न्यूनतम समर्थन मूल्य के बारे में बेहतर जानें

Published on: 30-Sep-2020

कृषि क्षेत्र में सुधार लाने का दावा करने वाले विधेयकों के कानून का रूप लेने के साथ इन दिनों न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) चर्चाओं के केंद्र में है। 

न्यूनतम समर्थन मूल्य कोई नयी व्यवस्था नहीं है बल्कि दशकों से सरकारी नीति और कृषि अर्थव्यवस्था का अभिन्न हिस्सा रहा है। ऐसे में यह जानना ज़रूरी हो जाता है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य क्या है। 

न्यूनतम समर्थन मूल्य वह मूल्य है जो किसी कृषि उपज के लिए तय किया जाता है जैसे कि गेहूँ,कपास, गन्ना आदि। इस मूल्य से कम मूल्य देकर किसानों से सीधे वह उपज नहीं खरीदी जा सकती। यह न्यूनतम समर्थन मूल्य भारत सरकार तय करती है। इसे हम एक उदाहरण के साथ समझ सकते हैं। 

मान लेते हैं कि गेहूँ का न्यूनतम समर्थन मूल्य 3,000 रुपए प्रति क्विंटल तय किया गया है तो कोई व्यापारी किसी किसान से 3,100 रुपए प्रति क्विंटल की दर से गेहूँ खरीद सकता है लेकिन 2,800 रुपए प्रति क्विंटल या 2,990 रुपए प्रति क्विंटल की दर से गेहूँ नहीं खरीद सकता।

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किसानों के हितों की रक्षा करने के लिए देश में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की व्यवस्था लागू की गई है। इसका फायदा यह है कि सभी फसलों की कीमत बाजार के हिसाब से गिर भी जाती है, तब भी केंद्र सरकार तय न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ही किसानों से फसल खरीदती है ताकि किसानों को आर्थिक नुकसान से बचाया जा सके। 

किसी फसल के लिए एमएसपी पूरे देश में एक ही होती है और इसके तहत अभी 23 फसलों की खरीद की जा रही है। कृषि मंत्रालय के अधीन आने वाले कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) की सिफारिशों के आधार पर एमएसपी तय किया जाता है। 

सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा फसल बोने से पहले करती है। न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा सरकार द्वारा कृषि लागत एवं मूल्य आयोग की सिफारिश पर साल में दो बार रबी और खरीफ के मौसम में की जाती है।

न्यूनतम समर्थन मूल्य

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एमएसपी का इतिहास

आजादी के बाद जहाँ एक तरफ देश जरूरत के हिसाब से कृषि उपज नहीं कर पा रहा था, वहीं किसानों की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं थी। किसानों को उनकी मेहनत और लागत के बदले फसल की बहुत कम कीमत मिल रही थी। 

जब अनाज कम पैदा होता तो कीमतों में बहुत इज़ाफा होता और ज्यादा होता तो गिरावट होती। इस समस्या से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने 1957 में खाद्य-अन्न जांच समिति का गठन किया। इस समिति ने कई सुझाव दिए लेकिन उनसे कुछ खास फायदा नहीं हुआ। 

तब सरकार ने कृषि उपज की कीमत तय करने के बारे में सोचा। इसके लिए 1964 में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने अपने सचिव लक्ष्मीकांत झा के नेतृत्व में खाद्य और कृषि मंत्रालय के अंतर्गत खाद्य-अनाज मूल्य समिति का गठन किया। 

‘जय जवान, जय किसान’ का नारा देने वाले शास्त्री का मानना था कि किसानों को उनकी उपज के बदले कम से कम इतने पैसे मिलें कि उनका आर्थिक नुकसान ना हो। समिति ने 24 दिसंबर,1964 को सरकार के सामने प्रस्ताव रखा। 

19 अक्टूबर,1965 को भारत सरकार के तत्कालीन सचिव बी शिवरामन ने समिति के प्रस्ताव पर अंतिम मुहर लगाई। इसके बाद साल 1966-67 में पहली बार गेहूं और धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय किया गया। तब से सरकार एमएसपी तय करती आयी है।

उद्देश्य

न्यूनतम समर्थन मूल्य का मुख्य उद्देश्य किसानों को उनकी फसल के लिए वाजिब कीमत मुहैया कराना और आर्थिक नुकसान से बचाना है। साथ ही बिचौलियों के शोषण से बचाकर उनकी उपज के लिए सही मूल्य की व्यवस्था करना और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के लिये अनाज की खरीद करना है।

   न्यूनतम समर्थन मूल्य

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एमएसपी के निर्धारक कारक

कृषि लागत एवं मूल्य आयोग विभिन्न फसलों की मूल्य नीति की सिफारिश करते समय इन कारकों  को ध्यान में रखता है: ♦ मांग और आपूर्ति 

♦ उत्पादन की लागत 

♦ घरेलू और अन्तर्राष्ट्रीय दोनों बाज़ारों में मूल्य प्रवृत्तियाँ 

♦ अंतर-फसल मूल्य समता 

♦ कृषि और गैर-कृषि के बीच व्यापार की शर्तें 

♦ उस उत्पाद के उपभोक्ताओं पर एमएसपी का संभावित प्रभाव। 

एमएसपी इस लिहाज से महत्वपूर्ण है कि यह किसानों को बाजार की उथल-पुथल से बचाता है और उन्हें आर्थिक नुकसान नहीं होने देता। एमएसपी के ना होने से देश भर के किसानों को हर साल करोड़ों रुपये का नुकसान झेलना होगा। 

इस वजह से सरकार उनके कृषि उपज के लिए एमएसपी की घोषणा करती है। यह बाजार का संतुलन बनाने के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है। 

भारत जैसे विशाल देश में जहां ग्रामीण समाज और कृषि क्षेत्र हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं, एमएसपी किसानों के लिए एक बड़ा आसरा है। हालाँकि एमएसपी तब भी पूरी तरह से किसानों को नहीं बचा पाता। किसान लगभग हर साल बेमौसम बारिश, खराब मौसम, सिंचाई की समस्याओं से भी प्रभावित होते हैं। 

इसलिए कृषि उपज का सही मूल्य मिलना काफी मायने रखता है। हम इसे इस तरह से समझ सकते हैं कि 2000 से 2017 के बीच किसानों को उत्पाद का सही मूल्य न मिल पाने के कारण 45 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। यह जानकारी आर्थिक सहयोग विकास संगठन और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (OECD-ICAIR) की एक रिपोर्ट में दी गई।

एमएसपी को लेकर सरकार की ताजा घोषणा

न्यूनतम समर्थन मूल्य 

हाल में केंद्र सरकार ने गेहूं समेत रबी सीजन की छह फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी की घोषणा की है। खरीद वर्ष 2021-22 में अब गेहूं का रेट 1,975 रुपए प्रति क्विंटल होगा, हालांकि पिछले साल के मुकाबले ये इज़ाफा महज 2.6 फीसदी है। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने गेहूँ, जौ, चना, सरसों, मसूर और कुसुम के न्यूनतम समर्थन मूल्य  में वृद्धि के फैसले को मंजूरी दे दी है। नई दरों के मुताबिक सबसे ज्यादा 300 रुपए प्रति कुंतल मसूर और सरसों में 225 रुपए प्रति कुंतल की बढ़ोतरी की गई है। 

कुसम 112 रुपए कुंतल, जौ में 75 रुपए कुंतल जबकि गेहूं की दरों में 50 रुपए प्रति कुंतल की बढ़ोतरी हुई है। रबी फसलों के समर्थन मूल्य में वृद्धि के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि सरकार के एमएसपी बढ़ाने के फैसले से देश के करोड़ों किसानों को फायदा होगा और उनकी आय बढ़ेगी।

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