कठिन मेहनत से हासिल बैंकिंग की नौकरी छोड़, कृषि में स्टार्टअप की राह पर चला बिहार का यह किसान
आजादी के बाद भारत की आर्थिक वृद्धि और जीडीपी में कृषि का योगदान निरंतर कम होता जा रहा है। हालांकि,
हरित क्रांति की सफलता के बाद एक समय आयात पर निर्भर रहने वाली भारतीय कृषि इतनी सफल तो हो पायी, कि देश के लोगों की मांग पूरी करने के अलावा कुछ स्तर पर निर्यात में भी हिस्सेदारी बंटा पाई।
2011 की जनगणना के अनुसार, 78 मिलियन प्रवासी मजदूर कृषि क्षेत्रों में सक्रिय रहने के अलावा, अतिरिक्त आय के लिए प्रौद्योगिकी क्षेत्र में भी काम करते हैं और इसी वजह से कृषि से होने वाली उत्पादकता में निरंतर कमी देखने को मिली है।
बिहार के औरंगाबाद जिले के बरौली गांव में रहने वाले एक किसान की कहानी कुछ ऐसे ही शुरू हुई थी, जब उन्होंने कृषि और किसानी में सफल हुए कई विदेशी और भारतीय किसानों की केस स्टडी (
case study) के बारे में पढ़ा।
मैनेजमेंट प्रोफेशनल के रूप में काम करते हुए ही 2011 में बिहार के अभिषेक कुमार ने अच्छी सैलरी देने वाली जॉब को छोड़ने का निर्णय लिया और आज अभिषेक कुमार के खेतों में
तुलसी (Tulsi),
हल्दी (Turmeric),
गिलोय (giloy) तथा
मोरिंगा (
Drumstick) और
गेंदा (मेरीगोल्ड
, Marygold) जैसी, आयुर्वेदिक औषधियों में इस्तेमाल होने वाले पौधों की खेती की जाती है।
अभिषेक को परिवारिक जमीन के रूप में 20 एकड़ का क्षेत्र मिला था, जिनमें से 15 एकड़ के क्षेत्र में वह इसी तरह कम समय में तैयार होने वाली आयुर्वेदिक औषधियों का उत्पादन कर बड़ी मार्केटिंग कंपनियों से जुड़ते हुए अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।
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अभिषेक ने बताया कि
धान,
गेहूं और
मक्का से होने वाली बचत इन फसलों की तुलना में आधी भी नहीं होती है, लेकिन वैज्ञानिकों के द्वारा सुझाई गई आधुनिक विधियों और
कृषि विभाग के द्वारा जारी की गई एडवाइजरी का सही तरीके से पालन कर, इंटरनेट की मदद से कई सफल किसानों तक पहुंच बनाकर, बेहतर कृषि उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले कुछ ऐसे गुण सीखे, जो आज अभिषेक को अच्छा मुनाफा दे रहे हैं। बिहार में एक प्रॉफिटेबल कृषि मॉडल बनाने की सोच को लेकर काम कर रहे अभिषेक, खेत से होने वाली उत्पादकता पर ज्यादा ध्यान देते हैं।
खुद अभिषेक ही बताते हैं कि एक कृषि परिवार से संबंध रखने के बावजूद भी खेती में कम आमदनी होने की वजह से, अपने परिवार को सहायता प्रदान करने और खुद का गुजारा करने के लिए वह पुणे में एक बैंक में कंसलटेंट के रूप में काम करने लगे थे। अभिषेक ने बताया कि जब उन्होंने सिक्योरिटी गार्ड और चपरासी जैसे पदों पर काम करते वाले लोगों को देखा और उनसे मुलाकात हुई, तो पता चला कि इन लोगों के गांव में बहुत ज्यादा जमीन खाली पड़ी है और खेती में मुनाफा ना होने की वजह से ही वह अपने परिवार को गांव में छोड़कर शहरों में मुश्किल भरी जिंदगी जी रहे हैं।
इन्हीं घटनाओं से प्रेरणा लेते हुए अभिषेक ने अपनी नौकरी को छोड़ वापस गांव में ही रहते हुए कृषि में इनोवेशन (
Innovation) करने की सोच के साथ एक नई शुरुआत करने की सोची। आज अभिषेक को उनके गांव में ही नहीं बल्कि पूरे जिले में एक अलग पहचान मिल चुकी है और बिहार के कई बड़े एनजीओ (
NGOs) तथा किसान भाई समय-समय पर उनसे जाकर मिलते हैं और अभिषेक के कृषि मॉडल की तरह ही अपने खेत की
जमीन की उर्वरता और उत्पादन बढ़ाने के लिए राय लेते है।
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जब अभिषेक ने अपनी खेती की शुरुआत की तभी उन्होंने मन बना लिया था कि वह केवल किताबी ज्ञान को किसानों को बताने की बजाय पहले उसे अपने खेत में अपना कर देखेंगे और यदि अच्छा मुनाफा होगा तभी दूसरे किसान भाइयों को भी नई तकनीकों को सलाह देंगे, उन्हीं प्रयोगों का अभिषेक को इतना फायदा हुआ कि वर्तमान में वह लगभग 95 से अधिक
कृषि उत्पादन संगठनों (Farmers producer organisation) से जुड़े हुए है और इन संगठनों से जुड़े हुए लगभग 2 लाख से अधिक किसान भाइयों को साल 2011 से मार्केटिंग और खेती से जुड़ी समस्त जानकारियां उपलब्ध करवा रहे है।
किसी भी शहरी परिवेश से वापस ग्रामीण क्षेत्र में आकर कृषि कार्यों की शुरुआत करने में अनेक प्रकार की समस्याएं होती है और ऐसी ही समस्या अभिषेक के सामने भी बिहार में एक अच्छा मुनाफा कमाने वाले किसान बनने की राह में अड़चन पैदा कर रही थी।
हालांकि जब अभिषेक शहर से अपनी नौकरी छोड़ वापस गांव में आए, तो उन्हें कई लोगों के द्वारा विरोध झेलना पड़ा और उनके परिवार के सदस्यों के द्वारा इस विचार को पूरी तरीके से गलत ठहरा दिया गया, लेकिन जब अभिषेक ने अपने पिता को आधुनिक और समोच्च तरीके से होने वाली वैज्ञानिक विधियों की मदद से खेती करने की बात बताई, तो उनके परिवार ने भी हामी भरदी।
वैज्ञानिक विधि का पालन करते हुए अभिषेक ने सबसे पहले अपने खेत में
मिट्टी की जांच करवाई, जिससे उन्हें उनके खेत में पाई जाने वाली मिट्टी में उपलब्ध पोषक तत्वों के बारे में पता चला, कौन से पोषक तत्वों की कितनी मात्रा खेत में पहले से उपलब्ध है और किन पोषक तत्वों की खेत की मिट्टी में कमी है।
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अभिषेक ने अपने किसानी करियर में पहली शुरुआत सामान्य खेती से ही की थी, लेकिन जब उन्होंने बागवानी कृषि को अपनाया तो उनके द्वारा किए गए सभी प्रयास सफल हुए और पहली साल में ही 6 लाख रुपए से अधिक की कमाई हुई।
अभिषेक बताते हैं कि 2011 से ही वह रोज सुबह एक घंटे साइबर कैफे में जाकर इंटरनेट और यूट्यूब की मदद से विदेशी और पूशा के वैज्ञानिकों के द्वारा बताई गई नई विधियों को अपने खेत में आजमाकर देखते थे।
जरबेरा की फसल का उत्पादन करने वाले वह बिहार के पहले व्यक्ति थे। इसके लिए उन्होंने बेंगलुरु और पुणे में काम कर रही कृषि से जुड़ी कई बड़ी साइंटिफिक लाइब्रेरी में जाकर रिसर्च करने वाले लोगों से बात कर
उच्च गुणवत्ता वाले बीजों (
High yield variety seeds) को उगाया तो पहले ही उत्पादन के बाद अच्छा मुनाफा दिखाई दिया।
आज उनके खेतों में एक चौथाई से ज्यादा हिस्सों पर इसी प्रकार के औषधियों में इस्तेमाल होने वाले पौधे उगाए जाते है।
अभिषेक बताते हैं कि
औषधीय पौधों (
Medicine Plants) को एक बार लगाने के बाद कुछ समय तक बिना निराई गुड़ाई के भी रखा जा सकता है और उत्पादन में होने वाली लागत को कम किया जा सकता है, क्योंकि ऐसे प्लांट्स के पौधे और पत्तियां अधिक बारिश और तेज धूप तथा भयंकर ठंड में भी वृद्धि दर को बरकरार रख सकते हैं, जिससे उर्वरकों पर होने वाली लागत कम आती है। औषधीय पौधों में एक बार पानी देने के बाद वे आसानी से 20 से 25 दिन तक बिना पानी के रह सकते है।
अभिषेक ने बताया कि मेडिसिन पौधों का सबसे बड़ा फायदा यह भी है कि इनमें
आवारा पशु और जानवरों से होने वाले नुकसान पूरी तरीके से कम किए जा सकते है, क्योंकि नीलगाय जो कि बिहार के खेतों में सबसे ज्यादा क्रॉप डेमेज (
Crop damage) करती है, वह इन पौधों को बिल्कुल भी नुकसान नहीं पहुंचाती।
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अफ्रीका और आसाम में काम कर रही चाय के बागान से जुड़ी कंपनियों के अनुसंधानकर्ताओं की मदद से अभिषेक ने बिहार में रहते हुए ही 'ग्रीन टी' का उत्पादन भी शुरू किया है।
ग्रीन टी बनाने के लिए तुलसी, लेमन घास (
Lemongrass) और मोरिंगा के पौधों की पत्तियों की आवश्यकता होती है, जिन्हें बारीक तरीके से काटकर एक सोलर ड्रायर विधि की मदद से अभिषेक के द्वारा ही स्थापित गांव की ही एक विपणन इकाई में मशीन की मदद से तैयार किया जाता है और कई बड़ी भारतीय और इंटरनेशनल मार्केटिंग कंपनियों को बेचा जाता है।
बैंक में काम करने वाले एक कर्मचारी से लेकर खेती में सफलता प्राप्त करने वाले अभिषेक कई किसानों के लिए प्रेरणा स्रोत बनने के बाद अब कृषि के क्षेत्र में एक नई स्टार्टअप की योजना बना रहे है, हालांकि पिछले कुछ समय से बेंगलुरु से संचालित हो रही एक
एग्रीटेक स्टार्टअप (Agritech startup) के साथ वह पहले से ही बिजनेस डेवलपर के रूप में जुड़े हुए हैं।
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अभिषेक
प्राथमिक कृषि सहकारी समितियां (PACs) में होने वाली विपणन की विधियों में भी कुछ सुधार की उम्मीद करते है, क्योंकि वह मानते है कि मंडियों में होने वाले बिचौलिए की जॉब को पूरी तरीके से खत्म कर देना ही किसानों के लिए फायदेमंद रहेगा।
स्टार्टअप की राय पर अभिषेक का मानना है कि वह किसानों और कृषि उत्पादन संगठन (
FPOs) के मध्य कम शुल्क पर काम करने वाले एक माध्यम के रूप में भूमिका निभाने वाली स्टार्टअप की शुरुआत करना चाहते है और उनकी कोशिश है कि किसानों को उगाई गई उपज की सरकार के द्वारा तय किए गए मिनिमम सपोर्ट प्राइस (
Minimum Support Price -MSP) से कुछ ज्यादा ही राशि मिले।
अपनी इस स्टार्टअप यात्रा के दौरान अभिषेक एम.एस.स्वामीनाथन समिति के द्वारा दिए गए सुझावों को मध्य नजर रखते हुए अपने स्तर पर भारतीय कृषि में कुछ बदलाव करने की सोच भी रखते है।
बिहार कृषि विश्वविद्यालय, भागलपुर से अभिषेक को 2014 में सर्वश्रेष्ठ किसान पुरस्कार भी मिल चुका है। इसके अलावा भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के द्वारा दिया जाने वाला भारतीय कृषि रत्न पुरस्कार जीतने वाले अभिषेक प्राकृतिक खेती को ज्यादा प्राथमिकता देते है और हमेशा घर पर तैयार की हुई प्राकृतिक
गोबर खाद से ही अधिक उत्पादन प्राप्त करने की कोशिश करते है।
अभिषेक का मानना है कि भारतीय किसान
जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग (
Zero budget natural farming) और समोच्च कृषि (
Sustainable development) जुताई विधियों की मदद से आने वाले समय में उत्पादन बढ़ाने के साथ ही विदेशी मार्केट में भी अपनी पकड़ बना पाएंगे।
आशा करते हैं कि Merikheti.com के द्वारा बिहार के अवॉर्ड विजेता किसान अभिषेक की कृषि क्षेत्र में प्राप्त सफलताओं और उनके नए विचारों से जुड़ी यह जानकारी आपको पसंद आई होगी और आने वाले समय में आप भी ऐसी ही भविष्यकारी नीतियों को अपनाकर एक सफल किसान बनने की राह पर जरूर अपना लक्ष्य प्राप्त करेंगे।