शकाहारी बनिए, यह नारा बाबा जयगुरुदेव, ईश्वरी ब्रह्मा कुमारी, श्री श्री रविशंकर, अखिलभारतीय संतमत सत्तसंग के प्रणेता सुरेश भैया जी जैसे सभी आध्यातिमक जन यूंही नहीं देते। भारतीय संस्कृत सदैव से शाकाहार की पोषक रही है। पिछले कुछ सालों में आधुनिक ज्ञान-विज्ञान और वैज्ञानिक संस्तुतियों ने पोषण से भरपूर बता अण्डे और आमलेट की ढ़केल गांव गांव तक पहुंचा दी हैं लेकिन रोग संक्रमण के दौरान इन चीजों की पहुंच आम जनमानस तक न हो इसके लिए कोई पुख्ता तंत्र नहीं है। चीन से उठे कोरोना वायरस का कोहराम समूचे विश्व को सता रहा है। प्रथम दृश्टया इसका कारण भी मांसाहार बताया जा रहा है। इसके चलते चीन में शाकाहार की ब्यवस्था के लिए सरकार द्वारा फौरी कदम उठाए जा रहे हैं। विदेशों से फल एवं सब्जी आदि मंगाने के इंतजामात जारी हैं।
लिट्टी-चोखा, सत्तू-ल्हप्सी, बेझड के टिक्कर लोग भूल गए हैं। छोटे से छोटे गांव में चाउमीन के चटकारे लेते लोग दिख जाएंगे। मांसाहार के लिए मुर्गी फार्म भी आम हो गए हैं। अण्डा तो जैसे देश के युवाओं को ताकत देने का एकमात्र श्रोत बन गया है। जिस दौर में लोग अण्डा नहीं खाते थे उस दौर में जैसे शरीर में जान ही नहीं थी। बाजरा की रोटी खाकर लोग नामी पहलवान हो गए अब अण्डा खाकर पहलवान होने का गुरूमंत्र दिया जा रहा है। बात साफ है मांसाहार को बढ़ावा देना एक बात है लेकिन भारत जैसे देश में इससे होने वाले रोगों के संक्रमण को रोकने को कोई पुख्ता तंत्र नहीं है।
कटान को जाने वाले पशुओं का भी मेडिकल होता है। उसके बाद ही काटने की व्यवस्था है लेकिन त्योहारों पर कितने ही बकरे बगैर जांच के कटकर चट हो जाते हैं बातने की जरूरत नहीं है। एक अध्ययन के मुताबिक मांसाहार करने वाले क्षेत्रों बसे लोग बेहद भयंकर बीमारियों का शिकार होते हैं। कोरोना बायरस इसका जीता जागता उदाहरण है। पशुओं से मनुष्यों को कई गंभीर रोग मिल सकते हैं। यह तथ्य वैज्ञानिकों द्वारा प्रमाणित है। अण्डा फिरभी सुरक्षित है लेकिन मांस तो पशु के संक्रमण को सीधे तौर पर मनुष्यों को पहुंचा सकता है। कोराना वायरस एक संकेत है समझने—संभलेने और नीतियों में बदलाव लाने का। इस मामले में देरी भारत जैसे देश के मामले बेहद घातक हो सकती है।
मुझे महात्मागांधी के जीवन से जुड़ी वह घटना याद आती है जिन दिनों वह दक्षिण अफ्रीका में थे। वहां उन्होंने सत्याग्रह जैसे शांतिप्रिय विरोध प्रदर्शन के विचार को दुनियां के सामने प्रस्तुत किया। इन दिनों यहां प्लेग फैला था। गांधी जी रेडक्रास आदि के वालंटियरों के साथ नीम—तुलसी आदि का sकाढ़ा पीकर मरीजों की सेवा करते थे। बीमारी से बचने के लिए चिकित्सक एल्कोहल युक्त तत्वों यहां तक कि शराब आदि का भी सेवन करते रहे। गांधी के नीम आदि का प्रयोग करने वाले लोग बचे रहे वहीं एल्कोहल का प्रयोग करने वाले अनेक लोग बीमारी का शिकार हुए। यह बात प्रमाणिक और सत्य है। मांसाहार किसी भी तरह सेफ नहीं। वह रोगों का वाहक था और रहेगा।