अकरकरा (स्पिलैंथेस ऐक्मेला), जिसेएक्मेला ओलेरेसियाके नाम से भी जाना जाता है, एक अनोखा और बहुउपयोगी औषधीय पौधा है।
इसे दांत दर्द निवारक पौधे के रूप में भी जाना जाता है, और इसके औषधीय गुणों के कारण इसे एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधे के रूप में मान्यता प्राप्त है।
स्वास्थ्य देखभाल और खाद्य पदार्थों में इसके पारंपरिक उपयोगों के कारण, आजकल इसकी मांग विश्वभर में तेजी से बढ़ रही है।
अकरकरा के फूल शुरुआत में गाढ़े लाल रंग के होते हैं; वे धीरे-धीरे फैलते हैं और पीले रंग में बदल जाते हैं, जबकि शीर्ष पर लाल रंग बना रहता है।
इसके पत्ते स्वाभाविक रूप से गहरे हरे रंग के होते हैं, और डंठल, पत्ती के डंठल और शिराएं गहरे हरे रंग के साथ हल्के बैंगनी रंग की होती हैं।
यह एक आसानी से उगने वाला पौधा है, जिसमें फैलने और झुकने की प्रवृत्ति होती है।
अकरकरा की खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु आदर्श होती है। इसे भरपूर धूप की आवश्यकता होती है, और अत्यधिक बारिश के बिना भी इसकी फसल अच्छी होती है।
सर्दियों में पाले को सहन करने की क्षमता इसे विशेष बनाती है। अंकुरण के लिए 20-25°C और पकने के समय लगभग 35°C तापमान उपयुक्त होता है।
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इस फसल के लिए उपजाऊ और उचित जल निकासी वाली भूमि आवश्यक है। काली, लाल, या दोमट मिट्टी में यह फसल अच्छी होती है।
भारी मिट्टी या जलभराव वाली भूमि इसके लिए उपयुक्त नहीं होती। भूमि का पी.एच. मान 6-8 के बीच होना चाहिए।
बुवाई का सर्वोत्तम समय मानसून के मौसम (जून-जुलाई) में होता है। इस दौरान मिट्टी में नमी बीज अंकुरण को प्रोत्साहित करती है।
अकरकरा की हरी और लाल किस्में प्रमुख हैं। ये किस्में समान मिट्टी और जलवायु में उगाई जा सकती हैं और औषधीय गुणों से भरपूर होती हैं।
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मिट्टी को भुरभुरा और नर्म बनाने के लिए गहरी जुताई करें। जैविक खाद जैसे वर्मी कंपोस्ट, नीम की खली, और जिप्सम पाउडर का उपयोग करें। फफूंद नाशक जैसे ट्राइकोडर्मा का भी प्रयोग करें।
पौधों को 30 से.मी. x 30 से.मी. की दूरी पर लगाएं। पौधे बीज या पौध के माध्यम से उगाए जा सकते हैं। नर्सरी में बीज को गोमूत्र और ट्राइकोडर्मा से उपचारित कर प्रो-ट्रे में लगाएं।
पौधों को लगाने के तुरंत बाद सिंचाई करें। अंकुरण तक हल्की सिंचाई आवश्यक है। बाद में 20-25 दिनों के अंतराल पर पानी दें। कुल 5-6 सिंचाई पर्याप्त होती हैं।
खरपतवार को हटाने के लिए नीलाई गुड़ाई करें। रासायनिक नियंत्रण से बचें क्योंकि इससे कंद की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है।
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एफिड, थ्रिप्स, और माइट जैसे कीटों को जैविक कीटनाशकों से नियंत्रित करें। रोगों से बचाव के लिए नियमित निगरानी और रोकथाम उपाय अपनाएं।
बुवाई के 90-100 दिनों बाद फसल कटाई के लिए तैयार होती है। पूरी तरह परिपक्व फूलों और पत्तियों को काटें।