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पंडाल तकनीकी से कुंदरू की खेती करके मिल रहा दोगुना उत्पादन

पंडाल तकनीकी से कुंदरू की खेती करके मिल रहा दोगुना उत्पादन

नई दिल्ली। सामान्यतः भारत में कुंदरू या कुंदुरी (Kundru, Coccinia grandis, Kovakka अथवा Coccinia indica or Coccinia Ivy Gourd) की बहुत ज्यादा लोकप्रियता नहीं है। लेकिन आज देश भर की मंडियों में कुदरु की अच्छी मांग है। मंडियों में बढ़ती मांग को देखते हुए किसानों ने कुंदरू की खेती शुरू कर दी है। कुछ स्थानों पर पंडाल लगाकर कुंदरू की खेती की जा रही है। इससे किसान को फसल का दोगुना उत्पादन मिल रहा है। आंध्र प्रदेश के नरसारावपेट मंडल के गांव मुल्कालूरु के रहने वाले किसान आदित्य नारायन रेड्डी अपनी पत्नी सुशीला के साथ बीते 30 वर्षों से खेती कर रहे हैं। हर साल दोनों पति-पत्नी खेती में नए-नए प्रयोग करते हैं। उनके पास स्वंय की 3 एकड़ जमीन है, जिसमें वह सब्जियां ही उगाते हैं। इस साल उन्होंने अपने एक एकड़ खेत में पंडाल लगाकर कुंदरू की खेती की, जिसमें दोगुना उत्पादन हुआ।
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पंडाल लगाने के लिए किसान ने बैंक से लिया था 2 लाख का लोन

अपनी फसल का उत्पादन बढ़ाने और मेहनत को कम करने के लिए किसान आदित्य नारायण रेड्डी ने बैंक से 2 लाख रुपए का लोन लिया था, जिस पर आंध्र प्रदेश जल क्षेत्र सुधार परियोजना के तहत एक लाख रुपये की सब्सिडी मिली। इस तरह कुल 3 लाख रुपए की लागत से किसान ने अपने खेत पर पंडाल लगाया और आज उसी पंडाल के खेत में कुंदरु कर खेती करके अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।

अर्थ स्थाई पंडाल विधि से खेत में लगाया पंडाल

किसान आदित्य नारायण रेड्डी ने एक ट्रेनिंग प्रोग्राम में अर्थ स्थाई पंडाल विधि (permanent pandals for Creeper vegetables cultivation) सीखकर, 3 लाख रुपए की लागत से अपने खेत में पंडाल लगाया। अर्थ स्थाई पंडाल लगाने से उनका उत्पादन दोगुना यानी 40 टन हो गया। कुंदरू की खेती में प्रति एकड़ लागत तकरीबन 2 लाख रुपये आती है और 40 टन माल को बेचकर करीब 3 लाख रुपए की आमदनी होती है। इस तरह प्रति एकड़ एक लाख रुपए मुनाफा हो जाता है।
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पंडाल विधि में हर दो साल बाद बदलने होते हैं बांस

किसान आदित्य नारायण रेड्डी ने जानकारी देते हुए बताया कि पंडाल खेती में हर दो साल बाद पंडाल के बांस बदलने होते हैं, जिससे पंडाल सुरक्षित व मजबूत बना रहता है और फसल के लिए उपयोगी रहता है। उन्नत शील किसान आज पंडाल विधि से खेती करने के लिए दूसरे किसानों को प्रेरित कर रहे हैं।

सुशीला रेड्डी को मिल चुका है जिले की सर्वश्रेष्ठ महिला का खिताब

किसान आदित्य नारायण रेड्डी की पत्नी सुशीला रेड्डी को साल 2010 में जिले की सर्वश्रेष्ठ महिला का खिताब मिल चुका है। आज सुशीला रेड्डी अपने क्षेत्र के किसानों को प्रशिक्षण देती हैं और खेती से जुड़ी जानकारियां देकर किसानों की मदद कर रहीं हैं।
तोरई की खेती से किसान कमा सकते है मुनाफा, जाने तोरई की उन्नत किस्में

तोरई की खेती से किसान कमा सकते है मुनाफा, जाने तोरई की उन्नत किस्में

तोरई वर्षा ऋतू में होने वाली सब्जी है। तोरई को तुराई और तोरी के नाम से जाना जाता है। यह फाइबर और विटामिन से भरपूर सब्जी है। तोरई के पत्ते मध्यम आकार के होते है, इन पत्तों का रंग हल्का हरा होता है। 

तोरई दिखने में लम्बी, पतली और कोमल होती है, साथ ही इसके अंदर का हिस्सा और बीज हल्के क्रीमी रंग के होते है। तुरई में स्वाभाविक रूप से कम कैलोरी पायी जाती है। 

तुरई का इंग्लिश नाम जुकीनी है, इसकी तासीर ठंडी होती है। साथ ही तुरई में आयरन , प्रोटीन और कैल्शियम जैसे कई पोषक तत्व पाए जाते है। साथ ही तुरई में बहुत से बायोएक्टिव कॉम्पोनेन्ट भी पाए जाते है। 

तुरई उभरी हुई त्वचा और लम्बी , बेलनाकार सब्जी है। तुरई की खेती मुख्य रूप से नगदी फसल के रूप में की जाती है। तुरई पर आने वाले फूल पीले रंग के होते है ,इन्ही पुष्पों पर तुरई लगती है जिसका उपयोग सब्जी बनाने के लिए किया जाता है। 

तुरई की खेती कब की जाती है ?

तुरई की खेती किसानों द्वारा जून से जुलाई के माह में की जाती है। इसकी फसल को पकने में 70 -80 दिन का समय लगता है। तुरई की खेती ज्यादातर वर्षा ऋतू में की जाती है। इसकी अच्छी उपज के लिए खेत में नमी होना जरूरी है। 

तुरई की उन्नत किस्में 

तुरई की कई किस्में ऐसी है , जिनका उत्पादन कर किसान ज्यादा मुनाफा कमा सकता है। तुरई की किस्मों का पकने का समय अलग अलग है। तुरई की उन्नत किस्में कुछ इस प्रकार है : को, -1 (co,-1 ), (पी के एम 1 ), घीया तोरई, पूसा नसदार, पूसा चिकनी, पंजाब सदाबहार और और सरपुतिया तुरई की उन्नत किस्में है। 

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तुरई की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और भूमि 

तुरई की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन भूमि अच्छी जल निकास वाली होनी चाहिए। लेकिन इसकी अधिक पैदावार के लिए दोमट मिट्टी को उपयुक्त माना जाता है। 

नदियों के किनारे पायी जाने वाली अम्लीय मिट्टी में भी इसका उत्पादन किया जा सकता है। तोरई के विकास के लिए आद्र और शुष्क जलवायु की जरुरत रहती है। भारत में तुरई की खेती खरीफ और जायद के सीजन में की जाती है। 

इसके पौधे को शुरुआत में वर्षा की जरुरत रहती है, लेकिन अधिक वर्षा भी तुरई की फसल को खराब कर सकती है। तुरई के पौधो को अंकुरित होने के लिए सामान्य तापमान की जरुरत रहती है, गर्मियों में तुरई का पौधा अधिकतम 35 डिग्री तापमान को भी सहन करने की क्षमता रखता है। 

बुवाई के लिए बीज की मात्रा और बीज उपचार 

तुरई की बुवाई के लिए पहले खेत की जुताई करे उसके बाद जब मिट्टी का रंग भुरभुरा हो जाये तो उसमे बुवाई का काम प्रारंभ करें। प्रति हेक्टेयर में 3 से 5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है। 

ग्रीष्म काल में तुरई की बुवाई के लिए जनवरी से मार्च का महीने बेहतर माना जाता है और यही खरीफ सीजन में बुवाई के लिए जून से जुलाई का महीना उपयुक्त माना जाता है। लेकिन बीज की बुवाई से पहले इसका उपचार कर लेना बेहतर है।

बीज उपचार के लिए थीरम की 3 ग्राम मात्रा को तुरई के प्रति किलोग्राम बीज में अच्छे से उपचारित कर ले। ऐसा करने से तुरई की फसल में लगने वाले फफूँदी रोग से बचाया जा सकता है।

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तुरई की खेती के लिए खाद और उर्वरक 

तुरई की अच्छी पैदावार के लिए किसान गोबर की खाद का उपयोग कर सकते हैं, जुताई के 15 -20 दिन पहले खेत में 200 -250 क्विंटल खाद को डाल दे। आख़िरी जुताई करते वक्त ध्यान रहे खाद को अच्छे से खेत में मिला दे। 

साथ ही अधिक पैदावार के लिए किसान पोटाश (80  kg ),फास्फोरस (100 kg ) और नाइट्रोजन (120 kg ) का भी उपयोग कर सकते है। इसकी आधी मात्रा का उपयोग बुवाई के वक्त और आधी मात्रा का उपयोग बुवाई के एक महीने बाद कर सकते है। 

कैसे करें सिंचाई प्रबंधन ?

वर्षा ऋतू में तोरई की फसल को ज्यादा पानी की जरुरत नहीं रहती है , क्योंकि समय समय पर बारिश फसल में पानी की कमी को पूरा करती रहती है। लेकिन गर्मियों के मौसम में फसल को पानी की ज्यादा जरुरत रहती है, इसीलिए खेत में 7 से 8 दिन के बाद सिंचाई करनी चाहिए। ताकि गर्मी की वजह से खेत में सूखा न पड़े और उसका प्रभाव फसल पर न पड़े।

तुरई की फसल में खरपतवार जैसी समस्याएं भी देखने को मिलती है साथ ही बहुत से रोग और कीटों का भी प्रकोप फसल में देखने को मिलता है। इन सभी को नियंत्रित करने के लिए किसान फसल चक्र को भी अपना सकता है। 

साथ ही तुरई की खेती में खरपतवार को रोकने के लिए नराई और गुड़ाई का भी काम किया जा सकता है। इसके अलावा किसानों द्वारा कीटनाशक दवाइयों का भी उपयोग किया जा सकता है। 

करेले की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

करेले की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

हरदोई के किसान का कहना है, कि 1 एकड़ भूमि पर करेले की खेती करने पर तकरीबन ₹30000 तक का खर्चा आता है। किसान को बेहतरीन मुनाफे के साथ करीब ₹300000 प्रति एकड़ का लाभ होता है। 

 करेले की खेती से किसान शीघ्र अमीर बन सकते है। किसानों की सफलता की यह कहानी, बाकी किसानों को भी करेले की खेती की ओर आकर्षित कर रही है। 

असल में उत्तर प्रदेश के हरदोई जनपद के किसान करेले की खेती से अच्छा-खासा लाभ अर्जित कर रहे हैं। परंतु, करेले की खेती से फायदा कमाने की कहानी की पटकथा के पीछे खेत तैयार करने की महत्वपूर्ण भूमिका है। 

आईए जानते हैं, कि करेले की खेती करने वाले किसानों की सफलता की कहानी और उन्होंने किस प्रकार खेत तैयार किए, जिससे करेले की खेती से वह मोटा मुनाफा कमाने में सफल हो पाए।

जाल निर्मित कर करेले की खेती की शुरुआत की

हरदोई जनपद के किसान आजकल खेत में जाल बनाकर करेले की खेती कर रहे हैं, जिससे किसानों को करेले की खेती में लाखों का मुनाफा अर्जित हो रहा है। हरदोई के ऐसे ही एक किसान संदीप वर्मा हैं, जो कि गांव विरुइजोर के निवासी हैं।

वह बहुत वर्षों से करेले की खेती करते आ रहे है, उनका कहना है, कि उनके पिताजी भी सब्जियों की खेती किया करते थे। 

सब्जी की खेती गर्मी एवं बरसात के दिनों में बेहद मुनाफा देती है। साथ ही, यह खेती सप्ताह अथवा 15 दिन में किसान की जेब में रुपए पहुंचाती रहती है।

संदीप की देखी-देखा रिश्तेदारों ने भी की करेले की खेती शुरू

किसान संदीप वर्मा का कहना है, कि करेले की फसल की उत्तम पैदावार के लिए 35 डिग्री तक का तापमान उपयुक्त माना जाता है। साथ ही, बीजों के गुणवत्तापूर्ण जमाव के लिए 30 डिग्री तक का तापमान उपयुक्त होता है। 

किसान ने बताया है, कि उनकी करेले की खेती की कमाई को देखी देखा फिलहाल उनके रिश्तेदार भी करेले की फसल उगाने लग गए हैं, जिससे उनको भी लाभ हाेने लगा है।

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करेला की खेती में कितनी पैदावार होती है

किसान संदीप वर्मा ने बताया है, कि वह आर्का हरित नामक करेले के बीज को लगभग 2 वर्षों से बो रहे हैं। इस बीज से निकलने वाले पेड़ से प्रत्येक बेल में करीब 50 फल तक अर्जित होते हैं। 

संदीप का कहना है, कि आर्का हरित करेले के बीज से निकलने वाला करेला बेहद लंबा एवं तकरीबन 100 ग्राम तक का होता है। करेला की 1 एकड़ भूमि में 50 क्विंटल तक की अच्छी पैदावार इससे अर्जित की जा सकती है।

विशेष बात यह है, कि इस करेला के फल में अत्यधिक बीज नहीं पाए जाते। इस वजह से इसको सब्जी के लिए बड़े शहरों में ज्यादा पसंद किया जाता है। 

किसान का कहना है, कि गर्म वातावरण करेले की खेती के लिए बेहद बेहतरीन माना गया है। खेत में समुचित जल निकासी की समुचित व्यवस्था के साथ इसे बलुई दोमट मृदा में आसानी से किया जा सकता है।

करेले की बुवाई इन दिनों में की जानी चाहिए

करेले की बिजाई करने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त समय बारिश के दिनों में मई-जुलाई का पहला हफ्ता वहीं सर्दियों में जनवरी-फरवरी माना जाता है। 

किसान का कहना है, कि खेत की तैयारी करने के दौरान खेत में गोबर की खाद डालने के पश्चात कल्टीवेटर से कटवा कर उसकी बेहतरीन ढ़ंग से जुताई करके मृदा को भुरभुरा बनाते हुए उसमें पाटा लगवा कर एकसार कर लें। बुआई से पूर्व खेत में नालियां तैयार कर लें। 

साथ ही, इस बात का खास ख्याल रखें कि खेत में जलभराव की स्थिति ना बने मृदा को एकसार बनाते हुए खेत में दोनों ओर की नाली निर्मित की जाती हैं। 

साथ ही, खरपतवार को भी खेत से बाहर निकाल कर आग लगा दी जाती है अथवा उसको गहरी मृदा में दबा दिया जाता है।

करेले की बिजाई इस तरह करें

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि 1 एकड़ भूमि में करेला की बुवाई हेतु तकरीबन 600 ग्राम बीज पर्याप्त होता है। करेले के बीजों की बुवाई करने के लिए 2 से 3 इंच की गहराई पर बोया जाता है। 

साथ ही, नाली से नाली का फासला तकरीबन 2 मीटर और पौधों का फासला करीब 70 सेंटीमीटर होता है। बेल निकलने के पश्चात मचान पर उसे सही ढंग से चढ़ा दिया जाता है। 

करेले की पौध को बिमारियों एवं कीटों से बचाने के लिए किसान विशेषज्ञों से सलाह मशवरा कर के कीटनाशक का इस्तेमाल करते हैं।

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किसान कुल खर्चे का 10 गुना मुनाफा उठा रहे हैं

किसान का कहना है, कि 1 एकड़ खेत में तकरीबन ₹30000 तक की लागत आसानी से आ जाती है। साथ ही, किसान को बेहतरीन मुनाफे के साथ करीब ₹300000 प्रति एकड़ का लाभ होता है। 

हरदोई के जिला उद्यान अधिकारी सुरेश कुमार का कहना है, कि जनपद में किसान करेले की खेती से काफी मोटा मुनाफा कमा रहे हैं। किसानों को खेती के संबंध में समयानुसार उपयोगी जानकारी दी जा रही है। 

इसके साथ ही किसानों को अच्छे बीज एवं अनुदान भी प्रदान किए जा रहे हैं। किसानों के खेत में पहुँचकर किसानों की फसलों का निरीक्षण भी किया जा रहा है, इससे उनको अच्छे खरपतवार एवं कीट नियंत्रण से जुड़ी जानकारी प्रदान की जा रही है। 

हरदोई की जिला उद्यान अधिकारी सुरेश कुमार ने बताया कि हरदोई का करेला लखनऊ, कानपुर, शाहजहांपुर के अतिरिक्त दिल्ली, मध्य प्रदेश व बिहार तक पहुँच रहा है। इससे किसान को उसकी करेले की फसल का समुचित भाव अर्जित हो रहा है।

करेले बोने की इस शानदार विधि से किसान कर रहा लाखों का मुनाफा

करेले बोने की इस शानदार विधि से किसान कर रहा लाखों का मुनाफा

आजकल हर क्षेत्र में काफी आधुनिकीकरण देखने को मिला है। किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए करेला की खेती बेहद शानदार सिद्ध हो सकती है। 

दरअसल, जो करेला की खेती से प्रतिवर्ष 20 से 25 लाख रुपये की शानदार आमदनी कर रहे हैं। हम जिस सफल किसान की हम बात कर रहे हैं, वह उत्तर प्रदेश के कानुपर जनपद के सरसौल ब्लॉक के महुआ गांव के युवा किसान जितेंद्र सिंह है। 

यह पिछले 4 वर्षों से अपने खेत में करेले की उन्नत किस्मों की खेती (Cultivation of Varieties of bitter gourd) करते चले आ रहे हैं।

किसान जितेंद्र सिंह के अनुसार, पहले इनके इलाके के कृषक आवारा और जंगली जानवरों की वजह से अपनी फसलों की सुरक्षा व बचाव नहीं कर पाते हैं। 

क्योंकि, किसान अपने खेत में जिस भी फसलों की खेती करते थे, जानवर उन्हें चट कर जाते थे। ऐसे में युवा किसान जिंतेद्र सिंह ने अपने खेत में करेले की खेती करने के विषय में सोचा। क्योंकि, करेला खाने में काफी कड़वा होता है, जिसके कारण जानवर इसे नहीं खाते हैं।

करेला की खेती से संबंधित कुछ विशेष बातें इस प्रकार हैं ?  

किसानों के लिए करेला की खेती (Bitter Gourd Cultivation) से अच्छा मुनाफा पाने के लिए इसकी खेती जायद और खरीफ सीजन में करें। साथ ही, इसकी खेती के लिए बलुई दोमट या दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है।

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किसान करेले की बुवाई (Sowing of Bitter Gourd) को दो सुगम तरीकों से कर सकते हैं। एक तो सीधे बीज के माध्यम से और दूसरा नर्सरी विधि के माध्यम से किसान करेले की बिजाई कर सकते हैं। 

गर आप करेले की खेती (Karele ki kheti) नदियों के किनारे वाले जमीन के हिस्से पर करते हैं, तो आप करेल की अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।

करेले की उन्नत किस्में इस प्रकार हैं ?

करेले की खेती से शानदार उपज हांसिल करने के लिए कृषकों को करेले की उन्नत किस्मों (Varieties of Bitter Gourd) को खेत में रोपना चाहिए। वैसे तो बाजार में करेले की विभिन्न किस्में उपलब्ध हैं। 

परंतु, आज हम कुछ विशेष किस्मों के बारे में बताऐंगे, जैसे कि- हिसार सलेक्शन, कोयम्बटूर लौंग, अर्का हरित, पूसा हाइब्रिड-2, पूसा औषधि, पूसा दो मौसमी, पंजाब करेला-1, पंजाब-14, सोलन हरा और सोलन सफ़ेद, प्रिया को-1, एस डी यू- 1, कल्याणपुर सोना, पूसा शंकर-1, कल्याणपुर बारहमासी, काशी सुफल, काशी उर्वशी पूसा विशेष आदि करेला की उन्नत किस्में हैं। 

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किसान किस विधि से करेले की खेती कर रहा है ?

युवा किसान जितेंद्र सिंह अपने खेत में करेले की खेती ‘मचान विधि’ (Scaffolding Method) से करते हैं। इससे उन्हें काफी अधिक उत्पादन मिलती है। 

करेले के पौधे को मचान बनाकर उस पर चढ़ा देते हैं, जिससे बेल निरंतर विकास करती जाती है और मचान के तारों पर फैल जाती है। उन्होंने बताया कि उन्होंने खेत में मचान बनाने के लिए तार और लकड़ी अथवा बांस का इस्तेमाल किया जाता है। 

यह मचान काफी ऊंचा होता है। तुड़ाई के दौरान इसमें से बड़ी ही सुगमता से गुजरा जा सकता है। करेले की बेलें जितनी अधिक फैलती हैं उससे उतनी ही अधिक उपज हांसिल होती है। 

वे बीघा भर जमीन से से ही 50 क्विंटल तक उत्पादन उठा लेते हैं। उनका कहना है, कि मचान बनाने से न तो करेले के पौधे में गलन लगती है और ना ही बेलों को क्षति पहुँचती है।

करेले की खेती से कितनी आय की जा सकती है ?

करेले की खेती से काफी शानदार उत्पादन करने के लिए किसान को इसकी उन्नत किस्मों की खेती करनी चाहिए। जैसे कि उपरोक्त में बताया गया है, कि युवा किसान जितेंद्र सिंह पहले अपने खेत में कद्दू, लौकी और मिर्ची की खेती किया करते थे, 

जिसे निराश्रित पशु ज्यादा क्षति पहुंचाते थे। इसलिए उन्होंने करेले की खेती करने का निर्णय लिया है। वहीं, आज के समय में किसान जितेंद्र 15 एकड़ में करेले की खेती कर रहे हैं और शानदार मुनाफा उठा रहे हैं। 

जितेंद्र के मुताबिक, उनका करेला सामान्य तौर पर 20 से 25 रुपये किलो के भाव पर आसानी से बिक जाता है। साथ ही, बहुत बार करेला 30 रुपये किलो के हिसाब से भी बिक जाता है। अधिकांश व्यापारी खेत से ही करेला खरीदकर ले जाते हैं। 

उन्होंने यह भी बताया कि एक एकड़ खेत में बीज, उर्वरक, मचान तैयार करने के साथ-साथ अन्य कार्यों में 40 हजार रुपये की लागत आती है। वहीं, इससे उन्हें 1.5 लाख रूपये की आमदनी सरलता से हो जाती है। 

जितेंद्र सिंह तकरीबन 15 एकड़ में खेती करते हैं। ऐसे में यदि हिसाब-किताब लगाया जाए, तो वह एक सीजन में करेले की खेती से तकरीबन 15-20 लाख रुपये की आय कर लेते हैं। 

जायद में लौकी की खेती करने वाले किसानों के लिए महत्वपूर्ण जानकारी

जायद में लौकी की खेती करने वाले किसानों के लिए महत्वपूर्ण जानकारी

भारत में सर्दियों का मौसम अब अपने अंतिम पड़ाव पर है और गर्मियां बिल्कुल शुरू होने की कगार पर हैं। इस मध्य बहुत सारे किसान फिलहाल गर्मियों में बोई जाने वाली लौकी की फसल लगाने की तैयारी कर रहे हैं। 

दरअसल, किसी भी फसल की खेती को लेकर कृषकों के मन में प्रश्न अवश्य होते हैं। कुछ ऐसे ही सवाल लौकी की खेती करने वाले किसानों के मन में आते हैं। जैसे कि किस प्रकार से लौकी की खेती की जाए कि उपज बढ़े और उन्हें हानि भी न वहन करनी पड़े।

गर्मी की फसल की बुवाई मार्च के पहले हफ्ते से अप्रैल महीने के पहले सप्ताह में की जाती है। गर्मी के मौसम में अगेती फसल लगाने के लिए कृषक इसके पौधे पॉली हाउस से खरीद सकते हैं और इन्हें सीधे अपने खेतों में लगा सकते हैं।

इसके लिए प्लास्टिक बैग अथवा फिर प्लग ट्रे में कोकोपीट, परलाइट, वर्मीकुलाइट, 3:1:1 अनुपात में रखकर इसकी बुवाई करें।

लौकी की खेती करते समय ध्यान रखने योग्य बातें 

लौकी की खेती से शानदार पैदावार पाने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित किस्में पूसा नवीन, पूसा संतुष्टी, पूसा सन्देश लगा सकते हैं। इस फसल की बुवाई या रोपाई नाली बनाकर की जाती है। जहां तक संभव हो सके नाली की दिशा उत्तर से दक्षिण दिशा में बनाए और पौध व बीज की रोपाई नाली के पूर्व में करें।

लौकी की खेती के लिए ग्रीष्म और आर्द्र जलवायु सबसे अच्छी होती है। लौकी के पौधे अधिक ठंड को सहन नहीं कर सकते हैं। इसलिए इनकी खेती विशेष रूप से मध्य भारत और आसपास के इलाकों में होती है। इसकी खेती के लिए 32 से 38 डिग्री सेंटीग्रेड का तापमान सबसे अच्छा होता है। इसका अर्थ है गर्म राज्यों में इसकी खेती काफी अच्छे से की जाती है।

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इसके अतिरिक्त खेती के लिए सही भूमि का चुनाव, बुवाई का समय, बीज उपचार, उर्वरक प्रबंधन, सिंचाई प्रबंधन, खरपतवार प्रबंधन, कीट प्रबंधन जैसी बातों को भी ध्यान में रखना आवश्यक है। अगर किसान इन सब बातों को ध्यान में रखकर खेती करें तो उपज भी शानदार होगी और मुनाफा भी दोगुना होगा।

बतादें, कि लौकी की बिजाई हेतु नाली की दूरी कितनी रखनी चाहिए। गर्मियों में नाली से नाली का फासला 3 मीटर। बरसात में नाली से नाली का फासला 4 मीटर रखें। पौध से पौध का फासला 90 सेंटीमीटर रखें। किसान भाई इस प्रकार कीटों से बचाव करें। 

लाल कीड़ों का संक्रमण सबसे ज्यादा कब होता है 

ध्यान रहे खेत में पौधे के 2 से 3 पत्ते आने के समय से ही लाल कीड़े यानी रेड पंम्पकीन बीटल कीडों का संक्रमण काफी ज्यादा होता है। इससे बचने के लिए किसान भाई डाईक्लोरोफांस की मात्रा 200 एमएल को 200 मिली लीटर पानी में घोल बनाकर 1 एकड़ की दर सें छिड़काव करें। 

इस कीट का खात्मा करने के लिए सूर्योदय से पहले ही छिड़काव करें। सूर्योदय के उपरांत ये कीट भूमि के अंदर छिप जाते हैं। जहां तक हो सके वहां तक बरसात में पौधों को मचान बनाकर उगाएं। इससे बरसात में पौधों के गलने की समस्या काफी कम होगी और पैदावार भी बेहतरीन मिलेगी।

जायद में हाइब्रिड करेला की खेती किसानों को मालामाल बना सकती है, जानें कैसे

जायद में हाइब्रिड करेला की खेती किसानों को मालामाल बना सकती है, जानें कैसे

किसान भाई रबी की फसलों की कटाई करने की तैयारी में है। अप्रैल महीने में किसान रबी की फसलों के प्रबंधन के बाद हाइब्रिड करेला उगाकर तगड़ा मुनाफा हासिल कर सकते हैं। 

करेला की खेती सालभर में दो बार की जा सकती है। सर्दियों वाले करेला की किस्मों की बुआई जनवरी-फरवरी में की जाती है, जिसकी मई-जून में उपज मिलती है। 

वहीं, गर्मियों वाली किस्मों की बुआई बरसात के दौरान जून-जुलाई में की जाती हैं, जिसकी उपज दिसंबर तक प्राप्त होती हैं।

समय के बदलाव के साथ-साथ कृषि क्षेत्र भी आधुनिक तकनीक और अधिक मुनाफा देने वाली फसलों की तरफ रुख कर रहे हैं। वर्तमान में किसान पारंपरिक फसलों की बजाय बागवानी फसलों की खेती पर अधिक अग्रसर हो रहे हैं। 

अब किसान बड़े ही योजनाबद्ध तरीके से बाजार में दोहरे उद्देश्य को पूर्ण करने वाली सब्जियों का उत्पादन कर रहे हैं। क्योंकि, बाजार में इस प्रकार की सब्जियों की मांग बढ़ती जा रही है। 

दरअसल, करेला की सब्जी की भोजन हेतु सब्जी होने के साथ-साथ एक अच्छी औषधी है।

पारंपरिक खेती की बजाय व्यावसायिक खेती पर बल

तकनीकी युग में अधिकांश किसान व्यावसायिक खेती पर ज्यादा बल दे रहे हैं। विशेषकर, बहुत सारी कंपनियां किसानों को अग्रिम धनराशि देकर करेले की खेती करवा रही हैं। 

इसके लिए लघु कृषक कम जमीन में मचान प्रणाली का इस्तेमाल कर खेती कर रहे हैं। इससे करेले की फसल में सड़ने-गलने का संकट अत्यंत कम होता जा रहा है। साथ ही, किसानों को कम लागत में शानदार पैदावार हांसिल हो रही है।

हाइब्रिड करेला की खेती के लिए कैसा मौसम होना चाहिए  

हाइब्रिड करेला की सदाबहार प्रजातियों की खेती के लिए मौसम की कोई भी सीमा नहीं है। इसलिए बहुत सारे किसान अलग-अलग इलाकों में हाइब्रिड करेला उगाकर शानदार धनराशि अर्जित कर रहे हैं। 

इनके फल 12 से 13 सेमी लंबे और 80 से 90 ग्राम वजन के होते हैं। हाइब्रिड करेला की खेती करने पर एक एकड़ में 72 से 76 क्विंटल उत्पादन प्राप्त होता है, जो सामान्य से काफी ज्यादा है। 

हाइब्रिड करेला कम परिश्रम में अधिक फल प्रदान करता है 

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, हाइब्रिड करेला कम मेहनत में देसी करेले की तुलना में अधिक उपज प्रदान करते हैं। वर्तमान में किसान भाई देसी करेले की खेती पर ज्यादा जोर दे रहे हैं। 

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किसान भाई ध्यान रखें कि हाइब्रिड करेला के पौधे बड़ी तीव्रता से बढ़ते हैं। हाइब्रिड करेला के फल काफी बड़े होते हैं, जो कि सामान्य तौर पर नहीं होता है। इनकी संख्या काफी ज्यादा होती है। हालाँकि, हाइब्रिड करेला की खेती भी देसी करेला की तरह ही की जाती है। 

जानकारी के लिए बतादें, कि हाइब्रिड करेला का रंग और स्वाद काफी अच्छा होता है, इसलिए इसके बीज काफी ज्यादा महंगे होते हैं। 

हाइब्रिड करेला की सबसे अच्छी किस्में

कोयंबटूर लौंग और हाइब्रिड करेला की प्रिया किस्में उत्पादन में सबसे अग्रणी हैं। करेले की बेहतरीन और उत्तम किस्मों में कल्याणपुर सोना, बारहमासी करेला, प्रिया सीओ-1, एसडीयू-1, पंजाब करेला-1, पंजाब-14, सोलन हारा, सोलन, पूसा टू सीजनल, पूसा स्पेशल, कल्याणपुर, कोयंबटूर लॉन्ग और बारहमासी भी शामिल हैं। हाइब्रिड करेले की खेती करने के लिए खेत में अच्छी जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी सबसे बढ़िया रहती है।

ग्रीष्मकालीन करेले की उन्नत किस्मों की जानकारी

ग्रीष्मकालीन करेले की उन्नत किस्मों की जानकारी

किसान अधिक मुनाफा पाने के लिए अपने खेत में सीजन के अनुसार फसल को उगाते हैं। ज्यादातर यह देखा गया है, कि गर्मियों के मौसम में बाजार में सब्जियों की मांग काफी अधिक बढ़ जाती है। 

क्योंकि, गर्मियों का सीजन ऐसा होता है कि इसमें सब्जियों की आवक बहुत कम हो जाती है, जिसका असर बाजार में देखने को मिलता है। मंडियों में सब्जियों के भाव काफी ज्यादा हो जाते हैं। 

ऐसी स्थिति में किसान अपने खेत में सब्जियों की खेती कर शानदार मुनाफा कमा सकते हैं। इसके लिए वह अपने खेत में टिंडा, खीरा, ककड़ी, करेले, भिंडी, तोरई और घीया की खेती कर सकते हैं। 

किसान भाइयों के लिए करेले की खेती सबसे लाभदायक खेती में से एक है। क्योंकि, इसकी खेती को एक साल में दो बार आसानी से किया जा सकता है।

करेले को अन्य और क्या नाम से जाना जाता है ? 

करेला अपने कड़वेपन और कुदरती गुणों की वजह से बाजार में जाना जाता है। बतादें, कि यह सब्जी सेहत के लिए भी लाभकारी सब्जियों में से एक है। 

भारत में इसे अलग-अलग नामों से जाना-पहचाना जाता है, जैसे कि- कारवेल्लक कारवेल्लिका करेल करेली तथा करेला आदि लेकिन इनमें से करेला नाम सर्वाधिक लोकप्रिय है।

करेले की खेती के लिए किस विधि का इस्तेमाल करें ? 

करेले की खेती के लिए जाल विधि सबसे उत्तम मानी जाती है, क्योंकि इसकी विधि से करेले की फसल से अधिक पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। किसान इस विधि में अपने पूरे खेत में जाल बनाकर करेले की बेल को फैला देता है। 

इस विधि से फसल पशुओं के द्वारा नष्ट नहीं होती है और साथ ही बेल वाली सब्जी होने के कारण यह जाल में अच्छे से फैल जाती है। 

ये भी देखें: करेले बोने की इस शानदार विधि से किसान कर रहा लाखों का मुनाफा

इस विधि की सबसे शानदार बात यह है, कि किसान इसे नीचे क्यारियों के खाली स्थानों पर धनिया और मैथी जैसी अतिरिक्त सब्जियों को उगा सकते हैं।

ग्रीनहाउस और पॉली हाउस विधि से क्या लाभ होगा ?

ग्रीनहाउस और पॉली हाउस दोनों विधियों के माध्यम से किसान किसी भी समय अपने खेत में करेले की खेती से मुनाफा प्राप्त हांसिल कर सकते हैं। 

यदि देखा जाए तो आज के वक्त में ऐसी नवीन प्रजातियां भी बाजार में उपस्थित हैं, जिनको किसान सर्दी गर्मी और बारिश हर तरह के मौसम में उगा सकते हैं।

करेला की प्रमुख उन्नत किस्में कौन-सी हैं ?

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि फैजाबाद स्माल, सुपर कटाई, सफेद लांग, ऑल सीजन, जोनपुरी, झलारी, हिरकारी, भाग्य सुरूचि, मेघा – एफ 1, वरून – 1 पूनम, तीजारावी, अमन नं.- 24, नन्हा क्र.- 13, पूसा संकर 1, पी.वी.आई.जी. 1, आर.एच.बी.बी.जी. 4, के.बी.जी.16, फैजाबादी बारह मासी, अर्का हरित, पूसा 2 मौसमी कोयम्बटूर लौंग, सी 16, पूसा विशेष, कल्याणपुर बारह मासी, हिसार सेलेक्शन आदि करेले की प्रमुख किस्में हैं।

करेले की खेती के लिए भूमि की तैयारी 

किसान भाई करेले की बेहतरीन उपज हांसिल करने के लिए इसकी खेती बलुई दोमट मृदा में करनी चाहिए। इसके साथ ही बेहतर जल निकासी वाली जमीन का चयन करें। 

इस बात का भी खास ख्याल रखें कि खेत में जलभराव वाली परिस्थिति ना बनने पाए। ऐसा करने से करेले की खेती को सबसे ज्यादा हानि पहुंचती है। 

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करेले की खेती में बीज बुवाई का भी विशेष ध्यान रखें। इसके लिए खेत में बीजों को 2 से 3 इंच गहराई पर ही बोएं। साथ ही, नालियों की दूरी करीब 2 मीटर व पौधों की दूरी 70 सेंटीमीटर तक रखें।

करेले की खेती में लागत और मुनाफा कितना है ?

अगर आप अपने खेत के 1 एकड़ में करेले की खेती करना शुरू करते हैं तो आपको करीबन 30 हजार रुपए तक खर्च करने पड़ेंगे। 

खेत में ऊपर बताई गई तकनीकों का इस्तेमाल करें तो आप प्रति एकड़ लगभग 3 लाख रुपए तक का मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं। आप अपनी लागत से 10 गुना ज्यादा मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं।

करेले की खेती करने का सही तरीका जानें

करेले की खेती करने का सही तरीका जानें

किसान करेले की खेती कर तगड़ा मुनाफा कमा सकते है, जानिये किस प्रकार करें करेले की खेती। सरकार द्वारा किसानों की आय बढ़ाने के अलावा सब्जियों और फलों की खेती पर भी अधिक जोर दिया जा रहा है। 

किसानों की आय बढ़ाने हेतु सरकार द्वारा किसानों को खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। ताकि किसान खेती कर मुनाफा कमा सके और कृषि क्षेत्र का विकास किया जा सके। 

करेले के उत्पादन के लिए किस प्रकार की मिट्टी होनी चाहिए ?

करेले की खेती के लिए उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता होती है, इसके लिए बलुई दोमट मिट्टी को बेहतर माना जाता है। करेले की अधिक उपज के लिए अच्छे जल निकास वाली भूमि होनी चाहिए। 

इस मिट्टी के अलावा नदी किनारे की जलोढ़ मिट्टी को भी बेहतर माना जाता है। किसान उपाऊ मिट्टी में करेले की खेती करके अच्छा मुनाफा कमा सकता है। 

करेले के उत्पादन के लिए उचित तापमान 

करेले की खेती के लिए ज्यादा तापमान की आवश्यकता नहीं रहती है। करेले के बेहतर उत्पादन के लिए नमी का होना आवश्यक है। 

करेले की खेती के लिए उचित तापमान 20 से 40 डिग्री सेंटीग्रेट होना चाहिए। करेले का उत्पादन नमी वाली भूमि में अक्सर बेहतर होता है। 

करेले की उन्नत किस्में 

किसान बेहतर और अधिक उत्पादन के लिए करेले की इन किस्मों का चयन कर सकते है। करेले की उन्नत किस्मों में सम्मिलित है, पूसा औषधि, अर्का हरित, पूसा हाइब्रिड-2, हिसार सलेक्शन, कोयम्बटूर लौंग, बारहमासी, पूसा विशेष, पंजाब करेला-1, पूसा दो मौसमी, सोलन सफ़ेद, सोलन हरा, एस डी यू- 1, प्रिया को-1, कल्याणपुर सोना और पूसा शंकर-1। 

करेले की बुवाई का उचित समय 

करेले की बुवाई क्षेत्रों के अनुसार अलग अलग समय पर की जाती है। मैदानी क्षेत्रों में करेले की बुवाई जून से जुलाई के बीच में की जाती है। 

ऐसे ही गर्मी के मौसम में करेले की बुवाई जनवरी से मार्च के बीच में की जाती है और जबकि पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी बुवाई मार्च से जून के बीच तक की जाती है। 

करेले की बुवाई का तरीका जानें 

करेले के बीजो की बुवाई का सही तरीका इस प्रकार है। करेले के बीजो की बुवाई दो प्रकार से की जा सकती है एक तो बीजो को सीधा खेत में बो कर और दूसरा करेले की नर्सरी तैयार करके भी करेले की बुवाई की जा सकती है। 

  1. करेले की बुवाई से पहले खेत की अच्छे से जुताई कर ले। खेत की जुताई करने के बाद खेत में पाटा लगाकर खेत को समतल बना ले। 
  2. खेत में बनाई गई प्रत्येक क्यारी 2 फ़ीट की दूरी पर होनी चाहिए। 
  3. क्यारियों में बेजो की रोपाई करते वक्त बीज से बीज की दूरी 1 से 1.5 मीटर होनी चाहिए। 
  4. करेले के बीज को बोते समय , बीज को  2 से 2 .5 सेमी गहरायी पर बोना चाहिए। 
  5. बुवाई के एक दिन पहले बीज को पानी में भिगोकर रखे उसके बाद बीज को अच्छे से सूखा लेने के बाद उसकी बुवाई करनी चाहिए। 

करेले के खेत में सिंचाई कब करें 

करेले की खेती में वैसे सिंचाई की कम ही आवश्यकता होती है। करेले के खेत में समय समय पर हल्की सिंचाई करें और खेत में नमी का स्तर बने रहने दे। 

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जिस खेत में करेले की बुवाई का कार्य किया गया है वह अच्छे जल निकास वाली होनी चाहिए।  खेत में पानी का ठहराव नहीं होना चाहिए। खेत में पानी के रुकने से फसल खराब भी हो सकती है। 

करेले की फसल में कब करें नराई - गुड़ाई 

खेत में निराई गुड़ाई की आवश्यकता शुरुआत में होती है। करेले की फसल में खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए समय समय पर नराई गुड़ाई करनी चाहिए। 

फसल में पहला पानी लगने के बाद खेत में अनावश्यक पौधे उगने लगते है जो फसल की उर्वरकता को कम कर देते है। ऐसे में समय पर ही खेत में से खरपतवार को उखाड़ कर खेत से दूर फेंक देना चाहिए। 

करेले की फसल कितने दिन में तैयार हो जाती है 

करेले की फसल को तैयार होने में ज्यादा समय नहीं लगता है। करेले की फसल बुवाई के 60 से 70 दिन बाद ही पककर तैयार हो जाती है। 

करेले के फल की तुड़ाई सुबह के वक्त करें, फलों को तोड़ते वक्त याद रहे डंठल की लम्बाई 2 सेंटीमीटर से अधिक होनी चाहिए इससे फल लम्बे समय तक ताजा बना रहता है।

लौकी की खेती कैसे की जाती है जानिए सम्पूर्ण जानकारी के बारे में

लौकी की खेती कैसे की जाती है जानिए सम्पूर्ण जानकारी के बारे में

लौकी भारत में सब्जी के रूप में बड़े पैमाने पर उगाई जाती है और इसके फल साल भर उपलब्ध रहते हैं। लौकी नाम फल के बोतल जैसे आकार और अतीत में कंटेनर के रूप में इसके उपयोग के कारण पड़ा। नरम अवस्था में फलों का उपयोग पकी हुई सब्जी के रूप में और मिठाइयाँ बनाने के लिए किया जाता है। परिपक्व फलों के कठोर छिलकों का उपयोग पानी के जग, घरेलू बर्तन, मछली पकड़ने के लिए जाल के रूप में किया जाता है। सब्जी के रूप में यह आसानी से पचने योग्य है। इसकी तासीर ठंडी होती है और कार्डियोटोनिक गुण के कारण मूत्रवर्धक होता है।  लोकि से कई रोग जैसे की कब्ज, रतौंधी और खांसी को नियंत्रित किया जा सकता है। पीलिया के इलाज के लिए पत्ते का काढ़ा बनाकर सेवन किया जाता है। इसके बीजों का उपयोग जलोदर रोग में किया जाता है।  

लौकी की फसल के लिए उपयुक्त जलवायु

लौकी एक सामान्य गर्म मौसम की सब्जी है। खरबूजा और तरबूज की तुलना में लोकि की फसल ठंडी जलवायु को बेहतर सहन करती है। लोकि की फसल पाले को बर्दाश्त नहीं कर सकती। अच्छी जल निकास वाली उपजाऊ गाद दोमट होती है।  यह भी पढ़ें:
लौकी की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी इसकी खेती के लिए गर्म और नम जलवायु अनुकूल होती है। रात का तापमान 18- 22°C और  दिन का तापमान 30-35  इसकी उचित वृद्धि और उच्च फल के लिए इष्टतम होता है। 

खेत की तैयारी     

फसल की बुवाई से पहले खेत को तैयार किया जाता है। खेत को प्लॉव से एक बार गहरी जुताई करके तैयार करें उसके बाद इसके बाद 2 बार हैरो की मदद से खेत को अच्छी तरह से जोते। आखरी जुताई के समय खेत में 4 टन प्रति एकड़ की दर से गोबर की खाद या कम्पोस्ट को अच्छी तरह मिट्टी में मिला दें।             

बीज की बुवाई

यदि आप चाहे तो सीधे बीजो को खेत में लगाकर भी इसकी खेती कर सकते है | इसके लिए आपको तैयार की गयी नालियों में बीजो को लगाना होता है| बीजो की रोपाई से पहले तैयार की गयी नालियों में पानी को लगा देना चाहिए उसके बाद उसमे बीज रोपाई करना चाहिए।  यह भी पढ़ें: जानिए लौकी की उन्नत खेती कैसे करें लौकी की जल्दी और अधिक पैदावार के लिए इसके पौधों को नर्सरी में तैयार कर ले फिर सीधे खेत में लगा दे। पौधों को बुवाई के लगभग 20 से 25 दिन पहले तैयार कर लेना चाहिए। इसके अतिरिक्त बीजो को रोग मुक्त करने के लिए बीज रोपाई से पहले उन्हें गोमूत्र या बाविस्टीन से उपचारित कर लेना चाहिए। इससे बीजो में लगने वाले रोगो का खतरा कम हो जाता है, तथा पैदावार भी अधिक होती है। 

रोपाई का समय और तरीका

बारिश के मौसम में इसकी खेती करने के लिए बीजो की जून के महीने में रोपाई कर देनी चाहिए। इसके अतिरिक्त पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी रोपाई को मार्च या अप्रैल के महीने में करना चाहिए।  समतल भूमि में की गयी लौकी की खेती को किसी सहारे की जरूरत नहीं होती है | ऐसी स्थिति में इसकी बेल जमीन में फैलती है, किन्तु जमीन से ऊपर इसकी खेती करने में इसे सहारे की जरूरत होती है। इसके लिए खेत में 10 फ़ीट की दूरी पर बासो को गाड़कर जल बनाकर तैयार कर लिया जाता है, जिसमे पौधों को चढ़ाया जाता है। इस विधि को अधिकतर बारिश के मौसम में अपनाया जाता है।  

फसल में खरपतवार नियंत्रण  

खरपतवार नियंत्रण करने के लिए फसल में समय समय पर निराई गुड़ाई करते रहे ताकि फसल को खरपतवार मुक्त रखा जा सकें।  यह भी पढ़ें: सही लागत-उत्पादन अनुपात को समझ सब्ज़ी उगाकर कैसे कमाएँ अच्छा मुनाफ़ा, जानें बचत करने की पूरी प्रक्रिया रासायनिक तरीके से खरपतवार पर नियंत्रण के लिए ब्यूटाक्लोर का छिड़काव जमीन में बीज रोपाई से पहले तथा बीज रोपाई के तुरंत बाद करनी चाहिए| खरपतवार के नियंत्रण से पौधे अच्छे से वृद्धि करते है, तथा पैदावार भी अच्छी होती है | 

फसल में उर्वरक और पोषक तत्व प्रबंधन

फसल से उचित उपज प्राप्त करने के लिए 40 किलोग्राम नाइट्रोजन, 15 - 20 किलोग्राम फॉस्फोरस और 20 किलोग्राम पोटाश प्रति एकड़ की दर से खेत में डालें।    

लौकी के प्रमुख रोग और उनका नियंत्रण

  • लौकी (घीया) एक प्रमुख फलीय सब्जी है जो भारतीय खाद्य पदार्थों में आमतौर पर प्रयोग होती है। यह कई प्रमुख रोगों के प्रभावित हो सकती है, जिनमें से कुछ मुख्य हैं:
  • लौकी मोजैक्यूलर वायरस रोग (Luffa Mosaic Virus Disease):
  • इस रोग में पत्तियों पर पीले या हरे रंग के पट्टे दिखाई देते हैं। यह रोग पौधों की वृद्धि और उत्पादन पर असर डालता है।
  • नियंत्रण के लिए, स्वस्थ बीजों का उपयोग करें और बीमार पौधों को नष्ट करें।
  • लौकी मॉसेक वायरस रोग (Luffa Mosaic Virus Disease):
  • इस रोग में पत्तियों पर सफेद या हरे रंग के दाग दिखाई देते हैं। यह पौधों की वृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
  • नियंत्रण के लिए, स्वस्थ बीजों का उपयोग करें और संक्रमित पौधों को नष्ट करें।
  • दाग रोग (Powdery Mildew): यह रोग पात्र प्रभावित करके पौधों पर धूल की तरह सफेद दाग उत्पन्न करता है। इसके नियंत्रण के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाएं:
  • दाग रोग से प्रभावित पौधों को हटाएं और उन्हें जला दें।
  • पौधों की पर्यावरण संगठना को सुधारें, उचित वेंटिलेशन प्रदान करें और पानी की आपूर्ति को नियमित रखें।
  • दाग रोग के लिए केमिकल फंगिसाइड का उपयोग करें, जैसे कि सल्फर युक्त फंगिसाइड।

लौकी के फल की तुड़ाई और पैदावार

फसल की बुवाई और रोपाई के लगभग 50 दिन बाद लौकी उड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। जब लौकी सही आकर की दिखने लगे तब उसकी तुड़ाई कर ले। तुड़ाई करते समय किसी धारदार चाकू या दराती का इस्तेमाल करें। लौकी को तोड़ते समय फल के ऊपर थोड़ा सा डंठल छोड़ दें जिससे फल कुछ समय तक फल ताजा रहें। लौकी की तुड़ाई के तुरंत बाद पैक कर बाजार में बेचने के लिए भेज देना चाहिए | फलो की तुड़ाई शाम या सुबह दोनों ही समय की जा सकती है। एक एकड़ भूमि से लगभग 200 क्विंटल का उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। 
नरेंद्र शिवानी किस्म की लौकी की लंबाई जानकर आप दंग रह जाऐंगे

नरेंद्र शिवानी किस्म की लौकी की लंबाई जानकर आप दंग रह जाऐंगे

किसान भाई नरेंद्र शिवानी प्रजाति की लौकी की खेती कर बेहतरीन कमाई कर सकते हैं। लौकी सब्जी के अतिरिक्त मिठाई, रायता, आचार, कोफ्ता, खीर इत्यादि तैयार करने में उपयोग की जाती हैं। 

इससे विभिन्न प्रकार की औषधियां भी निर्मित होती हैं। लौकी खाने में फायदेमंद होने की वजह से चिकित्सक भी रोगियों को इसका सेवन करने की सलाह देते हैं। 

इन दिनों उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में स्थित मंगलायतन विश्वविद्यालय के कृषि संकाय की ओर से उगाई गई लौकी आकर्षण का केंद्र बनी है। कारण यह है, कि इसका रंग और स्वाद तो आम लौकी जैसा ही है। 

परंतु, देखने में यह बिल्कुल अलग है। नरेंद्र शिवानी प्रजाति की लौकी की लंबाई लगभग पांच फीट है। कृषि संकाय के प्राध्यापकों और विद्यार्थियों ने अभी लौकी की इस फसल को बीज प्राप्त करने के लिए तैयार किया है। 

इस किस्म की फसल की पैदावार से किसान बेहतरीन मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं। 

लौकी किसानों को जागरुक किया जा रहा है

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. पीके दशोरा का कहना है, कि विश्वविद्यालय में यह लौकी किसानों को जागरूक करने और शुद्ध बीज तैयार करने के लिए उगाई जा रही है। 

उनका कहना है, कि लौकी एक अनोखी सब्जी है जो औषधि, वाद्ययंत्र, सजावट इत्यादि के रूप में भी इस्तेमाल की जाती है। उन्होंने बताया है, कि विश्वविद्यालय किसानों को जागरूक करने के साथ-साथ उन्हें उन्नत किस्मों से काफी अच्छा लाभ कमाने के लिए प्रशिक्षित करेगा।

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विशेषज्ञों का इस पर क्या कहना है

बतादें, कि कृषि विभाग के अध्यक्ष प्रो. प्रमोद कुमार का कहना है, कि इस लौकी की फसल की बुवाई जुलाई माह में की गई थी। इस किस्म का औसत उत्पादन 700-800 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। 

एक हजार कुंतल प्रति हेक्टेयर तक इसकी पैदावार अर्जित की जा सकती है। इस किस्म का स्वाद एवं पोषक तत्व बाकी प्रजातियों के समान ही होते हैं। 

इसमें प्रोटीन 0.2 प्रतिशत, वसा 0.1 प्रतिशत, फाइबर 0.8 प्रतिशत, शर्करा 2.5 प्रतिशत, ऊर्जा 12 किलो कैलोरी, नमी 96.1 प्रतिशत है। साथ ही, गोल फलों वाली किस्म नरेंद्र शिशिर भी पैदा की गई है। दिसंबर तक इसका बीज भी तैयार हो जाएगा। 

लौकी की खेती कैसे करें

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि इस प्रजाति की लौकी की खेती करने के लिए अच्छे गुणवत्ता वाले लौकी के बीजों का चुनाव करें। लौकी के खेत का चयन करते समय अच्छे स्थान का चयन करें। 

इसके बीजों को बोने के लिए मार्च-अप्रैल के बीच अच्छे मौसम का चयन करें। लौकी की पौधों के बीच की दूरी 1.5-2.5 मीटर तक होनी चाहिए। पौधों की नियमित रूप से सिंचाई करें।

जानें घर पर लौकी उगाने का आसान तरीका

जानें घर पर लौकी उगाने का आसान तरीका

आज हम आपको इस लेख में जानकारी देंगे कि कैसे आप अपने घर में बेहतरीन और ताजा लौकी उगा सकते हैं। इसके लिए आपको यहां बताई गईं बातों का विशेष ध्यान रखा पड़ेगा। लौकी एक ऐसी हरी सब्जी है, जो खाने में बेहद स्वादिष्ट होती है। साथ कई गुणों से भी भरपूर होती है। जी हां हम लौकी की बात कर रहे हैं। लौकी की सब्जी औषधीय गुणों से भरपूर होती है और सेहत के लिए भी बेहद बढ़िया होती है। आइए जानते हैं आप इसे कैसे आसानी से अपने घर पर ही उगा सकते हैं। किसी भी सब्जी या फल को लगाने के लिए अच्छे बीज का चुनाव करना बहुत महत्वपूर्ण है। इसके लिए आप बीज किसी अन्य जगह से खरीदने की जगह लौकी का सही बीज बीज भंडार से खरीद सकते हैं। बीज भंडार में अच्छी किस्म के बीज आसानी से और कम मूल्य पर उपलब्ध हैं। बीज लगाने से पहले कुछ बातों पर ध्यान देना चाहिए।

बीज का उपचार कैसे करें

अगर बीज सीड की तरह है, तो एक दिन पहले उसे पानी में भिगोकर रख दें, जिस मिट्टी में बीज लगाना है, उसे अच्छे से फोड़कर धूप में रखें। कुछ देर धूप में रखने के बाद, एक मग से खाद मिलाकर अच्छे से मिलाएं। अब इसे गमला में डालें। अगले दिन, बीज को पानी से निकालकर मिट्टी के अंदर 1-2 इंच दबाकर ऊपर से पानी और मिट्टी डाल दें।

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लौकी उत्पादन के दौरान प्रमुख आवश्यक बातें

लौकी उत्पादन के लिए एक इंच की गहराई में लौकी के बीजों को ग्रो बैग या पॉट की मिट्टी में डालें। मिट्टी में बीज बोने के बाद स्प्रे पंप या वॉटर कैन से पानी डालें। बीजों के जर्मिनेट होने तक मिट्टी में पानी डालकर नमी को हमेशा बनाए रखें। लेकिन अधिक पानी नहीं डालें। लौकी के पौधे 18 से 35 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर अच्छी तरह से ग्रो करते हैं। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि 15 डिग्री से कम और 35 डिग्री से अधिक तापमान पर बीजों की अंकुरण दर कम होती है। इसके सीड्स जर्मिनेट होने में 6 से 14 दिन लग सकते हैं। लौकी के बीज को मिट्टी में डालने के बाद बीज को जर्मिनेट होने में 7 से 10 दिन लग सकते हैं। लौकी की उचित देखभाल करने पर 55 से 70 दिन में आपको ताजे फल मिलेंगे। रसोई में खाने के लिए ताजी लौकी को जरूरत के अनुसार तोड़ सकते हैं।
Bottle Gourd: लौकी की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी

Bottle Gourd: लौकी की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी

लौकी की फसल को किसान साल में तीन बार ऊगा सकते है। इसकी बुवाई का समय मध्य जनवरी , खरीफ मध्य जून से प्रथम जुलाई और रबी की फसल को सितम्बर अंत और अक्टूबर के पहले सप्ताह तक कर सकते है। किसान को हमेशा लौकी की अगेती बुवाई करनी चाहिए , इससे किसान भाइयों को अच्छी आमदनी मिलती है।

लौकी की खेती के लिए जलवायु

किसी भी फसल की खेती के लिए जलवायु की अहम भूमिका होती है, अगर आप उचित जलवायु के हिसाब से खेती नहीं करेंगे तो इसमें रोग और खरपतवार उगने की संभावना ज्यादा होती है। 

अगर हम लौकी की बात करें तो इसके लिए गर्म और आर्द्र जलवायु सबसे अच्छी मानी जाती है। ज्यादातर हिस्से में इसकी बुवाई गर्मी और बरसात के मौसम में की जाती है। 

इसकी खेती ठण्ड के मौसम में करने पर पाला लगने की संभावना ज्यादा होती है , जिसका असर पैदावार पर पड़ता है। इसकी खेती करने वाले किसानों की मानें तो जायद तथा खरीफ दोनों ऋतुओं में इसकी खेती करना अच्छा होता है।

लौकी की खेती के लिए 30-35 डिग्री सेन्टीग्रेड और पौधों की वढ़वार के लिए 32-38 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान अच्छा माना गया है। अगर लौकी को बरसात के मौसम में खरपतवार या रोग से बचाना है तो इसे जाल लगा कर 5 -7 फुट ऊपर कर सकते है। 

इससे लौकी का फल ख़राब नहीं होता है और इनका रंग भी चमकदार होता है। अगर आप भी लौकी की खेती करने जा रहें है तो जलवायु का विशेष ध्यान दें।

लौकी की खेती के लिए भूमि का चयन व भूमि की तैयारी

किसान इसकी खेती अलग – अलग तरह की जमीन पर कर सकते है ,लेकिन दोमट तथा जीवांश युक्त मिटटी सबसे उपयुक्त होती है। लौकी की खेती के लिए जमीन का पीएच मान 6.0-7.0 होना चाहिए। 

कहीं – कहीं पर अम्लीय भूमि में इसकी खेती करना अच्छा माना जाता है। पथरीली या फिर ऐसी जगह पर इसकी खेती नहीं करनी चाहिए जहां पानी लगता हो। 

इसके खेत की तैयारी की अगर हम बात करें तो सबसे पहले लौकी के खेत की जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करना चाहिए , जिसके बाद आप हैरों या कल्टीवेयर से भी इसकी जुताई करवा सकते है। 

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सभी जुताई के बाद इसमें पाटा जरूर लगवाएं इससे मिट्टी भुरभुरी और समतल होती है और खेत में कहीं भी पानी कम या ज्यादा नहीं लगता है।

जुताई इसलिए ज्यादा जरुरी है क्योंकि कभी – कभी पुराने अवशेष खरपतवार का रूप ले लेते है और फसल को नुकसान पहुचातें है। इसके खरपतवार को खत्म करने के लिए आप GEEKEN CHEMICALS के खरपतवारनाशी कैमिकल का प्रयोग कर सकते है। 

अगर कृषि एक्सपर्ट की मानें तो इसकी खेती किसी भी प्रकार की मिट्टी में कर सकते है। अगर संभव हो तो किसान गोबर के खाद का भी प्रयोग कर सकते है इससे खेत को ज्यादा रासायनिक खाद पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा और पैदावार भी अच्छी होगी।

खरपतवार नियंत्रण एवं निराई – गुड़ाई 

बरसात के मौसम में यह देखा गया है कि लौकी की फसल में खरपतवार ज्यादा उग जाते है किसान खुर्पी से इसकी हल्की गुड़ाई करके खरपतवार को खत्म कर सकते है। 

लेकिन यह ध्यान रखना है की पौधे को किसी भी तरह का नुकसान न पहुँच पाए। लौकी की फसल में इसकी निराई – गुड़ाई किसान 20 -25 दिन के बाद कर सकते है। 

लौकी के अच्छी पैदावार के लिए और पौधे की वृद्धि के लिए 2 -3 बार इसकी निराई – गुड़ाई कर सकते है। किसान चाहें तो इसके बाद जड़ो के पास मिट्टी चढ़ा सकते है इससे जड़ के पास खरपतवार उगने की सम्भावना कम होती है।

अगर आप लौकी की फसल में उगने वाले खरपतवार को रासायनिक कीटनाशक के द्वारा खत्म करना चाहते है तो आप GEEKEN CHEMICALS के खरपतवारनाशी का प्रयोग कर सकते है। 

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हम बेहतर तरीके का खरपतवारनाशी कैमिकल प्रदान करते है। लौकी की फसल में उगने वाले खरपतवार को खत्म करने के लिए आप खरपतवारनाशी का प्रयोग कर सकते है। 

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लौकी के बेल को सहारा देना 

बरसात के मौसम में लौकी की अच्छी पैदावार पाने के लिए किसान भाइयों को लकड़ी या लोहे द्वारा निर्मित मचान पर चढ़ा कर खेती करना चाहिए। कृषि के जानकार किसान बताते है की ऐसा करने से लौकी के फलों का आकर सीधा ,रंग अच्छा और बढ़वार काफी तेजी से होती है। 

आप शुरुआत में लौकी की शाखा को काटकर निकाल सकते है, इससे ऊपर विकसित होने वाले शाखाओं में फल ज्यादा अच्छे से प्राप्त होते है। ऐसा करने से किसान बिना किसी नुकसान के लौकी की अच्छी फसल ऊगा सकते है।

लौकी के कीट एवं नियंत्रण 

कद्दू का लाल कीट (रेड पम्पकिन बिटिल) 

वैसे तो लौकी की फसल में कई तरह के कीट लगते है। लेकिन इनमें कद्दू का लाल कीट सबसे खतरनाक होता है। यह कीट चमकीली नारंगी रंग का होता है तथा सिर, वक्ष एवं उदर का निचला भाग काला होता है। 

इसकी सुंडी नीचे की तरफ पाई जाती है। कद्दू का लाल कीट सुंडी व वयस्क दोनों को नुकसान पहुँचाता है। यह ज्यादातर पौधों की जड़ों पर आक्रमण करता है। कृषि एक्सपर्ट की मानें तो यह कीट जनवरी से मार्च के महीने तक ज्यादा आक्रमण करते है।

आप इस कीट को खत्म करने के लिए GEEKEN CHEMICALS का प्रयोग कर सकते है। GEEKEN CHEMICALS ने कद्दू का लाल कीट (रेड पम्पकिन बिटिल) को ख़त्म करने के लिए एक अलग तरह का कीटनाशक बनाया है , जो इस तरह के कीटों को खत्म कर फसल की पैदावार को बढ़ाता है।

फल मक्खी 

फल मक्खी लौकी की फसल के लिए बहुत ही हानिकारक मानी जाती है। इस कीट की सुंडी सबसे ज्यादा फसल को नुकसान पहुँचाती है। फल मख्खी के सिर पर काले तथा सफ़ेद धब्बे पाए जाते है। 

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यह मख्खी जब भी फल पर अंडा देती है, तो फल सड़ने लगता है इसकी वजह से ही पूरी फसल सड़ कर ख़राब हो जाती है। इसके लिए आप GEEKEN CHEMICALS के कीटनाशक का प्रयोग कर सकते है। 

GEEKEN CHEMAICALS ने इस कीट को खत्म करने के लिए एक अलग ही तरह का प्रभावी कीटनाशक बनाया है, जो बहुत ज्यादा असरदार है। आप हमें कॉल(+91 – 9999570297) करके इसे खरीद सकते है।