कोरोना काल में लगाएं मोटा धान

Published on: 30-May-2020

धान की नर्सरी डालने का समय चल रहा है 5 जून तक मोटे धान की नर्सरी भी अभी डाली जा सकती है। कोरोनावायरस के प्रभाव के चलते यदि बासमती धान का निर्यात प्रभावित हुआ तो ऐसे हालात में मोटा धान किसान की जान बचा सकता है। 

 यूं तो जागरूक किसान खुद ही सजग हैं और सजगता के क्रम में उन्होंने नॉन सेंटेड सादा धान की किस्में लगायी हैं लेकिन वर्तमान हालात में किसानों को हर कदम फूंक-फूंक कर रखना है। विदित हो की बासमती धान बहुतायत में विदेशों को निर्यात होता है। कोरोनावायरस के प्रभाव और प्रसार के दौर में निर्यात प्रभावित होना तय है। ऐसे हालात में मोटा धान ही किसान की जान बचा सकता है। 

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मोटे धान की उन्नत किस्में

मोटे धान की अनेक उन्नत किस्में है इनमें पूसा संस्थान नई दिल्ली की पूसा सावां 1850 एवं पूसा 44 प्रमुख किस्में है। पूसा सावा 130 दिन में पक कर 80 से 120 कुंटल प्रति हेक्टेयर तक वापस दे जाती है। वही पूछा 44 किस्म 140-45 दिन में पक्का 80 -90 कुंटल ताको कर दी जाती है। पीआर श्रेणी की 114, 116, 118 , 121,  124 , 126, 127 एवं, 128 किस्म 80 से 90 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक का उत्पादन देती हैं। पंतनगर विश्वविद्यालय की पंत 24 एवं पंत 26 किस्में 70 से 80 क्विंटल तक उत्पादन देती हैं। नरेंद्र 359 किस मशीन 80 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन मिलता है वही एचकेआर 47 एवं 127 से 65 से 70 क्विंटल उत्पादन मिलता है। चावल अनुसंधान केंद्र कटक की वंदना किस्में देरी से बिजाई के लिए उपयुक्त है। यह 70 दिन में पक जाती है और कम समय के हिसाब से उपज भी ठीक-ठाक दे जाती है। 

पीआरएच 10 गजब का हाइब्रिड

पूसा संस्थान की पीआरएच 10 हाइब्रिड किस्म बेहद अच्छा उत्पादन देती है। पंजाब, हरियाणा ,दिल्ली ,पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में बोई जाने वाली यह बासमती गुणों वाली धान की विश्व में प्रथम हाइब्रिड किस्म है ।इसका दाना अत्यधिक लंबा और पतला है जो पकने पर लंबाई में 2 गुना बढ़ जाता है और अधिक स्वादिष्ट होता है । यह एक मध्य सौंधी जल्दी पकने वाली किस्म है जो 110 से 115 दिन का समय लेती है । सिंचाई का पानी भी कम लगता है। उत्तर भारत में गेहूं -धान प्रणाली वाले क्षेत्रों के लिए यह किस्म उपयुक्त है।65 से 70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर सिंचित अवस्था में उत्पादन देती है।

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