गन्ने की मिठास सभी को भाती है। इस लिए इसमें कीट एवं रोगों का प्रभाव भी खूब होता है। गन्ना चूंकि एक वर्षी्य फसल है इस लिहाज से इसमें कीट एवं रोगों की निगारानी बेहद आवश्यक है।
यह कीट कटाई तक फसल की किसी भी अवस्था में लग सकता है। यह कीट गन्ने के कल्लों को काटकर उनको मिट्टी से भर देता है। इससे बचाव के लिए खेत में कच्चा गोबर न डालें। नीम खल 10 कुंतल प्रति हैक्टेयर आखिरी जुताई में मिलाएं। ब्यूबेरिया बेसियाना 1.15 प्रतिशत जेविक पेस्टीसाइड 2.5 किलोग्राम 60 किलोग्राम गोबर की सडी खाद में मिलाकर खेत में डालें। कूडों में फेनवलरेट 0.4 प्रतिशत धूल (टाटाफेन 0.4 प्रतिशत धूल) 25.0 किग्रा0 एवं लिण्डेन आदि गैर प्रतिबंधित संतुत दवाओं का छिडकाव करें। कीटनशकों का सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग करें।
यह गन्ने के कल्लों को प्रभावित करने वाला प्रमुख कीट है। बुवाई के समय नालियों में पैड़ो के ऊपर अथवा फसल की कटाई के बाद अथवा खड़ी फसल में प्रकोप होने पर गन्ने के समीप नाली बनाकर किसी एक कीट-नाशक का प्रयोग कर ढक देना चाहिए। क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत घोल 5.0 लीटर प्रति हेक्टेयर 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर हजारे द्वारा प्रयोग करें। इसके अलावा फोरेट 10 प्रतिशत की 25 किलोग्राम मात्रा को बुबाई के समय कूंडों में फसल बिजाई के समय मिट्टी में डालें।
यह कीट मार्च से सितंबर तक लगता है। उत्तर भारत में यह कीट गन्ने को सर्वाधिक प्रभावित करता है। इसकी रोकथाम के लिए दानेदार कार्बोफ्यूरान 30 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से बुरकें। यादि इससे पूर्व खेत की गुदाई या निराई हो जाए तो ज्यादा अच्छा रहता है।
यह कीट गन्ने के तने में छेद करके उसके अंदर घुस जाता है। इससे बचाव के लिए मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिशत एसएल 2 लीटर प्रति हैक्टैयर 1000 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। कार्बोफ्यूरान का बुरकाव भी 30 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से किया जा सकता है।
बुवाई के समय (शरद एवं बसंत) नालियों में 30 किग्रा कार्बोफयूरान 3 जी0 का प्रयोग प्रथम व द्वितीय पीढ़ी के नियंत्रण हेतु करना। मार्च एवं मई दोनों के प्रथम पखवारों में चोटीबेधक के प्रथम एवं द्वितीय पीढ़ी के अण्ड समूहों को एकत्रित करके नष्ट करना। अप्रैल एवं मई में चोटीबेधक के प्रथम एवं द्वितीय पीढ़ी से ग्रसित पौधों को सूड़ी/प्यूपा सहित काटकर नष्ट कर दें। जून के अंतिम या जुलाई के प्रथम सप्ताह में तृतीय पीढ़ी के विरूद्ध अधिकतम अण्डरोपण की अवधि में 30 किग्रा0 कार्बोफ्यूरान जी0 प्रति हेक्टे0 पौधों के समीप नमी की दशा में डालें।
इस कीट का प्रकोप जुलाई से अक्टूबर तक होता है। जुलाई अगस्त में ग्रसित अगोलों को सूड़ी सहित काटकर नष्ट कर दें।
इण्डोसल्फान 35 प्रतिशत घोल 3.5 ली0/है0 को 1250 ली0 पानी में घोलकर अगस्त से अक्टूबर पर्यन्त तीन सप्ताह के अन्तर पर तीन बार छिड़काव करें। मोनोकोटोफास 36 प्रतिशत घोल 2.1 ली0/है0 की दर से 1250 ली0 पानी में घोलकर दो बार मध्य अगस्त एवं सितम्बर में छिड़काव करें।
वयस्क कीट काले रंग के होते हैं। अप्रैल से जून तक यह गन्ने की पेडी पर अधिक सक्रिय रहते हैं। रोकथाम के लिए क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत घोल 1.0 ली0 प्रति है0 पर्याप्त पानी में मिलाकार छिडकाव करेंं ।
यह कीट हल्के भूरे रंग का करीब 13 मिलीमीटर लम्बा होता है। इसे मारने के लिए भी किसी प्रभावी कीटनाशक का छिडकाव करें।
अगस्त-सितम्बर में प्रकोप होने पर किसी एक कीटनाशक को 1250 ली0 पानी में घोलकर 15 दिन के अन्तर पर दो बार छिड़काव करें।
मई-जून में प्रकोप होने पर 625 ली0 पानी में किसी एक कीटनाशक का घोल बनाकर छिड़काव करना।
प्रकोप होने पर जुलाई-अगस्त में किसी एक कीटनाशक का 1250 ली0 पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। अष्टपदी (माइट), सफेद ग्रव बीटिल,ग्रीन हापर, पायरिला जैसे रोगों के नियंत्रण के लिए किसी प्रभावी कीटनाशक का प्रोग करें।
गन्ने की कटाई के बाद पत्तियों को किसी अन्य स्थान पर लेजाकर कम्पोस्ट बनाएं। जहां तक संभव हो ग्रसित क्षेत्रों में पेड़ी की फसल न ली जाये।
गन्ने में अधिकांश रोग बीज के माध्यम से पनपते हैं। इनमें कण्डुआ, उकठा, अंगोला सड़ना, पर्ण दाह रोग, लीफ स्काल्ड, पत्ती की लाल धारी, विवर्ण रोग प्रमुख हैं। इनसे बचाव के लिए रोग रोधी किस्म का चयन करें। बीज सरकारी संस्थान से व उपचारित ही लें। फसल चक्र अपनाएं। जिस खेत में पूर्व में गन्ना लिया है उसमें दूसरी फसल लें। बीज को प्रभावी फफूंद नाशक से उपचारित करके बोएं। ब्लाइटास्क एवं फंजीहिट जैसे अनेक दवाएं बाजार में मौजूद हैं।
इस रोग के संक्रमण से बचान के लिए गन्ने की बुवाई के पहले बीज (सेट्स) का किसी पारायुक्त कवकनाशी जैसे एगलाल या एरिटान के 0.25 प्रतिशत घोल में उपचार करें। प्रभावित पौधों को खेतो से बाहर निकालकर जला दें।