देसी और जर्सी गाय में अंतर (Difference between desi cow and jersey cow in Hindi)

Published on: 24-Aug-2022

2021-22 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार विश्व के कुल दुग्ध उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी 23% है और वर्तमान में भारत में 209 मिलियन टन दूध का उत्पादन किया जाता है, जो कि प्रतिवर्ष 6% की वृद्धि दर से बढ़ रहा है। 

भारतीय किसानों के लिए खेती के साथ ही दुग्ध उत्पादन से प्राप्त आय जीवन यापन का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। भारत को विश्व दुग्ध उत्पादन में पहले स्थान तक पहुंचाने में गायों की अलग-अलग प्रजातियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। 

हालांकि, उत्तरी भारतीय राज्यों में भैंस से प्राप्त होने वाली दूध की उत्पादकता गाय की तुलना में अधिक है, परंतु मध्य भारत वाले राज्यों में भैंस की तुलना में गाय का पालन अधिक किया जाता है। 

भारत में पाई जाने वाली गायों की सभी नस्लों को दो मुख्य भागों में बांटा जा सकता है, जिन्हें देसी गाय (देशी गाय - Desi or deshi cow - Indegenous or Native cow variety of India) और जर्सी गाय (Jersey Cow / jarsee gaay) की कैटेगरी में वर्गीकृत किया जा सकता है।

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क्या है देसी और जर्सी गाय में अंतर ? (Difference between desi cow and jersey cow)

वैसे तो सभी गायों की श्रेणी को अलग-अलग नस्लों में बांटे, तो इन में अंतर करना बहुत ही आसान होता है।

  • देसी गाय की विशेषताएं एवं पहचान के लक्षण :

भारत में पाई जाने वाली देसी गायें मुख्यतः बीटा केसीन (Beta Casein) वाले दूध का उत्पादन करती है, इस दूध में A2-बीटा प्रोटीन पाया जाता है।

देसी गायों में एक बड़ा कूबड़ होता है, साथ ही इनकी गर्दन लंबी होती है और इनके सींग मुड़े हुए रहते है।

एक देसी गाय से एक दिन में, दस से बीस लीटर दूध प्राप्त किया जा सकता है।

प्राचीन काल से ग्रामीण किसानों के द्वारा देसी गायों का इस्तेमाल कई स्वास्थ्यवर्धक फायदों को मद्देनजर रखते हुए किया जा रहा है, क्योंकि देसी गाय के दूध में बेहतरीन गुणवत्ता वाले विटामिन के साथ ही शारीरिक लाभ प्रदान करने वाला गुड कोलेस्ट्रोल (Good cholesterol) और दूसरे कई सूक्ष्म पोषक तत्व पाए जाते हैं।

देसी गायों की एक और खास बात यह है कि इन की रोग प्रतिरोधक क्षमता जर्सी गायों की तुलना में अधिक होती है और नई पशुजन्य बीमारियों का संक्रमण देसी गायों में बहुत ही कम देखने को मिलता है।

देसी गायें किसी भी गंदगी वाली जगह पर बैठने से परहेज करती हैं और खुद को पूरी तरीके से स्वच्छ रखने की कोशिश करती हैं।

इसके अलावा इनके दूध में हल्का पीलापन पाया जाता है और इनका दूध बहुत ही गाढ़ा होता है, जिससे इस दूध से अधिक घी और अधिक दही प्राप्त किया जा सकता है।

देसी गाय से प्राप्त होने वाले घी से हमारे शरीर में ऊर्जा स्तर बढ़ने के अलावा आंखों की देखने की क्षमता बेहतर होती है, साथ ही शरीर में आई विटामिन A, D, E और K की कमी की पूर्ति की जा सकती है। पशु विज्ञान के अनुसार देसी गाय के घी से मानसिक सेहत पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

हालांकि पिछले कुछ समय से किसान भाई, देसी गायों के पालन में होने वाले अधिक खर्चे से बचने के लिए दूसरी प्रजाति की गायों की तरह फोकस कर रहे है।

यदि बात करें देसी गाय की अलग-अलग नस्लों की, तो इनमें मुख्यतया गिर, राठी, रेड सिंधी और साहिवाल नस्ल को शामिल किया जाता है।

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  • जर्सी या हाइब्रिड गायों की विशेषता और पहचान के लक्षण :

कई साधारण विदेशी नस्लों और सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक विधि की मदद से की गई ब्रीडिंग से तैयार, हाइब्रिड या विदेशी गायों को भारत में जर्सी श्रेणी की गाय से ज्यादा पहचान मिली है।

जर्सी गाय से प्राप्त होने वाले दूध में A1 और A2 दोनों प्रकार के बीटा केसीन प्राप्त होते है, जो कि हमारे शरीर में विटामिन और एंजाइम की कमी को दूर करने में मददगार साबित होते है।

हाइब्रिड गायों को आसानी से पहचानने के कुछ लक्षण होते है, जैसे कि इनमें किसी प्रकार का कोई कूबड़ नहीं होता है और इनकी गर्दन देसी गायों की तुलना में छोटी होती है, साथ ही इनके सिर पर उगने वाले सींग या तो होते ही नहीं या फिर उनका आकर बहुत छोटा होती है।

किसान भाइयों की नजर में जर्सी गायों का महत्व इस बात से है कि एक जर्सी गाय एक दिन में 30 से 35 लीटर तक दूध दे सकती है, हालांकि इस नस्ल की गायों से प्राप्त होने वाला दूध, पोषक तत्वों की मात्रा में देसी गायों की तुलना में कम गुणवत्ता वाला होता है और इसके स्वास्थ्य लाभ भी कम होते हैं।

न्यूजीलैंड में काम कर रही पशु विज्ञान से जुड़ी एक संस्थान के अनुसार, हाइब्रिड नस्ल की गाय से प्राप्त होने वाले उत्पादों के इस्तेमाल से उच्च रक्तचाप और डायबिटीज ऐसी समस्या होने के अलावा, बुढ़ापे में मानसिक अशांति जैसी बीमारियां होने का खतरा भी रहता है।

भारत में पाई जाने वाली ऐसे ही कई हाइब्रिड गायें अनेक प्रकार की पशुजन्य बीमारियों की आसानी से शिकार हो जाती हैं, क्योंकि इन गायों का शरीर भारतीय जलवायु के अनुसार पूरी तरीके से ढला हुआ नहीं है, इसीलिए इन्हें भारतीय उपमहाद्वीप में होने वाली बीमारियां बहुत ही तेजी से ग्रसित कर सकती है।

जर्सी या हाइब्रिड गाय कैटेगरी की लगभग सभी गायें कम चारा खाती है, इसी वजह से इनको पालने में आने वाली लागत भी कम होती है।

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उत्तरी भारत के राज्यों में मुख्यतः हाइब्रिड किस्म की गाय की जर्सी नस्ल का पालन किया जाता है, परन्तु उत्तरी पूर्वी राज्यों जैसे कि आसाम, मणिपुर, सिक्किम में तथा एवं दक्षिण के कुछ राज्यों में शंकर किस्म की कुछ अन्य गाय की नस्लों का पालन भी किया जा रहा है, जिनमें होल्सटीन (Holstein) तथा आयरशिर (Ayrshire) प्रमुख है। 

भारतीय पशु कल्याण बोर्ड के द्वारा गठित की गई एक कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार, देसी गायों को पालने वाले किसान भाइयों को समय समय पर टीकाकरण की आवश्यकता होती है, जबकि हाइब्रिड नस्ल की गायें कम टीकाकरण के बावजूद भी अच्छी उत्पादकता प्रदान कर सकती है।

पशु विज्ञान से जुड़े वैज्ञानिकों के अनुसार गिर जैसी देसी नस्ल की गाय में पाए जाने वाले कूबड़ की वजह से उनके दूध में पाए जाने वाले पोषक तत्व अधिक होते हैं, क्योंकि, यह कूबड़ सूरज से प्राप्त होने वाली ऊर्जा को अपने अंदर संचित कर लेता है, साथ ही विटामिन-डी (Vitamin-D) को भी अवशोषित कर लेता है। 

इस नस्ल की गायों में पाई जाने वाली कुछ विशेष प्रकार की शिराएं, इस संचित विटामिन डी को गाय के दूध में पहुंचा देती है और अब प्राप्त हुआ यह दूध हमारे शरीर के लिए एक प्रतिरोधक क्षमता बूस्टर के रूप में काम करता है। वहीं, विदेशी या हाइब्रिड नस्ल की गायों में कूबड़ ना होने की वजह से उनके दूध में पोषक तत्वों की कमी पाई जाती है।

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पिछले कुछ समय से दूध उत्पादन मार्केट में आई नई कंपनियां देसी गायों की तुलना में जर्सी गाय के पालन के लिए किसानों को ज्यादा प्रोत्साहित कर रही है, क्योंकि इससे उन्हें कम लागत पर दूध की अधिक उत्पादकता प्राप्त होती है।

लेकिन किसान भाइयों को ध्यान रखना चाहिए कि यदि उन्हें अपने लिए या अपने परिवार के सदस्यों के लिए गायों से दूध और घी प्राप्त करना है, तो उन्हें देसी नस्ल की गायों का पालन करना चाहिए और यदि आपको दूध को बेचकर केवल मुनाफा कमाना है, तो आप भी हाइब्रिड नस्ल की गाय पाल सकते है।

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