Published on: 03-Jul-2023
लौकी भारत में सब्जी के रूप में बड़े पैमाने पर उगाई जाती है और इसके फल साल भर उपलब्ध रहते हैं। लौकी नाम फल के बोतल जैसे आकार और अतीत में कंटेनर के रूप में इसके उपयोग के कारण पड़ा। नरम अवस्था में फलों का उपयोग पकी हुई सब्जी के रूप में और मिठाइयाँ बनाने के लिए किया जाता है। परिपक्व फलों के कठोर छिलकों का उपयोग पानी के जग, घरेलू बर्तन, मछली पकड़ने के लिए जाल के रूप में किया जाता है। सब्जी के रूप में यह आसानी से पचने योग्य है। इसकी तासीर ठंडी होती है और कार्डियोटोनिक गुण के कारण मूत्रवर्धक होता है।
लोकि से कई रोग जैसे की कब्ज, रतौंधी और खांसी को नियंत्रित किया जा सकता है। पीलिया के इलाज के लिए पत्ते का काढ़ा बनाकर सेवन किया जाता है। इसके बीजों का उपयोग जलोदर रोग में किया जाता है।
लौकी की फसल के लिए उपयुक्त जलवायु
लौकी एक सामान्य गर्म मौसम की सब्जी है। खरबूजा और तरबूज की तुलना में लोकि की फसल ठंडी जलवायु को बेहतर सहन करती है। लोकि की फसल पाले को बर्दाश्त नहीं कर सकती। अच्छी जल निकास वाली उपजाऊ गाद दोमट होती है।
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इसकी खेती के लिए गर्म और नम जलवायु अनुकूल होती है। रात का तापमान 18- 22°C और दिन का तापमान 30-35 इसकी उचित वृद्धि और उच्च फल के लिए इष्टतम होता है।
खेत की तैयारी
फसल की बुवाई से पहले खेत को तैयार किया जाता है। खेत को प्लॉव से एक बार गहरी जुताई करके तैयार करें उसके बाद इसके बाद 2 बार हैरो की मदद से खेत को अच्छी तरह से जोते। आखरी जुताई के समय खेत में 4 टन प्रति एकड़ की दर से गोबर की खाद या कम्पोस्ट को अच्छी तरह मिट्टी में मिला दें।
बीज की बुवाई
यदि आप चाहे तो सीधे बीजो को खेत में लगाकर भी इसकी खेती कर सकते है | इसके लिए आपको तैयार की गयी नालियों में बीजो को लगाना होता है| बीजो की रोपाई से पहले तैयार की गयी नालियों में पानी को लगा देना चाहिए उसके बाद उसमे बीज रोपाई करना चाहिए।
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लौकी की जल्दी और अधिक पैदावार के लिए इसके पौधों को नर्सरी में तैयार कर ले फिर सीधे खेत में लगा दे। पौधों को बुवाई के लगभग 20 से 25 दिन पहले तैयार कर लेना चाहिए। इसके अतिरिक्त बीजो को रोग मुक्त करने के लिए बीज रोपाई से पहले उन्हें गोमूत्र या बाविस्टीन से उपचारित कर लेना चाहिए। इससे बीजो में लगने वाले रोगो का खतरा कम हो जाता है, तथा पैदावार भी अधिक होती है।
रोपाई का समय और तरीका
बारिश के मौसम में इसकी खेती करने के लिए बीजो की जून के महीने में रोपाई कर देनी चाहिए। इसके अतिरिक्त पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी रोपाई को मार्च या अप्रैल के महीने में करना चाहिए।
समतल भूमि में की गयी लौकी की खेती को किसी सहारे की जरूरत नहीं होती है | ऐसी स्थिति में इसकी बेल जमीन में फैलती है, किन्तु जमीन से ऊपर इसकी खेती करने में इसे सहारे की जरूरत होती है। इसके लिए खेत में 10 फ़ीट की दूरी पर बासो को गाड़कर जल बनाकर तैयार कर लिया जाता है, जिसमे पौधों को चढ़ाया जाता है। इस विधि को अधिकतर बारिश के मौसम में अपनाया जाता है।
फसल में खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार नियंत्रण करने के लिए फसल में समय समय पर निराई गुड़ाई करते रहे ताकि फसल को खरपतवार मुक्त रखा जा सकें।
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रासायनिक तरीके से खरपतवार पर नियंत्रण के लिए ब्यूटाक्लोर का छिड़काव जमीन में बीज रोपाई से पहले तथा बीज रोपाई के तुरंत बाद करनी चाहिए| खरपतवार के नियंत्रण से पौधे अच्छे से वृद्धि करते है, तथा पैदावार भी अच्छी होती है |
फसल में उर्वरक और पोषक तत्व प्रबंधन
फसल से उचित उपज प्राप्त करने के लिए 40 किलोग्राम नाइट्रोजन, 15 - 20 किलोग्राम फॉस्फोरस और 20 किलोग्राम पोटाश प्रति एकड़ की दर से खेत में डालें।
लौकी के प्रमुख रोग और उनका नियंत्रण
- लौकी (घीया) एक प्रमुख फलीय सब्जी है जो भारतीय खाद्य पदार्थों में आमतौर पर प्रयोग होती है। यह कई प्रमुख रोगों के प्रभावित हो सकती है, जिनमें से कुछ मुख्य हैं:
- लौकी मोजैक्यूलर वायरस रोग (Luffa Mosaic Virus Disease):
- इस रोग में पत्तियों पर पीले या हरे रंग के पट्टे दिखाई देते हैं। यह रोग पौधों की वृद्धि और उत्पादन पर असर डालता है।
- नियंत्रण के लिए, स्वस्थ बीजों का उपयोग करें और बीमार पौधों को नष्ट करें।
- लौकी मॉसेक वायरस रोग (Luffa Mosaic Virus Disease):
- इस रोग में पत्तियों पर सफेद या हरे रंग के दाग दिखाई देते हैं। यह पौधों की वृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
- नियंत्रण के लिए, स्वस्थ बीजों का उपयोग करें और संक्रमित पौधों को नष्ट करें।
- दाग रोग (Powdery Mildew): यह रोग पात्र प्रभावित करके पौधों पर धूल की तरह सफेद दाग उत्पन्न करता है। इसके नियंत्रण के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाएं:
- दाग रोग से प्रभावित पौधों को हटाएं और उन्हें जला दें।
- पौधों की पर्यावरण संगठना को सुधारें, उचित वेंटिलेशन प्रदान करें और पानी की आपूर्ति को नियमित रखें।
- दाग रोग के लिए केमिकल फंगिसाइड का उपयोग करें, जैसे कि सल्फर युक्त फंगिसाइड।
लौकी के फल की तुड़ाई और पैदावार
फसल की बुवाई और रोपाई के लगभग 50 दिन बाद लौकी उड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। जब लौकी सही आकर की दिखने लगे तब उसकी तुड़ाई कर ले। तुड़ाई करते समय किसी धारदार चाकू या दराती का इस्तेमाल करें। लौकी को तोड़ते समय फल के ऊपर थोड़ा सा डंठल छोड़ दें जिससे फल कुछ समय तक फल ताजा रहें। लौकी की तुड़ाई के तुरंत बाद पैक कर बाजार में बेचने के लिए भेज देना चाहिए | फलो की तुड़ाई शाम या सुबह दोनों ही समय की जा सकती है। एक एकड़ भूमि से लगभग 200 क्विंटल का उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।