हल्दी का बड़े स्तर पर उपयोग होने से इसकी बाजार में लगातार मांग बनी रहती है। इसी वजह से हल्दी की खेती करना किसान भाइयों के लिए मुनाफा का सौदा है।
हल्दी की खेती से लगभग 100 से 150 क्विंटल प्रति एकड़ उत्पादन लेकर इससे अच्छी आमदनी की जा सकती है। भारत में हल्दी की खेती केरल, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल और कर्नाटक आदि राज्यों में बड़े पैमाने पर की जा रही है। यदि आप भी हल्दी की खेती करना चाहते हैं, तो आप इस लेख के माध्यम से इसकी जानकारी अर्जित कर सकते हैं।
हल्दी की प्रमुख प्रजातियां कौन-कौन सी हैं
भारत में हल्दी की तकरीबन 30 प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें सुकर्ण, कस्तूरी, सुवर्णा, सुरोमा और सुगना, पन्त पीतम्भ, लकाडोंग, अल्लेप्पी, मद्रास, इरोड, सांगली, सोनिया, गौतम, रश्मि, सुरोमा, रोमा, कृष्णा, गुन्टूर, मेघा आदि प्रमुख प्रजातियां हैं।
हल्दी की खेती हेतु कैसी जलवायु अनुकूल होती है
हल्दी की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु की जरूरत होती है। इसकी खेती करने के लिए 20 से.ग्रे. से कम तापमान बेहतर माना जाता है। बेहतर बारिश वाले गर्म एवं आर्द्र इलाके को इसकी खेती के लिए उपयुक्त माना गया है।
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हल्दी की खेती हेतु उपयुक्त मृदा
हल्दी की खेती को समस्त प्रकार की मिट्टी में आसानी से किया जा सकता है। लेकिन, उर्वराशक्ति से परिपूर्ण दोमट, जलोढ़ एवं लैटेराइट मृदा सबसे अच्छी मानी जाती है। इसकी खेती के लिए मृदा का पी.एच. मान 5 से 7.5 के मध्य होना ही चाहिए।
हल्दी की खेती हेतु खेत को किस तरह तैयार करें
हल्दी की बुवाई करने के लिए खेत की मृदा को भुरभुरी एवं एकसार करने के पश्चात उसमें अपनी सुविधानुसार बैड बना लें। सामान्यतः बैड 15 सेमी ऊँचे, 1 मीटर चौड़े एवं बैड से बैड का फासला 50 सेमी पर तैयार करें।
इसके अतिरिक्त हल्दी की बुवाई मेड अथवा क्यारियों में की जा सकती है। मेड बुवाई हेतु मेड से मेड का फासला 45-60 सेमी और पौधों के मध्य 15-20 सेमी का फासला रखना चाहिए।
हल्दी की बिजाई हेतु बीज की मात्रा
हल्दी की खेती करने के लिए 8-10 क्विंटल प्रति एकड़ की दर से बीज की जरुरत होती है। मिश्रित फसल हेतु 4-6 क्विंटल प्रति एकड़ बीज पर्याप्त रहता है। हल्दी की बुवाई करने हेतु 7-8 सेंटीमीटर लंबाई वाले कंद का चुनाव करें, जिसमें कम से कम दो आंखे होनी चाहिए।
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हल्दी की बिजाई से पूर्व बीजोपचार
प्रति लीटर पानी में 2.5 ग्राम थीरम अथवा मैंकोजेब का घोल बनाकर बुवाई से पूर्व हल्दी के बीज को 30 से 35 मिनट तक भिगोकर रखें। उसके उपरांत उसको छांव में सूखा कर बुवाई कर दें।
हल्दी की बिजाई समुचित समय क्या है
हल्दी की बिजाई जलवायु, प्रजाति एवं सिंचाई सुविधा पर भी आश्रित रहती है। परंतु, हल्दी की बिजाई का सर्वाधिक उपयुक्त वक्त 15 मई लेकर 15 जून तक है।
हल्दी की बिजाई का सबसे अच्छा तरीका
हल्दी को तैयार खेत में बुवाई कर दें। बुवाई करने के दौरान कतार से कतार का फासला 30 सेंटीमीटर कंद से कंद का फासला 20 सेंटीमीटर रखना चाहिए। साथ ही, कंद की गहराई 20 सेंटीमीटर से ज्यादा ना हो वर्ना पैदावार प्रभावित हो सकती है।
हल्दी की फसल में सिंचाई की आवश्यकता
हल्दी की सिचाई मृदा और जलवायु पर भी निर्भर करती है। हल्दी की फसल को कम सिचाई की जरूरत पड़ती है। गर्मी के मौसम में हल्दी की सिचाई 7-8 दिनों की समयावधि पर करनी चाहिए।
तो वहीं ठण्ड के दिनों में 15-16 दिन के अंतराल पर सिचाई करनी चाहिए। वर्षा के मौसम में आवश्यकतानुसार सिचाई करें। फसल से जल निकासी की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।
हल्दी की फसल में उर्वरक प्रबंधन
हल्दी की फसल से बेहतरीन उत्पादन और उच्च गुणवत्ता फसल तैयार करने के लिए
खाद एवं उर्वरक को उपयुक्त मात्रा में देना चाहिए।
खेत तैयार करने के दौरान 4-5 टन/एकड़ की दर से गोबर का खाद डालें। रासायनिक उर्वरक के रूप में एक हेक्टेयर खेती हेतु 100 किलो ग्राम पोटाश, 20 किलो ग्रा. जिंक सल्फेट, 100 किलो ग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस (स्फूर) की जरूरत होती है।
जिसमें नाइट्रोजन की मात्रा को तीन समतुल्य हिस्सों में बाँट कर एक बुवाई के दौरान दूसरा हिस्सा बुवाई के लगभग 40 से 45 दिनोपरांत तथा तीसरा भाग 80 से 90 दिन पश्चात दे सकते हैं।
हल्दी की फसल में खरपतवार की रोकथाम हेतु क्या करें
हल्दी की फसल में खरपतवार की रोकथाम के लिए वक्त-वक्त पर आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई करें।
हल्दी की फसल में कीट एवं रोग की रोकथाम हेतु क्या किया जाए
हल्दी की फसल में कीट, रोग, कंद मक्खी, तना भेदक, बारुथ, कंद सड़न, पर्णचित्ती आदि का प्रकोप रहता है। इसका निदान करने हेतु आप अपने यहाँ के कृषि विशेषज्ञ से संपर्क साध सकते हैं।
हल्दी की खुदाई कब की जाती है
सामान्य रूप से हल्दी की खुदाई जनवरी से मार्च-अप्रैल तक होती है। अगेती किस्में 7-8 महीनों में तो वहीं मध्यम किस्में 8-9 महीनों में पककर तैयार हो जाती है।
जब फसल की पत्तियॉँ पीली पड़नी शुरू होने लगें एवं सूखने लगे तो समझ जाना चाहिए कि फसल कटाई हेतु तैयार है।