गेहूं की खेती पूरे विश्व में की जाती है। पुरे विश्व की धरती के एक तिहाई हिस्से पर गेहूं की खेती की जाती है। धान की खेती केवल एशिया में की जाती है जबकि गेहूं विश्व के सभी देशों में उगाया जाता है।
इसलिये गेहूं की खेती का बहुत अधिक महत्व है और किसान भाइयों के लिए गेहूं की खेती कृषि उपज के प्राण के समान है। इसलिये प्रत्येक किसान गेहूं की अच्छी उपज लेना चाहता है।
वर्तमान समय में वैज्ञानिक तरीके से खेती की जाती है। इसलिये किसान भाइयों को चाहिये कि वह गेहूं की खेती में खाद की मात्रा उन्नत एवं वैज्ञानिक तरीके से करेंगे तो उन्हें अपने खेतों में अच्छी पैदावार मिल सकती है।
किसान भाइयों एक बात यह भी सत्य है कि जमीन का दायरा सिकुड़ता जा रहा है और आबादी बढ़ती जा रही है। मानव का मुख्य भोजन गेहूं पर ही आधारित है। इसलिये गेहूं की मांग बढ़ना आवश्यक है।
इस मांग को पूरा करने के लिए अधिक से अधिक पैदावार करना होगा। जहां लोगों की जरूरतें पूरी होंगी और वहीं किसान भाइयों की आमदनी भी बढ़ेगी। किसान भाइयों गेहूं की खेती बहुत अधिक मेहनत मांगती है।
जहां खेत को तैयार करने के लिए अधिक जुताई, पलेवा, निराई गुड़ाई, सिंचाई के साथ गेहूं की खेती में खाद की मात्रा का भी प्रबंधन समय-समय पर करना होता है।
आइये देखते हैं कि गेहूं की खेती में किन-किन खादों व उर्वरकों का प्रयोग करके अधिक से अधिक पैदावार ली जा सकती है।
गेहूं की खेती की खास बात यह होती है कि इसमें बुआई से लेकर आखिरी सिंचाई तक उर्वरकों और पेस्टिसाइट व फर्टिसाइड का इस्तेमाल किया जाता है। तभी आपको अधिक उत्पादन मिल सकता है।
गेहूं की अच्छी फसल लेने के लिए किसान भाइयों को सबसे पहले तो अपनी भूमि का परीक्षण कराना चाहिये, मृदा परीक्षण या सॉइल टेस्टिंग भी कहा जाता है।
परीक्षण के उपरांत कृषि विशेषज्ञों से राय लेकर खेत तैयार करने चाहिये और उनके द्वारा बताई गई विधि से ही खेती करेंगे तो आपको अधिक से अधिक पैदावार मिलेगी।
क्योंकि फसल की पैदावार बहुत कुछ खाद एवं उर्वरक की मात्रा पर निर्भर करती है। गेहूं की खेती में हरी खाद, जैविक खाद एवं रासायनिक खाद के अलावा फर्टिसाइड और पेस्टीसाइड का भी प्रयोग करना होता है।
कौन सी खाद कब इस्तेमाल की जाती है, आइये जानते हैं:-
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बुआई के बाद पहली सिंचाई लगभग 20 से 25 दिन पर की जाती है। गेहूं की खेती में खाद की मात्रा की बात करें तो उस समय किसान भाइयों को गेहूं की फसल के लिए 40 से 45 किलोग्राम यूरिया, 33 प्रतिशत वाला जिंक 5 किलो, या 21 प्रतिशत वाला जिंक 10 किलो, सल्फर 3 किलो का मिश्रण डालना चाहिये। इसके अलावा नैनोजिक एक्सट्रूड जैसे जायद का भी प्रयोग करना चाहिये।
गेहूं की खेती में दूसरी सिंचाई बुआई के 40 से 50 दिन बाद की जानी चाहिये। उस समय भी आपको 40 से 45 किलोग्राम यूरिया डालनी होगी ।
इसके साथ थायनाफेनाइट मिथाइल 70 प्रतिशत डब्ल्यूपी 500 ग्राम प्रति एकड़, मारबीन डाजिम 12 प्रतिशत, मैनकोजेब 63 प्रतिशत डब्ल्यूपी 500 ग्राम प्रति एकड़ से मिलाकर डालनी चाहिये।
मुख्यत: गेहूं की फसल में दो बार सिंचाई के बाद ही उर्वरकों का मिश्रण डालने का प्रावधान है लेकिन उसके बाद किसान भाइयों को अपने खेत व फसल की निगरानी करनी चाहिये।
इसके अलावा भूमि परीक्षण के बाद कृषि विशेषज्ञों की राय के अनुसार उर्वरकों का इस्तेमाल करना चाहिये। यदि भूमि परीक्षण नहीं कराया है तो आपको अपने खेत की निगरानी अपने स्तर से करनी चाहिये और स्वयं के अनुभव के आधार पर या अनुभवी किसानों से राय लेकर फसल की जरूरत के हिसाब से उर्वरक, फर्टिसाइड व पेस्टीसाइड का इस्तेमाल करना चाहिये।
विशेषज्ञों के अनुसार दूसरी सिंचाई के बाद देखें कि आपकी फसल हल्की हो तो आप अपने खेतों में माइकोर हाइजल दो किलो प्रति एकड़ के हिसाब से डालें।
जिन किसान भाइयों ने बुआई के समय एनपीके का इस्तेमाल किया हो तो उन्हें अलग से पोटाश डालने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि एनपीके में 12 प्रतिशत नाइट्रोजन और 32 प्रतिशत फास्फोरस होता है और 16प्रतिशत पोटाश होता है।
जिन किसान भाइयों ने बुआई के समय डीएपी खाद का इस्तेमाल किया हो तो उन्हें पहली सिंचाई के बाद ही 15 से 20 किलो म्यूरेट आफ पोटाश प्रति एकड़ के हिसाब से डालना चाहिये।
क्योंकि डीएपी में 18 प्रतिशत नाइट्रोजन होता है और 46 प्रतिशत फास्फोरस होता है और पोटाश बिलकुल नहीं होता है।
गेहूं की फसल में 5-6 बार सिंचाई करने का प्रावधान है। किसान भाइयों को चाहिये कि वो कुदरती बरसात को देख कर और खेत की नमी की अवस्था को देखकर ही सिंचाई का फैसला करें।
यदि प्रति सिंचाई के बाद यूरिया की खाद डाली जाये तो आपकी फसल में रिकार्ड पैदावार हो सकती है। यूरिया के साथ फसल की जरूरत के हिसाब से फर्टिसाइड और पेस्टीसाइड का भी इस्तेमाल करना चाहिये।
पहली दो सिंचाई के बाद तीसरी सिंचाई 60 से 70 दिन बाद की जाती है। चौथी सिंचाई 80 से 90 दिन बाद उस समय की जाती है जब पौधों में फूल आने को होते हैं। पांचवीं सिंचाई 100 से 120 दिन बाद करनी चाहिये।
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