Published on: 01-Oct-2022
अफ़ीम (Opium or opium poppy (ओपियम पॉपी); वैज्ञानिक नाम : lachryma papaveris) को मादक पदार्थ के तौर पर जाना जाता है। इसका उपयोग लोग प्रारम्भिक तौर पर नशा करने के लिए करते थे, इसलिए सरकार ने इसकी सार्वजनिक खेती पर बैन लगा रखा है। चूंकि अफीम का इस्तेमाल औषध उद्योग में दवाई बनाने के लिए किया जाता है, इसलिए सरकार सीमित किसानों को इसकी खेती के लिए लाइसेंस प्रदान करती है। इस लाइसेंस के माध्यम से किसान एक लिमिट में अफीम का उत्पादन करके सरकार को बेच सकते हैं। इससे किसानों को अच्छा ख़ासा मुनाफा होता है, क्योंकि सरकार इसे बेहतर भाव के साथ खरीदती है। आइये समझते हैं कि इसकी खेती के लिए लाइसेंस कैसे प्राप्त किया जा सकता है ?
अफीम की खेती के लिए लाइसेंस प्राप्त करने की प्रक्रिया
अफीम की खेती
(Opium Farming) सरकारी अधिकारियों की कड़ी निगरानी में होती है। ऐसे में बिना लाइसेंस के इस खेती को करना, खतरे को दावत देना है। भारत में अफीम की खेती के लिए
नारकोटिक्स विभाग (Central Bureau of Narcotics / केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो) लाइसेंस जारी करता है। इसलिए लाइसेंस प्राप्त करने के लिए किसानों को सर्वप्रथम नारकोटिक्स विभाग से संपर्क करना होगा। लाइसेंस के लिए नारकोटिक्स विभाग के नियम कायदे उनकी वेबसाइट में उपलब्ध हैं, जहां पर जाकर किसान इसकी जानकारी ले सकते हैं। नारकोटिक्स विभाग से मंजूरी मिलने के बाद किसान अफीम की खेती की जानकारी के लिए जिला बागवानी अधिकारी से संपर्क कर सकते हैं।
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देश में हर जगह वैध नहीं है ये खेती
अफीम की खेती के लाइसेंस को प्राप्त करने के लिए हर किसान आवेदन नहीं कर सकता, क्योंकि केंद्र सरकार ने देश के कुछ चुनिंदा स्थानों में ही अफीम की खेती की अनुमति दी है। उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश के नीमच जिले में और उसके आस पास सरकार द्वारा अफीम की खेती की स्वीकृति दी जाती है। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में भी अफीम की खेती के लिए सरकार की तरफ से किसानों को लाइसेंस दिया जाता है।
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अफ़ीम की खेती (Opium Poppy Farm)[/caption]
अफीम की खेती के लिए इन बीजों का करें प्रयोग
वैसे तो अफीम की खेती के लिए सरकार की तरफ से कई प्रकार के बीज उपलब्ध कराये जाते हैं, लेकिन किसान
जवाहर अफीम-16,
जवाहर अफीम-539 और
जवाहर अफीम-540 जैसे बीजों को उगाना काफी पसंद करते हैं, क्योंकि इन बीजों के प्रयोग से उत्पादन ज्यादा होने के साथ-साथ अफीम की क्वालिटी भी बेहतर प्राप्त होती है। इसके अलावा नारकोटिक्स विभाग के कई इंस्टीट्यूट अफीम पर रिसर्च करते रहते हैं और किसानों को समय-समय पर नए बीज उपलब्ध करवाते हैं। एक एकड़ खेत में अफीम की खेती करने के लिए कम से कम 6 किलो अफीम का बीज इस्तेमाल किया जाता है।
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किस प्रकार से तैयार होती है अफीम
अफीम की फसल 4 महीने की फसल है। बुवाई के 100 दिन बाद अफीम का पौधा परिपक्व हो जाता है और उसमें डोडे निकल आते हैं। इस डोडे से ही अफीम निकलती है, जिसके लिए प्रतिदिन इसमें चीरा लगाया जाता है, जिससे अफीम तरल रूप में रिस कर बाहर आ जाती है, जिसे किसी धारदार हथियार या हसिया से एकत्र कर लिया जाता है।
सनद रहे कि अफीम एकत्र करने का काम धूप निकलने के पहले ख़त्म हो जाना चाहिए। यह प्रक्रिया अगले कुछ दिनों तक चलती रहती है। इसके बाद बचे हुए डोडे को धूप में सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है। सूखने के बाद मसाले के रूप में इसका प्रयोग किया जाता है।
फसल के अंत में नार्कोटिक्स विभाग किसानों से अफीम खरीद लेता है, जिसके लिए किसानों को वाजिब दाम भुगतान किया जाता है।