Ad

टमाटर की फसल में लगने वाले प्रमुख रोगों का नियंत्रण कैसे करे, जाने यहां

Published on: 13-May-2024
Updated on: 23-Dec-2024

टमाटर की फसल विशेष रूप से भारतीय खाद्य संस्कृति में महत्वपूर्ण है और यह एक प्रमुख सब्जी है जो विभिन्न प्रकार के व्यंजनों में उपयोग किया जाता है जैसे की सलाद, सूप, सॉस, और सब्जियों में। 

टमाटर का वास्तविक अनुभव तथा उत्पादन भारी खेती में या छोटे स्तर पर भी किया जा सकता है। यह फल प्राय: लाल, पीला, और हरे रंग का होता है। 

टमाटर की खेती में किसानो को कई कठनाईयो का भी सामना करना पड़ता है, इनमे सबसे प्रमुख है टमाटर की फसल में लगने वाले रोग।

टमाटर की फसल में लगने वाले रोग फसल उत्पादन को बहुत प्रभावित करते है जिससे की उपज में काफी हद तक कमी आ जाती है। 

आज के इस लेख में हम आपको इसकी फसल में लगने वाले प्रमुख रोगों के बारे में जानकारी देंगे जिससे की आप समय से रोगों की पहचान करके उनका नियंत्रण कर सकते है।

टमाटर से कौन-कौन से रोग होते हैं?

टमाटर की फसल कई रोगों से प्रभावित होती है। टमाटर के सफल उत्पादन के लिए जरुरी है कि उसमे लगने वाले रोगों के बारे में सटीक जानकारी हो ताकि उनका सही तरिके से उपचार करके टमाटर का उत्पादन बढ़ाया जा सके। नीचे आप इस फसल में लगने वाले प्रमुख रोगों और उनके उपचार के बारे में जानेंगे। 

ये भी पढ़ें: टमाटर उत्पादक किसान ने महज कुछ दिनों में ही करोड़ों की आमदनी कर डाली

आद्र्रगलन या कमरतोड़ रोग (Damping off)

इस रोग का प्रमुख कारक पाइथियम एफैनिडर्मेटम नामक जीवाणु है। कमरतोड़ रोग (Damping off) रोग के लक्षण दो चरणों में होता है। पहले के चरण मे ये रोग नर्सरी में ही शुरू हो जाता है इस चरण में बीज अंकुर भूमि की सतह से ऊपर आने से पहले ही मर जाते है। 

जिससे की नर्सरी में पौधों की बहुत कमी आती है। रोग से प्रभावित युवा रेडिकल और प्लम्यूल मर जाते हैं और पूरी तरह से सड़ जाते हैं।     

पौधे बनने के बाद का चरण - दूसरे चरण में संक्रमण पौधों के तनो पर होता है। जमीनी स्तर पर संक्रमित ऊतक मुलायम हो जाते हैं और पानी से लथपथ हो जाते हैं। 

तने का विगलन  होने से पौधा भूमि की सतह पर लुढ़ककर गिर कर मर जाता है। आरंभ में रोग के लक्षण  कुछ जगहों पर दिखाई पड़ते है तथा 2-3 दिन में ये रोग सारे पौधों या नर्सरी में फ़ैल जाता है।

आद्र्रगलन या कमरतोड़ रोग की रोकथाम के उपाय   

पौधशाला में रोग के को नियंत्रित करने के लिए फोर्मलिन से बुवाई के 15 से 20 दिनों पहले उपचारित करे, तब तक पॉलीथिन की चादरों से ढककर रखें। जब मिट्टी से इस दवा की गंद निकलनी बंद हो जाए तो उसके बाद बीज बोएं।       

इस रोग से बचाव के लिए नर्सरी बेब के लिए ऊंची बेड विधि का इस्तेमाल करे। बेहतर जल निकासी के लिए हल्की, लेकिन बार-बार सिंचाई करें।

कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 0.2% या बोर्डो मिश्रण 1% के साथ फफूंद कल्चर से बीजोपचार करें, इसके आलावा ट्राइकोडर्मा विराइड (4 ग्राम/किलो बीज) या थिरम (3 ग्राम/किलो बीज) इसका एकमात्र निवारक उपाय है। बादल छाए रहने पर 0.2% मेटालैक्सिल का छिड़काव करें।   

फ्यूजेरियम विल्ट (Fusarium Wilt)

रोग का पहला लक्षण शिराओं का साफ होना और पत्तियों का हरितहीन होना है। नई पत्तियाँ एक के बाद एक मर सकती हैं और कुछ ही दिनों में पूरी पत्तियाँ मुरझाकर नष्ट हो सकती हैं।

रोग के संक्रमण से डंठल और पत्तियाँ झड़ जाती हैं और मुरझा जाती हैं। युवा पौधों में, लक्षण का समाशोधन होता है। शिराओं का टूटना और डंठलों का गिरना इसका मुख्य लक्षण माना जाता है। 

खेत में सबसे पहले निचली पत्तियों का पीला पड़ना और प्रभावित पत्तियां का मुरझा और मर जाना संभव लक्षण है। 

ये भी पढ़ें: भिंड़ी की खेती को प्रभावित करने वाले प्रमुख कीट एवं रोग

फ्यूजेरियम विल्ट (Fusarium Wilt) रोग की रोकथाम के उपाय  

  • प्रभावित पौधों को हटाकर नष्ट कर देना चाहिए। 
  • रोग को नियंत्रित करने के लिए कार्बेन्डाजिम (0.1%) से स्पॉट ड्रेंच करें। 
  • रोग को ख़तम करने के लिए अनाज जैसी गैर-मेजबान फसल के साथ फसल चक्र अपनाए।     

पछेती झुलसा रोग

पछेती झुलसा रोग फाइरोफ्थोरा इनफेस्टेन्स नामक कवक से होता है। गर्म, गीले मौसम में टमाटर की पत्तियों और फलों के माध्यम से तेजी से फैलती है, जिससे पतन और क्षय होता है। 

ब्लाइट का प्रारंभिक लक्षण पत्तियों का तेजी से फैलना, पानी जैसा सड़ना है, जो जल्द ही गिर जाते हैं, सिकुड़ जाते हैं और भूरे हो जाते हैं। 

उपयुक्त परिस्थितियों के दौरान, जब रोगज़नक़ पत्ती के ऊतकों के माध्यम से सक्रिय रूप से फैल रहा होता है, तो घावों के किनारे हल्के हरे रंग के दिखाई दे सकते हैं, और पत्तियों के नीचे की तरफ एक महीन सफेद 'कवक' की वृद्धि देखी जा सकती है।   

पछेती झुलसा रोग की रोकथाम के उपाय  

फसल को पिछेती झुलसा रोग से बचाने के लिए स्वस्थ रोगमुक्त पौधों का उपयोग करना चाहिए।

खेत से रोगग्रस्त पौधों को बाहर निकालकर नष्ट कर दें। साथ ही प्रभावित फसल पर 25 ग्राम प्रति लीटर की दर से 4 प्रतिशत मेटालेक्सिल और 64 प्रतिशत मैंकाजेव छिडक़ाव करें।

अगेती झुलसा रोग

अल्टरनेरिया सोलेनाई नामक कवक टमाटर की फसल में यह रोग पैदा करता है। प्रभावित पौधों की पत्तियों पर छोटे काले धब्बे हैं, जो बड़े होकर गोल छल्लेनुमा धब्बों में बदल जाते हैं। फल पर गहरे और शुष्क धब्बे होते हैं। इन धब्बों के बढ़ने से पत्तियां गिर जाती हैं। रोग पौधे के हर हिस्से में फैल सकता है।

अगेती झुलसा रोग की रोकथाम के उपाय

रोग से प्रभावित पौधों को जलाकर नष्ट करना चाहिए ताकि यह रोग अन्य पौधों में ना फैल पाए। 

टमाटर के बीजों को बोने से पहले 75 WP प्रति kg बीजोपचार करना चाहिए। यदि फसल में रोग के लक्षण दिखाई दें तो मैंकोजेब 75 WP 2.5 kg प्रति हेक्टर की दर से 10 दिन के अंतराल पर छिडक़ाव करना चाहिए। 

फसल चक्र को अपनाकर भी इस रोग को नियंत्रित किया जा सकता है। 

ये भी पढ़ें: आम की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग और उनके नियंत्रण के उपाय

लीफ कर्ल रोग

लीफ कर्ल रोग की विशेषता पौधों का गंभीर विकास रुक जाना और नीचे की ओर लुढ़क जाना है। इस रोग के लक्षण पत्तों का सिकुड़ना नई उभरती पत्तियाँ बाद में हल्के पीले रंग की दिखाई देना हैं, व कर्लिंग लक्षण भी दिखाते हैं। 

पुरानी पत्तियाँ चमड़े जैसी और भंगुर हो जाती हैं। नोड्स औरइंटरनोड्स का आकार काफी कम हो जाता है।

संक्रमित पौधे पीले दिखते हैं और बढ़वार कम देते हैं। पार्श्व शाखाएँ झाड़ीदार रूप देती हैं। इस रोग से प्रभावित संक्रमित पौधे बौने रह जाते हैं।

लीफ कर्ल रोग का रोकथाम 

ये रोग सफेद मक्खी के द्वारा फैलाया जाता है इसलिए सफेद मक्खी की निगरानी के लिए 12/हेक्टेयर की दर से पीला चिपचिपा जाल रखें। 

अवरोधक फसलें-अनाज उगाएं, खेत के चारों ओर खरपतवार मेजबान को हटाना नेट हाउस या ग्रीन हाउस में संरक्षित नर्सरी में  सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए रोपाई के 15, 25, 45 दिन बाद इमिडाक्लोप्रिड 0.05% या डाइमेथोएट 0.05% का छिड़काव करे।

Ad