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नैनो यूरिया का ड्रोन से गुजरात में परीक्षण

नैनो यूरिया का ड्रोन से गुजरात में परीक्षण

तरल नैनो यूरिया के कारोबारी उत्पादन करने वाला भारत विश्व का पहला देश बन गया है। गुजरात के भावनगर में केन्द्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्री मनसुख मांडविया की मौजूदगी में गुजरात के भावगन में ड्रोन से नैनो यूरिया के छिडकाव का सफल परीक्षण किया गया।  जून में इसका उत्पादन शुरू हुआ और तब से अब तक हमने नैनो यूरिया की 50 लाख से अधिक बोतलों का उत्पादन कर लिया है। उन्होंने बताया कि नैनो यूरिया की प्रतिदिन एक लाख से अधिक बोतलों का उत्पादन किया जा रहा है। इस दौरान मौजूद किसानों के मध्य मंत्री ने कहा कि उर्वरक और दवाओं के परंपरागत उपयोग को लेकर कई तरह की शंकाएं किसानों के मन में रहती हैं। छिड़काव करने वाले के स्वास्थ्य को इससे होने वाले संभावित नुकसान के बारे में भी चिंता व्यक्त की जाती है। ड्रोन से इसका छिड़काव इन सवालों और समस्याओं का समाधान कर देगा। ड्रोन से कम समय में अधिक से अधिक क्षेत्र में छिड़काव किया जा सकता है। इससे किसानों का समय बचेगा। छिड़काव की लागत कम होगी।

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उन्होंने नैनो टेक्नोलाजी की खूबी पर चर्चा करते हुए कहा कि इससे यूरिया आयात घटेगा। किसानों को और जमीन को अधिक यूरिया डालने से होन वाले नुकसान से किसान बचेंगे। जमीन की उपज क्षमता में भी लाभ होगा। संतुलित उर्वरक उपयोग से खाद्यान्न गुणवत्ता भी सुधरेगी। यूरिया पर दी जाने वाली सब्सिडी का बोझ भी कम होगा। इसका उपयोग अन्य जन कल्याणकारी कार्यों में किया जा सकेगा। इस दौरान इफको के प्रतिनिधियों ने किसानों की जिज्ञासा को शांत किया। उन्होंने किसानों को ड्रोन से किए जाने वाले छिडकाव को जीवन रक्षा के लिए बेहद कारगर बताया। इस अवसर पर भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ के अध्यक्ष और इफको के उपाध्यक्ष दिलीप भाई संघानी भी उपस्थित थे।
FMCI निदेशक राजू कपूर ने इस 2024 में ड्रोन का कृषि में उपयोग बढ़ने की संभावना जताई

FMCI निदेशक राजू कपूर ने इस 2024 में ड्रोन का कृषि में उपयोग बढ़ने की संभावना जताई

केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा किसानों की आमदनी को दोगुना करने का निरंतर प्रयास रहता है। इसी कड़ी में 2024 में उर्वरक और कृषि रसायन छिड़काव में ड्रोन के इस्तेमाल को प्रोत्साहन मिलेगा। एफएमसी इंडिया के निदेशक राजू कपूर – कृषि रसायन उद्योग ने वर्ष 2023 में सामने आई चुनौतियों का सामना करते  हुए सतर्क व सकारात्मक आशावाद के साथ 2024 में प्रवेश किया है। 2023 के दौरान कृषि क्षेत्र में जीवीए 1.8% प्रतिशत तक गिर गया। वहीं, कृषि रसायन उद्योग के अंदर प्रमुख चालक बरकरार रहे। इस वजह से इस क्षेत्र को खुद को रीबूट (रीस्टार्ट) करने की आवश्यकता है।

जीवीए से आप क्या समझते हैं ?

सकल मूल्य वर्धित (जीवीए) किसी अर्थव्यवस्था (क्षेत्र, क्षेत्र या देश) में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के समकुल मूल्य का माप है। जीवीए से यह भी पता चलता है, कि किस विशेष क्षेत्र, उद्योग अथवा क्षेत्र में कितनी पैदावार हुई है। 

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इस 2024 में फसल सुरक्षा उद्योग में वृद्धि की संभावना 

बतादें, कि वर्ष 2023 की द्वितीय छमाही में वैश्विक स्तर पर फसल सुरक्षा उद्योग पर डीस्टॉकिंग (भंडारण क्षमता को कम करना) का विशेष प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिला है। 2024 के चलते यदि मौसम सही रहा, तो भारतीय फसल सुरक्षा उद्योग में वर्ष की तीसरी/चौथी तिमाही में ही उछाल आने की संभावना है। जो कि समग्र बाजार की गतिशीलता में सामान्य हालात की वापसी का संकेत है। वही, रबी 2023 के लिए बुआई का क्षेत्रफल काफी सीमा तक क्षेत्रीय फसलों के लिए बरकरार है। परंतु, बुआई में दलहन और तिलहन के क्षेत्रफल में गिरावट उद्योग के लिए नकारात्मक है।

एफएमसी इंडिया के उद्योग एवं सार्वजनिक मामले के निदेशक राजू कपूर का कहना है, कि चीन से कृषि रसायनों की ‘डंपिंग’ में नरमी की आशा करनी चाहिए। प्रौद्योगिकी के मोर्चे पर एक महत्वपूर्ण प्रगति उर्वरक एवं कृषि रसायन छिड़काव के लिए ड्रोन के उपयोग में काफी वृद्धि है। सरकार समर्थित ‘ड्रोन दीदी’ योजना की शुरुआत से इसे बड़ा प्रोत्साहन मिलने की संभावना है। उर्वरक और कृषि रसायन उद्योग के मध्य शानदार समन्वय से ड्रोन को एक सेवा अवधारणा के तौर में स्थिर करने में सहायता मिलेगी, इसकी वजह से फसल सुरक्षा और पोषण उपयोग दक्षता व प्रभावकारिता में सुधार आऐगा।

खरपतवारों व कीटनाशकों के लिए नियंत्रण योजना

श्री कपूर ने कहा “हमें गेहूं की फसलों में फालारिस जैसे खरपतवारों और गुलाबी बॉलवॉर्म जैसे कीटनाशकों से झूझने के लिए नए अणुओं के अनावरण की भी आशा करनी चाहिए। नवीन अणुओं के विनियामक अनुमोदन के लिए लगने वाले वक्त को तर्कसंगत बनाने के नियामक निकाय केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड की घोषणा से इसे बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।”

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बागवानी उत्पादन की लगातार बढ़ोतरी कवकनाशी की लगातार मांग के लिए सकारात्मक होगी। हालांकि, जेनेरिक उत्पादों को दबाव का सामना करना पड़ सकता है। परंतु, सहायक सरकारी योजनाओं के साथ उद्योग का दूरदर्शी दृष्टिकोण यह सुनिश्चित कर सकता है कि उद्योग विकास मार्ग पर लौट आए। श्री कपूर ने कहा कि 2024 में कृषि उद्योग की संभावनाएं इसके नवाचार एवं रणनीतिक कार्यों की खूबियां हैं। यह क्षेत्र सशक्त खाद्य मांग एवं टिकाऊ कृषि प्रथाओं के प्रति प्रतिबद्धता की वजह से एक साल के विस्तार के लिए तैयार है।

गोबर के जरिए फौज की वर्दी निर्मित करने के साथ ही, उत्पादन योग्य बनाया जाएगा रेगिस्तान

गोबर के जरिए फौज की वर्दी निर्मित करने के साथ ही, उत्पादन योग्य बनाया जाएगा रेगिस्तान

केंद्र एवं राज्य सरकार के माध्यम से राजस्थान के जनपद कोटा में कृषि महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत देशभर से विभिन्न स्टार्टअप (startup) भी शम्मिलित होने के लिए पहुंच रहे हैं। इसमें एक अनोखा स्टार्टअप (startup) भी सम्मिलित हुआ है, इसके अंतर्गत गोबर के जरिए रसायन निर्मित कर विभिन्न रूप में प्रयोग किया जा रहा है। आईआईटियन (IITians) डॉक्टर सत्य प्रकाश वर्मा के मुताबिक उनके द्वारा गोबर खरीदी होती है। उसके बाद में विभिन्न प्रकार के रसायन तैयार किए जाते हैं। इस रसायन के उपयोग से सेना के जवानों की वर्दी भी बनाई जा सकती है। इसके अतिरिक्त रेगिस्तान को उत्पादक निर्मित करने एवं पुताई हेतु भी प्रयोग किए जाने वाले पेंट भी तैयार हो रहा है। डॉ. सत्य प्रकाश वर्मा कहा है, कि यह गाय के गोबर द्वारा रसायनिक विधि के माध्यम से निकलने वाले नैनोसैलूलोज से हो रहा है। डेढ़ वर्ष पूर्व उन्होंने स्टार्टअप गोबर वाला डॉट कॉम (.com) चालू किया था। जिसके माध्यम से प्राप्त होने वाले गोबर द्वारा रसायन प्रोसेस के जरिए नैनोसैलूलोज तैयार किया जा रहा है। जो कि हजारों रुपए किलोग्राम में विक्रय किया जा रहा है। इसके विभिन्न अतिरिक्त इस्तेमाल भी किए जा रहे हैं। उनका यह दावा है, कि नैनोसैलूलोज तैयार होने के उपरांत गोबर में बचा हुआ तरल एक गोंद की भांति हो जाता है, जिसको लिग्निन कहा जाता हैं। यह लिग्निन प्लाई निर्माण के कार्य में लिया जाता है एवं 45 रुपए प्रतिकिलो तक के भाव में विक्रय होता है।
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राजस्थान राज्य के जनपद कोटा में जय हिंद नगर के रहने वाले सत्य प्रकाश वर्मा जी विगत कई वर्षों से पशुओं के अपशिष्ट के ऊपर गंभीरता से शोध में जुटे हुए हैं। उन्होंने वर्ष 2003 में आईआईटी बॉम्बे से रसायन इंजीनियरिंग में बीटेक की डिग्री हासिल की है। साथ ही, वर्ष 2007 के दौरान उन्होंने पीएचडी भी आईआईटी बॉम्बे से करी है। इसके उपरांत फ्लोरिडा से मार्केटिंग मैनेजमेंट से भी पीएचडी कर रखी है। सत्यप्रकाश वर्मा जी ने नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट मुम्बई (National Institute of Management Mumbai) से एमबीए की डिग्री भी हांसिल की है। इस सब के उपरांत सत्य प्रकाश एवं उनकी इंजीनियर पत्नी भावना गोरा दुबई में रहने लगे। दुबई में उन्होंने ऑयल इंडस्ट्री में नौकरी किया करते थे। उसके कुछ समय उपरांत वहीं पर स्वयं का व्यवसाय आरंभ किया एवं ऑयल एंड गैस कंपनीज हेतु उत्पाद निर्मित करने में जुट गए। इस समय के अंतर्गत सत्य प्रकाश जी गाय, बकरी और सुअर के अपशिष्ट पदार्थों पर निरंतर शोध में लगे हुए थे। वह स्वयं की कंपनी को भारत में स्थापित करने के उद्देश्य से ही देश वापस आए हैं।

वैदिक पेंट जलरोधक होता है

डॉ. सत्य प्रकाश वर्मा का कहना है, कि गोबर द्वारा निकाले गए इस अल्फा नैनोसैलूलोज का इस्तेमाल वैदिक पेंट को बनाने हेतु होता है। इसका इस्तेमाल तीन प्रकार की पेंटिंग करने के लिए किया जाता है। इन तीन प्रकार में पहला वॉल पुट्टी, दूसरा वॉल प्राइमर एवं तीसरा इमर्शन होता है। इसको प्लास्टिक पेंट के नाम से भी जाना जाता है। वॉल पुट्टी के उपरांत किसी भी पेंट की जरुरत नहीं पड़ती है। यह आपको विभिन्न रंग में मिल जाता है एवं यह पेंट वाटरप्रूफ भी रहता है। आपको बतादें, कि इसका उपयोग अब बड़े पैमाने पर किया जाने लगा है। ये भी देखें: इस राज्य की आदिवासी महिलाएं गोबर से पेंट बनाकर आत्मनिर्भर बन रहीं हैं

रेगिस्तान को इस विधि से बनाया जा रहा है उपजाऊ क्षेत्र

उनका कहना है, कि नैनो बायो उर्वरक तैयार करने में भी नैनोसैलूलोज का इस्तेमाल किया जाता है। इसके माध्यम से रेगिस्तान की रेतीली भूमि को उपजाऊ किया जाता है। नैनोसैलूलोज की निश्चित मात्रा को रेगिस्तान की मिट्टी पर फैलाया जाता है। तदोपरांत वह जमाव हेतु तैयार हो जाती है। रेगिस्तान की भूमि पहले से कहीं अधिक उत्पादक होती है। भूमि में मात्र जमाव का तत्व विघमान नहीं होता है, वह भी नैनोसैलूलोज डालने के उपरांत आ जाता है।

डीआरडीओ की सहायता से निर्मित की जा रही फौज की वर्दी

डॉ.सत्य प्रकाश के बताने के अनुसार, नैनोसैलूलोज के माध्यम से वे फाइबर का निर्माण कर रहे हैं। जिसका इस्तेमाल सैनिकों की वर्दी निर्मित करने हेतु हो रहा है। इसके अंतर्गत हेलमेट से लेकर जूता तक भी आता हैं। उनका कहना है, कि यह यूनिफॉर्म सामान्यतः सैनिकों की वर्दी से बेहद कम वजन व अधिक मजबूत भी मानी जाती है। यह वर्दी पसीने को भी सोख जाती है। इसके अतिरिक्त यदि सैनिक घायल हो जाए, तो इस यूनिफार्म के कारण से ब्लड क्लॉटिंग बड़ी सुगमता से हो जाती है। इस प्रकार यह एक टिशू रीजनरेशन आरंभ कर देती है। इससे जवान के जीवन की समयावधि काफी बढ़ जाती है।
किसान ड्रोन की सहायता से 15 मिनट के अंदर एक एकड़ भूमि में करेंगे यूरिया का छिड़काव

किसान ड्रोन की सहायता से 15 मिनट के अंदर एक एकड़ भूमि में करेंगे यूरिया का छिड़काव

उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जनपद में स्थित बीएचयू कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा खेतों में फसलों को जल पोषित करने हेतु अत्याधुनिक ड्रोन तैयार किया है। इस ड्रोन से किसान भाई कम वक्त में दवा व उर्वरकों का छिड़काव कर पाएंगे। उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जनपद में स्थित बीएचयू कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिकों द्वारा किसानों हेतु अत्याधुनिक ड्रोन तैयार किया जाएगा। किसान ड्रोन तकनीक के माध्यम से कीटनाशक व उर्वरकों का छिड़काव फसलों पर कर पाएंगे। केवल 15 मिनट के समय के अंदर एक एकड़ भूमि पर खाद अथवा फिर कीटनाशक का छिड़काव कर सकेंगे। इस तकनीकी उपयोग से जल की खपत कम होने के साथ-साथ वक्त भी बचेगा। फसलों की पैदावार को अच्छा करने के लिए निरंतर केंद्र सरकार कदम उठा रही है। इसी कड़ी में बरकछा में उपस्थित कृषि विज्ञान केंद्र ने किसानों की खेती को अत्यधिक सुगम करने के लिए अत्याधुनिक ड्रोन निर्मित किया गया है।

समय की बर्बादी खत्म उत्पादन में होगी बढ़ोत्तरी

मिर्जापुर जनपद के बरकछा के बीएचयू में स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के माध्यम से 10 लाख रुपये के खर्च से अत्याधुनिक ड्रोन तैयार किया गया है। ड्रोन तकनीक से केवल 15 मिनट में एक एकड़ भूमि पर खाद, कीटनाशक अथवा दवा का छिड़काव आसानी से कर सकते हैं। फसलों की पैदावार में बढ़ोत्तरी करने के लिये केंद्र सरकार निरंतर नई तकनीक जारी कर रही है। अत्याधुनिक ड्रोन समस्त तरह की कृषि हेतु लाभकारी है।
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किसानों के खर्च में कमी आएगी

किसान ड्रोन तकनीक का उपयोग करके नैनो यूरिया (Nano Urea) का भी छिड़काव कर सकते हैं। इससे किसानों की आमदनी में इजाफा होगा। कृषि विज्ञान केंद्र मुफ्त में किसानों को ड्रोन उपलब्ध कराएगा । इस ड्रोन के वजन की बात करें तो यह 14.5 किलो ग्राम का है। ड्रोन के नीचे एक बॉक्स बना रहता है। इस बॉक्स के अंदर कीटनाशक अथवा खाद रखा जा सकता है। कम जल खपत एवं कम खर्च में किसान खेतों में छिड़काव कर पाएंगे। इस तकनीक के इस्तेमाल से किसानों का खर्च भी काफी कम हो जाएगा।

ड्रोन से किया गया छिड़काव ज्यादा फायदेमंद होता है

कृषि विज्ञान केंद्र के अध्यक्ष डॉ श्रीराम सिंह का कहना है, कि ड्रोन के माध्यम से किसान एक एकड़ भूमि में कीटनाशकों, वाटर सॉल्युबल उर्वरकों और पोषक तत्वों का फिलहाल कम समय के अंदर किसान छिड़काव कर पाएंगे। इसकी सहायता से उनके वक्त के साथ संसाधन भी बचेेंगे। ड्रोन तकनीक द्वारा ऊपर से छिड़काव किया जाता है, जो कि फसलों हेतु अत्यंत लाभकारी होता है। मैनुवल से अधिक ऊपर से छिड़काव लाभकारी होता है।

किसानों द्वारा नैनो यूरिया उपयोग किया जा सकता है

खेतों में छिड़काव हेतु किसान नैनो यूरिया (Nano Urea) का उपयोग कर सकते हैं। इफको द्वारा दानेदार खाद से इतर हटकर नैनो यूरिया तैयार किया है। एक बोतल नैनो यूरिया एक बोरी खाद के समरूप किसानों की फसलों की पैदावार में वृद्धि करने हेतु काम है। एक एकड़ भूमि के लिए पांच सौ एमएल की एक ही बोतल काफी है। नैनो यूरिया के 4 एमएल प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर फसलों में छिड़काव किया जा सकता है। ड्रोन तकनीक में इसी यूरिया का उपयोग कर सकते हैं। नैनो यूरिया पूर्णतय प्रदूषण से मुक्त है।
नैनो डीएपी के व्यवसायिक प्रयोग को मंजूरी, जल्द मिलेगा लाभ

नैनो डीएपी के व्यवसायिक प्रयोग को मंजूरी, जल्द मिलेगा लाभ

खेती में उर्वरकों का इस्तेमाल बेहद बढ़ चुका है. जिस कम करने के लिए नैनो फर्टिलाइजर्स बनाये जा रहे हैं. कुछ समय पहले ही सरकार की तरफ से नैनो यूरिया को मंजूरी दी गयी थी. लेकिन अब इफको के नैनो डीएपी फर्टिलाइजर को अब कमर्शियल रिलीज के लिए मंजूरी दे दी है. सरकार के इस फैसले से डीएपी फर्टिलाइजर किसानों को ना सिर्फ कम कीमत में मिलेगा बल्कि हम मात्रा में फसल की पैदावार भी ज्यादा होगी. अब तक डीएपी की 50 किलो उर्वरक की बोरी की कीमत करब 4 हजार रुपये थी, जो सरकारी सब्सिडी लगने के बाद 13 सौ 50 रुएये में दी जा रही थी.  लेकिन सरकार के फैसले के बाद 50 किलो की बोरी को एक 5 सौ एमएल की बोतल में नैनो डीएपी लिक्विड फर्टिलाइजर के रूप में दिया जाएगी. इसकी कीमत सिर्फ 6 सौ रुपये होगी. हालांकि इस पूरे मामले में अभी सरकार की ओर से आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन इसे व्यवसायिक इस्तेमाल को मंजूरी मिल चुकी है. जिस वजह से खेती और किसानी लागत को कम करने में काफी मदद मिलेगी. इसके अलावा जो सब्सिडी सरकार की ओर से भुगतान की जाएगी, उसमें भी काफी कमी आएगी.

सरकार को सब्सिडी बचाने में मिलेगी मदद

किसानों के लिए कीमतों में इस्तेमाल में काफी सुविधाजंक साबित हो सकता है. जिससे सरकार को अच्छी खासी मात्रा में सब्सिडी बचाने में मदद मिलेगी. इसके अलावा नैनो डीएपी को लिक्विड यूरिया भी कहा जाता है. जो आमतौर पर यूरिया से एकदम अलग और दानेदार होती है. इसे इफको और कोरोमंडल इंटरनेशन ने मिलकर बनाया है. ये भी देखें: जाने क्या है नैनो डीएपी फर्टिलाइजर और किन फसलों पर किया जा रहा है ट्रायल?

इन उर्वरकों पर भी ध्यान

नैनो डीएपी के बाद अब सरकार जल्फ़ इफको नैनो पोटाश, नैनो जिंक और नैनो कॉपर जैसे उर्वरकों पर भी ध्यान देगी. इतना ही नहीं वो जल्द ही इन उर्वरकों को लॉन्च भी कर सकती है. बता दें इफको ने साल 2021 जून के महीने में पारम्परिक यूरिया के ऑप्शन में नैनो यूरिया को लिक्विड रूप में लॉन्च किया था. इतना ही नहीं नैनो यूरिया का उत्पादन बढे, इसके लिए मैनुफेक्चरिंग प्लांट भी बनाए गये थे. रिपोर्ट्स के मुताबिक कई देशों में नैनो यूरिया के सैम्पल भेज दिए हैं, जहां ब्राजील ने इफको नैनो यूरिया लिक्विड फर्टिलाइज को पास करके मंजूरी दे दी है.

होगी सरकार की बचत

खेती और किसानी में उर्वरकों का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है. जिसका असर मिट्टी की उर्वरता पर पड़ रहा है. इस तरह की समस्या से नैनो उर्वरक निपटने में मदद करेंगे. इससे उर्वरकों के आयात पर निर्भरता भी कम हो जाएगी और सरकार पर सब्सिडी का बोझ भी नहीं पड़ेगा. नैनो यूरिया के इस्तेमाल की बात की जाए तो इसके फायदों के बारे में खुद उर्वरक मंत्री ने भी बताया था. उनके अनुसार किसानों को वाजिब दामों में उर्वरकों की उपलब्धता करवाई जाएगी. वहीं इफको द्वारा बनाया गया प्रोडक्ट सरकारी सब्सिडी के बिना भी कई गुना सस्ता है. इससे किसानों को बड़ी बचत होने का अनुमान लगाया जा रहा है.
दिन दूना रात चौगुना उत्पादन, किसानों को नैनो तकनीक से मिल रहा फायदा

दिन दूना रात चौगुना उत्पादन, किसानों को नैनो तकनीक से मिल रहा फायदा

किसानों के लिए तमिलनाडू कृषि विश्वविद्यालय ने रिसर्च के बाद एक नया सॉल्यूशन विकसित किया है। इतना ही नहीं इस सॉल्यूशन से फल और सब्जियों को लंबे समय तक फ्रेश रखने में मदद मिलेगी। तमिलनाडू के कोयम्बटूर में तमिलनाडू कृषि विश्वविद्यालय जो कि अब सौ साल पुराना हो चुका है। उसके परिसर में नैनो विज्ञान और प्रोद्योगिकी विभाग देश में खेती की अच्छी गुणवत्ता और उत्पादन बढ़ाने के लिए नैनो सॉल्यूशन पर काम जारी है। बताया जा रहा है कि, इसमें खेती के काफी सारे इनपुट का इस्तेमाल किया जा रहा है। जिसमें उर्वरक, कीटनाशक, खरपतवार और कवक नासी जैसी चीजें शामिल हैं। हालांकि सिर्फ 20 से 30 फीसद ही फसलें इनका इस्तेमाल करती हैं। जिसका बाकी का बचा हुआ हिस्सा मिट्टी के अवशेषों के रूप में रह जाता है। जा फिर जमीन में मिल जाता है।

अनुसंधान के निदेशक ने की स्थापना

अनुसंधान के निदेशक केएस सुब्रमण्यन भारत के सबसे अग्रिणी लोगों में शामिल हैं। सुब्रमण्यन के पास नैनो प्रोद्योगिकी कृषि सहायता के सेक्टर में सालों का अनुभव है। साल 2017 में NABARD ने TNAU में नैनो साइंस और प्रौधोगिकी विभाग में बर्ड प्रोफेसर चेयर को स्थापित किया। साल 2017 से साल 2020 में करीब एक करोड़ रुपये की आर्थिक मदद के साथ सुब्रमण्यम को लगभग तीन सालों के लिए इसकी जिम्मेदारी सौंप दी गयी। इसके आलवा TANU नव प्रदूषण को कम करने के अलावा, फसलों की अच्छी उपज और अच्छे उत्पादन के साथ साथ फलों और सब्जियों को लंबे समय तक तरो ताजा बनाने के लिए नैनी प्रौद्योगिकी क्षेत्र में रिसर्च और विकास किया। जानकारी के लिया बतादें कि, कृषि इनपुट की क्षमता में सुधार करने के लिए नैनो प्रौद्योगिकी सहायता करती है। इसके लिए उत्पादों का इस्तेमाल प्रभावी लागत के साथ सटीक और सही मात्रा और लेवल तक किया जा सकता है।

नैनो उत्पाद सरकारी खजाने में लाएगा बचत

देश में लगभग एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की कीमत के उर्वरकों का आयात किया जाता है। साथ ही, नैनो उत्पादन सरकार खजाने में काफी बचत भी करने में मददगार हो सकता है। सुब्रमण्नयम के मुताबिक यूरिया की 5 सौ मिलीलीटर की बोतल युरिया के 50 किलो बैग के बराबर होती है। वहीं, 5 सौ एमएल यूरिया की कीमत लगभग दो सौ से ढ़ाई सौ के बीच में है। जो कि एक एकड़ जमीन के लिए काफी होती है। ये भी पढ़ें: नैनो डीएपी के व्यवसायिक प्रयोग को मंजूरी, जल्द मिलेगा लाभ

नैनो सॉल्यूशन से होगी फलों और सब्जियों की सुरक्षा

नैनो उत्पाद का इस्तेमाल करने से कई तरह के लाभ मिल सकते हैं। देश में हर साल करीब 330 मिलियन टन फलों और सब्जियों का उत्पादन किया जाता है। जो कि पूरी दुनिया में दूसरे नंबर पर है। लेकिन हर तीन में से एक फल यानि की लगभग 35 फीसद फल और सब्जी खराब हो जाते हैं। TNAU परियोजना के तहत फलों को संरक्षित करने और उन्हें लंबे समय तक ताजा बनाए रखने और कचरे को कम करने के लिए नैनो उत्पादों की एक सीरीज तैयार की गयी है। हालांकि, तमिलनाडू में आम और केले की खेती के लिए इस प्रयोग को किया जा रहा है। इसके पीछे सिर्फ एक ही सोच है, और वो ये है कि, नुकसान का 10 फीसद कम किया जा सकता है। इससे देश के हिस्से बड़ी बचत आ सकती है।

किसानों को हो रहा फायदा

5 हजार से ज्यादा किसानों ने आम और केले की खेती के लिए इस फार्मुलेशन का इस्तेमाल किया है। इससे उन्हें काफी फायदा भी हुआ है। यह किसान कृष्णागिरी, थेनी, डिंडीगुल और कन्याकुमारी जिले के थे। वहीं 80 फीसद किसानों के अनुसार उपज में काफी हद तक बीमारी में कमी हुई है और इससे उन्हें अच्छा मुनाफा हुआ है।

बीजों के लिए आ गया नैनो समाधान

नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग प्रसंस्करण की लैब में बीजों की परत चढ़ाई जाती है। जिसमें कपास, मूंग, धान और भिंडी के बीजों में सूक्ष्म नैनो फाइबर लगाया जाता है। जिसमें सभी तरह के पोषण, कीटों से सुरक्षण के साथ साथ विकास भी शामिल है। इसके लिए पहले से ही बीजों को तैयार कर लिया जाता है। जो किसानों के लिए मददगार होते हैं। जिसके बाद उनके उपचार से लेकर कीटनाशकों से जुड़ी टेंशन नहीं लेनी पड़ती।

TNAU में विकसित उत्पादों में से एक नैनो यूरिया

नैनो यूरिया का इस्तेमाल तमिलनाडु के बवानी सागर एरिया में करीब दस एकड़ चावल और मक्के पर किया जा चुका है। जोकि काफी सफल रहता है। साथ ही इसकी उपज में 10 से 15 फीसद तक बढ़ोतरी हुई है। जिसे देखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने देश के 11 हजार जगहों पर परीक्षण किया। जिसमें से कुल 650 कृषि विज्ञान केन्द्रों के जरिये नैनो यूरिया को बांटा गया। साल 2022 में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया के पहले नैनो यूरिया लिक्विड सयंत्र का उद्घाटन किया था। जो उत्पादकता को बढ़ाने के साथ-साथ किसानों की इनकम को बढ़ाने में भी मददगार साबित हुआ था। इसे साइंटिफिक रूप से मान्य और जैव सुरक्षा परीक्षण किया गया। जहां साल 2021 में उर्वरकों को कंट्रोल आदेश के द्वारा देश में पहले नैनो उर्वरक की अधिसूचना में मदद मिली।

नैनो तकनीक को किया सूचीबद्ध

किसानों के लिए सबसे चैलेंजिंग काम फसलों की बिमारियों का पता लगाने के साथ-साथ मिट्टी में नाइट्रोजन और नमी का लेवल नापने और इस बात को सुनिश्चित करने के लिए उत्पादन किसी तरह का हानिकारक है या नहीं। किसानों द्वारा इन सब चीजों का पता नैनो तकनीक के माध्यम से किया जा रहा है। हाल ही में नैनो उपकरणों को किसानों से जोड़ने का काम किया जा रहा है। इससे किसानों को उनकी फसलों में अगर कोई कमी मिलती है, तो उन्हें मैसेज के जरिये कांटेक्ट किया जा सकता है।

चुनौतियों को समझना भी मुश्किल

नैनो तकनीक में कई तरह की सम्भावनाएं हैं। लेकिन इसका सही इस्तेमाल करने के लिए काफी चुनौतियों को पार करना होगा। इसमें सबसे बड़ी चुनौती की बात की जाए तो, इसके विकास को जारी रखने के लिए आर्थिक चुनौती में मदद की थी। इसके अलावा प्रयोगकर्ता और किसानों से लेकर नीति निर्माताओं और लोगों के बीच प्रयोगशालाओं में क्या हो रहा है, इससे जुड़ी जागरूकता होनी भी जरूरी है। ताकि अनुसंधान और विकास को फायदा मिल सके।
केंद्र द्वारा किसान भाइयों को दिया जायेगा 50 फीसद कम मूल्य पर DAP

केंद्र द्वारा किसान भाइयों को दिया जायेगा 50 फीसद कम मूल्य पर DAP

कृषि में उपयोग होने वाला डीएपी (DAP) अब आधे मूल्य में उपलब्ध किए जाने से किसानों का खर्च अतिशीघ्र कम हो जाएगा। केंद्र सरकार इस दिशा में दीर्घ काल से कार्य कर रही थी एवं फिलहाल उसने इफ्को से विकसित किया गया नैनो डीएपी (Nano DAP) जारी कर दिया है। जैसा कि हम सब जानते हैं, अच्छी पैदावार लेने के लिए किसानों को कृषि कार्यों में डीएपी (DAP) उर्वरक पर काफी मोटा धन खर्च करना पड़ता है। हालाँकि, भारत सरकार इस पर अच्छा खासा अनुदान प्रदान करती है। फिलहाल, मोदी सरकार दीर्घ काल से उस तरह की खाद तैयार करने पर जोर दे रही है। जो कि कृषकों एवं सरकार दोनों के खर्च को कम कर दिया है। फिलहाल, कृषि मंत्रालय द्वारा नैनो डीएपी को जारी कर दिया है। इसका भाव डीएपी (DAP) बोरी के वर्तमान भाव के तुलनात्मक आधे से भी कम है। लिक्विड नैनो डीएपी (Nano DAP) को सहकारी क्षेत्र की खाद कंपनी इफ्को (IFFCO) द्वारा तैयार किया गया है। इफ्को के मैनेजिंग डायरेक्टर यू. एस. अवस्थी एवं केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्री मनसुख मंडाविया ने इस संबंध में ट्विटर पर जानकारी प्रदान की है। अवस्थी द्वारा जहां इसे मृदा एवं पर्यावरण सुरक्षा की दिशा में महत्वपूर्ण पहल बताया गया है, वहीं मंत्री मनसुख मंडाविया द्वारा इसको आत्मनिर्भर भारत निर्माण हेतु एक बड़ी उपलब्धि माना गया है।

आधा लीटर बोतल कितने मूल्य पर उपलब्ध हो जाएगी

आपको बतादें कि इफ्को द्वारा तैयार इस नैनो डीएपी (Nano DAP) का मूल्य 600 रुपये होगा। इस मूल्य पर किसान भाइयों को 500 मिली मतलब आधा लीटर लिक्विड डीएपी मिलेगा। यह डीएपी की एक बोरी के समरूप कार्य करेगी। भारत में यूरिया के उपरांत डीएपी का उपयोग दूजी सर्वाधिक उपयोग होने वाला उर्वरक है। इसके पूर्व इफ्को द्वारा नैनो यूरिया (Nano Urea) भी तैयार किया है। बिना अनुदान के इस बोतल का भाव 240 रुपये है। डीएपी खाद की एक बोरी का भाव फिलहाल 1,350 से 1,400 रुपये है। इस प्रकार किसानों का डीएपी (DAP) पर होने वाला व्यय आधे से भी कम आएगा। भारत में वार्षिक डीएपी (DAP) का अनुमानित उपयोग 1 से 1.25 करोड़ टन है। वहीं घरेलू स्तर पर केवल 40 से 50 लाख टन डीएपी (DAP)  का ही उत्पादन किया जाता है। अतिरिक्त का आयात करना होता है।

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नैनो डीएपी द्वारा केंद्र सरकार के डीएपी अनुदान पर आने वाली लागत में भी काफी गिरावट आएगी। साथ ही, आयात में कमी आने से भारत के विदेशी मुद्रा भंडार के संरक्षण में भी काफी सहायता मिलेगी।

इन उर्वरकों के नेंनो वर्जन आने की तैयारी

इफ्को नैनो यूरिया (Nano Urea) एवं नैनो डीएपी (Nano DAP) के जारी करने के उपरांत फिलहाल नैनो पोटाश, नैनो जिंक एवं नैनो कॉपर उर्वरक पर भी कार्य कर रहा है। आपको बतादें कि भारत डीएपी के अतिरिक्त बड़े स्तर पर पोटाश का भी आयात करता है।
नैनो यूरिया उर्वरक क्या है और यह किस तरह से काम करता है ?

नैनो यूरिया उर्वरक क्या है और यह किस तरह से काम करता है ?

नैनो यूरिया, जिसे नैनोस्केल यूरिया या नैनोटेक्नोलॉजी-आधारित यूरिया के रूप में भी जाना जाता है, यूरिया उर्वरक का एक अभिनव रूप है जिसने हाल के वर्षों में महत्वपूर्ण ध्यान आकर्षित किया जा रहा है। 

इसमें पारंपरिक यूरिया (दानेदार यूरिया ) की संरचना और गुणों को संशोधित करने के लिए नैनोटेक्नोलॉजी का उपयोग किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप यूरिया की कुशलता में वृद्धि हुई है, 

liquid नैनो यूरिया के इस्तेमाल से पारंपरिक यूरिया का पर्यावरण पर बुरा प्रभाव कम होगा है और फसल उत्पादकता में सुधार हुआ है। हमारे इस लेख में आप liquid नैनो यूरिया के गुणों और इसके इस्तेमाल से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी के बारे में जानेंगे। 

नैनो यूरिया क्या है?

नैनो यूरिया, यूरिया का ही liquid रूप है , यूरिया एक रासायनिक नाइट्रोजन fertilizer है जिसका रंग सफ़ेद होता है, यह कृत्रिम रूप से पौधों को नाइट्रोजन प्रदान करता है जो पोधो के लिए एक प्रमुख पोषक तत्व है, 

नैनो यूरिया की 500 ml की बोतल में 40,000 मिलीग्राम प्रति लीटर  nitrogen होती है , नैनो यूरिया की प्रभावशीलता 85 - 90 % तक हो सकती  है जिससे की पौधे को nitrogen की उपलब्ध्ता आसानी से हो जाती है ,

नैनो यूरिया को सीधे पौधे की पत्तियों  पर छिड़का जाता है जिसे पौधे द्वारा आसानी से अवशोषित कर लिया जाता है ,नैनो यूरिया को  IFFCO – Nano Biotechnology Research Center कलोल गुजरात द्वारा स्वदेशी रूप से विकसित किया गया है। 

नैनो यूरिया से जुड़े महत्वपूर्ण बिंदु

  • भारतीय फार्मर्स फर्टिलाइजर कोआपरेटिव लिमिटेड ने अगस्त 2021 में देश का पहला लिक्विड नैनो यूरिया संयंत्र चालू किया था।  
  • लिक्विड नैनो यूरिया का सीधा फसलों की पत्तियों पर छिड़काव किया जाता है , जिससे की पौधे द्वारा आसानी से सोख लिया जाता है। 
  • नैनो यूरिया की शेल्फ लाइफ एक साल होती है। 
  • यह किसानों के लिए सस्ता है और किसानों की आय बढ़ाने में भी लाभकारी है। 
  • IFFCO कंपनी के अनुसार नैनो यूरिया की एक बोतल का प्रभाव, यूरिया की एक बोरी के बराबर होती है , मतलब की 500 ml नैनो यूरिया की बोतल 45 किलोग्राम दानेदार यूरिया के बराबर है।     

नैनो यूरिया से होने वाले लाभ

नैनो यूरिया पौधों की जड़ों द्वारा बेहतर संपर्क और अवशोषण को बढ़ावा देता है। इससे पौधे की पोषक तत्व ग्रहण क्षमता में सुधार होता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि फसलों द्वारा अधिक नाइट्रोजन का उपयोग किया जाता है और बर्बादी कम होती है।

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नैनो यूरिया  फसलों को नाइट्रोजन की निरंतर आपूर्ति प्रदान करता है, जिसके परिणामस्वरूप पौधों की वृद्धि और उपज में सुधार होता है। 

नैनो यूरिया के नियंत्रित उपयोग और बढ़े हुए पोषक तत्व अवशोषण से पर्यावरण में नाइट्रोजन के नुकसान को कम करने में मदद मिलती है। 

नैनो यूरिया के इस्तेमाल से जल प्रदूषण कम होता है क्योंकि दानेदार यूरिया पानी के साथ भूमि के निचे चला जाता है जिससे की भूमिगत जल प्रदूषण होता है नैनो यूरिया के इस्तेमाल से नाइट्रस ऑक्साइड जैसी ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम होता है, 

जो जलवायु परिवर्तन में एक शक्तिशाली योगदानकर्ता है।   नैनो यूरिया के इस्तेमाल से किसानों को उच्च फसल उपज प्राप्त होती है। 

इससे न केवल लागत बचती है बल्कि यूरिया की कुल मांग भी कम हो जाती है, जिससे अधिक टिकाऊ कृषि पद्धतियों में योगदान मिलता है।  

पारंपरिक यूरिया (दानेदार यूरिया) में क्या कमियाँ है   

यूरिया दुनिया भर में सबसे अधिक इस्तेमाल होने वाले उर्वरकों में से एक है। यह पौधों को आवश्यक पोषक तत्व नाइट्रोजन प्रदान करता है, जो पौधों की वृद्धि और विकास के लिए महत्वपूर्ण है। हालाँकि, पारंपरिक यूरिया में कुछ कमियाँ हैं जिन्हें नैनो यूरिया का इस्तेमाल करके दूर किया जा सकता है। 

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जब पारंपरिक यूरिया को मिट्टी में डाला जाता है, तो यह विभिन्न रासायनिक प्रतिक्रियाओं से गुजरती है जिससे वाष्पीकरण, निक्षालन और विनाइट्रीकरण के माध्यम से नुकसान होता है। 

ये नुकसान न केवल उर्वरक की प्रभावशीलता को कम करते हैं बल्कि वायु और जल प्रदूषण जैसे पर्यावरण प्रदूषण में भी योगदान करते हैं। 

दानेदार यूरिया फसलों के लिए 30 -40 % ही प्रभावी है जबकि नैनो यूरिया फसलों के लिए 85 - 90 प्रतिशत तक प्रभावी है।   संक्षेप में, नैनो यूरिया कृषि उर्वरकों के क्षेत्र में एक आशाजनक प्रगति की किरण है।

इसके नैनोस्केल गुण बेहतर पोषक तत्व ग्रहण, नियंत्रित रिलीज, कम पर्यावरणीय प्रभाव और कुशल संसाधन उपयोग प्रदान करते हैं। 

जैसे-जैसे इस क्षेत्र में अनुसंधान और विकास जारी है, नैनो यूरिया में टिकाऊ कृषि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की क्षमता है, जो उर्वरक उपयोग को कम करते हुए फसल उत्पादकता में वृद्धि में योगदान देता है।

नैनो DAP किसान भाइयों के लिए अब 600 रुपए में उपलब्ध, जानें यह कैसे तैयार होता है

नैनो DAP किसान भाइयों के लिए अब 600 रुपए में उपलब्ध, जानें यह कैसे तैयार होता है

कृषकों के लिए एक खुशखबरी है। दरअसल, अब से भारत के समस्त किसानों को इफको की Nano DAP कम भाव पर मिलेगी। किसानों को अपनी फसलों से बेहतरीन पैदावार पाने के लिए विभिन्न प्रकार के कार्यों को करना होता है। उन्हीं में से एक खाद व उर्वरक देने का भी कार्य शम्मिलित है। फसलों के लिए डीएपी (DAP) खाद काफी ज्यादा लाभकारी माना जाता है। भारतीय बाजार में किसानों के बजट के अनुरूप ही DAP खाद मौजूद होती है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि दुनिया का पहला नैनो डीएपी तरल उर्वरक गृह एवं सहकारिता मंत्री द्वारा राष्ट्र को समर्पित किया गया। केंद्रीय आवास और सहकारिता मंत्री ने नई दिल्ली में इफको (IFFCO) के मुख्यालय में इफको के नैनो डीएपी तरल (Nano Liquid DAP) उर्वरकों को राष्ट्र की सेवा के लिए समर्पित किया। एफसीओ के अंतर्गत इंगित इफको नैनो डीएपी तरल शीघ्र ही किसानों के लिए मौजूद होगा। अगर एक नजरिए से देखें तो यह पौधे के विकास के लिए एक प्रभावी समाधान है। खबरों के अनुसार, यह 'आत्मनिर्भर कृषि' के पारंपरिक डीएपी से सस्ता है। डीएपी का एक बैग 7350 है, जबकि नैनो डीएपी तरल की एक बोतल केवल 600 रुपये में उपलब्ध है।

जानें DAP का उपयोग और इसका उद्देश्य क्या है

यह इस्तेमाल करने के लिए जैविक तौर पर सुरक्षित है और इसका उद्देश्य मिट्टी, जल एवं वायु प्रदूषण को कम करना है। इससे डीएपी आयात पर कमी आएगी। साथ ही, रसद और गोदामों से घर की लागत में काफी गिरावट देखने को मिलेगी। बतादें, कि तरल उर्वरक दुनिया के पहले नैनो डीएपी (Nano DAP), इफको द्वारा जारी किया गया था। नैनो डीएपी उर्वरक का उत्पादन गुजरात के कलोल, कांडा एवं ओडिशा के पारादीप में पहले ही चालू हो चुका है। इस साल नैनो डीएपी तरल की 5 करोड़ बोतलों का उत्पादन करने का लक्ष्य है, जो सामान्य डीएपी के 25 लाख टन के बराबर है। वित्त वर्ष 2025-26 तक यह उत्पादन 18 करोड़ होने की आशा है। ये भी पढ़े: दिन दूना रात चौगुना उत्पादन, किसानों को नैनो तकनीक से मिल रहा फायदा

नैनो DAP तरल नाइट्रोजन का एक बेहतरीन स्रोत माना जाता है

नैनो डीएपी तरल नाइट्रोजन का एक बेहतरीन स्रोत माना जाता है। साथ ही, यह फास्फोरस व पौधों में नाइट्रोजन व फास्फोरस की कमी को दूर करने में सहायता करता है। नैनो डी-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) तरल भारतीय किसानों द्वारा विकसित एक उर्वरक है। उर्वरक नियंत्रण आदेश के मुताबिक, भारत की सर्वोच्च उर्वरक सहकारी समिति (इफको) को 2 मार्च, 2023 को अधिसूचित किया गया था। साथ ही, भारत में नैनो डीएपी तरल का उत्पादन करने के लिए इफको को एक राजपत्र अधिसूचना जारी की गई थी। यह जैविक तौर पर सुरक्षित और पर्यावरण के अनुकूल है। अपशिष्ट मुक्त साग की खेती के लिए उपयुक्त है। इससे भारत उर्वरकों के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता पर तीव्रता से निर्भर रहेगा। नैनो डीएपी उत्पादन की गुणवत्ता और मात्रा व जीवन दोनों को भी बढ़ाएगा। किसान की आमदनी और भूमि के संरक्षण में बहुत बड़ा योगदान होगा। ये भी पढ़े: ‘एक देश में एक फर्टिलाइजर’ लागू करने जा रही केंद्र सरकार

नैनो DAP कैसे निर्मित हुई है

नैनो DAP के मामले में इफको के अध्यक्ष दिलीप संघानी ने बताया है, कि "नैनो डीएपी को तरल पदार्थों के साथ निर्मित किया गया है। किसान समृद्धि और आत्मनिर्भर भारत के लिए पीएम मोदी का विजन किसानों की आमदनी बढ़ाने एवं उन्हें बेहतर करने के उद्देश्य से लगातार कार्य कर रहा है। इफको के प्रबंध निदेशक डॉ. यू एस अवस्थी ने बताया है, कि नैनो डीएपी तरल पदार्थ फसलों के पोषण गुणों एवं उत्पादकता को बढ़ाने में काफी प्रभावी पाए गए हैं। इसका पर्यावरण पर काफी सकारात्मक असर पड़ता है।
केंद्र ने अब इफको नैनो जिंक और नैनो कॉपर को भी दी मंजूरी

केंद्र ने अब इफको नैनो जिंक और नैनो कॉपर को भी दी मंजूरी

इफको नैनो यूरिया के उपरांत इफको के दूसरे तरल उर्वरक इफको नैनो यूरिया प्लस को केंद्र सरकार ने तुरंत ही मंजूरी दी थी। 

वहीं, अब केंद्र ने इफको नैनो जिंक (तरल) और इफको नैनो कॉपर (तरल) को भी तीन साल के लिए अधिसूचित कर दिया है। 

नैनो यूरिया के ऊपर चल रहे विवाद के बीच केंद्र सरकार ने इफको (इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोआपरेटिव लिमिटेड) नैनो जिंक लिक्विड और नैनो कॉपर लिक्विड निर्मित करने की मंजूरी भी दे दी है। 

केंद्र ने यह स्वीकृति तीन वर्ष के लिए फर्टिलाइजर कंट्रोल ऑर्डर 1985 के अंतर्गत दी है। इस संबंध में अधिसूचना भी जारी कर दी गई है।

पौधों में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के लिए फसल पोषण पर दो और नैनो टेक्नोलॉजी आधारित नवीन उत्पाद शीघ्र ही बाजार में आ जाएंगे। 

हालांकि, इफको ने अभी तक इसकी बोतल के आकार, मूल्य, उत्पादन की जगह और वितरण का विवरण जारी नहीं किया है।

ज‍िंक और कॉपर क्यों आवश्यक है ?

जिंक और कॉपर माइक्रोन्यूटिएंट की श्रेणी में आने वाले उर्वरक हैं। मिट्टी में माइक्रो न्यूट्रीएंट का असंतुलन काफी ज्यादा बढ़ गया है। ऐसी स्थिति में यह उर्वरक किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकते हैं। 

जिंक और कॉपर पौधों की उन्नति और विकास के लिए बेहद महत्वपूर्ण होते हैं। पौधों में ज‍िंक की कमी विश्व स्तर पर विशेष चिंताओं में से एक है। इसी तरह पौधों में कई एंजाइमी गतिविधियों और क्लोरोफिल और बीज उत्पादन के लिए कॉपर की जरूरत होती है।

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इफको के प्रबंध निदेशक डॉ. उदय शंकर अवस्थी ने एक ट्वीट कर इस बात की जानकारी साझा की है। इस अधिसूचना के पश्चात फिलहाल नैनो टैक्नोलॉजी पर आधारित इफको के चार तरल उर्वरक उत्पाद किसानों को उपलब्ध हो सकेंगे।

इफको नैनो यूरिया के पश्चात इफको के दूसरे तरल उर्वरक इफको नैनो यूरिया प्लस को सरकार ने अधिसूचित किया था। अब इफको नैनो जिंक (तरल) और इफको नैनो कॉपर (तरल) को तीन साल के लिए अधिसूचित किया गया है। 

पौधों के विकास में काफी मदद मिलेगी

डॉ. अवस्थी ने अपने दिए गए एक बयान में कहा है, कि जिंक के अभाव की वजह से पौधों के विकास में गिरावट आती है। वहीं, कॉपर की कमी की वजह से पौधों में बीमारी लगने की संभावना काफी बढ़ जाती है। 

यह दो उत्पाद फसलों में जिंक और कॉपर की कमी को दूर कर सकते हैं। माइक्रो न्यूट्रीएंट की कमी कुपोषण का एक बड़ा कारण है। उन्होंने इन उर्वरकों के अधिसूचित होने को इफको की टीम के लिए एक बड़ी उपलब्धि बताया है। 

2025 के समापन तक यूरिया का आयात बंद हो जाएगा - मनसुख मांडविया

2025 के समापन तक यूरिया का आयात बंद हो जाएगा - मनसुख मांडविया

भारत फसलों में उर्वरकों की उपलब्धता को सुनिश्चित करने के लिए अभी तक आयात पर निर्भर रहता है। हालांकि, अब भारत यूरिया उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने के पथ पर अग्रसर नजर आ रहा है। 

इसको लेकर रसायन एवं उर्वरक मंत्री मनसुख मांडविया ने यह दावा किया है, कि भारत 2025 के समापन तक पूर्ण रूप से यूरिया का आयात बंद कर देगा। घरेलू मांग को सुनिश्चित करने के लिए भारत को वार्षिक लगभग 350 लाख टन यूरिया की आवश्यकता पड़ती है। 

दरअसल, सरकार 2025 के अंत तक यूरिया का आयात बंद करने जा रही है। रसायन एवं उर्वरक मंत्री मनसुख मांडविया का कहना है, कि भारत 2025 के आखिर तक यूरिया का आयात बंद कर देगा। 

उन्होंने कहा कि घरेलू विनिर्माण पर बड़े स्तर पर बल देने से आपूर्ति और मांग के मध्य अंतर को पाटने में सहायता हांसिल हुई है। मांडविया ने कहा भारतीय कृषि के लिए उर्वरकों की उपलब्धता बेहद महत्वपूर्ण है। 

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भारत पिछले 60-65 वर्ष से फसल उत्पादन बढ़ाने के लिए रासायनिक उर्वरकों का उपयोग कर रहा है। वर्तमान में सरकार नैनो लिक्विड यूरिया और नैनो लिक्विड डाइ-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) जैसे वैकल्पिक उर्वरकों को प्रोत्साहन देने के प्रयास कर रही है।

रसायन एवं उर्वरक मंत्री मनसुख मांडविया 

मंत्री ने कहा, ‘वैकल्पिक उर्वरकों का उपयोग फसल और मिट्टी की गुणवत्ता के लिए अच्छा है। हम इसे बढ़ावा दे रहे हैं।’ यूरिया उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने के बारे में पूछे जाने पर मांडविया ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नीत सरकार ने यूरिया आयात पर निर्भरता खत्म करने के लिए दोतरफा रणनीति अपनाई है। 

मंत्री ने बताया सरकार ने चार बंद यूरिया संयंत्रों को फिर शुरू किया है और एक अन्य कारखाने को वापस चालू करने का काम जारी है। उन्होंने कहा कि घरेलू मांग को पूरा करने के लिए भारत को सालाना करीब 350 लाख टन यूरिया की जरूरत होती है।

उर्वरकों का उत्पादन और मांग को लेकर मांडविया ने क्या कहा है ?

मांडविया ने कहा कि स्थापित घरेलू उत्पादन क्षमता 2014-15 में 225 लाख टन से बढ़कर करीब 310 लाख टन हो गई है। मंत्री ने कहा, ‘वर्तमान में वार्षिक घरेलू उत्पादन और मांग के बीच का अंतर करीब 40 लाख टन है।’

उन्होंने कहा कि पांचवें संयंत्र के चालू होने के बाद यूरिया की वार्षिक घरेलू उत्पादन क्षमता करीब 325 लाख टन तक पहुंच जाएगी। 20-25 लाख टन पारंपरिक यूरिया के इस्तेमाल को नैनो तरल यूरिया से बदलने का लक्ष्य भी है। 

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हमारा लक्ष्य बिल्कुल स्पष्ट है। 2025 के अंत तक यूरिया के लिए देश की आयात पर निर्भरता समाप्त हो जाएगी। उन्होंने जोर देकर कहा कि यूरिया का आयात बिल शून्य हो जाएगा।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 2022-23 में यूरिया का आयात इससे विगत वर्ष के 91.36 लाख टन से घटकर 75.8 लाख टन रह गया। 2020-21 में यूरिया आयात 98.28 लाख टन, 2019-20 में 91.23 लाख टन और 2018-19 में 74.81 लाख टन था। 

मांडविया ने कहा कि मोदी सरकार ने पिछले 10 साल में कृषि क्षेत्र के लिए उर्वरकों की पर्याप्त आपूर्ति को सुनिश्चित किया है। उन्होंने आगे कहा कि केंद्र ने प्रमुख फसल पोषक तत्वों पर अनुदान बढ़ाकर भारतीय किसानों को वैश्विक बाजारों में उर्वरकों की कीमतों में तीव्र उछाल से भी बचाया है।

जाने क्या है नैनो डीएपी फर्टिलाइजर और किन फसलों पर किया जा रहा है ट्रायल?

जाने क्या है नैनो डीएपी फर्टिलाइजर और किन फसलों पर किया जा रहा है ट्रायल?

आजकल हर तरह की खेती में उत्पादन बढ़ाने के लिए केमिकल और अलग अलग तरह के उर्वरकों का इस्तेमाल किया जा रहा है। कृषि से बेहतर उत्पादन हासिल करने के लिए उर्वरकों का इस्तेमाल काफी बढ़ गया है। जिससे पर्यावरण प्रदूषण के साथ-साथ मिट्टी की उपजाऊ शक्ति भी प्रभावित हो रही है। इसी समस्या को कम करने के लिए लंबे समय से उपाय ढूंढे जा रहे हैं और इसके लिए नैनो तकनीक काफी बेहतरीन साबित हो रही है। इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोओपरेटिव लिमिटेड (IFFCO) बहुत समय से लिक्विड फॉर्म में उर्वरक बनती रही है और अब उसी ने नैनो यूरिया लॉन्च किया था। जिसे किसानों ने खूब पंसद किया। पहले किसानों को भारी-भारी बोरी उर्वरकों की उठानी पड़ती थी। लेकिन अब ये काम बसह 500 मिली की बोतल का इस्तेमाल कर रहे हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ये उर्वरक लिक्विड फॉर्म में है और इसका छिड़काव बेहद आसानी से पानी के साथ किया जा सकता है। पिछले कुछ सालों में नैनो यूरिया फर्टिलाइजर से कृषि की उत्पादकता बढ़ाने और पर्यावरण की सुरक्षा में काफी मदद मिली है।

 

नैनो डीएपी फर्टिलाइजर का ट्रायल (Trial of Nano DAP Fertilizer)

इस पहल में अब केंद्र सरकार भी हिस्सेदार हो गई है और सरकार की तरफ से नैनो डीएपी लॉन्च करने की घोषणा कर दी है। सरकार ने नैनो पोटाश, नैनो जिंक और नैनो कॉपर उर्वरकों पर भी काम करने की बात कही है। 5 फसलों चना, मटर, मसूर, गेहूं, सरसों पर नैनो डीएपी का ट्रायल कर रहे हैं।

 

क्या है नैनो डीएपी फर्टिलाइजर? (What is Nano DAP Fertilizer?)

नैनो यूरिया की तरह ही नैनो डीएपी 'डाय-अमोनियम फॉस्फेट (Diammonium Phosphate)' का लिक्विड वर्जन है। अब से पहले ये फ़र्टिलाइज़र सूखे फॉर्म में मिलता था और इसे पाउडर-गोलियों के तौर पर पीले रंग की बोरी में उपलब्ध करवाया जाता है। इस उर्वरक से मिट्टी प्रदूषण के आसार रहते हैं। 

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कई बार किसान फसल की आवश्यकता से अधिक डीएपी उर्वरक का इस्तेमाल करते हैं। जिससे बाद में मिट्टी के उपजाऊपन पर नकारात्मक असर पड़ता है। यह एक फॉस्फेटिक यानी रसायनिक खाद है, जो पौधों में पोषण और उनके अंदर नाइट्रोजन और फास्फोरस की कमी को पूरा करती है। अगर इसमें नाइट्रोजन और फॉस्फोरस की मात्रा की बात की जाए तो इस उर्वरक में 18% नाइट्रोजन और 46% फॉस्फोरस होता है। इससे पौधों की जड़ों का विकास काफी अच्छी तरह से होता है। यह उर्वरक फसल की उत्पादकता को बढ़ाने में काफी बेहतरीन है और किसानों की परेशानी को कम करता है।