Ad

गोबर के जरिए फौज की वर्दी निर्मित करने के साथ ही, उत्पादन योग्य बनाया जाएगा रेगिस्तान

Published on: 28-Jan-2023

केंद्र एवं राज्य सरकार के माध्यम से राजस्थान के जनपद कोटा में कृषि महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत देशभर से विभिन्न स्टार्टअप (startup) भी शम्मिलित होने के लिए पहुंच रहे हैं। इसमें एक अनोखा स्टार्टअप (startup) भी सम्मिलित हुआ है, इसके अंतर्गत गोबर के जरिए रसायन निर्मित कर विभिन्न रूप में प्रयोग किया जा रहा है। आईआईटियन (IITians) डॉक्टर सत्य प्रकाश वर्मा के मुताबिक उनके द्वारा गोबर खरीदी होती है। उसके बाद में विभिन्न प्रकार के रसायन तैयार किए जाते हैं। इस रसायन के उपयोग से सेना के जवानों की वर्दी भी बनाई जा सकती है। इसके अतिरिक्त रेगिस्तान को उत्पादक निर्मित करने एवं पुताई हेतु भी प्रयोग किए जाने वाले पेंट भी तैयार हो रहा है। डॉ. सत्य प्रकाश वर्मा कहा है, कि यह गाय के गोबर द्वारा रसायनिक विधि के माध्यम से निकलने वाले नैनोसैलूलोज से हो रहा है। डेढ़ वर्ष पूर्व उन्होंने स्टार्टअप गोबर वाला डॉट कॉम (.com) चालू किया था। जिसके माध्यम से प्राप्त होने वाले गोबर द्वारा रसायन प्रोसेस के जरिए नैनोसैलूलोज तैयार किया जा रहा है। जो कि हजारों रुपए किलोग्राम में विक्रय किया जा रहा है। इसके विभिन्न अतिरिक्त इस्तेमाल भी किए जा रहे हैं। उनका यह दावा है, कि नैनोसैलूलोज तैयार होने के उपरांत गोबर में बचा हुआ तरल एक गोंद की भांति हो जाता है, जिसको लिग्निन कहा जाता हैं। यह लिग्निन प्लाई निर्माण के कार्य में लिया जाता है एवं 45 रुपए प्रतिकिलो तक के भाव में विक्रय होता है। ये भी देखें: गोधन न्याय योजना छत्तीसगढ़ की अनूठी पहल राजस्थान राज्य के जनपद कोटा में जय हिंद नगर के रहने वाले सत्य प्रकाश वर्मा जी विगत कई वर्षों से पशुओं के अपशिष्ट के ऊपर गंभीरता से शोध में जुटे हुए हैं। उन्होंने वर्ष 2003 में आईआईटी बॉम्बे से रसायन इंजीनियरिंग में बीटेक की डिग्री हासिल की है। साथ ही, वर्ष 2007 के दौरान उन्होंने पीएचडी भी आईआईटी बॉम्बे से करी है। इसके उपरांत फ्लोरिडा से मार्केटिंग मैनेजमेंट से भी पीएचडी कर रखी है। सत्यप्रकाश वर्मा जी ने नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट मुम्बई (National Institute of Management Mumbai) से एमबीए की डिग्री भी हांसिल की है। इस सब के उपरांत सत्य प्रकाश एवं उनकी इंजीनियर पत्नी भावना गोरा दुबई में रहने लगे। दुबई में उन्होंने ऑयल इंडस्ट्री में नौकरी किया करते थे। उसके कुछ समय उपरांत वहीं पर स्वयं का व्यवसाय आरंभ किया एवं ऑयल एंड गैस कंपनीज हेतु उत्पाद निर्मित करने में जुट गए। इस समय के अंतर्गत सत्य प्रकाश जी गाय, बकरी और सुअर के अपशिष्ट पदार्थों पर निरंतर शोध में लगे हुए थे। वह स्वयं की कंपनी को भारत में स्थापित करने के उद्देश्य से ही देश वापस आए हैं।

वैदिक पेंट जलरोधक होता है

डॉ. सत्य प्रकाश वर्मा का कहना है, कि गोबर द्वारा निकाले गए इस अल्फा नैनोसैलूलोज का इस्तेमाल वैदिक पेंट को बनाने हेतु होता है। इसका इस्तेमाल तीन प्रकार की पेंटिंग करने के लिए किया जाता है। इन तीन प्रकार में पहला वॉल पुट्टी, दूसरा वॉल प्राइमर एवं तीसरा इमर्शन होता है। इसको प्लास्टिक पेंट के नाम से भी जाना जाता है। वॉल पुट्टी के उपरांत किसी भी पेंट की जरुरत नहीं पड़ती है। यह आपको विभिन्न रंग में मिल जाता है एवं यह पेंट वाटरप्रूफ भी रहता है। आपको बतादें, कि इसका उपयोग अब बड़े पैमाने पर किया जाने लगा है। ये भी देखें: इस राज्य की आदिवासी महिलाएं गोबर से पेंट बनाकर आत्मनिर्भर बन रहीं हैं

रेगिस्तान को इस विधि से बनाया जा रहा है उपजाऊ क्षेत्र

उनका कहना है, कि नैनो बायो उर्वरक तैयार करने में भी नैनोसैलूलोज का इस्तेमाल किया जाता है। इसके माध्यम से रेगिस्तान की रेतीली भूमि को उपजाऊ किया जाता है। नैनोसैलूलोज की निश्चित मात्रा को रेगिस्तान की मिट्टी पर फैलाया जाता है। तदोपरांत वह जमाव हेतु तैयार हो जाती है। रेगिस्तान की भूमि पहले से कहीं अधिक उत्पादक होती है। भूमि में मात्र जमाव का तत्व विघमान नहीं होता है, वह भी नैनोसैलूलोज डालने के उपरांत आ जाता है।

डीआरडीओ की सहायता से निर्मित की जा रही फौज की वर्दी

डॉ.सत्य प्रकाश के बताने के अनुसार, नैनोसैलूलोज के माध्यम से वे फाइबर का निर्माण कर रहे हैं। जिसका इस्तेमाल सैनिकों की वर्दी निर्मित करने हेतु हो रहा है। इसके अंतर्गत हेलमेट से लेकर जूता तक भी आता हैं। उनका कहना है, कि यह यूनिफॉर्म सामान्यतः सैनिकों की वर्दी से बेहद कम वजन व अधिक मजबूत भी मानी जाती है। यह वर्दी पसीने को भी सोख जाती है। इसके अतिरिक्त यदि सैनिक घायल हो जाए, तो इस यूनिफार्म के कारण से ब्लड क्लॉटिंग बड़ी सुगमता से हो जाती है। इस प्रकार यह एक टिशू रीजनरेशन आरंभ कर देती है। इससे जवान के जीवन की समयावधि काफी बढ़ जाती है।

Ad