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जानिए हरे चारे की समस्या को दूर करने वाली ग्रीष्मकालीन फसलों के बारे में

जानिए हरे चारे की समस्या को दूर करने वाली ग्रीष्मकालीन फसलों के बारे में

पशुपालकों को हरा चारा सुनिश्चित करने के लिए काफी अधिक परिश्रम करना पड़ सकता है। भारतीय मौसम विगाग का कहना है, कि इस बार गर्मी अपने चरम स्तर पर पहुँचने की आशंका है। 

विगत दिनों तापमान में सामान्य से अधिक वृद्धि होने की वजह से पशुपालकों के हरे चारे की उपलब्धता में गिरावट आ रही है। क्योंकि, तापमान में वृद्धि होने के कारण खेतों में नमी की मात्रा में गिरावट देखने को मिल रही है। 

हरे चारे पर इसका प्रत्यक्ष तौर प्रभाव देखने को मिल रहा है। इस वजह से पशुपालकों को वक्त रहते ही हरे चारे की व्यवस्था सुनिश्चित कर लेनी चाहिए, जिससे आगामी समय में पशु को पर्याप्त चारा हांसिल हो सके। 

क्योंकि, हरे चारे के अभाव का सीधा प्रभाव पशुओं के दुग्ध उत्पादन क्षमता पर पड़ता है। नतीजतन, पशुपालकों की कमाई में गिरावट आने लगती है। 

हरे चारे की किल्लत को दूर करने वाली फसलें इस प्रकार हैं ?

आप सब ने लोबिया, मक्का और ज्वार  का नाम तो सुना ही होगा। लेकिन, क्या आप जानते हैं, कि लोबिया, मक्का और ज्वार का चारा पशुओं के लिए बेहद लाभकारी होता है। 

इसके अतिरिक्त मक्का, ज्वार और लोबिया फसल लगाने से किसान हरे चारे की किल्लत से छुटकारा पा सकते हैं। क्योंकि, यह एक तीव्रता से बढ़ने वाले हरे चारे वाली फसलें हैं। 

इसके अतिरिक्त इन चारों के साथ सबसे खास बात यह है, कि इनकी खेती करने से खेत की उर्वरक क्षमता को भी प्रोत्साहन मिलता है, जिससे किसान अगली फसल में मुनाफा उठा सकते हैं। वहीं, इसके प्रतिदिन सेवन से पशुओं की दुग्ध उत्पादन क्षमता में भी इजाफा होता है।

मक्का 

पशुओं के लिए पशुपालक हरा चारा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से मक्के की संकर मक्का गंगा-2, गंगा-7, विजय कम्पोजिट जे 1006 अफ्रीकन टॉल, प्रताप चारा-6 आदि जैसी प्रमुख मक्का की उन्नत किस्मों की खेती कर सकते हैं।

ज्वार

गर्मी के मौसम में पशुओं के लिए हरे चारे की किल्लत को दूर करने के लिए ज्वार की पूसा चरी 23, पूसा हाइब्रिड चरी-109, पूसा चरी 615, पूसा चरी 6, पूसा चरी 9, पूसा शंकर- 6, एस. एस. जी. 59-3 (मीठी सूडान), एम.पी. चरी, एस.एस. जी.-988-898, एस. एस. जी. 59-3, • जे.सी. 69. सी. एस. एच. 20 एमजी, हरियाणा ज्वार- 513 जैसी विशेष किस्मों की खेती कर सकते हैं। 

लोबिया 

लोबिया एक वार्षिक जड़ी-बूटी वाली फलियां हैं, जिसकी खेती बीजों अथवा चारे के लिए की जाती है। इसकी पत्तियाँ अंडाकार पत्तों वाली त्रिकोणीय होती हैं, जो 6-15 सेमी लंबी और 4-11 सेमी चौड़ाई वाली होती हैं। 

लोबिया के फूल सफेद, पीले, हल्के नीले या बैंगनी रंग के होते हैं। इसकी फली जोड़े में पाई जाती हैं। इसकी प्रति फली में 8 से 20 बीज होते हैं। इसके साथ ही बीज सफेद, गुलाबी, भूरा या काला होता है।

Mungfali Ki Kheti: मूंगफली की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी

Mungfali Ki Kheti: मूंगफली की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी

आज हम आपको इस लेख में मूंगफली की खेती के बारे में विस्तृत जानकारी देने वाले हैं। परंपरागत फसलों के तुलनात्मक मूंगफली को ज्यादा मुनाफा देने वाली फसल माना जाता है। यदि किसान मूंगफली की खेती वैज्ञानिक ढंग से करते हैं, तो वह इस फसल से ज्यादा उत्पादन उठाकर बेहतरीन मुनाफा कमा सकते हैं। बतादें, कि खरीफ सीजन के फसल चक्र में मूंगफली की खेती का नाम सर्वप्रथम आता है। भारत के कर्नाटक,आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र में प्रमुख तौर पर मूंगफली की खेती की जाती है। 

मूंगफली की खेती

यदि आप मूंगफली का उत्पादन करके बेहतरीन पैदावार से ज्यादा मुनाफा अर्जित करना चाहते हैं, तो मूंगफली की खेती कब और कैसे करनी चाहिए,
मूंगफली की बुवाई का समुचित समय क्या है? मूंगफली की उन्नत किस्म कौन सी है? मूंगफली हेतु बेहतर खाद व उर्वरक आदि से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी आपको होनी ही चाहिए। तब ही आप मूंगफली की उन्नत खेती कर सकेंगे। मूंगफली की उन्नत खेती करने के इच्छुक किसानों को इस लेख को आखिर तक अवश्य होंगे। 

मूंगफली की खेती किस इलाके में की जाती है

मूंगफली को तिलहनी फसलों की श्रेणी में रखा गया है, जो ऊष्णकटबंधीय इलाकों में बड़ी ही सुगमता से उत्पादित की जा सकती हैं। जो किसान मूंगफली की खेती करने की योजना बना रहे हैं, उनको इस लेख को ध्यानपूर्वक पूरा पढ़ना चाहिए। इस लेख में किसानों को मूंगफली की उन्नत खेती किस प्रकार करें? इस विषय में विस्तृत रूप से जानकारी दी जाएगी। 

मूंगफली की खेती के लिए सबसे उपयुक्त जलवायु कौन-सी है

मूंगफली की खेती करने के लिए अर्ध-उष्ण जलवायु सबसे बेहतर मानी जाती है। इसकी खेती से बेहतरीन उत्पादन पाने के लिए 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान की जरुरत होती है। मूंगफली फसल के लिए 50 से 100 सेंटीमीटर बारिश सर्वोत्तम मानी जाती है।

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मूंगफली की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

मूंगफली की खेती विभिन्न प्रकार की मृदा में की जा सकती है। परंतु, मूंगफली की फसल से बेहतरीन पैदावार लेने के लिए बेहतरीन जल निकासी और कैल्शियम एवं जैव पदार्थो से युक्त बलुई दोमट मृदा सबसे उपयुक्त मानी गई है। इसकी खेती के लिए मृदा पीएच मानक 6 से 7 के मध्य होना आवश्यक है। 

मूंगफली फसल के लिए खेत की तैयारी

मूंगफली की खेती के लिए प्रथम जुताई मृदा पलटने वाले हल कर खेत को कुछ दिनों के लिए खुला छोड़ दें। जिससे कि उसमें उपस्थित पुराने अवशेषों, खरपतवार एवं कीटों का खत्मा हो जाये। खेत की आखिरी जुताई करके मृदा को भुरभुरी बनाकर खेत को पाटा लगाकर समतल कर लें। खेत की अंतिम जुताई के दौरान 120 कि.ग्रा./एकड़ जिप्सम/फास्फोजिप्सम उपयोग करें। दीमक एवं अन्य कीड़ों से संरक्षण के लिए किनलफोस 25 किग्रा एवं निम की खली 400 किग्रा प्रति हैक्टेयर खेत में डालें। 

भारत के अंदर मूंगफली की खेती के लिए विभिन्न किस्में मौजूद हैं, जो कि निम्नलिखित हैं।

फैलने वाली वैरायटी:- आर जी-382 (दुर्गा), एम-13, एम ए-10, आर एस-1 और एम-335, चित्रा इत्यादि। 

मध्यम फैलने वाली वैरायटी:- आर जी-425, गिरनार-2, आर एस बी-87, एच एन जी-10 और आर जी-138, इत्यादि।

झुमका वैरायटी:- ए के-12 व 24, टी जी-37ए, आर जी-141, डी ए जी-24, जी जी-2 और जे एल-24 इत्यादि। 

मूंगफली के बीज की क्या दर होनी चाहिए

मूंगफली की गुच्छेदार प्रजातियों के लिए 100 कि.ग्रा. और फैलने वाली प्रजातियों के लिए 80 कि.ग्रा. बीज प्रति हैक्टेयर की दर से जरुरी होता है।  

मूंगफली के बीज को किस प्रकार उपचारित किया जाए

मूंगफली के बीज का समुचित ढंग से अंकुरण करने के लिए बीज को उपचारित अवश्य कर लें। कार्बोक्सिन 37.5% + थाइरम 37.5 % की 2.5 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से या 1 ग्रा. कार्बेन्डाजिम + ट्राइकाडर्मा विरिडी 4 ग्रा./कि.ग्रा. के अनुरूप बीज को उपचारित किया जाए। 

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मूंगफली की बुआई किस प्रकार से की जाए

मूंगफली की बुवाई के लिए सबसे अच्छा समय जून के द्वितीय सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह में की जा सकती है। मूंगफली का बीजारोपण रेज्ड बेड विधि द्वारा करना चाहिए। इस विधि के अनुरूप बुवाई करने पर 5 कतारों के उपरांत एक-एक कतार खाली छोड़ते हैं। झुमका किस्म:- झुमका वैरायटी के लिए कतार से कतार का फासला 30 से.मी. एवं पौधे से पौधे की फासला 10 से.मी. आवश्यक होता है। विस्तार किस्मों के लिए:- विस्तार किस्मों के लिए कतार से कतार का फासला 45 से.मी. वहीं पौधे से पौधे का फासला 15 सें.मी. रखें। बीज को 3 से 5 से.मी. की गहराई में ही बोयें। 

मूंगफली की खेती में खरपतवार नियंत्रण

मूंगफली फसल में सत्यानाशी, कोकावा, दूधघास, मोथा, लकासा, जंगली चौलाइ, बनचरी, हिरनखुरी, कोकावा और गोखरू आदि खरपतवार प्रमुख रूप से उग जाते हैं। इनकी रोकथाम करने के लिए 30 और 45 दिन पर निदाई-गुड़ाई करें, जिससे कि खरपतवार नियंत्रण मूंगफली की जड़ों का फैलाव अच्छा होने के साथ मृदा के अंदर वायु का संचार भी हो जाता है। 

मूंगफली की खेती के लिए सिंचाई प्रबंधन

जायद की फसल के लिए सिचाई – बतादें कि प्रथम सिंचाई बुवाई के 10-15 दिन उपरांत, दूसरी सिंचाई बुवाई के 30-35 दिन के उपरांत एवं तीसरी फूल एवं सुई निर्माण के वक्त, चौथी सिचाई 50-75 दिन उपरांत मतलब फली बनने के समय तो वहीं पांचवी सिचाई फलियों की प्रगति के दौरान (75-90 दिन बाद) करनी जरूरी होती है। यदि मूंगफली की बुवाई वर्षाकाल में करी है, तब वर्षा के आधार पर सिंचाई की जाए। 

मूंगफली की फसल में लगने वाले कीट

रस चूसक/ पत्ती सुरंगक/ चेपा/ टिक्का/ रोजेट/फुदका/ थ्रिप्स/ दीमक/सफेद लट/बिहार रोमिल इल्ली और मूंगफली का माहू इत्यादि इसकी फसल में विशेष तौर पर लगने वाले कीट और रोग हैं। 

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मूंगफली की खुदाई हेतु सबसे अच्छा समय कौन-सा होता है

आपकी जानकारी के लिए बतादें कि मूंगफली के पौधों की पत्तियों का रंग पीला होने लग जाए। फलियों के अंदर के टेनिन का रंग उड़ जाए और बीज का खोल रंगीन हो जाने के उपरांत खुदाई करें। खुदाई के दौरान खेत में हल्की नमी होनी चाहिए। बतादें, कि भंडारण और अंकुरण क्षमता स्थिर बनाये रखने के लिए खुदाई के उपरांत सावधानीपूर्वक मूंगफली को सुखाना चाहिए। मूंगफली का भंडारण करने से पूर्व यह जाँच कर लें कि मूंगफली के दानो में नमी की मात्रा 8 से 10% प्रतिशत से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। 

मूंगफली की खेती में कितना खर्च और कितनी आय होती है

मूंगफली की खेती को बेहतरीन पैदावार देने वाली फसल मानी जाती है। इसकी खेती करने में लगभग 1-2 लाख रुपए तक की लागात आ जाती है। यदि किसानों के हित में सभी कुछ ठीक रहा तो प्रति हेक्टेयर तकरीबन 5-6 लाख की आमदनी की जा सकती है।

इस तरह करें अगेती आलू की खेती

इस तरह करें अगेती आलू की खेती

आज हम आपको जानकारी देने जा रहे है सब्जियों के "राजा साहब" आलू की. आलू एक ऐसी सब्जी है जो की किसी भी सब्जी के साथ मिल जाती है, आलू के व्यंजन भी बनाते है जिनकी गिनती करने लगो तो समय कम पड़ जाये. क्षेत्र के हिसाब से इसके भांति भांति के व्यंजन बनते हैं सब्जी के साथ साथ आलू की भुजिआ , नमकीन , जिप्स, टिक्की, पापड़, पकोड़े, हलुआ आदि. आलू एक ऐसी सब्जी है जब घर में कोई सब्जी न हो तो भी अकेले आलू की सब्जी या चटनी बनाई जा सकती है. सबसे खास बात ये किसान के लिए सबसे बर्वादी वाली फसल है और सबसे ज्यादा आमदनी वाली फसल भी है. सामान्यतः किसानों में एक कहावत प्रचलित है की आलू के घाटे को आलू ही पूरा कर सकता है. इससे इसकी अहमियत पता चलती है.

खेत की तैयारी:

किसी भी जमीन के अंदर वाली फसल के लिए खेत की मिटटी भुरभुरी होनी चाहिए जिससे की फसल को पनपने के लिए पर्याप्त जगह मिल सके, क्योकि किसी ठोस या कड़क मिटटी में वो पनप नहीं पायेगी. हमेशा आलू के खेत की मिटटी को इतना भुरभरा बना दिया जाता है की इसमें से कोई भी आदमी दौड़ के पार न कर सके. इसका मतलब इसको बहुत ही गहराई के साथ जुताई की जाती है. अभी का समय आलू के खेत को तैयार करने का सही समय है. सबसे पहले हमको खेत में बनी हुई
गोबर की खाद दाल देनी चाहिए और खाद की मात्रा इतनी होनी चाहिए जिससे की खेत की मिटटी का रंग बदल जाये, कहने का तात्पर्य है की अगर हमें 100 किलो खाद की जरूरत है तो हमें इसमें 150 किलो खाद डालना चाहिए इससे हमें रासायनिक खाद पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा और हमारा आलू भी अच्छी क्वालिटी का पैदा होगा.

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आलू की बुबाई से पहले खेत में जिंक आदि मिलाने की सोच रहे हैं तो पहले मिटटी की जाँच कराएं उसके बाद जरूरत के हिसाब से ही जिंक या पोटाश मिलाएं. ऐसा न करें की आपका पडोसी क्या लाया है वही आप भी जाकर खरीद लाएं किसी भी दुकानदार के वाहकावें में न आएं. आप जो भी पैसा खर्च करतें है वो आपकी खून पसीने की कमाई होती है. किसी को ऐसे ही न लुटाएं.

अगेती आलू की खेती का समय:

अगेती आलू की खेती का समय क्षेत्र के हिसाब से अलग अलग होता है. इसको लगाने के समय मौसम के हिसाब से होता है. इसको विकसित होने के लिए हलकी ठण्ड की आवश्यकता होती है. अगर हम उत्तर भारत की बात करें तो ध्यान रहे की इसकी फसल दिसंबर तक पूरी हो जानी  चाहिए. इसकी बुवाई लगभग सितम्बर/अक्टूबर में शुरू हो जाती है. आलू दो तरह का बोया जाता है एक फसल इसकी कोल्ड स्टोरेज में रखी जाती है उसकी खुदाई फरबरी और मार्च में होती है और जो कच्ची फसल होती है उसको स्टोर नहीं किया जा सकता उसकी खुदाई दिसंबर में हो जाती है. सितम्बर से कच्चा आलू देश के अन्य हिस्सों से आना शुरू हो जाता है.

जमीन और मौसम:

आलू के लिए दोमट और रेतीली मिटटी ज्यादा मुफीद होती है, याद रखें की पानी निकासी की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए जिससे की आलू के झोरा के ऊपर पानी न जा पाए. आलू में पानी भी कम देना होता है जिससे की उसके आस पास की मिटटी गीली न हो बस उसको नीचे से नमी मिलती रहे. जिससे की आलू को फूलने में कोई भी अवरोध न आये. आलू पर पानी जाने से उसके ऊपर दाग आने की संभावना रहती है, तो  आलू में ज्यादा पानी देने से बचना चाहिए.

अगेती आलू की खेती के बीज का चुनाव:

  • किसी भी फसल के लिए उसके बीज का चुनाव सबसे महत्वपूर्ण होता है. आलू में कई तरह के बीज आते हैं इसकी हम आगे बात करेंगें.आलू के बीज के लिए कोशिश करें की नया बीज और रोगमुक्त बीज प्रयोग में लाएं. इससे आपके फसल की पैदावार के साथ साथ आपकी पूरे साल की मेहनत और मेहनत की कमाई दोनों ही दाव पर लगे होते हैं.
  • कई बार आलू के बीज की प्रजाति उसके क्षेत्र के हिसाब से भी बोई जाती है. इसके लिए अपने ब्लॉक के कृषि अधिकारी से संपर्क किया जा सकता है या जो फसल अच्छी पैदावार देती है उसका भी प्रयोग कर सकते हैं. ज्यादा जानकारी के लिए आप हमें लिख सकते हैं.
  • आलू का बीज लेते समय ध्यान रखें रोगमुक्त और बड़ा साइज वाला आलू प्रयोग करें, लेकिन ध्यान रहे की बीज इतना भी महगा न हो की आपकी लागत में वृद्धि कर दे. ज्यादातर देखा गया है की छोटे बीज में ही रोग आने की संभावना ज्यादा होती है.


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बुवाई का तरीका:

वैसे तो आजकल आलू बुबाई की अतिआधुनिक मशीनें आ गई है लेकिन बुवाई करते समय ध्यान रखना चाहिए की लाइन में पौधे से पौधे की दूरी 20 से 25 सेंटीमीटर होनी चाहिए और झोरा से झोरा की दूरी 50 सेंटीमीटर होनी चाहिए. इससे से पौधे को भरपूर रौशनी मिलती है और उसे फैलाने और फूलने के लिए पर्याप्त रोशनी और हवा मिलती है. पास पास पौधे होने से आलू का साइज छोटा रहता है तथा इसमें रोग आने की संभावना भी ज्यादा होती है. [video width="640" height="352" mp4="https://www.merikheti.com/assets/post_images/m-2020-08-aloo-1.mp4" autoplay="true" preload="auto"][/video]

खाद का प्रयोग:

  • जैसा की हम पहले बता चुके हैं की आलू के खेत में बानी हुई गोबर की खाद डालनी चाहिए इससे रासायनिक खादों से बचा जा सकता है.
  • पोटाश 50 से 75 किलो और जिंक ७.५  पर एकड़ दोनों को मिक्स कर लें और 50 किलो पर एकड़ यूरिया मिला के खेत में बखेर दें, और DAP खाद 200 किलो एकड़ खेत में डाल के ( जिंक और DAP को न मिलाएं) ऊपर से कल्टिवेटर से जुताई करके पटेला/साहेल/सुहागा लगा दें.उसके बाद आलू की बुबाई कर सकते है. इसके 25 दिन बाद हलकी सिचाईं करें उसके बाद यूरिआ 50 से 75 किलो पर एकड और 10 किलो पर एकड़  जाइम मिला कर बखेर दें. पहले पानी के बाद फपूँदी नाशक का स्प्रे करा दें.

मौसम से बचाव:

इसको पाले से पानी के द्वारा ही बचाया जा सकता है. जब भी रात को पाला पड़े तो दिन में आपको पानी लगाना पड़ेगा. ज्यादा नुकसान होने पर 5 से 7 किलो पर एकड़ सल्फर बखेर दें जिससे जाड़े का प्रकोप काम होगा.

आलू की प्रजाति:

3797, चिप्सोना, कुफऱी चंदरमुखी, कुफरी अलंकार, कुफरी पुखराज, कुफरी ख्याती, कुफरी सूर्या, कुफरी अशोका, कुफरी जवाहर, जिनकी पकने की अवधि 80 से 100 दिन है
सतावर की खेती से बदली तकदीर

सतावर की खेती से बदली तकदीर

उत्तर प्रदेश के कासगंज में जन्मे श्याम चरण उपाध्याय अच्छी खासी नौकरी छोड़कर किसान बन गए। किसानी यूंतो कांटों भरी डगर ही होती है लेकिन उन्होंने इसके लिए कांटों वाली सतावर की खेती को ही चुना। सीमैप लखनऊ से प्रशिक्षण प्राप्त कर उन्होंने एक दशक पूर्व खेती शुरू की और पहले ही साल एक एकड़ की सतावर को पांच लाख में बेच दिया। उनकी शुरूआत और जानकारी ठीक ठाक होने के कारण वह सफलता की सीढिंयां चढ़ते गए। आज वह एक सैकड़ा किसानों के लिए मार्ग दर्शक का काम कर रहे हैं। उन्होंने एक फार्मर प्रोड्यूशर कंपनी बनाई है। मेडी एरोमा एग्रो प्रोड्यूसर कंपनी प्राईवेट लिमिटेड नामक इस किसान कंपनी में 517 सदस्य हैं। विषमुक्त खेती, रोग मुक्त जीवन के मंत्र पर काम करने वाले उपाध्याय आज अपनी अलग पहचान बना चुके हैं। कासंगज की पटियाली तहसील के बहोरा गांव में जन्मे श्याम चरण उपाध्याय रीसेंट इंश्योरेंस कंपनी में एक्जीक्यूटिव आफीसर थे। उन्हें वेतन भी 50 हजार के पार मिलता था लेकिन उनकी आत्मा गांव में बसी थी। वह नौकरी के दौरान भी गांव से अपना मोह नहीं छोड़ पाए। उन्होंने यहां  2007 तक काम किया। इसके बाद नौकरी छोड़कर गांव चले आए। गांव आकर उन्होंने खेती में कुछ लीक से हटकर करने का मन बनाया। उन्होंने परंपरागत खेती के अलावा कुछ नया करने की धुन को साकार करने की दिशा में काम शुरू कर दिया। इस काम में उनकी मदद उनकी शिक्षा बायो से बीएससी एवं बाराबंकी के जेपी श्रीवास्तव ने की। वह ओषधीय पौधों की खेती का गुड़ा भाग लगाकर मन पक्का कर चुके थे। सगंधीय पौध संस्थान, सीमैप लखनउू से प्रशिक्षण प्राप्त कर वक काम में जुट गए।

क्या है सतावर की खेती का गणित

श्री उपाध्याय ने बाताया कि एक एकड में सतावर के 11 हजार पौधे लगते हैं। हर पौधे में गीली जड़ दो से पांच किलोग्राम निकलती है। सूखने के बाद यह न्यूनतम 15 प्रतिशत बजनी रहने पर भी 300 ग्राम प्रति पौधे के हिसाब से बैठ जाती है। उनकी एक एकड़ जमीन में उन्हें करीब 30 कुंतल सूखी सतावर प्राप्त हुई। सतावर की कीमत 200 से 500 रुपए प्रति किलोग्राम तक बिक जाती है। उन्होंने पहले साल अपनी पूूरी फसल एक औषधीय फसलों की खरीद करने वाले को पांच लाख में बेच दी। खुदाई से लेकर प्रोसेसिंग का सारा जिम्मा उन्हीं का था।

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किसान इस औषधीय फसल से कम समय में अधिक लाभ उठा सकते हैं
इसके बाद उन्होंने खस बटीवर, पामारोजा, सतावर, स्टीविया, अश्वगंधा, केमोमाइल, लेमनग्रास आदि की खेती कर रहे हैं। किसी भी औषधीय फसल को लगाने से पूर्व वह बाजार की मांग का विशेष ध्यान रखते हैं। बाजार में जिन चीजों की मांग ठीक ठाक हो उन्हें ही वह प्राथमिकता से लगाते हैं।  अब वह कृषक शसक्तीकरण परियोजना में अन्य किसानों को जोड रहे हैं। बंजर में चमन खिलाएंगे श्री उपाध्याय का सपना है कि धान-गेहूं फसल चक्र के चलते जमीन खराब हो रही है। बंजर होते खेतों से भी वह किसानों की आय बढ़ाने की दिशा में काम कर रहे हैं। बंजर में खस अच्छी लगती है। वह किसानों को खस की खेती करना सिखा रहे हैं। इससे उनकी आय होगी। साथ ही खेती की जमीन भी धीरे धीरे सुधर जाएगी। वह बताते हैं कि ज्यातार किसान जिस खेती को करते हैं उससे अच्छी आय नहीं हो सकता। इस लिए किसानों को लीक से हटकर नई खेती को अपनाना चाहिए। पहली बार में इसे ज्यादा न करें। बाजार आदि की पूरी जानकारी होने के बाद ही काम को धीरे धीरे बढ़ाएं।
सुपारी की खेती कर, कम मेहनत से बनाएं अच्छी आमदनी

सुपारी की खेती कर, कम मेहनत से बनाएं अच्छी आमदनी

भारत में सुपारी की खेती करने वाले किसानों की संख्या पिछले कुछ समय में काफी तेजी से बढ़ी है, क्योंकि सुपारी (supaari or areca nut or commonly referred to as betel nut) को केवल शौक की वजह से खाने वाले लोगों के अलावा, धार्मिक कार्यक्रमों में भी इसका इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है। बिना सुपारी के पान की दुकान पर सब कुछ अधूरा ही समझा जाता है। सुपारी की खेती के बारे में बताने से पहले हम सुपारी की कुछ विशेषताओं के बारे में बात करते हैं। यह बात तो हम जानते हैं कि सुपारी का अधिक इस्तेमाल करने पर शरीर का नुकसान भी हो सकता है, लेकिन सीमित मात्रा में सुपारी का इस्तेमाल करने से शरीर को मजबूती मिलती है और कमर दर्द जैसी बीमारियों में भी राहत दिखाई पड़ती है। सुपारी के पेड़ों की लंबाई 60 फीट तक होती है और देखने में बिल्कुल पूरी तरीके से नारियल के पेड़ जैसे ही दिखाई देते हैं। पिछले कुछ समय से कृषि मंत्रालय की मेहनत और कृषि वैज्ञानिकों के सहयोग से, आजकल छोटी से छोटी नर्सरी में भी सुपारी की तैयार पौध खरीदी जा सकती है।

सुपारी की खेती ऐसे करें

भारत की मिट्टी के अनुसार सुपारी की खेती के लिए चिकनी दोमट मिट्टी का इस्तेमाल किया जाता है। सुपारी के उत्पादन के लिए सबसे पहले हमारे खेत में छोटी-छोटी क्यारियां बनाई जाती है और उन्हीं क्यारियों में इस पौध को 30 से 40 मीटर की दूरी पर लगाया जाता है। जब यह पौधे बड़े होकर विकसित रूप ले लेते हैं, तो इन्हें खुले खेत में लगा दिया जाता है। लेकिन इस वक्त किसान भाइयों को ध्यान रखना चाहिए कि, उस खेत में पानी की निकासी की उपयुक्त व्यवस्था भी हो, क्योंकि अधिक समय तक पानी के ठहराव की वजह से पौधे की जड़ों को बहुत नुकसान हो सकता है और उनका विकास भी पूरी तरह रुक सकता है।

सुपारी की खेती कब की जाती है ?

वैसे तो सुपारी की खेती उत्तरी भारत में खरीफ की फसल के समय ही की जाती है, लेकिन कई बार मानसून के जल्दी आने से इसकी खेती जुलाई-अगस्त में शुरू की जाती है। यदि आप भी सुपारी की खेती करना चाहते हैं, तो आप में धैर्य का होना बहुत अनिवार्य है, क्योंकि सुपारी के एक छोटे पौधे को बड़ा होकर फल देने में लगभग 7 से 8 साल का समय लगता है। लेकिन एक बार यह फल देने की शुरुआत कर दे, तो इसे बेचकर अच्छा खासा मुनाफा कमाया जा सकता है। एक एकड़ के एरिया में लगाई गई सुपारी की खेती ही लाखों रुपए की कमाई करवा सकती है। अलग-अलग राज्यों में इसकी कीमत 400 रुपए से लेकर 600 रुपये प्रति किलो तक देखी गई है। बेहतरीन तकनीक और कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा जारी की गई एडवाइजरी का अच्छे से पालन करें, तो आप अपने खेत में लगाई गई सुपारी के पेड़ों की संख्या को बढ़ाकर डेढ़ से दोगुना कर सकते हैं। ऐसा करने पर आपकी आमदनी भी दोगुने से बढ़ सकती है।

सुपारी की वैरायटी व कटाई

भारत में सुपारी की दो अलग-अलग वैरायटी उगाई जाती है, एक को सफेद सुपारी और एक को लाल सुपारी के नाम से जाना जाता है।

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सफेद सुपारी के फल को पेड़ से तोड़ने के बाद उसे लगभग 2 महीने तक धूप में सुखाना पड़ता है। जबकि लाल सुपारी में इसके पेड़ के ही एक छोटे से हिस्से को काट कर, उससे गर्म करके सुपारी को अलग करना पड़ता है। जब सुपारी को पेड़ से अलग कर लिया जाता है, तो इसे छीलकर ऊपर का हिस्सा पूरी तरीके से उतार दिया जाता है। इसके बाद अलग-अलग आकार और अलग-अलग रंग के पैकेट्स में इसे पैक करके बाजार में बेचने के लिए भेजा जा सकता है। कई किसान तो डिमांड कम होने और कम पैसे मिलने की वजह से सुपारी को कोल्ड स्टोरेज हाउस में स्टोर भी करते है। आप भी इन्हीं किसानों की तरह समय आने पर बड़े व्यापारिक समूह के साथ जुड़कर अपनी तय की गई कीमत पर बेच सकते है।

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सुपारी में कीट व उर्वरक प्रबंधन

चिकनी दोमट मिट्टी की अधिक आवश्यकता होने की वजह से ज्यादातर सुपारी की खेती भारत के तटीय इलाकों में ही देखी जाती है, यदि बात करें सुपारी में लगने वाली बीमारियों की, तो इसमें मुख्यतया फंगस लगने का खतरा ज्यादा रहता है, इससे बचने के लिए आप बोर्डो मिश्रण का इस्तेमाल कर सकते है। बोर्डो मिश्रण को कॉपर सल्फेट और चूने को मिलाकर बनाया जाता है। 

 यदि सुपारी की छोटी पौध को समय रहते पर्याप्त उर्वरक नहीं मिल पाते हैं, तो इसमें पीली पती रोग भी हो सकता है, जोकि इसके फलों के स्वाद और उत्पादकता दोनों को ही कम कर देते है। आप भी सुपारी की खेती कर मोटा मुनाफा कमाना चाहते हैं, तो हमेशा लाल रंग की सुपारी की पौध ही लगाएं क्योंकि इसकी कीमत बाजार में सबसे ज्यादा होती है साथ ही इसकी डिमांड भी सर्वाधिक देखी जाती है। सुपारी की खेती के बारे में Merikheti.com के द्वारा दी गई जानकारी आपको जरूर पसंद आई होगी।इस जानकारी के माध्यम से भविष्य में आप भी Areca nut फार्मिंग कर अपने साथी किसान भाइयों को प्रोत्साहित कर पाएंगे।

प्लायमाउथ रॉक मुर्गी करेगी मालामाल, बस करना होगा ये काम

प्लायमाउथ रॉक मुर्गी करेगी मालामाल, बस करना होगा ये काम

प्लायमाउथ रॉक मुर्गी से मालामाल भला कोई कैसे हो सकता है, इस बारे में आप भी जरूर सोच रहे होंगे. लेकिन यह सच हो सकता है. जी हां अगर आप किसान हैं, और मुर्गी पालन का काम करते हैं, तो यह खबर आपके काफी काम आने वाली है. दरअसल किसान अपनी खेती के साथ पोल्ट्री फार्म का काम बखूबी कर रहे हैं. इस काम से उन्हें मोटी कमाई भी हो रही है. हालांकि ना सिर्फ किसान बल्कि अन्य लोग भी चिकन और अंडे का बिजनेस कर रहे हैं. जो उनेक परिवार के आय का स्रोत भी है. इस बिजनेस में ज्यादा इन्वेस्ट करने की जरूरत नहीं होती. यही इस बिजनेस की सबसे खास बात है. इस बिजनेस को शुरू करने के लिए सरकार भी किसानों को सब्सिडी की देती है. अब अगर आप भी अपनी आमदनी को दोगुना करना चाहते हैं, और मालामाल होना चाहते हैं, तो पोल्ट्री फार्म को शुरू करने से पहले इस खास नस्ल की मुर्गी के बारे में जान लें.

प्लायमाउथ रॉक मुर्गी

किसान अगर अपने पोल्ट्री फार्म में प्लायमाउथ रॉक नस्ल की मुर्गी पालने लग जाएं, तो वो कम ही समय में ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं. देसी मुर्गियों के मुकाबले प्लायमाउथ रॉक मुर्गी ज्यादा तंदरुस्त होती है, और बीमार भी कम पड़ती है. इसके अलावा यह मुर्गी अंडे भी ज्यादा देती है. अब ऐसे में किसान इसका चिकन और अंडे दोनों बेचकर ज्यादा कमाई करने में सक्षम हो सकते हैं.

मार्केट में ज्यादा डिमांड

प्लायमाउथ रॉक एक अमेरिकी नस्ल की मुर्गी होती है. लेकिन मार्केट में इसकी ज्यादा डिमांड की वजह से यह अब भारत में पाली जाने लगी है. जिस वजह से इसके चिकन के रेट भी मार्केट में ज्यादा हैं. रॉक बर्रेड रॉक के नाम से भारत में जानी जाने वाली यह मुर्गी हेल्थ के लिए काफी अच्छी होती है. इसका मीट भी हेल्थ के लिए काफी अच्छा होता है. इन्हीं खूबियों की वजह से प्लायमाउथ रॉक मुर्गी की डिमांड भारत में बढ़ रही है. ये भी देखें: कड़कनाथ पालें, लाखों में खेलें

ठंड में चाहिए देखभाल

प्लायमाउथ रॉक मुर्गी का शरीर देसी मुर्गी के शरीर के मुकाबले काफी बड़ा होता है. इसका वजन आमतौर पर 3-4kg तक होता है. गहरे भूरे रंग के अंडे देने वाली प्लायमाउथ रॉक मुर्गी हर साल 200-250 तक अंडे दे सकती है. इस मुर्गी के रंगों की बात करें तो यह बफ, वाइट, ब्लू सहित कई रंगों में आती है. इसका स्वभाव काफी शांत और मिलनसार है. प्लायमाउथ रॉक हमेशा घास में रहना पसंद करती है. बीस हफ्ते की उम्र में ही अंडे देने की क्षमता रखने वाली प्लायमाउथ रॉक मुर्गी हर हफ्ते चार से पांच अंडे दे सकती है. वैसे तो यह मुर्गी हर तरह के जलवायु में रह लेती है, लेकिन सर्दियों में इसे थोड़ी बहुत देखभाल की जरूरत होती है.
अब बंजर जमीन से किसानों की होगी भारी कमाई, हर एकड़ में मिल सकते हैं एक लाख रुपये

अब बंजर जमीन से किसानों की होगी भारी कमाई, हर एकड़ में मिल सकते हैं एक लाख रुपये

देश की केंद्र सरकार किसानों की आय बढ़ाने का लगातार प्रयास कर रही है, जिसके लिए कई योजनाएं लागू की गई है जो किसानों को प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से लाभ प्रदान कर रही हैं। इसी तरह की एक योजना है प्रधानमंत्री कुसुम योजना। इस योजना के अंतर्गत सरकार किसानों को अपने खेत में सोलर पंप लगवाने के लिए भारी सब्सिडी दे रही है। इस योजना के अंतर्गत किसान भाई अपने खेत पर या बंजर जमीन पर सोलर पंप लगवा सकते है। जिसके लिए सरकार 60 फीसदी का अनुदान दे रही है। इस योजना को साल 2019 में शुरू किया गया था और अब इस योजना पर लगातार काम किया जा रहा है ताकि किसानों को इस योजना का लाभ पहुंचाया जा सके। इस योजना का मुख्य उद्देश्य प्रदूषण से मुक्त और बेहद कम दामों में किसानों को सिंचाई उपलब्ध करवाना है। सरकार ने अपनी इस योजना के बारे में बताया है कि इस योजना के अंतर्गत किसानों को सोलर पैनल फ्री मिलते हैं, जिससे वो आसानी से बिजली बना सकते हैं। उस बिजली को अपनी अवश्यकतानुसार उपयोग कर सकते हैं तथा बाकी बची बिजली को बेंचकर अतिरिक्त आमदनी हासिल कर सकते हैं। बची हुई बिजली को विद्युत वितरण कंपनी खरीद लेती है, साथ ही अगले 25 सालों तक इनकम की गारंटी भी देती है। लेकिन किसान को ध्यान रखना होगा कि सोलर प्लांट लगवाने के लिए किसान की जमीन विद्युत सब-स्टेशन से 5 किलोमीटर तक दायरे में होनी चाहिए। नवीनीकृत स्रोतों से बनाई जाने वाली बिजली प्रदूषण रहित होती है जिससे पर्यावरण को नुकसान नहीं होता। इसके साथ ही इसको बनाने में लागत भी कम आती है।

प्रति एकड़ एक लाख रुपये तक की हो सकती है कमाई

सरकार की कोशिश है कि किसान भाई इस योजना का लाभ उठाकर अपने खेतों में लगे डीजल पंपों को बंद कर दें और सौर ऊर्जा से चलित पंपों का इस्तेमाल करें। इससे एक ओर प्रदूषण में कमी आएगी वहीं दूसरी ओर डीजल की खपत भी कम होगी। जिससे केंद्र सरकार के ऊपर कच्चे तेल के आयात का बोझ कम होगा। इसके अलावा किसान भाईयों को बची हुई बिजली विद्युत वितरण कंपनी को बेंचने पर हर माह प्रति एकड़ 1 लाख रुपये तक का मुनाफा हो सकता है। यह आमदनी किसान को आगामी 25 वर्षों तक होती रहेगी। ये भी देखें: इस तकनीक के जरिये किसान 1 एकड़ जमीन से कमा सकते है लाखों का मुनाफा

इस प्रकार उठा सकते हैं सब्सिडी का फायदा

केंद्र सरकार ने कहा है कि इस योजना के अंतर्गत सोलर पैनल लगवाने पर किसान को कुल राशि का सिर्फ 10 प्रतिशत ही भुगतान करना होता है। इसके अलावा सरकार किसान को कुल राशि का 60 प्रतिशत देती है, जो सब्सिडी के रूप में होता है। इस राशि में से 30 प्रतिशत केंद्र सरकार की तरफ से तथा 30 प्रतिशत राशि राज्य सरकार की तरफ से वहन की जाती है। बाकी बची हुई 30 प्रतिशत राशि किसान को बैंक लोन के रूप में प्रदान की जाती है, जिसे किसानों को समय पर किस्तों के माध्यम से वापस करना होता है।

प्रधानमंत्री कुसुम योजना से किसान भाइयों को होंगे ये फायदे

  • इस योजना के माध्यम से बिना एकमुश्त राशि दिए आसानी से किसान की भूमि में सोलर पैनल लगाए जाते हैं। जिन्हें बेकार पड़ी जमीन में भी लगवाया जा सकता है।
  • इससे किसानों को फ्री बिजली मिलेगी जिससे सिंचाई में आसानी होगी। फ्री बिजली मिलने से किसानों का सिंचाई में होने वाला व्यय घटेगा।
  • इस योजना से किसानों की डीजल पर से निर्भरता कम होगी।
  • अतिरिक्त बिजली को आगामी 25 सालों तक बेंचकर किसान भाई अपने लिए अतिरिक्त आमदनी कर सकते हैं।
  • इस योजना के माध्यम से पर्यावरण में प्रदूषण कम किया जा सकेगा।

इनको मिलेगा प्रधानमंत्री कुसुम योजना का लाभ

देश में प्रधानमंत्री कुसुम योजना का लाभ किसानों के साथ-साथ सहकारी समितियों को, पंचायतों को, किसानों के समूहों को, किसान उत्पादक संगठनों को और जल उपभोक्ता एसोसिएशनों को भी मिलेगा।

इस योजना का लाभ पाने के ये डाक्यूमेंट्स होंगे जरूरी

इस योजना का लाभ पाने के लिए लाभार्थी के पास आधार कार्ड, आवेदन करने वालों की पासपोर्ट साइज़ की फोटो, पहचान पत्र, राशन कार्ड, रजिस्ट्रेशन की कॉपी, बैंक खाते की डिटेल, जमीन के दस्तावेज और मोबाइल नंबर होना अनिवार्य है। ये सभी डाक्यूमेंट्स आवेदन करते समय लगाने अनिवार्य हैं।

प्रधानमंत्री कुसुम योजना का लाभ पाने के लिए इस प्रकार से करें आवेदन

आवेदनकर्ता प्रधानमंत्री कुसुम योजना का लाभ पाने के लिए योजना की आधिकारिक वेबसाइट mnre.gov.in पर जाकर ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त योजना की विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए अपने नोडल ऑफिसर से सम्पर्क कर सकते हैं।
अब इस स्कीम के तहत किसानों को मिलेगी 5 हजार रुपये की सहायता राशि, ये किसान होंगे पात्र

अब इस स्कीम के तहत किसानों को मिलेगी 5 हजार रुपये की सहायता राशि, ये किसान होंगे पात्र

झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने एक बार फिर से मुख्यमंत्री कृषि आशीर्वाद योजना लागू कर दी है। इस योजना के अंतर्गत किसानों को 5 हजार रुपये की सहायता राशि प्रदान की जायेगी। इस योजना का लाभ सिर्फ उन किसानों को ही मिल पाएगा जिन किसानों के पास 5 एकड़ से कम कृषि योग्य भूमि है। 5 एकड़ से ज्यादा कृषि भूमि के मालिकों को इस योजना से बाहर रखा गया है।

यह है मुख्यमंत्री कृषि आशीर्वाद योजना का मुख्य उद्देश्य

इस योजना का मुख्य उद्देश्य किसनों को आर्थिक रूप से संबल बनाना है। इस योजना से ज्यादातर छोटे किसान लाभान्वित होने वाले हैं। इससे उन्हें खेती बाड़ी में आर्थिक समस्याओं का सामना करने में बल मिलेगा। इस योजना के माध्यम से मिलने वाली राशि से किसान भाई कृषि कार्य के लिए
जरूरी उपकरण, खाद, बीज और कीटनाशक खरीद पाएंगे। केंद्र सरकार के साथ-साथ झारखंड की राज्य सरकार भी किसानों की आय को बढ़ाने का प्रयत्न कर रही है। जिसके लिए मुख्यमंत्री के द्वारा समय-समय पर कई योजनाएं लॉन्च की जाती हैं। यह योजना भी उसी उद्देश्य के साथ लागू की गई है। इस सहायता राशि से किसान आगामी फसलों की बुवाई आसानी से कर पाएंगे, जिससे भविष्य में उन्हें अच्छा उत्पादन प्राप्त हो सकता है। अच्छा उत्पादन प्राप्त होने पर किसान अपने परिवार का भरण पोषण भी बेहद आसानी से कर पाएंगे। इस योजना का लाभ उठाने के लिए झारखंड के मूल निवासी (जिनके पास कृषि भूमि 5 एकड़ से कम है) ऑनलाइन माध्यम से आवेदन कर सकते हैं। इस योजना के तहत आगामी खरीफ फसल की बुवाई के पहले किसान को उनके बैंक खाते में सहायता राशि उपलब्ध कारवाई जाएगी, ताकि किसान भाई आसानी से खरीफ फसल की बुवाई कर सकें। ये भी पढ़े: किसान भाई ध्यान दें, खरीफ की फसलों की बुवाई के लिए नई एडवाइजरी जारी इस योजना के अलावा झारखंड के किसान केंद्र सरकार की अन्य योजनाओं से लाभान्वित हो रहे हैं। केंद्र सरकार की तरफ से हर किसान को प्रतिवर्ष 6 हजार रुपये की सहायता राशि उपलब्ध करवाई जाती है। इसके अलावा केंद्र सरकार ने किसानों के लिए बहुत सारी योजनाएं चला रखी हैं, जिनका फायदा उठाकर किसान भाई कृषि क्षेत्र में तेजी से प्रगति कर रहे हैं। पिछले कुछ सालों से किसानों का उत्पादन बढ़ा है और उनकी आय में भी तेजी से वृद्धि हुई है।
जरबेरा के फूलों की खेती से किसानों की बदल सकती है किस्मत, होगी जबरदस्त कमाई

जरबेरा के फूलों की खेती से किसानों की बदल सकती है किस्मत, होगी जबरदस्त कमाई

भारत में किसान परंपरागत खेती से इतर अब नई तरह ही खेती पर भी फोकस कर रहे हैं, ताकि वो भी समय के साथ अपने व्यवसाय से अच्छी खासी कमाई कर सकें। इसलिए इन दिनों किसान भाई अब बागवानी से लेकर फूलों की खेती करने लगे हैं। भारत में फूल हर मौसम में पाए जाते हैं जो किसानों के लिए पूरे साल भर आमदनी का स्रोत बने रहते हैं। ऐसी ही एक फूल की खेती के बारे में हम आपको जानकारी देने जा रहे हैं। जिसे जरबेरा के फूल के नाम से जाना जाता है। इसका उपयोग सजावट के साथ-साथ औषधीय कामों में भी होता है। यह हर मौसम में पाया जाने वाला फूल है। इसके फूल पीले, नारंगी, सफेद, गुलाबी, लाल रंगों के साथ कई अन्य रंगों में भी पाए जाते हैं। इससे यह फूल बेहद आकर्षक लगते हैं। इस फूल के लंबे डंडे होने के कारण इसका उपयोग शादी समारोह में सजावट के तौर पर किया जाता है। इसके अलावा देश की फार्मेसी कंपनियां भी इसके पौधे का उपयोग दवाइयां बनाने के लिए करती हैं। सुंदर फूल होने के कारण बाजार में इन फूलों का जबरदस्त मांग रहती है। लोग फूलों का उपयोग मंदिरों में सजावट के लिए भी करते हैं।

इस प्रकार की जलवायु में उत्पादित होता है जरबेरा

जरबेरा के लिए सामान्य तापमान वाले मौसम की जरूरत होती है। मतलब सर्दियों में जहां इसके पौधे को धूप की जरूरत होती है वहीं गर्मियों में इसके पौधे को छांव की जरूरत होती है। अगर ये परतिस्थियां नहीं मिलती तो जरबेरा का उत्पादन कम हो सकता है। इसलिए इसकी खेती को पॉलीहाउस में ही सफलतापूर्वक किया जा सकता है। ये भी पढ़े: पॉलीहाउस की मदद से हाईटेक कृषि की राह पर चलता भारतीय किसान

इस तरह से करें खेत की तैयारी

वैसे तो जरबेरा की खेती हर मिट्टी में हो सकती है लेकिन रेतीली भुरभुरी मिट्टी इस खेती के लिए सबसे उपयुक्त मानी गई है। इस खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 5.0-7.2 के बीच होना चाहिए। खेत तैयार करने के पहले खेत की 2 से 3 बार अच्छे से जुताई कर लें। इसके बाद एक बेड तैयार कर लें जिसकी चौड़ाई 1 मीटर होनी चाहिए, साथ ही ऊंचाई 30 सेंटीमीटर होनी चाहिए। इसके साथ ही मिट्टी में जैविक खाद भी डालें।

इस समय करें पौधों की बुवाई

जरबेरा के पौधों की बुवाई फरवरी से लेकर मार्च तक की जा सकती है, इसके साथ ही दूसरे मौसम में इसकी बुवाई सितंबर से लेकर अक्टूबर तक की जा सकती है। बुवाई करते समय ध्यान रहे कि पौधे का ऊपरी भाग मिट्टी से 3 सेंटीमीटर ऊपर होना चाहिए। साथ ही एक पौधे से दूसरे पौधे की की दूरी 30 सेंटीमीटर होनी चाहिए और कतार से कतार की दूरी 40 सेंटीमीटर हिनी चाहिए। मिट्टी के एक बेड पर पौधों की 2 कतारें आसानी से लगाई जा सकती हैं।

ऐसे करें सिंचाई

जैसे ही जरबेरा के पौधों की बेड पर रोपाई करें उसके तत्काल बाद पानी देना चाहिए। इसके बाद एक माह तक लगातार सिंचाई करते रहना चाहिए। इससे पौधे की जड़ों की पकड़ मिट्टी में बन सकेगी। शुरुआत में जरबेरा के पौधों को प्रतिदिन सिंचाई की जरूरत होती है।

ऐसे करें जरबेरा के फूलों की तुड़ाई

खेती शुरू करने के करीब 12 सप्ताह बाद जरबेरा में फूल आने लगते हैं। लेकिन फूलों की तुड़ाई 14 सप्ताह के बाद करना चाहिए। सुबह या शाम के समय तुड़ाई करने पर फूलों की गुणवत्ता बनी रहती है। इसलिए फूलों की तुड़ाई के लिए इसी समय का चुनाव करें। जरबेरा के फूलों को डंठल के साथ तोड़ना चाहिए। इसके डंठल की लंबाई 50-55 सेंटीमीटर तक होती है। एक पौधा एक साल में करीब 45 फूल तक उत्पादित कर सकता है। तुड़ाई के ठीक बाद फूलों को पानी से भारी बाल्टी में रखना चाहिए ताकि फूल मुरझाने न पाएं।
खरीफ सीजन में बासमती चावल की इन किस्मों की खेती से होगी अच्छी पैदावार और कमाई

खरीफ सीजन में बासमती चावल की इन किस्मों की खेती से होगी अच्छी पैदावार और कमाई

भारत भर में बासमती धान का उत्पादन किया जाता है। देश के विभिन्न राज्यों में विभिन्न किस्म का बासमती चावल उगाया जाता है। परंतु, कुछ ऐसी भी प्रजातियां हैं, जिनके उत्पादन हेतु हर प्रकार का मौसम और जलवायु उपयुक्त होता है। 

इस बार जून के पहले हफ्ते में मानसून की शुरुआत होगी। इसके उपरांत संपूर्ण भारत में किसान धान की बुवाई करने में लग जाएंगे। दरअसल, किसानों ने धान की नर्सरी को तैयार करना चालू कर दिया है। 

यदि किसान भाई बासमती धान का उत्पादन करने की योजना बना रहे हैं, तो उनके लिए यह अच्छी खबर है। क्योंकि, आगे इस लेख में हम आपको बासमती धान की सदाबहार प्रजतियों के विषय में जानकारी देने वाले हैं। 

इन किस्मों से खेती करने पर रोग लगने का खतरा भी बहुत कम रहता है। साथ ही, काफी बेहतरीन पैदावार भी मिलती है।

बासमती चावल का उत्पादन पूरे देश में किया जाता है

ऐसे तो बासमती चावल की खेती पूरे भारत में की जाती है। लेकिन, भिन्न-भिन्न राज्यों में वहां की मृदा-जलवायु हेतु अनुकूल भिन्न-भिन्न किस्म का बासमती चावल उगाया जा सकता है। 

हालाँकि, कुछ ऐसी भी प्रजातियां मौजूद हैं, जिनका उत्पादन हर प्रकार के मौसम एवं जलवायु में आसानी से किया जा सकता है। इन किस्मों के ऊपर झुलसा रोग का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। 

साथ ही, फसल की लंबाई कम होने की वजह से तेज हवा बहने पर भी यह वृक्ष नहीं गिरते हैं। अब ऐसी हालत में किसानों की कीटनाशकों पर आने वाली लागत में राहत मिलेगी एवं धान में पोष्टिकता भी बनी रहेगी। इसकी वजह से बाजार में समुचित भाव प्राप्त होगा। 

ये भी देखें: धान की किस्म पूसा बासमती 1718, किसान कमा पाएंगे अब ज्यादा मुनाफा

पूसा बासमती-6 (पूसा- 1401):

पूसा बासमती-6 धान की एक सिंचित किस्म है। मतलब कि यह प्रजाति बारिश से ही अपने लिए जल की आवश्यकता को पूरा कर लेती है। यह बासमती की एक बौनी प्रजाति है। 

इसकी फसल की लंबाई परंपरागत बासमती की तुलना में बेहद कम होती है। ऐसी हालत में तीव्र हवा चलने पर भी इसकी फसल खेत में नहीं गिरती है। 

इसकी उत्पादन क्षमता 55 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है। यदि किसान भाई इसकी खेती करेंगे को उनको काफी ज्यादा उत्पादन प्राप्त हो सकेगा।

उन्नत पूसा बासमती-1 (पूसा-1460):

उन्नत पूसा बासमती-1 भी पूसा बासमती-6 की ही भाँती एक सिंचित बासमती धान की प्रजाति है। इसकी फसल 135 दिन के समयांतराल में ही पककर तैयार हो जाती है। 

इसका अर्थ यह है, कि 135 दिन के उपरांत किसान भाई इसकी कटाई कर सकते हैं। इसमें रोग प्रतिरोध क्षमता काफी ज्यादा पाई जाती है। 

अब ऐसी हालत में इसके ऊपर झुलसा रोग का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। यदि पैदावार की बात करें तो, आप एक हेक्टेयर से 50 से 55 क्विंटल धान की पैदावार कर सकते हैं। 

ये भी देखें: पूसा बासमती चावल की रोग प्रतिरोधी नई किस्म PB1886, जानिए इसकी खासियत

पूसा बासमती-1121:

पूसा बासमती- 1121 का उत्पादन आप किसी भी धान की खेती वाले भाग में कर सकते हैं। यह बासमती की एक सुगंधित प्रजाति है। जो कि 145 दिन के समयांतराल में पककर तैयार हो जाती है। 

इसके चावल का दाना पतला एवं लंबा होता है। खाने में यह बेहद स्वादिष्ट लगती है। इसकी उत्पादन क्षमता 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। इसके अलावा यदि किसान भाई चाहें, तो पूसा सुगंध-2, पूसा सुगंध-3 और पूसा सुगंध-5 की भी खेती कर सकते हैं। 

इन किस्मों की खेती करने हेतु पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर का मौसम उपयुक्त है। यह किस्में तकरीबन 120 से 125 दिन के समयांतराल में पककर तैयार हो जाती हैं। साथ ही, एक हेक्टेयर जमीन से 40 से 60 क्विंटल उत्पादन मिल सकता है।

इस फूल की खेती से किसान कम समय में अच्छा-खासा मुनाफा कमा सकते हैं

इस फूल की खेती से किसान कम समय में अच्छा-खासा मुनाफा कमा सकते हैं

आजकल किसान फूलों की खेती करके काफी ज्यादा आय करते हैं। गुलखैरा का फूल तकरीबन 10,000 रुपये क्विंटल तक के हिसाब से बिकता है। किसान एक बीघे में कम से कम 5 से 6 क्विंटल फूल बड़ी आसानी से उत्पादन कर सकते हैं। वो भी बाकी फसलों की पैदावार करते हुए। आज के समय में किसान पारंपरिक खेती की लीक से हट कर अन्य विभिन्न प्रकार के फलों, फूलों और मसालों की खेती कर रहे हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही फूल के विषय में बताने वाले हैं, जिसकी खेती यदि आपने करते हैं, तो गत कुछ ही माह में मालामाल हो सकते हैं। बतादें, कि हम जिस फूल के बारे में बात कर रहे हैं, यह कोई साधारण फूल नहीं है। यह एक ऐसा फूल है, जिसके विभिन्न औषधीय लाभ होते हैं। विभिन्न प्रकार की बीमारियों का उपचार करने में इस फूल का उपयोग होता है। आइए अब इस फूल के बारे में जानते हैं।

गुलखैरा के फूल की क्या-क्या विशेषता होती है

दरअसल, हम जिस फूल के विषय में बात कर रहे हैं, उस फूल का नाम गुलखैरा है। बतादें कि किसान भाई इस फूल की खेती कर के काफी मोटी आमदनी कर सकते हैं। इस फूल की फसल की सबसे विशेष बात यह है, कि इसे किसी भी फसल के साथ किसान उगा सकते हैं। उसके बाद इसे बाजार में बेच कर अच्छी-खासी आमदनी कर सकते हैं। दरअसल, इस फूल का मूल रूप से सर्वाधिक उपयोग ओषधि निर्मित करने हेतु किया जाता है। ये भी देखें: इस औषधीय गुणों वाले बोगनविलिया फूल की खेती से होगी अच्छी-खासी कमाई

गुलखैरा का फूल कितने रुपये प्रति क्विंटल बिकता है

मीडिया एजेंसियों की खबरों के अनुसार, गुलखैरा का फूल तकरीबन 10,000 रुपये क्विंटल तक बेचा जाता है। बतादें, कि एक बीघे में कम से कम आप 5 से 6 क्विंटल फूल बड़ी आसानी से उत्पादित कर सकते हैं, वह भी बाकी फसलों के समेत। इस फूल की एक और सबसे बड़ी विशेषता यह है, कि इसकी एक बार बुआई कर लेने के उपरांत आपको दूसरी बार बीज बाजार से खरीदने की जरुरत नहीं पड़ेगी। अप्रैल से मई के मध्य यह फसल पककर तैयार हो जाती है।

गुलखैरा के फूल का उपयोग किस प्रकार की दवाई बनाने में किया जाता है

गुलखैरा के फूल का उपयोग यूनानी औषधियां तैयार करने में किया जाता है। इसके साथ ही मर्दाना शक्ति के लिए भी इस फूल से दवाई तैयार की जाती है। बुखार, खांसी और विभिन्न प्रकार की वायरस वाले रोगों के उपचार के लिए भी इस फूल का इस्तेमाल किया जाता है। इस समय इस फूल की खेती उत्तर प्रदेश के उन्नाव, कन्नौज और हरदोई में अधिक होती है।
जानिए अरोमा मिशन क्या है और इससे किसानों को क्या फायदा है

जानिए अरोमा मिशन क्या है और इससे किसानों को क्या फायदा है

बैंगनी क्रांति मतलब कि अरोमा मिशन ने किसानों की तकदीर बदल दी है। दरअसल, इस योजना के अंतर्गत किसानों की आमदनी में लगभग 2.5 गुना बढ़ोत्तरी हुई है। साथ ही, रोजगार में भी बढ़वार हो रही है। सरकार की इस योजना के माध्यम से तेलों एवं अन्य सुगंधित उत्पादों को तैयार करने में सहायता मिल रही है। किसानों की आमदनी को कई गुणा बढ़ाने के लिए भारत सरकार के द्वारा विभिन्न प्रकार की शानदार योजनाऐं चलाई जा रही हैं। इन्हीं में से अरोमा मिशन भी है, जो किसानों की आमदनी को दोगुना से भी कहीं ज्यादा करने में सहायता कर रही है। इस योजना की सहायता से किसान अपने खेत में सुगंधित फसलों की खेती बड़ी ही सुगमता से कर रहे हैं। साथ ही, ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के नए-नए अवसर भी उत्पन्न हो रहे हैं। जिससे किसानों के साथ-साथ आम नागरिक भी आत्मनिर्भर हो सकें। मीडिया खबरों के अनुसार, अरोमा मिशन के अंतर्गत भारत के किसानों की आमदनी में तकरीबन 2.5 गुना इजाफा देखने को मिला है।

अरोमा मिशन आखिर होता क्या है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि अरोमा मिशन सुगंधित फसलों की खेती को बढ़ावा देने के लिए जारी की गई सरकार की एक अनोखी कवायद है। इस मिशन का प्रमुख उद्देश्य सुगंधित तेलों एवं अन्य सुगंधित उत्पादों के विनिर्माण में भारत की उद्यमिता को बढ़ावा देना है। इसके अतिरिक्त इस योजना के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के नवीन अवसर पैदा करना भी है। इसके अतिरिक्त इस मिशन के अंतर्गत किसानों को बीज व पौधे भी मुहैय्या करवाए जाते हैं। साथ ही, खेती किसानी की नई-नई तकनीकों के विषय में भी सिखाया जाता है। खबरों की मानें तो इस मिशन में केवल किसान ही नहीं बल्कि उसका संपूर्ण परिवार भी खेती-किसानी की तकनीक को सीख सकते हैं।

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अरोमा मिशन से किसानों को क्या लाभ हुआ है

अरोमा मिशन जम्मू कश्मीर में चलाए जाने वाला एक मिशन है। अरोमा मिशन में वैज्ञानिकों द्वारा भी पूरा सहयोग किया जा रहा है। अरोमा मिशन के अंतर्गत वैज्ञानिक सीधे तौर पर किसानों के खेतों पर पहुंच रहे हैं। साथ ही, उनकी विभिन्न प्रकार की दिक्कतों को भी हल कर रहे हैं। जानकारी के लिए बतादें, कि किसान फसल की उगाई से लगाकर उनकी कटाई तक वैज्ञानिकों की सहायता प्राप्त कर सकते हैं। इस संदर्भ में वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) की महानिदेशक एन कलाईसेल्वी ने बताया है, कि कृषि वैज्ञानिक फिलहाल प्रयोगशाला में ही बैठकर फसलों की निगरानी और किसानों की सहायता नहीं कर रहे हैं। वह फिलहाल स्वयं चलकर किसान का हाथ पकड़ रहे हैं। इसके साथ ही उनकी प्रत्येक दिक्कत-परेशानी को दूर करने की कोशिशों में जुटे हैं।