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सरसों की खेती से होगी धन की बरसात, यहां जानिये वैज्ञानिक उपाय जिससे हो सकती है बंपर पैदावार

सरसों की खेती से होगी धन की बरसात, यहां जानिये वैज्ञानिक उपाय जिससे हो सकती है बंपर पैदावार

सरसों (Mustard; sarson) भारत में एक प्रमुख तिलहन की फसल है, इसकी खेती ज्यादातर उत्तर भारत में की जाती है। इसके साथ ही उत्तर भारत में सरसों के तेल का बहुतायत में इस्तेमाल किया जाता है। चूंकि भारत तिलहन का बहुत बड़ा आयातक देश है, इसलिए सरकार भारत में तिलहन के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए हमेशा प्रयासरत रहती है। सरकार ने पिछले कुछ सालों में सरसों के उत्पादन में बढ़ोत्तरी का ज्यादा से ज्यादा प्रयास किया है ताकि भारत को तिलहन उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर बनाया जा सके। सरसों की खेती रबी सीजन में की जाती है, इस फसल की खेती में ज्यादा संसाधन नहीं लगते और न ही इसमें ज्यादा सिंचाई की जरुरत होती है। एक आम और छोटा किसान कम संसाधनों के साथ भी सरसों की खेती कर सकता है। लेकिन अगर हम पिछले कुछ समय को देखें तो जलवायु परिवर्तन और मौसम की भीषण मार का असर सरसों की खेती पर भी हुआ है, जिसके कारण उत्पादन में कमी आई है और खेती लागत बढ़ती जा रही है। ऐसे में यदि किसान सरकार द्वारा बताये गए वैज्ञानिक उपायों का इस्तेमाल करते हैं, तो वो इस घाटे की भरपाई आसानी से कर सकते हैं।


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किन-किन राज्यों में होती है सरसों की खेती

भारत में कुछ राज्यों में सरसों की खेती बहुतायत में होती है। इनमें पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और गुजरात का नाम शामिल है। इन राज्यों की जलवायु और मिट्टी सरसों की खेती के अनुकूल है और राज्य के किसान भी खेती करना पसंद करते हैं।

मिट्टी की जांच किस प्रकार से करें

किसी भी फसल की खेती में मिट्टी सबसे महत्वपूर्ण घटक है। इसलिए किसान को चाहिए कि सबसे पहले वह अपने खेत की मिट्टी की प्रयोगशाला में जांच करवायें, ताकि उसे मिट्टी की कमियों, संरचना और इसकी जरूरतों का पता चल सके। मिट्टी की जांच के पश्चात किसानों को इसका रिपोर्ट कार्ड दिया जाता है, जिसे मृदा स्वास्थ्य कार्ड (Soil Health Card) कहते हैं। इसमें मिट्टी के सम्पूर्ण स्वास्थ्य के बारे में सम्पूर्ण जानकारी होती है। कार्ड में दी गई जानकारी के अनुसार ही निश्चित मात्रा में खाद-उर्वरक, बीज और सिंचाई करने की सलाह किसानों को दी जाती है। यह वैज्ञानिक तरीका सरसों की पैदावार को कई गुना तक बढ़ा सकता है।

सरसों की बुवाई

भारत में सरसों की बुवाई प्रारम्भ हो चुकी है। वैसे तो सरसों की बुवाई अक्टूबर से लेकर दिसंबर तक की जा सकती है। लेकिन यदि इस फसल की बुवाई 5 अक्टूबर से लेकर 25 अक्टूबर के मध्य की जाए, तो बेहतर परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। सरसों की बुवाई करने के पहले खेत को पर्याप्त गहराई तक अच्छी तरह से जुताई करनी चाहिए। इसके बाद हैप्पी सीडर या जीरो टिल बेड प्लांटर के माध्यम से 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से सरसों के उन्नत बीजों की बुवाई करनी चाहिए।


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बाजार में उपलब्ध सरसों की उन्नत किस्में

भारतीय बाजार में वैसे तो सरसों की उन्नत किस्मों की लम्बी रेंज उपलब्ध है। लेकिन इन दिनों आरजीएन 229, पूसा सरसों 29, पूसा सरसों 30, सरसों की पीबीआर 357, कोरल पीएसी 437, पीडीजेड 1, एलईएस 54, जीएससी-7 (गोभी सरसों) किस्में को किसान बेहद पसंद कर रहे हैं। इसलिए सरसों के इन किस्मों के बीजों की बाजार में अच्छी खासी मांग है।

सरसों की फसल में सिंचाई किस प्रकार से करें

सरसों वैसे तो विपरीत परिस्तिथियों में उगने वाली फसल है। फिर भी यदि सिंचाई का साधन उपलब्ध है तो इस फसल के लिए 2-3 सिंचाई पर्याप्त होती हैं। इस फसल में पहली बार सिंचाई बुवाई के 35 दिनों बाद की जाती है, इसके बाद यदि जरुरत महसूस हो तो दूसरी सिंचाई पेड़ में दाना लगने के दौरान की जा सकती है। किसानों को इस बात के विशेष ध्यान रखना होगा कि जिस समय सरसों के पेड़ में फूल लगने लगें, उस समय सिंचाई न करें। यह बेहद नुकसानदायक साबित हो सकता है और इसके कारण बाद में किसानों को उम्दा क्वालिटी की सरसों प्राप्त नहीं होगी।

ध्यान देने वाली अन्य चीजें

सरसों की खेती में खरपतवार की समस्या एक बड़ी समस्या है। इससे निपटने के लिए किसानों को खेत की निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिए। साथ ही यदि खेत में खरपतवार जरुरत से ज्यादा बढ़ गया है, तो किसानों को परपैंडीमेथालीन (30 EC) की एक लीटर मात्रा 400 लीटर पानी में घोलकर खेत में स्प्रे के माध्यम से छिड़कना चाहिए। ऐसा करने से किसानों को खरपतवार से निजात मिलेगी। अगर किसान चाहें तो खेत की जुताई करते समय मिट्टी में खरपतवारनाशी मिला सकते हैं ताकि बाद में परपैंडीमेथालीन के छिड़काव की जरुरत ही न पड़े। सरसों की फसल में माहूं या चेंपा कीट के आक्रमण की संभावना बनी रहती है। ये कीट फसल को पूरी तरह से बर्बाद कर सकते हैं, इनकी रोकथाम के लिए किसान बाजार में उपलब्ध बढ़िया कीटनाशक का छिड़काव कर सकते हैं। यदि किसान सरसों की खेती के साथ मधुमक्खी का पालन करते हैं तो उन्हें रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग से बचना चाहिए। रासायनिक कीटनाशकों की जगह पर वो नीम के तेल का इस्तेमाल कर सकते हैं, इसके लिए 5 मिली लीटर नीम के तेल को 1 लीटर पानी के साथ मिश्रित करें और उसका खेत में छिड़काव करें।
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सरसों की फसल में अच्छी पैदावार के लिए खेत की मेढ़ों पर मधुमक्खी पालन के डिब्बे जरूर रखें। मधुमक्खियां फसल की मित्र कीट होती है, जो पॉलीनेशन में मदद करती हैं, इससे उत्पादन में बढ़ोत्तरी संभव है। इसके साथ ही किसानों को मधुमक्खी पालन से अतिरिक्त आमदनी हो सकती है। सरसों की खेती में कुछ और चीजें ध्यान देने की जरुरत होती है, जैसे- जब सरसों के पेड़ में फलियां लगने लगें तब पेड़ के तने के निचले भाग की पत्तियों को हटा दें, इससे फसल की देखभाल आसानी से हो सकेगी और पूरा का पूरा पोषण पेड़ के ऊपरी भाग को मिलेगा। इसके साथ ही यदि ठंड के कारण फसल में पाला लगने की आशंका हो, तो 250 ग्राम थायोयूरिया को 200 लीटर पानी में घोलकर फसल के ऊपर छिड़काव कर दें। यह वैज्ञानिक उपाय करने के बाद फसल में पाला लगने की संभावना खत्म हो जाएगी।
इस वैज्ञानिक विधि से करोगे खेती, तो यह तिलहन फसल बदल सकती है किस्मत

इस वैज्ञानिक विधि से करोगे खेती, तो यह तिलहन फसल बदल सकती है किस्मत

पिछले कुछ समय से टेक्नोलॉजी में काफी सुधार की वजह से कृषि की तरफ रुझान देखने को मिला है और बड़ी-बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों को छोड़कर आने वाले युवा भी, अब धीरे-धीरे नई वैज्ञानिक तकनीकों के माध्यम से भारतीय कृषि को एक बदलाव की तरफ ले जाते हुए दिखाई दे रहे हैं।

जो खेत काफी समय से बिना बुवाई के परती पड़े हुए थे, अब उन्हीं खेतों में अच्छी तकनीक के इस्तेमाल और सही समय पर अच्छा मैनेजमेंट करने की वजह से आज बहुत ही उत्तम श्रेणी की फसल लहलहा रही है। 

इन्हीं तकनीकों से कुछ युवाओं ने पिछले 1 से 2 वर्ष में तिलहन फसलों के क्षेत्र में आये हुए नए विकास के पीछे अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। तिलहन फसलों में मूंगफली को बहुत ही कम समय में अच्छी कमाई वाली फसल माना जाता है।

पिछले कुछ समय से बाजार में आई हुई हाइब्रिड मूंगफली का अच्छा दाम तो मिलता ही है, साथ ही इसे उगाने में होने वाले खर्चे भी काफी कम हो गए हैं। केवल दस बीस हजार रुपये की लागत में तैयार हुई इस हाइब्रिड मूंगफली को बेचकर अस्सी हजार रुपये से एक लाख रुपए तक कमाए जा सकते हैं।

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इस कमाई के पीछे की वैज्ञानिक विधि को चक्रीय खेती या चक्रीय-कृषि के नाम से जाना जाता है, जिसमें अगेती फसलों को उगाया जाता है। 

अगेती फसल मुख्यतया उस फसल को बोला जाता है जो हमारे खेतों में उगाई जाने वाली प्रमुख खाद्यान्न फसल जैसे कि गेहूं और चावल के कुछ समय पहले ही बोई जाती है, और जब तक अगली खाद्यान्न फसल की बुवाई का समय होता है तब तक इसकी कटाई भी पूरी की जा सकती है। 

इस विधि के तहत आप एक हेक्टर में ही करीब 500 क्विंटल मूंगफली का उत्पादन कर सकते हैं और यह केवल 60 से 70 दिन में तैयार की जा सकती है।

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मूंगफली को मंडी में बेचने के अलावा इसके तेल की भी अच्छी कीमत मिलती है और हाल ही में हाइब्रिड बीज आ जाने के बाद तो मूंगफली के दाने बहुत ही बड़े आकार के बनने लगे हैं और उनका आकार बड़ा होने की वजह से उनसे तेल भी अधिक मिलता है। 

चक्रीय खेती के तहत बहुत ही कम समय में एक तिलहन फसल को उगाया जाता है और उसके तुरंत बाद खाद्यान्न की किसी फसल को उगाया जाता है। जैसे कि हम अपने खेतों में समय-समय पर खाद्यान्न की फसलें उगाते हैं, लेकिन एक फसल की कटाई हो जाने के बाद में बीच में बचे हुए समय में खेत को परती ही छोड़ दिया जाता है, लेकिन यदि इसी बचे हुए समय का इस्तेमाल करते हुए हम तिलहन फसलों का उत्पादन करें, जिनमें मूंगफली सबसे प्रमुख फसल मानी जाती है।

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भारत में मानसून मौसम की शुरुआत होने से ठीक पहले मार्च में मूंगफली की खेती शुरू की जाती है। अगेती फसलों का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि इन्हें तैयार होने में बहुत ही कम समय लगता है, साथ ही इनकी अधिक मांग होने की वजह से मूल्य भी अच्छा खासा मिलता है। 

इससे हमारा उत्पादन तो बढ़ेगा ही पर साथ ही हमारे खेत की मिट्टी की उर्वरता में भी काफी सुधार होता है। इसके पीछे का कारण यह है, कि भारत की मिट्टि में आमतौर पर नाइट्रोजन की काफी कमी देखी जाती है और मूंगफली जैसी फसलों की जड़ें नाइट्रोजन यौगिकीकरण या आम भाषा में नाइट्रोजन फिक्सेशन (Nitrogen Fixation), यानी कि नाइट्रोजन केंद्रीकरण का काम करती है और मिट्टी को अन्य खाद्यान्न फसलों के लिए भी उपजाऊ बनाती है। 

इसके लिए आप समय-समय पर कृषि विभाग से सॉइल हेल्थ कार्ड के जरिए अपनी मिट्टी में उपलब्ध उर्वरकों की जांच भी करवा सकते हैं।

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मूंगफली के द्वारा किए गए नाइट्रोजन के केंद्रीकरण की वजह से हमें यूरिया का छिड़काव भी काफी सीमित मात्रा में करना पड़ता है, जिससे कि फर्टिलाइजर में होने वाले खर्चे भी काफी कम हो सकते हैं। 

इसी बचे हुए पैसे का इस्तेमाल हम अपने खेत की यील्ड को बढ़ाने में भी कर सकते हैं। यदि आपके पास इस प्रकार की हाइब्रिड मूंगफली के अच्छे बीज उपलब्ध नहीं है तो उद्यान विभाग और दिल्ली में स्थित पूसा इंस्टीट्यूट के कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा समय-समय पर एडवाइजरी जारी की जाती है जिसमें बताया जाता है कि आपको किस कम्पनी की हाइब्रिड मूंगफली का इस्तेमाल करना चाहिए। 

समय-समय पर होने वाले किसान चौपाल और ट्रेनिंग सेंटरों के साथ ही दूरदर्शन के द्वारा संचालित डीडी किसान चैनल का इस्तेमाल कर, युवा लोग मूंगफली उत्पादन के साथ ही अपनी स्वयं की आर्थिक स्थिति तो सुधार ही रहें हैं, पर इसके अलावा भारत के कृषि क्षेत्र को उन्नत बनाने में अपना भरपूर सहयोग दे रहे हैं। 

आशा करते हैं कि मूंगफली की इस चक्रीय खेती विधि की बारे में Merikheti.com कि यह जानकारी आपको पसंद आई होगी और आप भी भारत में तिलहन फसलों के उत्पादन को बढ़ाने के अलावा अपनी आर्थिक स्थिति में भी सुधार करने में सफल होंगे।

अखरोट में है अद्भुत स्वास्थ्य लाभ, सेहत के लिए है गुणकारी

अखरोट में है अद्भुत स्वास्थ्य लाभ, सेहत के लिए है गुणकारी

अखरोट के अंदर बेहद लाभकारी गुण पाए जाते है , जो की स्वास्थ्य की लिए फायदेमंद होते है। अखरोट के अंदर मैग्नेसियम , विटामिन बी और फाइबर प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। साथ ही अखरोट को प्रोटीन का सबसे अच्छा श्रोत माना जाता है। अखरोट के अंदर अन्य तत्वों की तुलना में एएलए ओमेगा एसिड की मात्रा 3 फीसदी ज्यादा पायी जाती है। एएलए ओमेगा एसिड शरीर के अंदर एलडीएल कैलेस्ट्रोल को कम करता है और शरीर में स्वस्थ कैलेस्ट्रोल के स्तर को बनाये रखता है।  

अखरोट हृदय के लिए भी बेहद लाभकारी साबित हुआ है। ये रक्तचाप के स्तर को संतुलित बनाये रखता है ,और हृदय से जुडी परेशानियों को कम करता है। ये खून में जमने वाले थक्कों की स्तिथि को भी नियंत्रित करता है।  ये शरीर को एंटीऑक्सीडेंट भी प्रदान करता है। अखरोट सूजन को कम करने के साथ साथ वजन को भी कम करने में सहायक रहता है। 

अखरोट को ब्रेन फ़ूड के नाम से भी जाना जाता है , क्योंकि अखरोट देखने में बिलकुल दिमाग के जैसे दिखता है। रोजाना अखरोट का सेवन करने से दिमाग बेहतर तरीके से काम करता है। साथ ही अखरोट के अंदर प्रचुर मात्रा में कैलोरी पायी जाती है , इसीलिए इसका उपयोग संयम के साथ खाने के लिए कहा जाता है। 

आँत के स्वास्थ्य के लिए है बेहद फायदेमंद 

अखरोट में बहुत से पोषक तत्व ऐसे पाए जाते है , जिनके रोजाना आहार करने से आँतों में होने वाली सूजन और परेशानी को नियंत्रित किया जा सकता है। साथ ही ये पेट से जुडी परेशानियों में भी राहत प्रदान करता है। यह पाचन तंत्र को स्वस्थ और मजबूत बनाये रखता है। यह शरीर को अधिक मात्रा में पोषक तत्व भी प्रदान करता है। 

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याददाश्त को बेहतर मनाने में मदद करता है 

अखरोट का उपयोग याददाश्त को बेहतर बनाने के लिए भी किया जाता है। अखरोट के अंदर पाए जाने वाले तत्व तनाव को दूर करने के लिए किया जाता है। अखरोट का सेवन करने से दिमाग पर सकारात्मक प्रभाव पड़ते है। अखरोट के अंदर विटामिन - इ , पॉलीअनसेचुरेटेड फैट पाया जाता है , जो मानसिक लचीलेपन और स्मृति जैसे कार्यो को बढ़ाने के लिए मददगार होते है। 

कैंसर रोग के लिए है उपयोगी 

अखरोट के अंदर पॉलीफिनोल तत्व पाया जाता है , जो कैंसर के रोग को नियंत्रित करने के लिए लाभकारी माना जाता है।  साथ ही शोध के अनुसार बताया गया है , यह कैंसर के ट्यूमर को भी शरीर के अंदर पनपने से रोकता है। अखरोट कैंसर की वजह से  शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों को भी कम करता है। 

हड्डियों के लिए है फायदेमंद 

अखरोट में कैल्शियम और फॉस्फोरस के साथ साथ अल्फा लिनोलेनिक एसिड भी पाया जाता है। यह एसिड हड्डियों को मजबूत बनाये रखता है। अखरोट हड्डियों में होने वाले ऑस्टियोपोरोसिस नामक रोग को भी प्रतिबंधित यानी रोकता है। अखरोट  हड्डियों में से आने वाली कट कट की आवाज को भी ख़त्म करता है और हड्डियों को स्वस्थ और मजबूत बनाता है। 

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साथ ही अखरोट में प्रचुर मात्रा में फाइबर भी पाया जाता है , जो की भूख को नियंत्रित कर वजन को कम करता है। अखरोट में कैलोरी और फैट भरपूर मात्रा में होने के बावजूद यह वजन कम करने में भी सहायक सिद्ध हुआ है। अखरोट में एंटी इंफ्लेमेट्री और एंटीऑक्सीडेंट गुण भी पाए जाते है , जो थकान और चिंता को भी कम करने में सहायक होते है। 

लो ब्लड प्रेशर में सहायक 

लो ब्लड प्रेशर की स्तिथि में व्यक्ति को चिड़चिड़ापन होना , चक्कर आना  आदि समस्याएं हो सकती है। साथ ही ब्लड प्रेशर के ज्यादा कम होने से व्यक्ति कोमा में भी जा सकता है।  इन सभी बीमारियों के लिए अखरोट का सेवन उचित माना जाता है। साथ ही ब्लड प्रेसर के बार बार घटने या बढ़ने से व्यक्ति को हृदय सम्बन्धी रोगों का भी सामना करना पड सकता है। 

अखरोट का तासीर गर्म होता है इसीलिए इसका सेवन सर्दियों के मुकाबले गर्मियों में कम करना चाहिए। अखरोट खाने से बहुत से फायदे होते है। कुछ लोगो द्वारा इसका सेवन सूखे मेवे के रूप में और कुछ लोगो द्वारा इन्हे भिगोकर किया जाता है। जिन लोगो को पित की पथरी की समस्या है, उनके लिए भी ये बेहद लाभकारी है। अखरोट का सेवन सुबह खाली पेट भी किया जा सकता है। 

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हर किसी चीज के दो पहलू होते है, ऐसा ही नहीं अखरोट खाने से सिर्फ फायदे ही होते और कोई नुक्सान नहीं। अखरोट का अत्यधिक सेवन नुकसानदायक साबित हो सकता है। अखरोट का सेवन गर्मियों के समय में कम करें , क्योंकि अखरोट का तासीर गर्म होता है। साथ ही किसी गर्भवती महिला के लिए भी अखरोट का सेवन हानिकारक सिद्ध हो सकता है। इसीलिए डॉक्टर से परामर्श लेकर ही इसका उपयोग करें। साथ ही, अखरोट के छिलके में कई ऐसे तत्व पाए जाते है, जो त्वचा पर लाल रैसेज पैदा कर सकते है।

जानें वन करेला की सम्पूर्ण जानकारी

जानें वन करेला की सम्पूर्ण जानकारी

वन करेला की खेती हमारे देश के बहुत से राज्यों में की जाती है। इसे अलग अलग जगहों पर अलग अलग नामो से जाना जाता है, जैसे : मीठा करेला ,जंगली करेला , कंटीला परवल , करोल ,भाट करेला ,आदि। यह मानसून में मिलने वाली एक तरह की सब्जी है। इस सब्जी के बाहरी सतह पर कांटेदार रेशे उगे हुए होते है। वन करेला आकर में बहुत छोटा रहता है। इसका वैज्ञानिक नाम मोमोरेख डाइगोवा है। 

वन करेले की खेती 

वन करेले ज्यादातर बारिश के मौसम में होते है। बारिश होने पर वन करेला की बेले अपने आप उगने लग जाती है। यह सब्जी अन्य सब्जियों की तुलना में काफी महंगी होती है। इसके बीज आसानी से न मिलने के कारण इसकी खेती नहीं की जा सकती है। बारिश का सीजन ख़त्म होने के बाद वन करेले के बीज जमीन पर गिर जाते है। पहली बारिश के होते ही वन करेले की बेले उगने लगती है। 

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वन करेले की किस्में

वन करेला की दो किस्में होती है ,जो खेती के रूप में उगाई जाती है। जैसे : छोटे आकर वाले वन करेले और इंदिरा आकर ( आर एम एफ 37 )। वन करेले का प्रबंधन कंद या बीजो के द्वारा किया जाता है। इसीलिए किसानों द्वारा अच्छी वैरायटी वाले बीजो का उपयोग करना चाहिए। बुवाई से पहले बीजो की अच्छे से जांच कर ले ,कही बीज रोगग्रस्त तो नहीं है। 

वन करेला के बीजो की बुवाई 

वन करेले की खेती के लिए मिट्टी का पीअच स्तर 6-7 माना जाता है। इसकी बुवाई का काम दोमट और बलुई मिट्टी में किया जा सकता है। लेकिन अच्छी पैदावार के लिए दोमट मिट्टी को ज्यादा उपयोगी माना जाता है। वन करेले के पौधे को अच्छे से पनपने के लिए  गर्म आद्र जलवायु की आवश्यकता रहती है। 

वन करेले की बुवाई के लिए किसी खास तकनीक की आवश्यकता नहीं रहती है। वन करेले के बीजो को रात में गर्म पानी में भिगोकर रख दे। इससे बीजो का अच्छा अंकुरण होता है। इसकी बुवाई 3-4 इंच की दूरी पर की जाती है। आवश्यकता अनुसार इसमें पानी देते रहना चाहिए। बुवाई के कुछ दिन बाद ही इसमें नन्हे नन्हे पौधे देखने को मिलते है। 

वन करेला का आहार करने से हो सकते है ,ये लाभ 

वन करेला में बहुत से विटामिन ,कैल्शियम ,जिंक ,कॉपर और मैग्नीशियम जैसे तत्व पाए जाते है। इसके उपयोग से बहुत सी बिमारियों में तो आराम मिलता है ,लेकिन ये स्वास्थ के लिए भी बेहद लाभकारी होती है ,जानिए कैसे :

कार्बोहायड्रेट से परिपूर्ण 

वन करेले में अधिक मात्रा में कार्बोहायड्रेट पाया जाता है। कार्बोहायड्रेट का सेवन करने से शरीर में फुर्ती और ताकत आती हैं ,जो की किसी भी काम को करने के लिए बेहद आवश्यक रहती है। दिन प्रतिदिन होने वाले कामो के लिए शरीर में ताकत रहना जरूरी है ,बिना ताकत के कोई भी काम नहीं हो पायेगा। 

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विटामिन से भरपूर 

वन करेले के अंदर बहुत से विटामिन पाए जाते है, इसमें विटामिन ए और विटामिन बी भरपूर मात्रा में पाया जाता है। वन करेले का सेवन करने से शरीर के अंदर विटामिन्स की जो कमी रहती है उसे कम करता है। महंगी महंगी दवाइयों के सेवन से भी कोई फायदा न मिलने पर भी आहार में वन करेले का उपयोग करके देख सकते है। इसके उपयोग से आपको शरीर में विटामिन की कमी महसूस नहीं होगी। 

प्रोटीन और फाइबर की उचित मात्रा 

वन करेले में प्रोटीन और फाइबर की उचित मात्रा पायी जाती है।  प्रोटीन जो शरीर के अंदर कोशिकाओं की मरम्मत करने में सहायक रहता है। और फाइबर जो शरीर की पाचन किर्यो को स्वस्थ रखने में मददगार रहता है। यह पाचन किर्याओ को सुचारु रूप से कार्य करने के लिए मदद करता है। 

वन करेले की खेती ज्यादातर पहाड़ी इलाकों में की जाती है। वन करेले की तासीर गर्म रहती है, साथ ही ये खाने में भी बहुत स्वादिष्ट लगती है। 

वन करेला बरसात के मौसम में होने वाली खुजली , पीलिया और बेहोशी में भी लाभदायक साबित हुआ है।  इसके अलावा वन करेला का आहार करने से आँखों की समस्या ,बुखार और इन्फेक्शन जैसे समस्याओं से भी राहत मिलती है। इसके खाने से ब्लड शुगर लेवल भी संतुलित रहता है।

लोबिया दाल में सेहत के लिए बेहद फायदेमंद पोषक तत्व विघमान रहते हैं

लोबिया दाल में सेहत के लिए बेहद फायदेमंद पोषक तत्व विघमान रहते हैं

लोबिया के अंदर काफी ज्यादा मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है, जिसकी वजह से इसे प्रोटीन का पावरहाउस भी कहा जाता है। लोबिया केवल इंसान के लिए ही नहीं बल्कि पशुओं की सेहत के लिए भी काफी फायदेमंद होती है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि लोबिया में प्रोटीन, फाइबर, विटामिन, खनिज, एंटीऑक्सीडेंट एवं बहुत सारे अन्य पोषक तत्व भी भरपूर मात्रा में मौजूद होते हैं। हमारे शरीर को दीर्घकाल तक स्वस्थ बनाए रखने के लिए प्रोटीन एक जरूरी तत्व होता है, जो शरीर की मांसपेशियों को सशक्त और विभिन्न प्रकार के रोगों से लड़ने में भी सहायता करता है। जब भी प्रोटीन की बात होती है, तो इसका मुख्य स्त्रोत दूध, घी इत्यादि को माना जाता है। परंतु, क्या आपको मालूम है, कि इन सब से भी कहीं ज्यादा प्रोटीन की मात्रा लोबिया में होती है। लोबिया में काफी अच्छी मात्रा में प्रोटीन होता है। लोबिया को सुपरफूड भी कहा जाता है। क्योंकि यह प्रोटीन का पावर हाउस होता है। यह केवल इंसानों के लिए ही नहीं बल्कि पशुओं के शरीर के लिए भी बेहद लाभकारी होता है। पशुओं के लिए लोबिया हरा चारा होता है, जिससे खाने से दुधारू पशुओं में दूध उत्पादन की क्षमता बढ़ काफी हद तक बढ़ जाती है। लोबिया के अंदर प्रोटीन, फाइबर, विटामिन, खनिज, एंटीऑक्सीडेंट तथा विभिन्न अन्य पोषक तत्वों की मात्रा भी ज्यादा पाई जाती है। यह हरे रंग के दानेदार आकार में होता है। आज हम आपको लोबिया के फायदे और अन्य महत्वपूर्ण जानकारी के विषय में बताऐंगे।

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लोबिया में पोषक तत्व कितनी मात्रा में पाए जाते हैं

  • प्रोटीन की मात्रा- 100 ग्राम लोबिया में तकरीबन 25-30 ग्राम प्रोटीन होता है।
  • फाइबर की मात्रा- 16-25 ग्राम लोबिया में लगभग 100 ग्राम तक फाइबर पाया जाता है।
  • कॉम्प्लेक्स कार्ब्सस की मात्रा- 60-65% कार्बोहाइड्रेट लोबिया में होती है।
  • आयरन की मात्रा- लोबिया के अंदर भरपूर मात्रा में आयरन होता है। इसके अतिरिक्त इसमें विटामिन C और फोलेट की भी भरपूर मात्रा उपलब्ध होती है।
  • ये ही नहीं बल्कि लोबिया की शुरुआती ताजी पत्तियों एवं डंठल में भी पोषक तत्व विघमान होते हैं। इसमें कुछ फीसदी कच्चा प्रोटीन, 3.0% ईथर का अर्क और 26.7% कच्चा फाइबर इत्यादि होता है।
  • लोबिया का सेवन करने से क्या-क्या लाभ होते हैं
  • यदि आप नियमित तौर पर लोबिया का सेवन करते हैं तो निश्चित तौर पर आपका वजन जल्दी से कम होने लगेगा।
  • लोबिया के सेवन से पाचन तंत्र काफी मजबूत बनता है।
  • यदि आप ह्रदय संबंधित किसी भी रोग से ग्रसित हैं, तो आप लोबिया का सेवन करें।
  • रात को सटीक समय पर नींद ना आने की बीमारी और इससे संबंधित अन्य बीमारी के लिए भी लोबिया बेहद फायदेमंद है।
  • लोबिया इम्युनिटी को बूस्ट करने में काफी सहयोग करता है।
  • लोबिया ब्लड शुगर लेवल को काबू में करता है। यदि आप मधुमेह यानी डायबिटीज की बीमारी से जूझ रहे हैं, तो लोबिया का सेवन जरूर करें।
कृषि वैज्ञानिकों ने मटर की 5 उन्नत किस्मों को विकसित किया है

कृषि वैज्ञानिकों ने मटर की 5 उन्नत किस्मों को विकसित किया है

कृषक भाइयों रबी सीजन आने वाला है। इस बार रबी सीजन में आप मटर की उन्नत किस्म से काफी अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। बेहतरीन किस्मों के लिए भारत के कृषि वैज्ञानिक नवीन-नवीन किस्मों को तैयार करते रहते हैं। इसी कड़ी में वाराणसी के काशी नंदिनी भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान द्वारा मटर की कुछ बेहतरीन किस्मों को विकसित किया है। भारत में ऐसी बहुत तरह की फसलें हैं, जो किसानों को कम खर्चे व कम वक्त में अच्छा उत्पादन देती हैं। इन समस्त फसलों को किसान भाई अपने खेत में अपनाकर महज कुछ ही माह में मोटा मुनाफा कमा सकते हैं।

सब्जियों की खेती से भी किसान अच्छा-खासा मुनाफा कमा सकते हैं

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि ऐसी फसलों में
सब्जियों की फसल भी शम्मिलित होती है, जो किसान को हजारों-लाखों का फायदा प्राप्त करवा सकती है। यदि देखा जाए तो किसान अपने खेत में खरीफ एवं रबी सीजन के मध्य में अकेले मटर की बुवाई से ही 50 से 60 दिनों में काफी मोटी पैदावार अर्जित कर सकते हैं। जैसा कि हम सब जानते हैं, कि देश-विदेश के बाजार में मटर की हमेशा मांग बनी ही रहती है। बतादें, कि मटर की इतनी ज्यादा मांग को देखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के कृषि वैज्ञानिकों ने मटर की बहुत सारी शानदार किस्मों को इजात किया है। जो कि किसान को काफी शानदार उत्पादन के साथ-साथ बाजार में भी बेहतरीन मुनाफा दिलाएगी।

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काशी अगेती

इस किस्म की मटर का औसत वजन 9-10 ग्राम होता है। बतादें, कि इसके बीज सेवन में बेहद ही ज्यादा मीठे होते हैं। इसकी फलियों की कटाई बुवाई के 55-60 दिन उपरांत किसान कर सकते है। फिर किसानों को इससे औसत पैदावार 45-40 प्रति एकड़ तक आसानी से मिलता है।

काशी मुक्ति

मटर की यह शानदार व उन्नत किस्म चूर्ण आसिता रोग रोधी है। यह मटर बेहद ही ज्यादा मीठी होती है। यह किस्म अन्य समस्त किस्मों की तुलना में देर से पककर किसानों को काफी अच्छा-खासा उत्पादन देती है। यदि देखा जाए तो काशी मुक्ति किस्म की प्रत्येक फलियों में 8-9 दाने होते हैं। इससे कृषक भाइयों को 50 कुंतल तक बेहतरीन पैदावार मिलती है।

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अर्केल मटर

यह एक विदेशी प्रजाति है, जिसकी प्रत्येक फलियों से किसानों को 40-50 कुंतल प्रति एकड़ पैदावार प्राप्त होती है। इसकी प्रत्येक फली में बीजों की तादात 6-8 तक पाई जाती है।

काशी नन्दनी

मटर की इस किस्म को वाराणसी के काशी नंदिनी भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान ने इजात किया है। इस मटर के पौधे आपको 45-50 सेमी तक लंबे नजर आऐंगे। साथ ही, इसमें पहले फलियों की उपज बुवाई के करीब 60-65 दिनों के उपरांत आपको फल मिलने लगेगा। बतादें, कि इसकी किस्म की हरी फलियों की औसत पैदावार 30-32 क्विंटल प्रति एकड़ तक अर्जित होती है। साथ ही, बीज उत्पादन से 5-6 क्विंटल प्रति एकड़ तक अर्जित होती है। ऐसे में यदि देखा जाए तो मटर की यह किस्म जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल, पंजाब, उत्तर प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के कृषकों के लिए बेहद शानदार है।

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काशी उदय

इस किस्म के पौधे संपूर्ण तरीके से हरे रंग के होते हैं। साथ ही, इसमें छोटी-छोटी गांठें और प्रति पौधे में 8-10 फलियां मौजूद होती हैं, जिसकी प्रत्येक फली में बीजों की तादात 8 से 9 होती है। इस किस्म से प्रति एकड़ कृषक 35-40 क्विंटल हरी फलियां अर्जित कर सकते हैं। किसान इस किस्म से एक नहीं बल्कि दो से तीन बार तक सुगमता से तुड़ाई कर सकते हैं।
कितने गुणकारी हैं इम्यूनिटी बूस्टर काढ़े में मौजूद तत्व

कितने गुणकारी हैं इम्यूनिटी बूस्टर काढ़े में मौजूद तत्व

आधुनिक चिकित्सा पद्धति में जिन रोगों को लाइलाज माना जाता है, उनमें से कई रोग सामान्य सी जड़ी बूटियों से ठीक हो जाते हैं। गांव के बड़े बुजुर्ग आज भी बताते हैं कि अनेक तरह की छोटी मोटी सर्जरी गांव के पुराने हज्जाम ही किया करते थे। 

भारतीय चिकित्सा पद्धति विश्व के अन्य देशों की सभ्यता के अपूर्ण विकसित होने के समय से ही चमत्कारिक औषधियां के प्रयोग से भरपूर रही है। इसी तरह की 9 वनस्पतियों के मिश्रण से तैयार योग यानी काढ़ा कोविड-19 से लड़ने के लिए प्रयोग में लाया जा रहा है। 

इस क्लॉथ का उपयोग करने वाले लोगों की मानें तो उन्हें वजन कम करने के अलावा और कई तरह के लाभ हो रहे है ंं। स्वामी रामदेव द्वारा तैयार कोरोनिल पर लोग सवाल उठा रहे हैं, वहीं भारतीय चिकित्सा पद्धति की समृद्धि संस्कृति यह बताती है कि आयुर्वेद हर लाइलाज समस्या का नाश कर सकता है। 

जरूरत इस बात की है कि नवीन लाइलाज रोगों पर इनके गुण धर्मों के अनुसार इनका उपयोग और अनुसंधान किया जाए। किस धातु को हानि रहित करने के लिए दर्जनों वनस्पतियों का काढ़ा किस आधार पर चुना जाए।उसी प्रकार किसी धातु का भस्म किस प्रकार प्राप्त किया जाए यह जानना भी सरल नहीं है।

यह जानना भी दुर्गम है कि कौन से पौधे का कौन सा भाग शरीर के किस अंग पर क्या प्रभाव डालेगा। हर्बल औषधियों की यह खूबी होती है कि वह अपना हानिकारक दुष्प्रभाव नहीं छोड़तीं। 

बात कोविड-19 से लड़ने यानी शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए प्रयोग में आने वाले काढ़े को नौ तत्वों से बनाया गया है। इसे पतंजलि के अलावा अनेक फार्मेशियां बना रहे हैं। 

लाखों-करोड़ों लोग इसका दैनिक रूप से उपयोग भी कर रहे हैं। इन लोगों को घर की रसोई में मौजूद रहने वाली चीजों से बनने वाले काढ़े के आश्चर्यजनक परिणाम भी देखने को मिल रहे हैं।   काढ़े

काढ़े में मौजूद 9 तत्व

कोविड-19 जैसी समस्या के दौर में रोगों से लड़ने की क्षमता बनाए रखना बेहद जरूरी है। उसके लिए आयुर्वेद में अनेक तरह की जड़ी बूटियां मौजूद हैं। 

बाजार में मौजूद अनेक काढ़ों मैं 9 तत्वों का मिश्रण किया गया है। इनमें तुलसी, त्वक यानी दालचीनी, शुंठी सौंठ, मारिच काली मिर्च, मुलेठी, अश्वगंधा, गिलोय, तालीसपत्र, पिप्पली शामिल हैं। इनकी सुरक्षा की पहचान प्रभाव और गुण धर्म के विषय में जानते हैं।

तुलसी

तुलसी 

बरबरी तुलसी तीन प्रकार की होती है। यह तीक्ष्ण, गर्म, कड़वी, रुचिकर, अग्नि वर्धक, क्रमि एवं ज्वर नाशक होती है। यह है एवं खून से जुड़े रोगों में उपयोगी है। पित्त, कफ, वात रोग, धवल रोग , खुजली जलन, वमन,कुष्ठ और विष के विकारों को यह नष्ट करती है, इसके बीज तृषा, दाह और सूजन को दूर करते हैं। 

इसकी जड़ें बच्चों की आंतों की खराबी को दूर करती हैं। श्री रस को शहद के साथ मिलाने से खांसी ठीक होती है। इसके पत्तों का रस दाद पर लगाने से बिच्छू के काटे हुए स्थान पर लगाने से लाभ होता है। इसके पत्तों और शाखाओं का काढ़ा जरवल स्नायुशूल  और जुकाम में लाभदायक माना जाता है।  

इस की पौध जून माह में तैयार करके खेती की जाती है। कोविड-19 के प्रभाव के चलते और गाड़ी में उपयोग के कारण वर्तमान में तुलसी के पत्ते भी ₹200 किलो तक बिक रहे हैं। इसकी खेती में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग नहीं किया जाता। इसके पत्ते लकड़ी और बीच सभी औषधि कंठी माला आदि मैं प्रयुक्त होते हैं।

सौंठ

सौंठ 

यह चरपरी , कफ,वात  तथा मलबन्ध को तोड़ने वाली, वीर्य वर्धक स्वर्ग को उत्तम करने वाली है।वमन,श्वास,शूल, हृदय रोग, उदय तथा वात रोग नाशक है। सौंठ अदरक को सुखाकर बनाई जाती है। 

यह रेतीली भूमि में उगाई जाती है। अदरक का रस शहद और नमक थोड़ा गुनगुना करके कान में डालने से दर्द बंद हो जाता है। सोंठ और गेरू को पानी में मिलाकर पीसकर आंखों पर इसका लेप लगाने से नेत्र रोग दूर होते हैं। 

सौंठ का प्रयोग दाढ़ का दर्द, बवासीर की दवा, जुकाम की दवा, क्षय रोग की दवा, कफ जम जाने पर, दमा की दवा एवं गर्भ स्त्राव रोकने की दवा बनाने में होता है। 

अदरक की खेती देश के अनेक राज्यों में बहुतायत में होती है। अदरक की बिजाई दक्षिण भारत में अप्रैल से मई के महीने के बीच की जाती है वही मध्य एवं उत्तर भारत में 15 से 30 मई तक किस की बुवाई का उचित समय माना जाता है

दालचीनी

दालचीनी 

यह वनस्पति हिमालय, सीलोन और मलाया प्रायद्वीप में पैदा होती है। दालचीनी के नाम से बाजार में चार विभिन्न प्रकार के वृक्षों की छाल बिकती है। यह कामोद्दीपक, क्रमिनाशक,पौष्टिक और वात ,पित्त, प्यास, गले का सूखना, वायु नलियों का प्रदाह, खुजली, हृदय तथा गुदा से जुड़ी बीमारियों में लाभदायक है। 

इसका तेल रक्त स्राव रोधक, पेट के अफरा को दूर करने वाला और अरुचि, बमन और दस्तों को रोकने मैं कारगर है।

काली मिर्च

काली मिर्च 

लता जाति की इस वनस्पति की खेती त्रावणकोर और मलावर की उपजाऊ भूमि में बहुतायत में होती है।यहां के लोग इस लता के छोटे-छोटे टुकड़े करके पेड़ों की जड़ के पास रोप देते हैं । 

यह लताएं पौधों पर चढ़ जाती हैं और 3 साल बाद फल लगने लगते हैं। काली मिर्च अग्नि को दीपन करने वाली, कफ वात नाशक, गर्म पिक जनक, रुखी तथा दमा, फूल और कर्मियों का नाश करने वाली होती है। 

इसका क्वार्ट्ज सांप बिच्छू एवं अफीम के जहर पर भी प्रभाव कारी है।काली मिर्च को घी में मिलाकर खाने से अनेक तरह के नेत्र रोग दूर होते हैं। 

एक काली मिर्च को सुई की नोक में चोकर मोमबत्ती की लौ में गर्म करें और उसके धुए को नाक के रास्ते मस्तिष्क की ओर खींचने से छींक और मस्तिष्क का दर्द बंद होता है।

काली मिर्च को दही के साथ घिसकर आंखों में आंजने से रतौंधी रात में न दिखने की समस्या दूर होती है। इसके अलावा भी काली मिर्च का अनेक चीजों के साथ अनेक प्रयोग और रोगों के निदान में किया जाता है।

मुलेठी

मुलेठी 

यह शीतल ,स्वादिष्ट नेत्रों के लिए हितकारी है । बाल तथा वर्ण को उत्तम करने वाली केश तथा स्वर के लिए भी हितकर है। रक्त विकार वमन तथा क्षय नाशक है। 

मुलेठी का चूर्ण शहद के साथ सेवन करने से शुक्र वृद्धि एवं वाजीकरण होता है। गला खराब होने पर पान के साथ मुलेठी का सेवन श्रेयस्कर रहता है।

इसकी लकड़ी लगातार चूसने से शारीरिक कमजोरी दूर होती है। यह अच्छा माउथ फ्रेशनर ही नहीं संगीतज्ञ हूं के गले की मिठास को बनाए रखने में भी काम आती है।

अश्वगंधा

अश्वगंधा 

यह भारतवर्ष में सर्वोपरि पाया जाता है। इसकी जड़ का विभिन्न औषधियों में तरह-तरह से प्रयोग होता है। यह वनस्पति वात, कफ, सूजन , श्वेत कुष्ठ, बल कारक एवं वीर्य वर्धक होती है। 

सफेद मूसली, विधारा आदि धातु वर्धक औषधियों के साथ अश्वगंधा का सेवन दूध के साथ करने से बाल बढ़ता है। इसके चूर्ण का सेवन 3 से 6 मासे तक रजोधर्म के प्रारंभ में देने से महिलाओं को गर्भधारण में आसानी रहती है।

गिलोय

गिलोय 

यह पौधों पर पनपने वाली लता है। पौधौं पर विकसित होने के बाद जमीन से उसका संपर्क कट जाए तब भी वह पनपती रहती है। नीम के पौधे पर चढ़ी गिलोय को ज्यादा लाभकारी माना जाता है। 

इसी तरह आंवला पर चढ़ी गिलोय का असम अलग होता है। आयुर्वेद के अनुसार यह है मलरोधक,फलकारक, अग्नि दीपक, हृदय को हितकारी, आयु वर्धक, प्रमेह,जरवल,दाह, रक्तशोधक, वमन,वात, कामला,पाण्डुरोग,आंव,कोढ़,कफ,पित्त आदि में लाभकारी है। 

जो गिलोय नमी वाले  पौधों पर चढ़ती है वह पुराने बुखार में बेहद लाभकारी है। हर किस्म के ताप को नष्ट करती है। दिल जिगर और मेदें की जलन को मिटाती है। 

यह भूख बढ़ाती है और काम इंद्रियों को ताकत देती है। मिश्री के साथ लेने से पित्त को जलाती है। इसका काढ़ा सैकड़ों रोगों का नाश करता है। कोरोना के चलते बाजार में बढ़ी मांग में इसकी कीमतों को भी आसमान में पहुंचा दिया है।

तालीसपत्र

यह भारत के विभिन्न वनों में पाया जाता है और इसे लगाया भी जाता है। इसके वृक्ष बहुत ऊंचे होते हैं। इसकी डाली है जमीन की तरफ ज्यादा झुकी होती है। यह स्वर को सुधारने वाला, हृदय को हितकारी, अग्नि दीपक, श्वास , खांसी , का वार है गुरुजी रोड विकास भवन अग्निमांद्य, मुखरोग, पित्त नाशक आदि अनेक रोगों में उपयोगी है। 

के पौधे की जड़ का काढ़ा पागल कुत्ते द्वारा काटे गए व्यक्तियों को दिया  जाता है। इसके पत्ते मिर्गी रोग में भी काम आते हैं। खांसी, दमा श्वसन रोग में भी इसके पत्तों का उपयोग होता है।

पिप्पली

कहावत सोंठ,रोंग, पीपल इन्हें खाय के जी पर, पीपल यानी पिप्पली के औषधीय गुण को दर्शाती है। पीपल का प्रयोग अधिकांश घरों में होता है। काले रंग के एक से डेढ़ इंची लंबे पीपल को विशेषकर ठंड के दिनों में अधिकांश घरों में प्रयोग किया जाता है। यह ठंड से होने वाली अनेक समस्याओं का अकेला समाधान करता है।

कैसे बनाएं काढ़ा

उपरोक्त सभी तत्वों की दस दस प्रतिशत मात्रा को समान भाग में कूट पीसकर काढ़ा बनाया जा सकता है। ध्यान रहे उक्त औषधियां किसी विश्वसनीय पंसारी के यहां से ही खरीदी जाएं। काढ़े के एक दूसरे योग में 10% कच्ची हल्दी को पीसकर भी मिलाया गया है।

कितना कारगर है काढ़ा

 काढ़ा 

इस काढ़े का प्रयोग कोविड-19 के कोहराम के बीच हजारों लोगों ने किया है। इनमें से कुछ के अनुभव हम आपके साथ साझा कर रहे हैं। वेटरनरी विश्वविद्यालय मथुरा के डेयरी विभाग के डॉ प्रवीण कुमार खुद इस काढ़े का सेवन कर रहे हैं।

कानपुर में रहने वाले अपने माता-पिता के लिए भी उन्होंने एक दर्जन पैकेट भिजवाए हैं। उन्हें इस काढ़े से कई तरह की समस्याओं से मुक्ति 20 दिन में ही मिलने लगी है। 

कई अन्य लोगों ने इस काढ़े के लगातार प्रयोग से 20 दिन में 2 किलो वजन कम होने की पुष्टि की है। कई लोगों ने यहां तक दावा किया कि जब से उन्होंने काढ़े का प्रयोग शुरू किया है वह कई तरह की गोलियां लेना छोड़ चुके हैं। 

मथुरा के पार्षद राजेश सिंह पिंटू गुणकारी काढ़े का अपने समूचे परिवार में तो प्रयोग कर रहे हैं कई दर्जन लोगों को उन्होंने काढ़े गिफ्ट किए हैं। 

समाज में काढ़े का प्रचलन बढ़ाने के लिए अनेक लोगों ने सैकड़ों सैकड़ों की तादात में काढ़े के पैकेट का वितरण किया है। उत्तर प्रदेश के मथुरा में यह काढ़ा पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जन्मस्थली स्थित परिसर में बनाया जा रहा है। कामधेनु गौशाला फार्मेसी के 200 ग्राम के पैकेट का मूल्य ₹40 रखा है।

लीची की खेती से इस बार किसानों को मिलेगा मोटा मुनाफा, जानें क्यों

लीची की खेती से इस बार किसानों को मिलेगा मोटा मुनाफा, जानें क्यों

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि इस बार आपको लगभग 15 मई तक बाजार में लीची आना शुरू हो जाएगी। बिहार के लोग ऑनलाइन भी इसकी खरीददारी कर सकेंगे। 

लीची का सेवन करने वालों के लिए बहुत अच्छी खबर है। बिहार के मुजफ्फरपुर की सुविख्यात शाही लीची कुछ ही दिनों में बागानों से निकलने वाली है। 

बिहार की मशहूर शाही लीची आगामी 20 दिनों में आसानी से बाजार में मिल जाएगी। इस बार राज्य सरकार की तरफ से खास तैयारियाँ की गई हैं। 

रेल और हवाई जहाज की सहायता से देश के भिन्न-भिन्न राज्यों व विदेशों में भी शाही लीची भेजने की तैयारी है।

लीची के बेहतर उत्पादन की आशा

इस बार लीची की काफी शानदार पैदावार होने की संभावना है। बिहार के अतिरिक्त मुंबई, नागपुर, बेंगलुरु, चेन्नई, लखनऊ और विशाखापट्टनम जैसे शहरों में 18 मई से लीची भेजना प्रारंभ कर दिया जाएगा। 

कोल्ड चेन की सहायता से 20 डिग्री सेल्सियस तापमान पर इसे भेजा जाएगा। इन शहरों में 10 से 15 किलो के पैक भेजे जाएंगे। वहीं, बिहार के अलग-अलग शहरों में एक किलो लीची का कंज्यूमर पैक व पांच किलो का फैमिली पैक निर्मित किया जाएगा। 

इसको ताजा रखने के लिए बीते वर्ष खुद से तैयार हर्बल सॉल्यूशन का परीक्षण सफल रहा है। इस बार इसका इस्तेमाल किया जाएगा, ताकि आप ताजा लीची का स्वाद ले सकें।

लीची के सफल यातायात के लिए क्या तैयारी है ?

मुजफ्फरपुर के किसान के अनुसार, वर्ष 1993 में ही गांव में प्रोसेसिंग प्लांट लगाया गया था, जिसकी वजह से वह लीची के पल्प को भी बेचते हैं। उन्होंने कहा कि इस बार मौसम साथ नहीं दे रहा है। 

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इस वजह से लीची काफी कमजोर हो जा रही है। इसके फल भी गिर रहे हैं। फिर भी बगान से लगभग 100 टन से ज्यादा लीची की पैदावार होगी। 

इस बार बिहार सरकार की सहायता से पैक हाउस तैयार कर रहे हैं। साथ ही, रेफ्रिजरेटर वैन की भी खरीदारी करेंगे। इससे छह डिग्री सेल्सियस में लीची पहुंचाई जाएगी। 

किसान भाई ऑनलाइन भी लीची खरीद सकेंगे 

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि इस बार लगभग 15 मई तक बाजार में लीची उपलब्ध हो जाएगी। बिहार के लोग ऑनलाइन भी इसकी खरीदारी कर सकेंगे। 

कोरोना काल में इस सुविधा को प्रारंभ किया गया था। इस सीजन में सभी बागों से लगभग 3,000 टन लीची की पैदावार होगी। यहां से विशेषकर यूपी, बिहार व झारखंड में 15 व 10 किलो के पैक में लीची भेजी जाएगी।

गर्मियों के मौसम में ऐसे करें प्याज की खेती, होगा बंपर मुनाफा

गर्मियों के मौसम में ऐसे करें प्याज की खेती, होगा बंपर मुनाफा

देश के कई राज्यों में प्याज की खेती साल में सिर्फ एक बार की जाती है। लेकिन कुछ राज्य ऐसे भी हैं जहां प्याज की खेती साल में तीन बार की जाती है। इसमें महाराष्ट्र का स्थान सबसे ऊपर है। इस राज्य के धुले, अहमदनगर, नासिक, पुणे और शोलापुर जिलों में प्याज का बंपर उत्पादन होता है। यहां पर साल में अमूमन तीन बार प्याज की खेती की जाती है। इसलिए महाराष्ट्र को देश का सबसे बड़ा प्याज उत्पादक राज्य कहा जाता है। महाराष्ट्र के नाशिक जिले की लासलगांव मंडी को एशिया की सबसे बड़ी प्याज की मंडी का दर्जा प्राप्त है। प्याज का उपयोग ज्यादातर सब्जी के रूप में हर घर में किया जाता है। इसके अलावा थोड़ी बहुत मात्रा में इसका उपयोग दवाई बनाने में भी किया जाता है। प्याज की फसल सामान्यतः 100 से 120 दिनों के भीतर तैयार हो जाती है। प्याज का बंपर उत्पादन होने के कारण किसान भाई इस खेती से ज्यादा मुनाफा कमाते हैं।

प्याज की खेती के लिए उचित जलवायु और मृदा

प्याज की खेती के लिए ज्यादा तापमान उचित नहीं माना जाता। ऐसे में गर्मियों के मौसम में किसानों को यह सुनिश्चित करना होता है कि खेत का तापमान बहुत ज्यादा न बढ़ने पाए। इसके साथ ही शुष्क जलवायु इस खेती के लिए बेहतर मानी जाती है। अगर प्याज की खेती में मृदा की बात करें तो  उचित जलनिकास एवं जीवांषयुक्त उपजाऊ दोमट तथा बलुई दोमट मिट्टी इसके लिए उपयुक्त होती है। प्याज की खेती अत्यंत गीली या दलदली जमीन पर नहीं करना चाहिए। प्याज की खेती के लिए मिट्टी का पी.एच. मान 6.5-7.5 के मध्य होना चाहिए। इसके लिए किसान भाई बुवाई के पहले मृदा परीक्षण अवश्य करवा लें।

प्याज की किस्में

बाजार में प्याज की कुछ किस्में ज्यादा प्रसिद्ध हैं, जिनमें एग्री फाउण्ड डार्क रेड, एन-53 और भीमा सुपर का नाम आता है। एग्री फाउण्ड डार्क रेड किस्म को भारत में कहीं भी आसानी से उगाया जा सकता है। इसके कंद गोलाकार होते हैं, जिनका आकार 4 से 6 सेंटीमीटर बड़ा होता है। इसके साथ ही यह फसल 95-110 दिनों के भीतर तैयार हो जाती है। यह किस्म एक हेक्टेयर में 300 क्विंटल का उत्पादन दे सकती है। ये भी पढ़े: वैज्ञानिकों ने निकाली प्याज़ की नयी क़िस्में, ख़रीफ़ और रबी में उगाएँ एक साथ एन-53 किस्म को भी भारत में कहीं भी उगाया जा सकता है। लेकिन इसकी फसल 140 दिनों में तैयार होती है। साथ ही इस किस्म का उत्पादन 250-300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है। भीमा सुपर एक अलग तरह की प्याज की किस्म है। जिसमें किसानों को उगाने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी होती है। यह किस्म 110-115 दिन में तैयार हो जाती है और इसका उत्पादन भी 250-300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है।

ऐसे करें भूमि की तैयारी

प्याज की खेती के लिए भूमि को अच्छे से तैयार करना बेहद जरूरी है। इसके लिए कल्टीवेटर या हैरो की मदद से 2 से 3 बार जुताई करें। जुताई के साथ ही खेत में पाटा अवश्य चलाएं, ताकि मिट्टी भुरभुरी हो सके और नमी सुरक्षित रहे। भूमि की सतह से 15 से.मी. उंचाई पर 1.2 मीटर का बेड तैयार कर लें। जिस पर प्याज की बुवाई की जाती है।

खाद एवं उर्वरक की मात्रा

प्याज की फसल के लिए खाद एवं उर्वरक का प्रयोग मिट्टी के परीक्षण के आधार पर करना चाहिए। अगर खेत में अधिक पोषक तत्वों की जरूरत हो तो खेत में गोबर की सड़ी खाद 20-25 टन/हेक्टेयर की दर से बुवाई के 1 माह पूर्व डालना चाहिए। इसके अलावा खेत में नत्रजन 100 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर, स्फुर 50 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर तथा पोटाश 50 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डाल सकते हैं। यदि खेत की गुणवत्ता ज्यादा ही खराब है तो खेत में सल्फर 25 कि.ग्रा.एवं जिंक 5 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से डाल सकते हैं। ये भी पढ़े: आलू प्याज भंडारण गृह खोलने के लिए इस राज्य में दी जा रही बंपर छूट

ऐसे तैयार करें पौध

प्याज की पौध को उठी हुई क्यारियों में तैयार किया जाता है। बोने के पहले बीजों को अच्छे से उपचारित करना चाहिए। प्रति वर्ग मीटर क्षेत्र में 15 से 20 ग्राम बीज बोना चाहिए। इसके लिए 3 वर्ग मीटर की क्यारियां बनाना चाहिए। एक हेक्टेयर भूमि में 8 से 10 किलोग्राम बीज बोया जाता है।

ऐसे करें रोपाई

प्याज की पौध की रोपाई मिट्टी के तैयार किए गए बेड में की जाती है। इसके लिए एक हेक्टेयर क्षेत्र में रोपाई करने के लिए 12 से 15 क्विंटल पौध की जरूरत होती है। पौध की रोपाई कूड़ शैय्या पद्धति से करना चाहिए। इसमें 1.2 मीटर चौड़ा बेड एवं लगभग 30 से.मी. चौड़ी नाली तैयार की जाती हैं। पौध को अंकुरित होने के 45 दिन बाद ही बेड पर लगाना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण

प्याज की फसल में खरपतवार से छुटकारा पाने के लिए समय-समय पर निराई गुड़ाई की जरूरत होती है। पूरी फसल के दौरान कम से कम 3 से 4 बार निराई गुड़ाई अवश्य करना चाहिए। इसके अलावा खरपतवार को नष्ट करने के लिए रासायनिक पदार्थो का उपयोग भी किया जा सकता है। इसके लिए पौध की रोपाई के 3 दिन पश्चात 2.5 से 3.5 लीटर/हेक्टेयर की दर से पैन्डीमैथेलिन का छिड़काव किया जा सकता है। इसे 750 लीटर पानी में घोला चाहिए। इसके अलावा इतने ही पानी में 600-1000 मिली/हेक्टेयर के हिसाब से ऑक्सीफ्लोरोफेन का छिड़काव भी किया जा सकता है। ये भी पढ़े: प्याज की खेती के जरूरी कार्य व रोग नियंत्रण

प्याज की फसल की सिंचाई

प्याज की फसल में सिंचाई बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है। अन्यथा फसल तुरंत ही सूख जाएगी। इस फसल में यह ध्यान देने योग्य बात होती है कि जब कंदों का निर्माण हो रहा हो तब खेत में पानी की कमी न रहे। नहीं तो पौध का विकास रुक जाएगा और प्याज का आकार बड़ा नहीं हो पाएगा। ऐसे में उपज प्रभावित हो सकती है। आवश्यकतानुसार 8 से 10 दिन के अंतराल में फसल में पानी देते रहें। यदि खेत में पानी रुकने लगे तो उसकी जल्द से जल्द निकासी की व्यवस्था करना चाहिए। अन्यथा फसल में फफूंदी जनित रोग लगने की संभावना बढ़ जाती है।

कंदों की खुदाई

जैसे ही प्याज की पत्तियां सूखने लगती हैं और प्याज की गांठ अपना आकार ले लेती है तो 10-15 दिन पहले सिंचाई बंद कर देना चाहिए। जब खेत पूरी तरह से सूख जाए, उसके बाद पौधों के शीर्ष को पैर की मदद से कुचल देना चाहिए। इससे कंदों की वृद्धि रुक जाती है और कंद ठोस हो जाते हैं। इसके बाद कंदों को खोदकर खेत में ही सुखाना चाहिए। सूखने के बाद प्याज को भरकर भंडारण के लिए भेज देना चाहिए।
पपीता का खाली पेट सेवन करने से होने वाले लाभ, इसके अंदर औषधीय गुण भी मौजूद हैं

पपीता का खाली पेट सेवन करने से होने वाले लाभ, इसके अंदर औषधीय गुण भी मौजूद हैं

पपीते में बहुत सारे औषधीय गुण विघमान होते हैं। अगर आप इसका सेवन खाली पेट करते हैं, तो यह हमारे शरीर को काफी ज्यादा सेहतमंद बनाता है। पपीता एक बेहद ही स्वादिष्ट फल होता है। पपीता मीठा और सबसे फायदेमंद फलों में से एक होता है। इसका सेवन मधुमेह, पेट दर्द, वजन घटाने, शरीर के मानसिक तनाव को कम करने और घावों के उपचार में तेजी लाने के साथ अन्य स्वास्थ्य लाभों के लिए किया जाता है। इसमें विघमान एंटीऑक्सिडेंट, एंजाइम, विटामिन सी और ए, फाइबर, मैग्नीशियम और पोटेशियम जैसे खनिज तत्व पाए जाते हैं। यदि आप इसका सेवन खाली पेट करते हैं, तो इसका लाभ हमारे शरीर को अधिक होता है। तो आइये आगे इस लेख में जानेंगे इसके गुणों के विषय में।

खाली पेट पपीता का सेवन करने से क्या-क्या लाभ होते हैं

पपीता पाचन तंत्र में सहयोग करता है

पपीते में उपस्थित पपेन एंजाइम हमारे शरीर की पाचन प्रक्रिया में सुधार लाता है। इसका खाली पेट सेवन हमारे पाचन तंत्र को शक्तिशाली बनाता है। बतादें, कि इससे हमारा शरीर पूरे दिन भोजन को प्रभावी ढंग से संभालने में समर्थ हो जाता है। यह भी पढ़ें:
पपीते की खेती से कमाएं: स्वाद भी सेहत भी

पपीता प्रतिरक्षा को बढ़ावा देता है

पपीते में सबसे ज्यादा विटामिन सी पाया जाता है, जो हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली की कार्यक्षमता को मजबूत करता है। सुबह के समय भरपूर मात्रा में विटामिन सी का सेवन हमारे शरीर को विभिन्न प्रकार के रोगों से लड़ने में सहयोग करता है।

पपीता ब्लड शुगर नियंत्रण में सहायता करता है

पपीता का सेवन हमारे शरीर के रक्त शर्करा के स्तर को काबू करता है। पपीता के अंदर शर्करा की मात्रा कम होती है। पपीता एक फाइबर युक्त फल होता है। खाली पेट इसका सेवन करने से हमारे शरीर मे पूरे दिन रक्त शर्करा के स्तर को स्थिर बनाए रखता है। अगर आपको मधुमेह की शिकायत है, तो इसका सेवन अवश्य करें।

पपीता का सेवन करके सूजन का उपचार

पपीते में एंटीऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण विघमान होते हैं। यह तत्व शरीर में सूजन को कम करने में सहायता करता है। खाली पेट पपीता के सेवन से सूजन के स्तर में कमी आती है। साथ ही, बीमारी से लड़ने में भी यह सहायता करता है। पपीता के सेवन के बहुत सारे फायदे होते हैं। हमें केवल बिमारियों के दौरान ही नहीं बल्कि एक दिनचर्या के तौर पर पपीता का सेवन करना चाहिए। जिससे कि आने वाली बीमारियों से शरीर को स्वस्थ बनाया जा सके।
लौंग का सेवन करने से होने वाले लाभ व नुकसान क्या-क्या हैं ?

लौंग का सेवन करने से होने वाले लाभ व नुकसान क्या-क्या हैं ?

लौंग का इस्तेमाल व्यंजन को स्वादिष्ट बनाने के साथ साथ बहुत सी आयुर्वेदिक दवाइयों में भी किया जाता है। लौंग का सेवन बहुत से रोगों में राहत पाने के लिए किया जाता है। लेकिन लौंग का सेवन करने से जितने फायदे है , उतने नुक्सान भी है। लौंग का ज्यादा मात्रा में सेवन करना स्वास्थ के लिए हानिकारक भी सिद्ध हो सकता है।

लौंग के ज्यादा सेवन से शरीर में हो सकती है ग्लूकोज़ की मात्रा कम

लौंग के ज्यादा सेवन से शरीर में ग्लूकोज़ की मात्रा कम होती है। जिन लोगो का ग्लूकोज़ स्तर पहले से ही कम है , उन्हें लौंग का सेवन नहीं करना चाहिए। शरीर में ग्लूकोज़ के कम होने से, चक्कर आना, सिर में दर्द होना, कांपना , चिड़चिड़ापन होना साथ ही दिल की धड़कन का बढ़ना आदि जैसी बीमारियाँ भी हो सकती है। यह सब लौंग के ज्यादा सेवन करने से होने वाले नुकसान है। अगर इन बीमारियों पर जल्द ही ध्यान ना दिया जाये तो , इससे व्यक्ति कोमा में भी जा सकता है, या फिर दौरे पड़ने की संभावनाएं भी बढ़ सकती है।

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लौंग के ज्यादा सेवन करने से खून हो सकता है पतला

लौंग के अंदर खून को पतला करने वाले गुण पाए जाते है, चोट आदि लगने पर ब्लीडिंग ज्यादा होने लगती है।  लौंग के ज्यादा सेवन करने से खून पतला होता है. हीमोफीलिया से ग्रस्त रोगियों को लौंग का सेवन नहीं करना चाहिए। हीमोफीलिया यानी जिनको ब्लीडिंग डिसऑर्डर है, उन्हें लौंग का बहुत ही कम मात्रा में उपयोग करना चाहिए ,वो भी डॉक्टर के परामर्श अनुसार। लौंग के ज्यादा सेवन करने से खून में मौजूद प्लेटलेट कम हो जाती है ,जिसकी वजह से खून पतला हो जाता है।

आँखों में जलन होना

लौंग के अंदर तीखी खुशबू और झार पायी जाती है। लौंग के लगातार उपयोग करने से आँखों में अलेर्जी की समस्या भी उत्पन्न हो सकती है।  लौंग का उपयोग आँखों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। लौंग के ज्यादा उपयोग करने से आँखों में जलन की समस्या भी उत्पन्न हो सकती है। यदि आपको ये महसूस होता है की आँखों में जलन या बार बार आँखों से पानी निकलने की परेशानी हो रही है , तो उसी वक्त लौंग का सेवन करना छोड़ दे।

पेट के लिए है नुकसानदायक

लौंग का तासीर बहुत गर्म होता है इसीलिए इसके ज्यादा उपयोग से पेट में परेशानी हो सकती है। लौंग के ज्यादा उपयोग से लीवर और किडनी से जुडी समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती है। इससे पेट में दर्द होना , ऐठन और अन्य बीमारियाँ भी हो सकती है। लौंग का अनियमित रूप सेवन करना आँतो पर भी गहरा असर डालता  है, इससे आँतो पर सूजन आना और खाना न पचने की समस्या भी हो सकती है।

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गर्भावस्था  में ना करें लौंग का उपयोग

इस अवस्था के दौरान लौंग का इस्तेमाल करना नुक्सानदायक साबित हो सकता है। लौंग की तासीर बहुत ही गर्म रहती है।  इसीलिए प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओ को लौंग के उपयोग के लिए मना किया जाता है। गर्भवती महिलाओ द्वारा लौंग का उपयोग खाने में डालकर किया जा सकता है, लेकिन दवाई के रूप में सीधे लौंग का इस्तेमाल न करें इससे मिसकैरेज की संभावनाएं बढ़ जाती है।

एलर्जीक रिएक्शन होने की संभावनाऐं

बहुत से लोगो की त्वचा सेंसिटिव होने के कारण ,उन्हें लौंग के उपयोग से एलर्जीक रिएक्शन या खुजली की समस्या भी उत्पन्न हो सकती है।  इसीलिए ऐसी त्वचा वाले लोगों को लौंग का बहुत ही कम मात्रा में इस्तेमाल करना चाहिए। ज्यादा मात्रा में लौंग का उपयोग करना सेहत के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है। लौंग के अंदर बहुत से ऐसे कम्पाउंड पाए जाते है ,जिनकी वजह से एलर्जीक रिएक्शन का सामना करना पड सकता है।

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दवाओं के साथ हो सकता है रिएक्शन

लौंग का सेवन दवाओं के साथ करने से रिएक्शन हो सकते है। इसीलिए जो व्यक्ति पहले से किसी प्रकार की दवाइयों का सेवन कर रहे है तो उन्हें लौंग का सेवन डॉक्टर से परामर्श लेकर करना चाहिए। लौंग और दवाओं का एक साथ सेवन करना सेहत के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है। लौंग दवाओं के इफेक्टिवनेस को कम कर सकता है , या फिर आपको भी किसी प्रकार की समस्या का सामना करना पड सकता है।

लौंग का सेवन कब और कैसे करना है ,ये परिस्तिथिओ पर निर्भर करता है। लौंग के उपयोग से मिलने वाले बहुत से लाभ और फायदे है।  लेकिन लौंग का तासीर गर्म होता है , इसके ज्यादा उपयोग से स्वास्थ भी खराब हो सकता है। लौंग को वैसे उलटी , कब्ज और गैस जैसी समस्याओं के लिए अधिक फायदेमंद माना गया है , लेकिन इसके ज्यादा उपयोग से परेशानियां भी हो सकती है। जो रोगी पहले से किसी बीमारी की दवा ले रहे है , उन्हें स्वास्थ सलाहकारों से परामार्श लेकर लौंग का सेवन करना चाहिए।

सॉयल हेल्थ कार्ड स्कीम | Soil Health Card Scheme

सॉयल हेल्थ कार्ड स्कीम | Soil Health Card Scheme

मृदा स्वास्थ्य कार्ड स्कीम समूचे देश में चलाई जा रही है। इसका उद्देश्य एक डाटा तैयार करना है कि देश की मृदा की स्थिति क्या है। किन राज्यों में किन पोषक तत्वों की कमी है। सरकार की मंशा है कि राज्यों की स्थिति के अनुरूप किसानों तक उर्वरकों की पहुंच आसान और सुनिश्चत की जाए ताकि उत्पादन में इजाफा हो सके। किसानों की माली हालत में भी सुधार हो सके। राज्य सरकार के कृषि विभाग की मदद से मृदा नमूनों का संकलन, परीक्षण एवं इसे आनलाइन अपलोड करने का काम पूरे देश में चरणबद्ध तरीके से कराया जा रहा है। यह योजना कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय  भारत सरकार द्वारा चलाई जा रही है। सॉयल हेल्थ कार्ड का उद्देश्य प्रत्येक किसान को उसके खेत की सॉयल के पोषक तत्वों की स्थिति की जानकारी देना है।

  soil health card 1 

 यह एक प्रिंटेड रिपोर्ट है जिसे किसान को उसके प्रत्येक जोतों के लिए दिया जायेगा। इसमें 12 पैरामीटर जैसे एनपीके (मुख्य - पोषक तत्व), सल्फर (गौण – पोषक तत्व), जिंग, फेरस, कॉपर, मैग्निश्यम, बोरॉन (सूक्ष्म – पोषक तत्व), और इसी ओसी (भौतिक पैरामीटर) के संबंध में उनकी सॉयल की स्थिति निहित होगी। इसके आधार पर एसएचसी में खेती के लिए अपेक्षित सॉयल सुधार और उर्वरक सिफारिशों को भी दर्शाया जायेगा। यह कार्ड आगामी फसल के लिए जरूरी पोषक तत्वों की जानकारी भी देता है। यह बात अलग कि मृदा नमूना लेने का काम क्षेत्र विशेष में ग्रिड बनाकर किए जा रहा है। इससे मोटा मोटी अनुमान लग जाता है कि किस इलाके में कौनसे पोषक तत्वों की कमी है। 

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 सवाल यह उठता है कि क्या किसान प्रत्येक वर्ष और प्रत्येक फसल के लिए एक कार्ड प्राप्त करेंगे। यह कार्ड 3 वर्ष के अंतराल के बाद उपलब्ध कराया जाएगा। सॉयल नमूने जीपीएस उपकरण और राजस्व मानचित्रों की मदद से सिंचित क्षेत्र में 2.5 हैक्टर और वर्षा सिंचित क्षेत्र में 10 हैक्टर के ग्रिड से नमूने लिए जा रहे हैं। नमूनों का संकलन सरकारी कर्मचारी, कालेज स्टूडेंट, एनजीओ वर्कर आदि किसी भी माध्यम से संकलित कराए जाते हैं। नमूनों का संकलन खाली खेतों में आसानी से हो जाता है। 

नमूना लेने का तरीका समझें किसान

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 सॉयल नमूने V आकार में मिट्टी की कटाई के उपरांत 15 – 20 सेण्टी मीटर की गहराई से निकालने चाहिए। किसान भी यह काम कर सकते हैं। नमूना कभी मेंड की तरफ से नहीं लेना चहिए। नमूने को समूचे खेत से संकलित करना चहिए ताकि समूची मृदा का प्रतिनिधित्व हो और जांच ठीक हो सके। अच्छा हो कि किसी जानकार या कृषि विभाग के व्यक्ति से नमूना लेने का तरीका समझ लिए जाए।  छाया वाले क्षेत्र से नमूना न लिया जाए। चयनित नमूने को बैग में बंद करके खेत की पहचान वाली पर्ची डालकर ​ही दिया जाए। इसके बाद ही नमने को जांच के लिए भेजा जाए। नमूनों में तीन मुख्य तत्वों की जांच तो हर जनपद स्तर पर हो जाती है लेकिन शूक्ष्म पोषक तत्वों की जांच मण्डल स्तीर प्रयोगशालाओं पर ही होत पाती है। इस परीक्षण रिपोर्ट के आधार पर ही कार्ड बनाकर जनपदों को भेजे जाते हैं। इसके बाद यह किसानों में वितरित होते हैं। किसान अपनी मिट्टी की जांच कई राज्यों में नि:शुल्क या महज पांच सात रुपए की दर से कराई जा सकती है।