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सजहन (मोरिंगा) की खेती: पोषक गुण, विधि, और आर्थिक लाभ

Published on: 15-Jul-2024
Updated on: 15-Jul-2024

सजहन, जिसे मोरिंगा (Moringa oleifera) के नाम से भी जाना जाता है, एक तेजी से बढ़ने वाला और पोषण से भरपूर पेड़ है।

इसकी खेती विभिन्न जलवायु परिस्थितियों में की जा सकती है और यह अपने औषधीय गुणों और पोषक तत्वों के कारण विश्वभर में लोकप्रिय है।

सजहन के पत्ते, फलियां, बीज और जड़ें सभी उपयोगी होते हैं और इनका उपयोग विभिन्न खाद्य और औषधीय उत्पादों में किया जाता है। इस लेख में आप इसकी खेती के बारे में जानेंगे।

सजहन के औषधीय और पोषक गुण

सजहन अपने पोषक तत्वों और औषधीय गुणों के कारण अत्यधिक मूल्यवान है। इसमें विटामिन ए, सी, और ई, कैल्शियम, पोटेशियम, प्रोटीन, और एंटीऑक्सिडेंट पाए जाते हैं।

इसके पत्तों और बीजों का उपयोग विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं जैसे उच्च रक्तचाप, डायबिटीज, और सूजन के उपचार में किया जाता है।

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जलवायु और मिट्टी

सजहन की खेती के लिए आदर्श जलवायु और मिट्टी की विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

  • तापमान: 25-35 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान इसकी वृद्धि के लिए उपयुक्त है।
  • वर्षा: सालाना 250-3000 मि.मी. वर्षा इसके लिए पर्याप्त है, लेकिन यह शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है।
  • मिट्टी: सजहन की खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन अच्छी जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त है। पीएच स्तर 6.5-7.5 के बीच होना चाहिए।

बीज और रोपण

सजहन की अच्छी फसल के लिए उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का चयन और उचित रोपण विधि महत्वपूर्ण है। निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान देना चाहिए:

  • बीज चयन: ताजे और स्वस्थ बीजों का चयन करें।
  • रोपण का समय: मानसून के शुरूआत में जून-जुलाई सबसे उपयुक्त समय है।
  • रोपण की विधि: सजहन की खेती बीजों और कलमों दोनों से की जा सकती है। बीजों को सीधे खेत में बोया जा सकता है या नर्सरी में उगाकर बाद में स्थानांतरित किया जा सकता है।
  • बीज दर: प्रति हेक्टेयर 500-1000 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
  • रोपण की गहराई: बीजों को 2-3 से.मी. गहराई पर बोना चाहिए।

खेत की तैयारी

सजहन की खेती के लिए खेत की तैयारी निम्नलिखित चरणों में की जाती है:

  • खेत की जुताई: खेत को अच्छी तरह से जोतना चाहिए ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए।
  • क्यारियां बनाना: खेत में समतल क्यारियां बनानी चाहिए ताकि जल निकासी ठीक से हो सके।
  • खाद और उर्वरक: खेत में गोबर की खाद या कम्पोस्ट का उपयोग करना चाहिए। रासायनिक उर्वरकों में NPK (नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, और पोटैशियम) का उपयोग संतुलित मात्रा में करना चाहिए।

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सिंचाई

सजहन की फसल को बहुत अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन शुरुआती दौर में नियमित सिंचाई आवश्यक है। इसकी सिंचाई निम्नलिखित तरीके से की जा सकती है:

  • पहली सिंचाई: रोपण के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए।
  • दूसरी सिंचाई: 10-15 दिन बाद, जब पौधे जमने लगें।
  • अन्य सिंचाई: सूखे मौसम में आवश्यकतानुसार 2-3 सिंचाई करें।

रोग और कीट प्रबंधन

सजहन की फसल पर विभिन्न रोग और कीटों का हमला हो सकता है। इनसे बचाव के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं:

  • फफूंद रोग: बीज उपचार और फसल की नियमित जांच करें। रोग के लक्षण दिखाई देने पर उपयुक्त फफूंदनाशक का उपयोग करें।
  • कीट: एफिड, जैसिड, और अन्य कीटों के लिए नीम का तेल या अन्य जैविक कीटनाशकों का उपयोग करें।
  • नियमित निरीक्षण: फसल की नियमित जांच करें और किसी भी रोग या कीट के लक्षण दिखाई देने पर तुरंत उपचार करें।

फसल की कटाई और संग्रहण

सजहन की फसल 6-8 महीनों में फलियां देने लगती है। फसल की कटाई और संग्रहण के लिए निम्नलिखित बिंदुओं का ध्यान रखना चाहिए:

  • कटाई: जब फलियां हरी और मांसल हो जाएं, तब कटाई करनी चाहिए। पत्तियों को भी आवश्यकता अनुसार काटा जा सकता है।
  • सुखाना: कटाई के बाद फसल को अच्छी तरह से सुखाना चाहिए ताकि नमी कम हो सके।
  • संग्रहण: सुखाई गई फसल को सूखे और हवादार स्थान पर संग्रहित करें, बोरियों में भरकर भंडारण करें।

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आर्थिक लाभ

सजहन की खेती से किसानों को अच्छे आर्थिक लाभ मिल सकते हैं। इसमें कम निवेश के साथ उच्च उत्पादन और बेहतर बाजार मूल्य मिलता है।

सजहन के पत्ते, फलियां, बीज, और जड़ों की बढ़ती मांग और इनके पोषण और औषधीय गुणों के कारण यह फसल किसानों के लिए एक लाभकारी विकल्प बन गई है।

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