अच्छी तरह से प्रबंधन करना होता है। अच्छे खाद व उर्वरक प्रबंधन से अरंडी के दानों में तेल का प्रतिशत काफी बढ़ जाता है। इसलिये इस खेती में किसान भाइयों को कम से कम तीन बार खाद व उवर्रक देना होता है। अरंडी चूंकि एक तिलहन फसल है, इसका उत्पादन बढ़ाने व बीजों में तेल की मात्रा अधिक बढ़ाने के लिए बुआई से पहले 20 किलोगाम सल्फर को 200 से 250 किलोग्राम जिप्सम मिलाकर प्रति हेक्टेयर डालना चाहिये। इसके बाद अरंडी की सिंचित  खेती के लिए 80 किलो ग्राम नाइट्रोजन और 40 किलो फास्फोरस  प्रति हेक्टेयर के हिसाब से इस्तेमाल करना चाहिये तथा असिंचित खेती के लिए 40 किलोग्राम नाइट्रोजन और 20 किलोग्राम फास्फोरस का इस्तेमाल किया जाना चाहिये। इसमें से खेत की तैयारी करते समय आधा नाइट्रोजन और आधा किलो फास्फोरस का प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डालना चाहिये। शेष आधा भाग 30 से 35  दिन के बाद वर्षा के समय खड़ी फसल पर डालना चाहिये। Arandi ki kheti

सिंचाई प्रबंधन

अरंडी खरीफ की फसल है, उस समय वर्षा का समय होता है। वर्षा के समय में बुआई के डेढ़ से दो महीने तक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। इस अवधि में पानी देने से जड़ें कमजोर हो जाती है, जो सीधा फसल पर असर डालती है। क्योंकि अरंडी की जड़ें गहराई में जाती हैं जहां से वह नमी प्राप्त कर लेतीं हैं। जब अरंडी के पौधों की जड़ें अच्छी तरह से विकसित हो जायें और जमीन पर अच्छी तरह से पकड़ बना लें और जब खेती की नमी आवश्यकता से कम होने लगे तब पहला पानी देना चाहिये। इसके बाद प्रत्येक 15 दिन में वर्षा न होने पर पानी देना चाहिये। यदि सिंचाई के लिए टपक पद्धति हो तो उससे इसकी सिंचाई करना उत्तम होगा।

खरपतवार प्रबंधन

अरंडी की फसल में खरपतवार का प्रबंधन शुरुआत में ही करना चाहिये। जब तक पौधे आधे मीटर के न हो जायें तब तक समय-समय पर खरपतवार को हटाना चाहिये तथा गुड़ाई भी करते रहना चाहिये। इसके अलावा खरपतवार नियंत्रण के लिए एक किलोग्राम पेंडीमेथालिन को 600 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के दूसरे या तीसरे दिन छिड़काव करने से भी खरपतवार का नियंत्रण होता  है। लेकिन 40 दिन बाद एक बार अवश्य ही निराई गुड़ाई करवानी चाहिये।

कीट-रोग एवं उपचार

अरंडी की फसल में कई प्रकार के रोग एवं कीट लगते हैं। उनका समय पर उपचार करने से फसल को बचाया जा सकता है। आईये जानते हैं कि कौन से कीट या रोग का किस प्रकार से उपचार किया जाता है:- 1. जैसिड कीट: अरंडी की फसल में जैसिड कीट लगता है। इसका पता लगने पर किसान भाइयों को मोनोक्रोटोफाँस 36 एस एल को एक लीटर प्रति हेक्टेयर का छिड़काव कर देना चाहिये। इससे फसल का बचाव हो जाता है। 2. सेमीलूपर कीट: इसकीट का प्रकोप सर्दियों में अक्टूबर-नवम्बर के बीच होता है। इस कीट को नियंत्रित करने के लिए 1 लीटर क्यूनालफॉस 25 ईसी , लगभग 800 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रतिहेक्टेयर में फसल पर छिड़काव करने से कीट पर नियंत्रण हो जाता है। 3. बिहार हेयरी केटरपिलर: यह कीट भी सेमीलूपर की तरह सर्दियों में लगता है और इसके नियंत्रण के लिए क्यूनालफॉस का घोल बनाकर खड़ी फसल पर छिड़काव करना चाहिये। 4. उखटा रोग: उखटा रोग से बचाव के लिए ट्राइकोडर्मा विरिडि 10 ग्राम प्रतिकिलोग्राम बीज का बीजोपचार करना चाहिये तथा 2.5 ट्राइकोडर्मा को नम गोबर की खाद के साथ बुवाई से पूर्व खेत में डालना अच्छा होता है।

पाले सें बचाव इस तरह करें

अरंडी की फसल के लिए पाला सबसे अधिक हानिकारक है। किसान भाइयों को पाला से फसल को बचाने के लिए भी इंतजाम करना चाहिये। जब भी पाला पड़ने की संभावना दिखाई दे तभी किसान भाइयों को एक लीटर गंधक के तेजाब को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रतिहेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करा चाहिये। यदि पाला पड़ जाये और फसल उसकी चपेट में आ जाये तो 10 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से यूरिया के साथ छिड़काव करें। फसल को बचाया जा सकता है।

कब और कैसे करें कटाई

अरंडी की फसल को पूरा पकने का इंतजार नहीं करना चाहिये। जब पत्ते व उनके डंठल पीले या भूरे दिखने लगें तभी कटाई कर लेनी चाहिये क्योंकि फसल के पकने पर दाने चिटक कर गिर जाते हैं। इसलिये पहले ही इनकी कटाई करना लाभदायक रहेगा। अरंडी की फसल में पहली तुड़ाई 100 दिनों के आसपास की जानी चाहिये। इसके बाद हर माह आवश्यकतानुसार तुड़ाई करना सही रहता है।

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पैदावार

अरंडी की फसल सिंचित क्षेत्र में अच्छे प्रबंधन के साथ की जाये तो प्रतिहेक्टेयर इसकी पैदावार 30 से 35 क्विंटल तक हो सकती है जबकि  असिंचित क्षेत्र में 15 से 23 क्विंटल तक प्रतिहेक्टेयर पैदावार मिल सकती है।
दोगुना मुनाफा देने वाली हल्दी की खेती से संबंधित सम्पूर्ण जानकारी

दोगुना मुनाफा देने वाली हल्दी की खेती से संबंधित सम्पूर्ण जानकारी

किसान भाइयों आज के इस लेख में हम आपको ऐसे फसल के बारे में बताएंगे, जिसकी मांग खेती के साथ-साथ व्यवसाय में भी बहुत होती है। उस फसल का नाम है हल्दी। जी हाँ, हल्दी की मांग भोजन के साथ साथ व्यवसायिक क्षेत्र में इसके अंदर विघमान औषधीय गुणों की वजह से बनी रहती है। 

इसलिए किसान भाइयों के लिए हल्दी की खेती करना एक बड़े मुनाफे का सौदा साबित हो सकता है। यदि हल्दी की खेती के साथ-साथ आप हल्दी का कारोबार भी करते हैं, तो आपको और अधिक लाभ प्राप्त होगा। 

हल्दी के अंदर बहुत सारे औषधीय गुण विघमान होते हैं। अब ऐसे में यदि आप हल्दी की खेती करेंगे तो आपको तगड़ा मुनाफा हांसिल होगा। 

हल्दी की खेती कब और कैसे करें ? 

हल्दी की बुवाई मई-जून के दौरान की जाती है। हल्दी की खेती करने के लिए सर्वप्रथम खेत की 2-3 बार बेहतर ढ़ंग से जोत देना चाहिए। इससे मृदा भुरभुरी हो जाएगी। मिट्टी जितनी भुरभुरी होगी, उसमें हल्दी उतनी ही अच्छे ढ़ंग से बैठेगी।

खेत में जल निकासी की बेहतरीन सुविधा होनी जरूरी है, जिससे कि पानी ना रुके वरना हल्दी की फसल बर्बाद हो सकती है। हल्दी की खेती उसके छोटे-छोटे अंकुरित बीजों द्वारा की जाती है। 

हल्दी की खेती कतारबद्ध तरीके से की जाती है और थोड़ी बड़ी होने पर उस पर दोनों तरफ से थोड़ी-थोड़ी मिट्टी चढ़ा दी जाती है। 

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क्योंकि, इसकी वजह से हल्दी को फैलने और अच्छे से बैठने के लिए पर्याप्त मात्रा में मिट्टी और स्थान मिल जाता है। इसकी फसल लगभग 8 महीने में पककर तैयार हो जाती है। 

हल्दी की फसल की सबसे खास बात यह है, कि यह छायादार स्थान में भी शानदार उपज देती है। ऐसे में यदि आप बागवानी करते हैं, तो पेड़ों के मध्य की भूमि में आप हल्दी लगा सकते हैं और अतिरिक्त आय भी कर सकते हैं। 

हल्दी की खेती से कितनी उपज प्राप्त होगी ? 

हल्दी की खेती का उत्पादन काफी सीमा तक इस बात पर भी आश्रित होता है, कि आप किस गुणवत्ता का बीज लगाते हैं। हल्दी के बीज लेते समय ख्याल रखें, कि उन्हें शानदार ढ़ंग से उपचारित किया गया हो और उनमें बेहतर तरीके से अंकुर आ गया हो। 

बीज जितने मजबूत होंगे, आपकी फसल उतनी ही अच्छी होगी। इसके बीज आप अपने समीपवर्ती किसी बीज भंडार से ले सकते हैं अथवा फिर किसी ऐसे किसान से बीज प्राप्त कर सकते हैं, जिसने पहले हल्दी की खेती की हो। 

ये भी जानकारी कर लें कि आस-पास कोई सरकारी संस्था भी हल्दी के बीज उपलब्ध कराती है या नहीं। सरकारी संस्था से आपको बेहतरीन बीज भी काफी सस्ते भाव में मिल जाएंगे। एक हेक्टेयर में हल्दी की खेती के लिए आपको लगभग 20 क्विंटल तक बीज की आवश्यकता पड़ेगी। 

हल्दी की खेती में आने वाला खर्चा और लाभ  

हल्दी की खेती में लगभग 40-50 हजार रुपये का तो बीज ही लग जाएगा। वहीं, इसकी बुवाई से लेकर सिंचाई, उर्वरक और फिर कटाई तक में भी आपका लगभग 50 हजार रुपये की लागत आ जाएगी। 

मतलब कि 1 हेक्टेयर (करीब 2.5 एकड़) में हल्दी की खेती में आपकी करीब 1 लाख रुपये की लागत आ जाएगी। यदि आपकी फसल सही रहती है, तो आप एक हेक्टेयर से 200 क्विंटल तक हल्दी की उपज आसानी से हासिल कर सकते हैं। यह आराम से 160-180 क्विंटल तक मिल ही जाती है। 

यदि मान लें कि आपकी फसल औसत रहती है और आपको केवल 160 क्विंटल ही हल्दी हांसिल होती है तो भी आपको लाभ ही होगा। कच्ची हल्दी बाजार में बेचने से फायदा नहीं होता है, ऐसे में उसे उबालकर सुखाया जाता है और फिर पीसकर बेचा जाता है। 

सूखने के बाद हल्दी एक चौथाई रह जाती है। अर्थात आपकी हल्दी 40 क्विंटल के करीब रह जाएगी। अगर आप इसे बिना पीसे भी बेचना चाहते हैं तो भी आसानी से आपको 70-80 रुपये प्रति किलो का भाव मिल जाएगा। 

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यानी आपकी हल्दी 2.80-3.20 लाख रुपये तक की बिकेगी। इस तरह आपको हल्दी की खेती से केवल 8 माह में ही दोगुने से तीन गुने तक का मुनाफा मिलेगा। 

किसान इस तरह हल्दी की खेती से कमा सकते हैं अधिक मुनाफा   

यदि आप किसी फार्मा या कॉस्मेटिक कंपनी से पहले से ही कॉन्ट्रैक्ट कर लें, तो आपको काफी तगड़ा मुनाफा मिलेगा। ऐसा इस वजह से क्योंकि इस प्रकार खेती के माध्यम से आप पहले ही निश्चित कर पाएंगे कि किस किस्म की हल्दी उगानी है और कितनी मात्रा में उगानी है। 

यानी हल्दी उगाने के बाद आपको उसकी बिक्री की भी कोई चिंता नहीं रहेगी। इस तरह खेती में आप शानदार कीमत पहले ही निर्धारित कर सकते हैं और हल्दी को प्रोसेस कर के पीसकर या बिना पीसे सीधे कंपनी को भेज सकते हैं। इससे कंपनियों को बेहतरीन हल्दी मिलेगी और आपको शानदार कीमत हांसिल होगी।

हर सब्जी के साथ उपयोग होने वाले आलू को घर पर उगाने का आसान तरीका क्या है?

हर सब्जी के साथ उपयोग होने वाले आलू को घर पर उगाने का आसान तरीका क्या है?

कोई भी व्यक्ति अपने घर में आलू का उत्पादन करके काफी धन की बचत कर सकता है। ये एक ऐसी सब्जी है, जिसका इस्तेमाल प्रत्येक सब्जी में किया जाता है। आलू एक ऐसी सब्जी है, जिसका उपयोग हर घर में किया जाता है। ये भारत के घरों में सबसे ज्यादा इस्तेमाल में आने वाली सब्जी भी है। आलू की सब्जी घरों में विभिन्न प्रकार से बनती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आप इसे घर में भी उगा सकते हैं। इसे घर पर लगाने के बाद बाजार से आलू खरीदकर लाने का झंझट ही खत्म हो जाएगा, आइए जानते हैं इसे घर में लगाने का आसान तरीका। 

आलू उगाने के समय इन बातों का विशेष ध्यान रखें 

यदि आप अपने घर पर ही आलू उगाना चाहते हैं, तो आप अच्छे बीजों का चुनाव करें। आलू उगाने के लिए आप सर्टिफाइड बीजों का ही चयन करें। इसके अतिरिक्त आप आलू को भी बीज के तोर पर उपयोग कर सकते हैं। अगर आप आलू का उपयोग कर रहे हैं, तो आप सफेद बड्स अथवा फिर स्प्राउट्स नजर आने वाले बीजों को इस्तेमाल में लें। इस कारण से शीघ्र ही पौधे निकल आऐंगे। ये भी पढ़ें:
आलू की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी आलू या फिर किसी भी बाकी फसल की खेती में मृदा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसके लिए आप शानदार मृदा लें उसमें बेहतर ढंग से खाद डालें। आप इसके लिए 50 प्रतिशत मिट्टी, 30 प्रतिशत वर्मी कम्पोस्ट एवं 20 फीसदी कोको पीट का उपयोग कर सकते हैं। आप इन समस्त चीजों को मिलाकर एक बड़े गमले में लगा दें।

आलू को घर पर बेहतर ढ़ंग से उगाऐं 

आलू के अंकुरों को गमले, कंटेनर अथवा क्यारी में मृदा के नीचे 5-6 इंच नीचे दबा दें। ऊपर से सही ढक कर पानी डाल दें। आप बाजार में बड़े गमले, ग्रो बैग, घर पर कोई पुरानी बाल्टी अथवा कंटेनर का भी उपयोग कर सकते हैं। आलू के अंकुरों को गमले, कंटेनर या क्यारी में मृदा के नीचे 5-6 इंच नीचे दबा दें। ऊपर से सही तरीके से पानी डाल दें। आप बाजार में उपलब्ध ग्रो बैग, बड़े गमले, घर पर कोई पुरानी बाल्टी अथवा कंटेनर भी उपयोग कर सकते हैं। 
इस तरह करें अगेती आलू की खेती

इस तरह करें अगेती आलू की खेती

आज हम आपको जानकारी देने जा रहे है सब्जियों के "राजा साहब" आलू की. आलू एक ऐसी सब्जी है जो की किसी भी सब्जी के साथ मिल जाती है, आलू के व्यंजन भी बनाते है जिनकी गिनती करने लगो तो समय कम पड़ जाये. क्षेत्र के हिसाब से इसके भांति भांति के व्यंजन बनते हैं सब्जी के साथ साथ आलू की भुजिआ , नमकीन , जिप्स, टिक्की, पापड़, पकोड़े, हलुआ आदि. आलू एक ऐसी सब्जी है जब घर में कोई सब्जी न हो तो भी अकेले आलू की सब्जी या चटनी बनाई जा सकती है. सबसे खास बात ये किसान के लिए सबसे बर्वादी वाली फसल है और सबसे ज्यादा आमदनी वाली फसल भी है. सामान्यतः किसानों में एक कहावत प्रचलित है की आलू के घाटे को आलू ही पूरा कर सकता है. इससे इसकी अहमियत पता चलती है.

खेत की तैयारी:

किसी भी जमीन के अंदर वाली फसल के लिए खेत की मिटटी भुरभुरी होनी चाहिए जिससे की फसल को पनपने के लिए पर्याप्त जगह मिल सके, क्योकि किसी ठोस या कड़क मिटटी में वो पनप नहीं पायेगी. हमेशा आलू के खेत की मिटटी को इतना भुरभरा बना दिया जाता है की इसमें से कोई भी आदमी दौड़ के पार न कर सके. इसका मतलब इसको बहुत ही गहराई के साथ जुताई की जाती है. अभी का समय आलू के खेत को तैयार करने का सही समय है. सबसे पहले हमको खेत में बनी हुई
गोबर की खाद दाल देनी चाहिए और खाद की मात्रा इतनी होनी चाहिए जिससे की खेत की मिटटी का रंग बदल जाये, कहने का तात्पर्य है की अगर हमें 100 किलो खाद की जरूरत है तो हमें इसमें 150 किलो खाद डालना चाहिए इससे हमें रासायनिक खाद पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा और हमारा आलू भी अच्छी क्वालिटी का पैदा होगा.

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आलू की बुबाई से पहले खेत में जिंक आदि मिलाने की सोच रहे हैं तो पहले मिटटी की जाँच कराएं उसके बाद जरूरत के हिसाब से ही जिंक या पोटाश मिलाएं. ऐसा न करें की आपका पडोसी क्या लाया है वही आप भी जाकर खरीद लाएं किसी भी दुकानदार के वाहकावें में न आएं. आप जो भी पैसा खर्च करतें है वो आपकी खून पसीने की कमाई होती है. किसी को ऐसे ही न लुटाएं.

अगेती आलू की खेती का समय:

अगेती आलू की खेती का समय क्षेत्र के हिसाब से अलग अलग होता है. इसको लगाने के समय मौसम के हिसाब से होता है. इसको विकसित होने के लिए हलकी ठण्ड की आवश्यकता होती है. अगर हम उत्तर भारत की बात करें तो ध्यान रहे की इसकी फसल दिसंबर तक पूरी हो जानी  चाहिए. इसकी बुवाई लगभग सितम्बर/अक्टूबर में शुरू हो जाती है. आलू दो तरह का बोया जाता है एक फसल इसकी कोल्ड स्टोरेज में रखी जाती है उसकी खुदाई फरबरी और मार्च में होती है और जो कच्ची फसल होती है उसको स्टोर नहीं किया जा सकता उसकी खुदाई दिसंबर में हो जाती है. सितम्बर से कच्चा आलू देश के अन्य हिस्सों से आना शुरू हो जाता है.

जमीन और मौसम:

आलू के लिए दोमट और रेतीली मिटटी ज्यादा मुफीद होती है, याद रखें की पानी निकासी की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए जिससे की आलू के झोरा के ऊपर पानी न जा पाए. आलू में पानी भी कम देना होता है जिससे की उसके आस पास की मिटटी गीली न हो बस उसको नीचे से नमी मिलती रहे. जिससे की आलू को फूलने में कोई भी अवरोध न आये. आलू पर पानी जाने से उसके ऊपर दाग आने की संभावना रहती है, तो  आलू में ज्यादा पानी देने से बचना चाहिए.

अगेती आलू की खेती के बीज का चुनाव:

  • किसी भी फसल के लिए उसके बीज का चुनाव सबसे महत्वपूर्ण होता है. आलू में कई तरह के बीज आते हैं इसकी हम आगे बात करेंगें.आलू के बीज के लिए कोशिश करें की नया बीज और रोगमुक्त बीज प्रयोग में लाएं. इससे आपके फसल की पैदावार के साथ साथ आपकी पूरे साल की मेहनत और मेहनत की कमाई दोनों ही दाव पर लगे होते हैं.
  • कई बार आलू के बीज की प्रजाति उसके क्षेत्र के हिसाब से भी बोई जाती है. इसके लिए अपने ब्लॉक के कृषि अधिकारी से संपर्क किया जा सकता है या जो फसल अच्छी पैदावार देती है उसका भी प्रयोग कर सकते हैं. ज्यादा जानकारी के लिए आप हमें लिख सकते हैं.
  • आलू का बीज लेते समय ध्यान रखें रोगमुक्त और बड़ा साइज वाला आलू प्रयोग करें, लेकिन ध्यान रहे की बीज इतना भी महगा न हो की आपकी लागत में वृद्धि कर दे. ज्यादातर देखा गया है की छोटे बीज में ही रोग आने की संभावना ज्यादा होती है.


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बुवाई का तरीका:

वैसे तो आजकल आलू बुबाई की अतिआधुनिक मशीनें आ गई है लेकिन बुवाई करते समय ध्यान रखना चाहिए की लाइन में पौधे से पौधे की दूरी 20 से 25 सेंटीमीटर होनी चाहिए और झोरा से झोरा की दूरी 50 सेंटीमीटर होनी चाहिए. इससे से पौधे को भरपूर रौशनी मिलती है और उसे फैलाने और फूलने के लिए पर्याप्त रोशनी और हवा मिलती है. पास पास पौधे होने से आलू का साइज छोटा रहता है तथा इसमें रोग आने की संभावना भी ज्यादा होती है. [video width="640" height="352" mp4="https://www.merikheti.com/assets/post_images/m-2020-08-aloo-1.mp4" autoplay="true" preload="auto"][/video]

खाद का प्रयोग:

  • जैसा की हम पहले बता चुके हैं की आलू के खेत में बानी हुई गोबर की खाद डालनी चाहिए इससे रासायनिक खादों से बचा जा सकता है.
  • पोटाश 50 से 75 किलो और जिंक ७.५  पर एकड़ दोनों को मिक्स कर लें और 50 किलो पर एकड़ यूरिया मिला के खेत में बखेर दें, और DAP खाद 200 किलो एकड़ खेत में डाल के ( जिंक और DAP को न मिलाएं) ऊपर से कल्टिवेटर से जुताई करके पटेला/साहेल/सुहागा लगा दें.उसके बाद आलू की बुबाई कर सकते है. इसके 25 दिन बाद हलकी सिचाईं करें उसके बाद यूरिआ 50 से 75 किलो पर एकड और 10 किलो पर एकड़  जाइम मिला कर बखेर दें. पहले पानी के बाद फपूँदी नाशक का स्प्रे करा दें.

मौसम से बचाव:

इसको पाले से पानी के द्वारा ही बचाया जा सकता है. जब भी रात को पाला पड़े तो दिन में आपको पानी लगाना पड़ेगा. ज्यादा नुकसान होने पर 5 से 7 किलो पर एकड़ सल्फर बखेर दें जिससे जाड़े का प्रकोप काम होगा.

आलू की प्रजाति:

3797, चिप्सोना, कुफऱी चंदरमुखी, कुफरी अलंकार, कुफरी पुखराज, कुफरी ख्याती, कुफरी सूर्या, कुफरी अशोका, कुफरी जवाहर, जिनकी पकने की अवधि 80 से 100 दिन है
बारिश के चलते बुंदेलखंड में एक महीने लेट हो गई खरीफ की फसलों की बुवाई

बारिश के चलते बुंदेलखंड में एक महीने लेट हो गई खरीफ की फसलों की बुवाई

झांसी। बुंदेलखंड के किसानों की समस्या कम होने की बजाय लगातार बढ़ती जा रहीं हैं। पहले कम बारिश के कारण बुवाई नहीं हो सकी, अब बारिश बंद न होने के चलते बुवाई लेट हो रहीं हैं। इस तरह बुंदेलखंड के किसानों के सामने बड़ी परेशानी खड़ी हो गई है। मौसम खुलने के 5-6 दिन बाद ही मूंग, अरहर, तिल, बाजरा और ज्वर जैसी फसलों की बुवाई शुरू होगी। लेकिन बुंदेलखंड में इन दिनों रोजाना बारिश हो रही है, जिससे बुवाई काफी पिछड़ रही है।

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बारिश से किसानों पर पड़ रही है दोहरी मार

- 15 जुलाई को क्षेत्र के कई हिस्सों में करीब 100 एमएम बारिश हुई, जिससे किसानों ने थोड़ी राहत की सांस ली और किसान खेतों में बुवाई की तैयारियों में जुट गए। लेकिन रोजाना बारिश होने के चलते खेतों में अत्यधिक नमी बन गई है, जिसके कारण खेतों को बुवाई के लिए तैयार होने में वक्त लगेगा। वहीं शुरुआत में कम बारिश के कारण बुवाई शुरू नहीं हुई थी। इस तरह किसानों को इस बार दोहरी मार झेलनी पड़ रही है।

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नमी कम होने पर ही खेत मे डालें बीज

- खेत में फसल बोने के लिए जमीन में कुछ हल्का ताव जरूरी है। लेकिन यहां रोजाना हो रही बारिश से खेतों में लगातार नमी बढ़ रही है। नमी युक्त खेत में बीज डालने पर वह बीज अंकुरित नहीं होगा, बल्कि खेत में ही सड़ जाएगा। इसमें अंकुरित होने की क्षमता कम होगी। बारिश रुकने के बाद खेत में नमी कम होने पर ही किसान बुवाई कर पाएंगे।

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रबी की फसल में हो सकती है देरी

- खरीफ की फसलों की बुवाई लेट होने का असर रबी की फसलों पर भी पड़ता दिखाई दे रहा है। जब खरीफ की फसलें लेट होंगी, तो जाहिर सी बात है कि आगामी रबी की फसल में भी देरी हो सकती है।
इस घास से किसानों की फसल को होता है भारी नुकसान, इसको इस तरह से काबू में किया जा सकता है

इस घास से किसानों की फसल को होता है भारी नुकसान, इसको इस तरह से काबू में किया जा सकता है

भारत में खेती-किसानी से काफी मोटी आमदनी अर्जित करने के लिए मुनाफा प्रदान करने वाली फसलों समेत हानि पहुँचाने वाली फसलों का भी ख्याल रखना बहुत आवश्यक होता है। क्योंकि एक छोटी घास भी काफी बड़ी हानि पहुंचाती है। इसी मध्य आपको एक ऐसी ही घास के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसकी वजह से फसल को 40 प्रतिशत तक हानि पहुंच सकती है, जिससे बचना काफी जरूरी हो जाता है। बतादें, कि देश में कृषि के अंतर्गत फसलों में सर्वाधिक हानि खरपतवारों की वजह मानी जा रही है। यह हानिकारक घास पौधों का पोषण सोखकर उनको कमजोर कर देती है। साथ ही, कीट-रोगों को भी निमंत्रण दे देती है, जिसके वजह से फसलों की पैदावार 40 प्रतिशत कम हो जाती है।

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टमाटर की किस्में, कीट एवं रोग नियंत्रण गाजर घास खेतों में तबाही मचाने वाली इन्हीं परेशानियों में सम्मिलित है, जिसके संपर्क में आते ही फसलें ही नहीं लोगों का स्वास्थ्य भी बुरी तरह प्रभावित होती है। इस प्रकार के खरपतवारों पर नियंत्रण करने के लिए कृषि विशेषज्ञों की ओर से निरंतर प्रबंधन एवं निगरानी करने की राय दी जाती है। जिससे कि किसान भाई अपनी फसल में वक्त से ही खरपतवारों पर नियंत्रण पाया जा सके। साथ ही, फसलों में हानि होने से रोकी जा सके।

गाजर घास से क्या-क्या हानि होती है

बेहद कम लोग इस बात से अवगत हैं, कि खेतों में गाजर घास उगने पर फसलों के साथ-साथ किसानों के स्वास्थ पर भी दुष्प्रभाव पड़ा है। इसके संपर्क में आते ही बुखार, दमा, एग्जिमा और एलर्जी जैसी बीमारियों की आशंका बढ़ जाती है। यह घास फसलों की पैदावार और उत्पादकता पर प्रभाव डालती है। विशेष रूप से अरण्डी, गन्ना, बाजरा, मूंगफली, मक्का, सोयाबीन, मटर और तिल के साथ साथ सब्जियों सहित बहुत सारी बागवानी फसलों पर इसका प्रभाव देखने को मिलता है। इसके चलते फसल के अंकुरण से लेकर पौधों का विकास तक संकट में रहता है। इसके प्रभाव की वजह से पशुओं में दूध पैदावार की क्षमता भी कम हो जाती है। इसकी वजह से पशु चारे का स्वाद भी कड़वा हो जाता है। साथ ही, पशुओं के स्वास्थ्य पर भी दुष्प्रभाव पड़ने लगता है। कहा जाता है, कि फसलों पर 40 प्रतिशत तक की हानि होती है।

नुकसानदायक गाजर घास भारत में कैसे आई थी

बतादें, कि यह घास भारत के प्रत्येक राज्य में पाई जाती है। यह लगभग 35 मिलियन हेक्टेयर में फैली हुई है। यह घास खेत खलिहानों में जम जाती है। आस-पास में उगे समस्त पौधों का टिकना कठिन कर देती है, जिसके चलते औषधीय फसलों के साथ-साथ चारा फसलों की पैदावार में भी कमी आती है। विशेषज्ञों के मुताबिक, यह घास भारत की उपज नहीं है। यह वर्ष 1955 के समय अमेरिका से आयात होने वाले गेहूं के माध्यम से भारत आई। समस्त प्रदेशों में गेहूं की फसल के माध्यम से फैली है।

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गाजर घास को किस तरह से नियंत्रण में लाया जा सकता है

गाजर घास को नियंत्रित करने हेतु बहुत सारे कृषि संस्थान और कृषि वैज्ञानिक जागरुकता अभियान का संचालन करते हैं, जिससे जान-मान का खतरा नहीं हो सके। साथ ही, एग्रोनॉमी विज्ञान विभाग खरपतवार अनुसंधान निदेशालय, जबलपुर और चौधरी सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय और हिसार किसानों से जानकारियां साझा कर रहे हैं। वहीं, कुछ कृषि विशेषज्ञ रोकथाम करने हेतु खरपतवारनाशी दवायें जैसे- सोडियम क्लोराइड, सिमाजिन, एट्राजिन, एलाक्लोर और डाइयूरोन सल्फेट आदि के छिड़काव की सलाह दे रहे हैं। इसके अतिरिक्त इसके जैविक निराकरण के तौर पर एक एकड़ हेतु बीटल पालने की राय दी जाती है। प्रति एकड़ खेत में 3-4 लाख कीटों को पालकर गाजर घास का जड़ से खत्मा किया जा सकता है। चाहें तो जंगली चौलाई, केशिया टोरा, गेंदा, टेफ्रोशिया पर्पूरिया जैसे पौधों को पैदाकर के भी इसके प्रभाव से बचा जा सकता है।

गाजर घास के बहुत सारे फायदे भी हैं

वैसे तो गाजर घास खरपतवारों के तौर पर फसलों के लिए बड़ी परेशानी है। परंतु, इसमें विघमान औषधीय गुणों की वजह से यह संजीवनी भी बन सकती है। किसान इसका उपयोग वर्मीकंपोस्ट यूनिट में किया जा सकता हैं। जहां यह खाद के जीवांश एवं कार्बनिक गुणों में वृद्धि करती है। साथ ही, एक बेहतरीन खरपतवारनाशक, कीटनाशक और जीवाणुनाशक दवा के रूप में भी इसका उपयोग किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त मृदा के कटाव को रोकने के लिए भी गाजर घास की अहम भूमिका है। इस वजह से किसान सावधानी से गाजर घास का प्रबंधन कर सकते हैं।
NCRB की रिपोर्ट में देश के किसानों की आत्महत्या के मामलों में इजाफा

NCRB की रिपोर्ट में देश के किसानों की आत्महत्या के मामलों में इजाफा

एनसीआरबी की नई रिपोर्ट के मुताबिक, कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों की आत्महत्या करने के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की ताजा खबरों के मुताबिक साल 2022 में खेती किसानी से जुड़े लोगों की आत्महत्या से होने वाली मौतों में निरंतर बढ़ोतरी हो रही है। चार दिसंबर को जारी लेटेस्ट अपडेट के मुताबिक राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार बीते वर्ष देश भर से तकरीबन 11,290 आत्महत्या के ऐसे मामले सामने आए हैं। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि 2021 से 3.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। इस दौरान 10,281 मौतें दर्ज की गई थीं। 2020 के आंकड़ों की तुलना में 5.7 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। 2022 के आंकड़े कहते हैं, कि भारत में प्रति घंटे कम से कम एक किसान ने आत्महत्या कर ली है। साथ ही, 2019 से कृषकों की आत्महत्या से होने वाली मौतों में बढ़ोतरी देखी जा रही है, जब NCRB डेटा में 10,281 मौतें दर्ज की गईं। खबरों के अनुसार, विगत कुछ वर्ष भारत में कृषि के लिए शानदार नहीं रहे हैं। साल 2022 में जिस साल के लिए एनसीआरबी ने डेटा जारी किया है। बहुत सारे प्रदेशों में सूखे की हालत एवं असामयिक निरंतर वर्षा भी हुई है, जिसकी वजह से खड़ी फसलें तक तबाह हो गईं। वहीं, चारे की कीमतें आसमान छू रही हैं। 

कृषि से जुड़े कितने लोगों ने आत्महत्या की 

रिपोर्ट के मुताबिक, खेती में लगे 11,290 व्यक्तियों में से आत्महत्या करने वालों में 53 फीसद (6,083) खेतिहार मजदूर हैं। विगत कुछ वर्षों में एक औसत कृषि परिवार की अपनी आमदनी के लिए फसल उत्पादन की अपेक्षा खेती से मिलने वाली मजदूरी पर निर्भरता बढ़ती जा रही है। वर्ष 2022 में आत्महत्या करने वाले 5,207 किसानों में 4,999 पुरुष हैं, वहीं 208 महिलाएं भी शम्मिलित हैं। 

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इन राज्यों में आत्महत्या नहीं हुई है 

आत्महत्या करने वाले 6,083 कृषि श्रमिकों में 5,472 पुरुष एवं 611 महिलाएं शामिल हैं। वहीं, महाराष्ट्र में 4,248, कर्नाटक में 2,392, आंध्र में 917 कृषि आत्महत्या के मामले दर्ज किए गए हैं। रिपोर्ट की मानें तो उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, चंडीगढ़, वेस्ट बंगाल, ओडिशा, बिहार, लक्षद्वीप पुदुचेरी में कृषि क्षेत्र से संबंधित कोई आत्महत्या दर्ज नहीं की गई है।
इस योजना के तहत सोलर पंप की स्थापना के लिए 60 प्रतिशत सब्सिड़ी प्रदान की जाती है ?

इस योजना के तहत सोलर पंप की स्थापना के लिए 60 प्रतिशत सब्सिड़ी प्रदान की जाती है ?

कृषक भाइयों के फायदे के लिए सरकार निरंतर विभिन्न योजनाऐं संचालित करती है। कृषि क्षेत्र में सहयोग के लिए सरकार कुसुम योजना चला रही है, जिसका आप फायदा उठा सकते हैं। सोलर पंप एक ऐसा साधन है, जिससे किसान भाइयों को बिजली बिल से सहूलियत मिलती है। ये पर्यावरण के लिए भी काफी फायदेमंद है। सरकार की विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत किसानों को सोलर पंप स्थापित कराने के लिए अनुदान प्रदान किया जाता है। अगर हम इसकी लागत की बात करें तो ये खेती में सिंचाई की आवश्यकताओं, खेत की मृदा की प्रकृति एवं सोलर पंप की क्षमता पर निर्भर होती है। सोलर पंप की स्थापना के लिए आप सरकार की योजनाओं का भी फायदा उठा सकते हैं। सरकार बहुत सारी योजनाओं के अंतर्गत कृषकों को सोलर पंप लगवाने के लिए अनुदान देती है।

कुसुम योजना के तहत कितने प्रतिशत अनुदान दिया जा रहा है 

बतादें, कि कुसुम योजना भी इन्हीं में से एक है। इस योजना के अंतर्गत कृषकों को सोलर पंप की स्थापना के लिए 60% प्रतिशत का अनुदान दिया जाता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, ये पंप कृषकों के अतिरिक्त पंचायतों एवं सहकारी समितियों को भी निशुल्क मुहैय्या कराए जाते हैं। इसके अतिरिक्त, सरकार अपने खेतों के आसपास सोलर पंप संयंत्रों की स्थापना के लिए लागत का 30 फीसद तक ऋण मुहैय्या कराती है। यही, वजह है कि कृषकों को इस परियोजना पर सिर्फ दस फीसद खर्च करना पड़ेगा। इस योजना से कृषकों की सिंचाई की दिक्कतें हल हो सकती हैं। साथ ही, कृषकों को बिजली अथवा डीजल पंपों से सिंचाई करने पर ज्यादा धन खर्च करना होता है।

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कुसुम योजना का लाभ लेने हेतु आवश्यक दस्तावेज 

  • लाभार्थी किसान का आधार कार्ड
  • लाभार्थी किसान का राशन कार्ड
  • लाभार्थी किसान की बैंक अकाउंट डिटेल्स
  • सोलर पंप का उपयोग करने से होने वाले लाभ
  • सोलर पंप के जरिए खेती करने से बिजली की जरूरत नहीं होती, जिससे किसानों को बिजली बिल से छुटकारा मिलता है। 
  • सोलर पंप पर्यावरण के लिए भी अत्यंत फायदेमंद होती हैं, क्योंकि इनसे प्रदूषण नहीं फैलता है। 
  • सोलर पंप का खर्चा काफी कम होता है और इनका रख-रखाव भी काफी सामान्य रहता है। 
इस नई साल में आने वाली ठंड किसानों की फसलों को कितना नुकसान पहुँचाने वाली है?

इस नई साल में आने वाली ठंड किसानों की फसलों को कितना नुकसान पहुँचाने वाली है?

नये साल के दस्तक देते ही फिलहाल तेजी से ठंड बढ़नी शुरू हो गई है, जिससे आमजन जीवन पर भी काफी प्रभाव पड़ रहा है। सर्दियों के दिनों में खेती से संबंधित काम करने में भी कठिनाइयाँ आती हैं। ऐसे में मौसम विभाग ने किसानों की चिंता को और ज्यादा बढ़ा दिया है। मौसम विभाग के मुताबिक, आगामी दिनों में कड़ाके की ठंड पड़ेगी। IMD के मुताबिक, बहुत सारी जगहों पर तापमान शून्य से भी नीचे जाने की संभावना जताई जा रही है।अब ऐसी स्थिति में किसानों को ज्यादा सावधानी बरतने की आवश्यकता है।

किसानों पर संकट आने की काफी संभावना है 

भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड पड़ने की चेतावनी दी है। इस दौरान तापमान जीरो डिग्री सेल्सियस से भी नीचे जा सकता है।ठंड की वजह से किसानों को विभिन्न प्रकार की मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। इससे कृषकों को सर्वाधिक समस्या हो सकती है। उनमें फल, सब्जी समेत बाकी फसलों का उत्पादन करने वाले कृषक भाई सम्मिलित हैं।

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किसान भाई क्या उपाय करें ?

  • फल और सब्जियों की फसलों को ढ़ककर रखें। 
  • पशुओं को गर्म रखने की व्यवस्था करें। समय पर उनके लिए उचित मात्रा में चारा एवं पानी मुहैय्या कराऐं। 
  • कौन-से क्षेत्रों में ज्यादा ठंड पड़ेगी ?
  • पहाड़ी क्षेत्रों के अतिरिक्त राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में आगामी दिनों में प्रचंड ठंड पड़ेगी। 

मौसमिक परिवर्तन से बागवानी को काफी हानि 

बतादें, कि सर्दी में इजाफा होने की वजह से फल और सब्जियों की फसलों को काफी क्षति पहुंच सकती है। बतादें, कि गोभी, मटर, प्याज, टमाटर, बैंगन और आलू जैसी फसलों को हानि हो सकती है। इन फसलों को ठंड से संरक्षित करने के लिए किसानों को काफी सावधानी बरतनी पड़ेगी। साथ ही, ठंड की वजह से धान की फसलों के बीज अंकुरण में विलंभ हो सकता है। इससे धान की फसल की उपज काफी प्रभावित हो सकती है। इनके अतिरिक्त ठंड की वजह से पशुओं के बीमार पड़ने का खतरा बढ़ जाता है। पशुओं को ठंड से संरक्षित रखने के लिए किसानों को अत्यंत सावधानी बरतनी चाहिए।

बढ़ती ठंड के मौसम में फसलों पर लग रहे कीड़ों से कैसे बचाऐं फसल

बढ़ती ठंड के मौसम में फसलों पर लग रहे कीड़ों से कैसे बचाऐं फसल

सर्दियों के दिनों में भी फसलों पर कीड़ों का प्रभाव देखने को मिल सकता है। ऐसी स्थिति में किसान भाइयों को कुछ आवश्यक बातों का खास ध्यान रखना पड़ेगा। बतादें, कि कुछ कृषकों का मानना है, कि सर्दियों के दौरान फसलों के अंदर कीट नहीं लगते हैं। परंतु, सच ये है कि सर्दी के मौसम में भी आपकी फसल पर कीड़े लग सकते हैं। कीड़ों से फल का संरक्षण करने के लिए आपको कुछ आवश्यक बातों का ध्यान रखना पड़ेगा।


विशेषज्ञों के मुताबिक, सर्दी के दौरान फसलों में कीट लगने की दिक्कत एक सामान्य बात है। बतादें, कि इस समय तापमान कम होता है, इस कीटों के लगने की घटनाएं कम हो जाती हैं। परंतु, ये पूरी तरह से समाप्त नहीं होते हैं। कुछ कीड़े सर्दियों में भी फसल को काफी हानि पहुँच सकती है, जिनसे संरक्षण के लिए कृषक कुछ विशेष बातों का ध्यान रख सकते हैं।


किसान कृषि विशेषज्ञों की निगरानी में करें खेती 

सर्दियों के मौसम में किसान भाई फसलों की नियमित तौर पर निगरानी करें। कीट लगने के शुरुआती लक्षणों पर विशेष ध्यान दें। साथ ही, किसान रोग तथा कीटों के नियंत्रण के लिए आवश्यक कार्य करें। यदि आपके खेतों में खड़ी फसल में कीड़े लग गए हैं, तो आवश्यक कीटनाशकों का उचित समय पर उपयोग करें। बतादें, कि उन्हें उचित मात्रा में छिड़कें, जिसके लिए कृषक भाई कृषि विशेषज्ञों की सहायता ले सकते हैं। 


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किसान भाई क्या छिड़काव कर सकते है ?

विशेषज्ञों का कहना है, कि मौसम में परिवर्तन की वजह फसलों पर कीड़े लग सकते हैं। किसान भाई कीड़ों से सहूलियत पाने के लिए ट्राईकोडर्मा, हारजोनियम दवा का छिड़काव कर सकते हैं। कीड़े लगने से फसलों की पैदावार पर प्रभाव पड़ सकता है। कीटनाशक दवा का फसल पर छिड़काव करने से इस चुनौती को दूर किया जा सकता है। भारत में सर्दियों का मौसम अक्टूबर से लगाकर मार्च तक रहता है। ये तापमान रबी की फसलों के लिए अत्यंत अनुकूल होता है। रबी सीजन की प्रमुख फसलें बाजरा, मटर, सरसों, टमाटर, गेहूं, जौ और चना इत्यादि है ?