कपास को नगदी फसल होने के कारण सफेद सोना भी कहा जाता है। अभी तक कई राज्यों में कपास की खेती परंपरागत तरीकों से हो रही है। इसके चलते किसानों को उपज और लाभ दोनों कम मिल रहे हैं। कपास के अच्छे जमाव के लिए न्यूनतम 16 डिग्री सेन्टीग्रेट एवं फसल बढ़वार के समय 21 से 27 डिग्री सेन्टीग्रेट तापमान व उपयुक्त फलन हेतु दिन में 27 से 32 डिग्री सेन्टीग्रेट तापमान तथा रात्रि में ठंडक का होना आवश्यक है। गूलरों के फटने हेतु चमकीली धूप व पाला रहित ऋतु आवश्यक है।
जल भराव, कंकरीली, क्षारीय भूमि को छोड़कर कपास हर तरह की जमीन में हो जाती है। बुवाई खेत का पलेवा करने के बाद करनी चाहिए। कपास की उन्नत किस्मों जैसे देशी किस्मों लिए 15 एवं अमेरिकन के लिए 20 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर आवश्यक होता है। 10 किलोग्राम बीज के लिए 1 किलोग्राम गंधक का अम्ल लेलें। इसमें बीजों को अम्ल के घोल में डालकर पकडी से तेजी से चलाएं। तीन चार मिनट में बीजों पर लगी कपास हट जाएगी। इसके बाद साफ पानी से धुलाई करें। इसके बाद सोडियम बाई कार्बोनेट को 10 लीटर पानी में घोलकर बिल्कुल साफ कर लें। अम्ल जरा भी हाथ पर नहीं लगना चाहिए।
देशी किस्मों की बिजाई अप्रैल के प्रथम पखवाड़े में तथा अमेरिकन मध्य अप्रैल से मध्य मई तक बोई जा सकती है। बीज से बीज की दूरी 30 सेण्टीमीटर एवं लाइन से लाइन की दूरी 70 सेण्टीमीटर रहनीं चाहिए। 120 किलोग्राम नत्रजन एवं 67 किलोग्राम एवं फास्फोरस 67 किलोग्राम की दर से प्रति हैक्टेयर आखिरी जुताई में मिलाएं। खरपतवार एवं जन निकासी का ध्यान रखें। कपास में हल्की सिंचाई करनी चाहिए चूंकि यह फसल बरसात से सीजन तक चलती है।