किसानों रबी का मौसम शुरू होने वाला है। इस समय किसान अपनी खरीफ की फसलों की कटाई करके रबी की फसलों की बुवाई करेंगे। रबी की फसल का अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए फसलों में समय पर कृषि संबंधी कार्य करना बहुत मत्वपूर्ण हैं।
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार फसलों की समय पर देखभाल करना बहुत आवश्यक है अगर किसान इसमें थोड़ी भी लापरवाही करते है तो फसलों के उत्पादन में बहुत कमी आ सकती हैं।
इसलिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा दी गयी विशेष जानकारी के बारे में हम इस लेख में आपको जानकारी दे रहे हैं जिससे की आप अक्टूबर माह के कृषि संबंधी आवश्यक कार्यों को आसनी से कर सकते हैं।
धान की फसल में कटाई से 10–15 दिन पूर्व खेत में पानी लगाना बंद कर देना चाहिए। साथ ही यदि जमीन गहरी हो और उसमें पानी खड़ा हो तो उसका जल निकाल देना चाहिए जिससे की कटाई के समय खेत में पानी ना हो।
धान की फसल के पकने के समय 80–90 प्रतिशत दानों का रंग पीला–सुनहरा हो जाता है। यदि ऐसे दानों को चबाया जाए तो कट-कट की आवाज़ आती है।
इस दशा में दानों के अंदर लगभग 20–22 प्रतिशत नमी होती है। धान की कटाई हाथ से, रीपर अथवा कंबाइन मशीन से की जाती है।
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इस समय रबी की तिलहनी फसलों की बुवाई भी किसान कर सकते हैं। रबी की प्रमुख तिलहनी फसलें – राई एवं सरसों, अलसी और कुसुम आदि की बुवाई इस महीने में की जाती है।
अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए राई और सरसों की बुवाई अक्टूबर के तीसरे सप्ताह तक समाप्त कर लेनी चाहिए। सरसों की फसल में सिंचित दशा में 60–80 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 40–50 कि.ग्रा. फॉस्फोरस, 30–40 कि.ग्रा. पोटाश एवं 20–30 कि.ग्रा. गंधक प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है।
बारानी अथवा असिंचित दशा में 30–40 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 20–25 कि.ग्रा. फॉस्फोरस एवं 15–20 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर की सिफारिश की जाती है।
असिंचित क्षेत्रों में नाइट्रोजन की आधी मात्रा का प्रयोग बुवाई के समय करें। सिंचित दशा में नाइट्रोजन की आधी, फॉस्फोरस, पोटाश एवं गंधक की सम्पूर्ण मात्रा का प्रयोग बुवाई के समय करें। नाइट्रोजन की शेष आधी मात्रा बुवाई के 35–40 दिन बाद पहली सिंचाई पर करें।
सरसों की बुवाई के लिए उपयुक्त बीज की मात्रा प्रति हेक्टेयर 5–6 कि.ग्रा. होती है। बीज की बुवाई से पहले बीज को उपचारित करना बहुत आवश्यक होता है। बीज जनित रोग से बचाव के लिए बीजों को थायरम अथवा केप्टन 2–2.5 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें।
सरसों की बुवाई करते समय बुवाई की दुरी का ध्यान रखना भी बहुत आवश्यक होता है, इसकी कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. रखें। कतार में बोने वाली फसलों की बुवाई 45–50 से.मी. की दूरी पर करें। दूरी वाली किस्मों में कतार से कतार की दूरी 45–50 से.मी. और पौधे से पौधे की दूरी 12–15 से.मी. की रखें।
अलसी की बुवाई अक्टूबर के दूसरे पखवाड़े से नवंबर के दूसरे पखवाड़े के बीच की जाती है। एक हेक्टेयर से बुवाई के लिए 25–30 कि.ग्रा. बीज पर्याप्त होता है। अलसी की प्रमुख उन्नतशील किस्में हैं – नेहर, रणधीर, जे.एल. 23, प्रबोधन, 17, जवाहर 23, जवाहर 552, गरिमा, शेखा, स्वेता, सुभम, एस.एल. 2, एस.एल. 27 एवं शीतल आदि।
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चना, मटर और मसूर की बुवाई अक्टूबर के प्रथम पखवाड़े से नवंबर के प्रथम पखवाड़े के मध्य तक समाप्त कर लेनी चाहिए। साथ ही उन्नतशील किस्मों का चयन करें और बीज की राइजोबियम एवं पी.एस.बी. के टीकों से अवश्य उपचारित करें।
तीनों फसलों में लगभग 15–20 कि.ग्रा./हे. नाइट्रोजन, 40–50 कि.ग्रा./हे. फॉस्फोरस एवं 20–30 कि.ग्रा./हे. पोटाश की आवश्यकता होती है। संरक्षित उर्वरकों की समुचित मात्रा का प्रयोग बुवाई के समय पर ही करें।
छोटे एवं मध्यम आकार के दाने वाली किस्मों के लिए 60–80 कि.ग्रा. तथा बड़े दाने वाली किस्मों के लिए 80–100 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है।
बुवाई 30–35 से.मी. की दूरी पर करनी चाहिए। मोटर और मसर के लिए क्रमश: 80–120 एवं 30–40 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है। 1 मीटर X 30 से.मी. एवं मसर 25 से.मी. की दूरी पर पंक्तियों में बुवाई की जाती है।
रबी की मुख्य चारा फसलों में बरसीम, रिजका और जई आदि शामिल हैं। उपरोक्त फसलों की बुवाई का समय मध्य अक्टूबर से मध्य नवम्बर है।
बुवाई के लिए उच्चतम किस्मों का उपयोग करें तथा सही मात्रा में पोषक तत्व प्रबंधन करें। चारा फसलों की बुवाई समय से करने पर पशुओं के लिए चारा उपलब्ध रहता है, जिससे दूध का उत्पादन भी कम नहीं होता हैं।
इस महीने में मिर्च एवं टमाटर के खेतों में विषाणु रोग से ग्रसित पौधों को उखाड़कर जमीन में गाड़ दें ताकि रोग को फलने से रोका जा सकें। यदि मिर्च में रोग का प्रकोप अधिक है तो इमिडाक्लोप्रिड/0.3 मि.ली. प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।
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इस महीने में सरसों, साग (पूसा साग-1), मूली (जापानी हाईब्रिड, हिल क्वीन, पूसा मुदुला), पालक (आल ग्रीन, पूसा भारतीय), शलगम (पूसा स्वेती या स्थानीय लाल), बथुआ (पूसा बथुआ-1), मेथी (पूसा कसूरी), गांठ गोभी (हाइब्रिड वियना, पर्पल वियना) तथा धनिया (पंत हरितमा) आदि किस्मों की बुवाई मेड़ों पर करें। जिससे की समय से फसल तैयार हो और आप मुनाफा कमा सकते है।
इस समय गाजर की बुवाई मेड़ों पर करें। गाजर की उच्चतम किस्में हैं – पूसा रूधिरा और पूसा केसर जो की अधिक उत्पादन देती हैं। गाजर की बीज दर 4.0 कि.ग्रा./हे. है। बुवाई से पूर्व बीज को कैप्टान/2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।
बीज उपचार करने से बीज जनित रोगों की रोकथाम की जा सकती है। खेत में बीजाई के समय गोबर की खाद और फास्फोरस उर्वरक उपयोग करें। गाजर की बुवाई मशीन द्वारा करने से बीज 1.0 किलोग्राम प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है जिससे बीज की बचत तथा उत्पादन की गुणवत्ता भी अच्छी रहती है।
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