आम की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग और उनके नियंत्रण के उपाय

Published on: 10-May-2024

आम की फसल को कई प्रकार के रोग प्रभावित कर सकते हैं। ये रोग फसल की सेहत को कमजोर कर सकते हैं और पूरी पौधशाला को प्रभावित कर सकते हैं।

आम के रोगों के कारण फसल की उपज पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। इस लेख में हम आज आपको आम की फसल में लगने वाले प्रमुख रोगों और उनके नियंत्रण के बारे में जानकारी देंगे, जिससे की आप समय से उन रोगों की पहचान करके उनका नियंत्रण कर सकते है।    

कालावूण रोग (Anthracnose)

यह रोग नई पत्तियों, तने, पुष्पक्रम और फलों पर दिखाई देता है। पत्तियों पर अंडाकार अनियमित, भूरे-भूरे रंग के धब्बे जो मिलकर पत्ती के बड़े क्षेत्र को ढक सकते हैं । 

प्रभावित पत्ती के ऊतक सूखकर टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं। संक्रमित डंठलों पर पत्तियाँ झड़कर गिर जाती हैं। नये तने पर भूरे भूरे धब्बे विकसित हो जाते हैं। धब्बे बड़े हो जाते हैं और प्रभावित क्षेत्र के घेरने और सूखने का कारण बनते हैं।

रोग नई पत्तियों, तने, पुष्पक्रम और फलों पर दिखाई देता है। अक्सर, टहनियों पर शीर्ष से नीचे की ओर काले परिगलित क्षेत्र विकसित हो जाते हैं, जिसके कारण फल ख़राब होकर गिर जाते है। 

आर्द्र मौसम में, पुष्प अंगों पर छोटे-छोटे काले बिंदु विकसित हो जाते हैं। संक्रमित फूल के हिस्से अंततः झड़ जाते हैं जिसके परिणामस्वरूप आंशिक या पूर्ण रूप से फूल नष्ट हो जाते हैं। 

पकने वाले फलों में विशिष्ट एन्थ्रेक्नोज दिखाई देता है। काले धब्बे दिखाई देना, प्रभावित फलों की त्वचा धीरे-धीरे धँस जाती है और चिपक जाती है।

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कालावूण रोग नियंत्रण के उपाय

  • 0.2 प्रतिशत जिनैब मिश्रण का छिड़काव करें। जिन क्षेत्रों की सम्भावना अधिक हो वहां सुरक्षा के तौर पर कलियाँ विकसित होने से पहले ही उपरोक्त घोल का छिड़काव करें।
  • फूलों की शाखाओं पर अक्टूबर से शुरू करके 3 सप्ताह के अंतराल पर पी. फ्लोरेसेंस (एफपी 7) 5 ग्राम प्रति की दर से छिड़काव करें।
  • फूलों और गुच्छों पर 5-7 छिड़काव एक बार करें। फलों को भंडारण से पहले, 15 मिनट के लिए गर्म पानी (50-55°C) से उपचारित करें
  • 5 मिनट के लिए बेनोमिल घोल (500 पीपीएम) या थायोबेंडाजोल (1000 पीपीएम) में डुबोएं।

सफ़ेद चूर्णी रोग (Powdery mildew)

ख़स्ता फफूंदी आम की सबसे गंभीर बीमारियों में से एक है जो लगभग सभी किस्मों को प्रभावित करती है। रोग का विशिष्ट लक्षण सफेद सतही पाउडरयुक्त फफूंद का बढ़ना है। 

ये पाउडर पौधे के कई भोगों को ढक लेता है, पत्तियाँ, पुष्पगुच्छों के डंठल, फूल और युवा फल सभी इस रोग से प्रभावित होते है। 

प्रभावित फूल और फल समय से पहले गिर जाते हैं जिससे फसल का भार काफी कम हो जाता है या फल लगने में भी रुकावट आ सकती है। बारिश या धुंध फूल आने के दौरान ठंडी रातें रोग फैलने के लिए अनुकूल होती हैं।

सफ़ेद चूर्णी रोग नियंत्रण के उपाय

इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर 0.5 किग्रा/वृक्ष की दर से बारीक सल्फर (250-300 मेश) छिड़कें। पहला फूल आने के तुरंत बाद, दूसरा 15 दिन बाद वेटटेबल सल्फर (0.2%) का छिड़काव करें। इसके आलावा कार्बेन्डाजिम (0.1%) या ट्राइडेमोर्फ (0.1%), या कैराथेन (0.1%) आदि का भी छिड़काव कारगर माना गया है। 

जिन क्षेत्रों में बौर आने के समय मौसम असामान्य रहा हो वहां हर हालत में सुरक्षात्मक उपाय के आधार पर 0.2 प्रतिशत वाले गंधक के घोल का छिड़काव करें और जरुरत के अनुसार उसे दुहराएँ।

गुम्मा रोग (Malformation)

ये आप की फसल का भयानक रोग है जिससे कारण उपज में काफी हद तक कमी आती है। आम की फसल का ये रोग फ्यूजेरियम मोलिलिफोर्मे सबग्लोटिनेंस नामक फफूंद के कारण होता है। 

इस रोग के लक्षण तीन प्रकार के होते है- गुच्छेदार शीर्ष चरण, पुष्प विकृति और वनस्पति आदि। नर्सरी में गुच्छेदार शीर्ष चरण में गाढ़े छोटे अंकुरों का गुच्छा, अक्सर छोटी-छोटी प्रारंभिक पत्तियाँ। 

शूट छोटे रहते हैं और एक गुच्छेदार शीर्ष उपस्थिति देते हुए बौना रह जाते है। वानस्पतिक विकृति, आम की टहनी पर एक पट्टी के स्थान पर अनगिनत छोटी-छोटी पत्तियों का गुच्छा बन जाना, तने की गांठों के बीच अंतराल अत्यधिक कम हो जाना, पत्तियों का कड़ा हो जाना, बाद में यह गुच्छा नीचे की और झुक जाता है और टॉप जैसा दिखता है।

पुष्पक्रम की विकृति, पुष्पगुच्छ में भिन्नता दर्शाती है। विकृत सिर सूखकर काले हो जाते है, द्रव्यमान और लंबे समय तक बना रहता है। द्वितीयक शाखाएं छोटी-छोटी पत्तियों में परिवर्तित हो जाती हैं और चुड़ैलों की झाड़ू जैसी दिखाई देती है।

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गुम्मा रोग नियंत्रण के उपाय 

  • रोगग्रस्त पौधों को नष्ट कर देना चाहिए। रोगमुक्त रोपण सामग्री का उपयोग करें। 
  • आम के पौधे गुम्मा रोग से बचाने के लिए रोगग्रस्त पुष्पों की मंजरियों को 30-40 से.मी. नीचे से कटाई कर दें और धरती में खोद कर दबा दें।
  • चार मि.ली. प्लानोफिक्स प्रति नौ लीटर पानी में घोलकर फरवरी-मार्च के महीने में छिड़काव करें। 
  • उपचार के लिए प्रारम्भिक अवस्था में जनवरी-फरवरी माह में बौर को तोड़ दें और अधिक प्रकोप होने पर 200 पीपीएम वृध्दि (naa) होरमोन की 900 मिली प्रति 200 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव कर दें, और कलियाँ आने की अवस्था में जनवरी के महीने में पेड़ के बौर तोड़ देना भी लाभदायक रहता है, क्योंकि इससे न केवल आम की उपज बढ़ जाती है। बल्कि इस बीमारी के आगे फैलने की सम्भावना भी कम हो जाती है।

स्टेम एंड रॉट (Stem end rot)

इस रोग से प्रभावित पौधों पर पेडिकेल के आधार के चारों ओर गहरा एपिकार्प बन जाता है। प्रारंभिक चरण में प्रभावित क्षेत्र बड़ा होकर एक गोलाकार, काला धब्बा बन जाता है। 

ये रोग आर्द्र वातावरण में तेजी से फैलता है। इस रोग से प्रभावित पौधे का पूरा फल दो या तीन दिन में पूरी तरह काला हो जाता है। गूदा भूरा और कुछ हद तक भूरा काला हो जाता है, बारिश से फैली पेड़ों की मृत टहनियाँ और छाल इस रोग को फैलती है।

स्टेम एंड रॉट (Stem end rot) रोग नियंत्रण के उपाय

संक्रमित टहनियों को काटकर नष्ट कर दें और कार्बेन्डाजिम या थायोफैनेट मिथाइल (0.1%) या क्लोराथालोनिल का छिड़काव करें।

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