भारत भर में बासमती धान का उत्पादन किया जाता है। देश के विभिन्न राज्यों में विभिन्न किस्म का बासमती चावल उगाया जाता है। परंतु, कुछ ऐसी भी प्रजातियां हैं, जिनके उत्पादन हेतु हर प्रकार का मौसम और जलवायु उपयुक्त होता है।
इस बार जून के पहले हफ्ते में मानसून की शुरुआत होगी। इसके उपरांत संपूर्ण भारत में किसान धान की बुवाई करने में लग जाएंगे। दरअसल, किसानों ने धान की नर्सरी को तैयार करना चालू कर दिया है।
यदि किसान भाई बासमती धान का उत्पादन करने की योजना बना रहे हैं, तो उनके लिए यह अच्छी खबर है। क्योंकि, आगे इस लेख में हम आपको बासमती धान की सदाबहार प्रजतियों के विषय में जानकारी देने वाले हैं।
इन किस्मों से खेती करने पर रोग लगने का खतरा भी बहुत कम रहता है। साथ ही, काफी बेहतरीन पैदावार भी मिलती है।
हालाँकि, कुछ ऐसी भी प्रजातियां मौजूद हैं, जिनका उत्पादन हर प्रकार के मौसम एवं जलवायु में आसानी से किया जा सकता है। इन किस्मों के ऊपर झुलसा रोग का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
साथ ही, फसल की लंबाई कम होने की वजह से तेज हवा बहने पर भी यह वृक्ष नहीं गिरते हैं। अब ऐसी हालत में किसानों की कीटनाशकों पर आने वाली लागत में राहत मिलेगी एवं धान में पोष्टिकता भी बनी रहेगी। इसकी वजह से बाजार में समुचित भाव प्राप्त होगा।
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इसकी फसल की लंबाई परंपरागत बासमती की तुलना में बेहद कम होती है। ऐसी हालत में तीव्र हवा चलने पर भी इसकी फसल खेत में नहीं गिरती है।
इसकी उत्पादन क्षमता 55 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है। यदि किसान भाई इसकी खेती करेंगे को उनको काफी ज्यादा उत्पादन प्राप्त हो सकेगा।
इसका अर्थ यह है, कि 135 दिन के उपरांत किसान भाई इसकी कटाई कर सकते हैं। इसमें रोग प्रतिरोध क्षमता काफी ज्यादा पाई जाती है।
अब ऐसी हालत में इसके ऊपर झुलसा रोग का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। यदि पैदावार की बात करें तो, आप एक हेक्टेयर से 50 से 55 क्विंटल धान की पैदावार कर सकते हैं।
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इसके चावल का दाना पतला एवं लंबा होता है। खाने में यह बेहद स्वादिष्ट लगती है। इसकी उत्पादन क्षमता 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। इसके अलावा यदि किसान भाई चाहें, तो पूसा सुगंध-2, पूसा सुगंध-3 और पूसा सुगंध-5 की भी खेती कर सकते हैं।
इन किस्मों की खेती करने हेतु पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर का मौसम उपयुक्त है। यह किस्में तकरीबन 120 से 125 दिन के समयांतराल में पककर तैयार हो जाती हैं। साथ ही, एक हेक्टेयर जमीन से 40 से 60 क्विंटल उत्पादन मिल सकता है।