नंदी रथ के जरिए किसान कर रहे हैं हर महीने कमाई, जाने क्या है तरीका

Published on: 23-Jan-2023

आजकल भारत में गौवंश को बचाने की बहुत बड़ी पहल चल रही है। देशी गौवंश के संरक्षण के बारे में बढ़-चढ़कर बात की जा रही है और साथ ही गौवंश ऊपर आधारित प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। आज किसानों के लिए निराश्रित गौवंश बड़ी समस्या बनती जा रही है। लेकिन देसी गौवंश में सबसे बड़ी बाधा दूध ना देने वाले पशु यानी बछड़े और बैल ही बनते हैं, जिनकी कुछ ज्यादा वैल्यू नहीं है। यही वजह है, कि आप को सड़कों पर हर जगह यह बैल घूमते हुए नजर आते रहते हैं और इनकी हालत बेहद खराब होती है। लेकिन आज हम आपको यह बताना चाहते हैं, कि इन निराश्रित पशुओं की अहमियत को समझें और इन्हें बोझ की तरह नहीं बल्कि कमाई का साधन बना कर अच्छी तरह से इनका ध्यान रखें। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि यह नर पशु आपको स्वयं अपना सारा भी कमा कर देंगे और इसके अलावा आपके घर में आमदनी के साधन भी बन सकते हैं।

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क्या है नंदी रथ?

आपको यह बात हैरान कर देगी। लेकिन आजकल बैलों के माध्यम से देश के कई इलाकों में बिजली बनाई जा रही है। यह बिजली उन्हें निराश्रित बैलों के माध्यम से बनाई जा रही है, जिन्हें आप सड़कों पर आवारा घूमते हुए देख सकते हैं। आवारा पशु एक तरह से गौशाला के ऊपर बोझ ही होते हैं, जिनकी देखभाल और खान-पान आदि पर सरकार का खर्च बढ़ जाता है। यदि सरकार इन्हीं गौवंशों को बिजली बनाने के काम पर लगा दे, तो इन गौवंशों की वैल्यू बढ़ेगी और कमाई भी होगी। ये भी देखें: Cow-based Farming: भारत में गौ आधारित खेती और उससे लाभ के ये हैं साक्षात प्रमाण लखनऊ से कुछ ही किलोमीटर दूर पर गोसाईगंज के सिद्धुपुरवा गांव में भी एक ऐसे ही मॉडल पर काम चल रहा है। यहां पर एक गौशाला बैलों को ट्रेडमिल पर चलाती है, जिससे बिजली का उत्पादन किया जा सकता है। अगरसूत्रों की मानें तो गौशाला ने यह कांसेप्ट नंदी रथ से लिया है। इसलिए इसका नाम नंदी रथ योजना रखा गया है। इस नंदी रथकर पर बैलों को चढ़ा दिया जाता है, साथ में चारे का इंतजाम भी होता है। ये बैल चारा खाते हैं और ट्रेडमील पर चलते हैं। बदले में ट्रेडमील को गियर बॉक्स से जोड़ा गया है, जो 1500 आरपीएम पावर को कन्वर्ट कर रहा है।

बढ़िया हो रहा है बिजली उत्पादन

रिपोर्ट की मानें तो गौशाला के मालिक पूर्व डीएसपी शैलेंद्र सिंह ने खुद यह बात बताई है, कि 1500 आरपीएम पर ही बिजली निर्माण होता है। अभी तक पूरी दुनिया में 500 से 700 आरपीएम ही लिया गया है। लेकिन इस गैशाला में लगे गियरबॉक्स (gearbox) ने अधिक बिजली मात्रा में बिजली लेने का रिकॉर्ड बना दिया है। इस मॉडल को बाकायदा पेटेंट करवाया गया है। इस मॉडल से बनाई गई बिजली से किसान ना सिर्फ अपनी कृषि से जुड़ी हुई जरूरतों को पूरा कर रहे हैं। बल्कि उनके घर के तमाम उपकरण भी इसी बिजली से चलाए जा रहे हैं। मीडिया से हुई बातचीत में शैलेंद्र सिंह ने बताया कि सौर ऊर्जा से बनने वाली बिजली के लिए भी हमें ₹3 प्रति यूनिट देना पड़ता है। जबकि नंदी रथ योजना के तहत बन रही बिजली मात्र 1.5 रुपये में ही मिल सकती है।

किसानों की कितनी कमाई हो जाएगी

आंकड़ों की मानें तो नंदी रथ के जरिए बैलों से बनाई गई बिजली के आधार पर किसान हर महीने 4000 से ₹5000 की आमदनी सीधे तौर पर कमा सकते हैं। यह कमाई तो सिर्फ बिजली से होगी। इसके अलावा, बैलों से मिलने वाले गोबर से आप वर्मी कंपोस्ट, जैविक खाद आदि बनाकर भी अच्छा पैसा कमा सकते हैं। इन दिनों पर्यावरण सरंक्षण में जैविक खेती और ग्रीन एनर्जी (green energy) का चलन बढ़ता जा रहा है। माना जा रहा है, कि यह कांसेप्ट भी आगे चलकर सौर ऊर्जा की तरह ग्रीन एनर्जी का एक बहुत ही खूबसूरत उदाहरण बन सकता है। यहां पर एक और अच्छी बात यह है. कि बहनों से बन रही बिजली के उत्पादन में पर्यावरण को किसी भी तरह का नुकसान नहीं होता है। जबकि सोलर उत्पादन में भी लगभग 25 साल बाद डिस्पोजल की समस्या को गंभीर होने का खतरा माना गया है।

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