Ad

मसूर की खेती: उन्नत किस्में, बीज उपचार और सिंचाई प्रबंधन के उपाय

Published on: 23-Dec-2024
Updated on: 23-Dec-2024

किसान भाइयों आज हम बात करेंगे प्रोटीन से भरपूर मसूर की फसल के बारे में। मसूर की फसल सबसे खास दलहन फसलों में से एक है।

मसूर की दाल कपड़ा और छपाई के लिए स्टार्च का स्रोत भी है। इसे ब्रेड एवं केक तैयार करने में गेहूं के आटे के साथ मिलाया जाता है। विश्व के अंदर भारत मसूर की दाल का सबसे बड़ा उत्पादक देश है।

किसी भी फसल की अच्छी उपज के लिए मृदा और जलवायु का उपयुक्त होना बेहद जरूरी होता है। मसूर की दाल हर प्रकार की मृदा में उगाई जा सकती है।

खारी, क्षारीय या जलभराव वाली मृदा से बचना बेहद आवश्यक होता है। इसके साथ ही मृदा का भुरभुरा और खरपतवार रहित होना भी अनिवार्य है। जिससे बीज एक समान गहराई पर बोया जा सके।

मसूर की लोकप्रिय प्रजातियां और उनकी पैदावार

1. मसूर की एलएल 699 (2001) किस्म

पौधे छोटे, सीधे और बहुत अधिक शाखाओं वाले होते हैं। इसके पौधे गहरे हरे रंग के होते हैं, बड़ी मात्रा में फलियाँ पैदा करते हैं और जल्दी फूल आते हैं।

इसे परिपक्व होने में 145 दिन लगते हैं। इसमें फली छेदक के प्रति उच्च सहनशीलता है। इसमें उत्कृष्ट पाक गुण हैं। प्रति एकड़ औसत अनाज उपज 5 क्विंटल है।

ये भी पढ़ें: जानिए किस प्रकार घर पर ही मसूर की दाल से जैविक खाद तैयार करें

2. मसूर की एलएल 931 (2009) किस्म

इसके पौधे छोटे, सीधे और बहुत अधिक शाखाओं वाले होते हैं, इसलिए इनमें बहुत अधिक फलियाँ होती हैं।

गहरे हरे पत्ते, गुलाबी फूल, बिना रंग के हरे फलियाँ और अल्पविकसित प्रतान इस पौधे की सभी विशेषताएँ हैं। इसे परिपक्व होने में 146 दिन लगते हैं।

इसमें जंग के प्रति उच्च प्रतिरोध और फली छेदक के प्रति उच्च सहनशीलता है। इसके मध्यम आकार के बीज होते हैं जो हल्के धब्बों के साथ भूरे रंग के होते हैं।

इसमें उत्कृष्ट पाक गुण हैं। यह औसतन प्रति एकड़ 4.8 क्विंटल उत्पादन करता है।

मसूर की एलएल 1373 (2020) किस्म

इसके पौधे छोटे, सीधे और बहुत अधिक शाखाओं वाले होते हैं, इसलिए इनमें बहुत अधिक फलियाँ होती हैं।

हल्के हरे पत्ते, गुलाबी फूल, बिना रंग के हल्के हरे रंग की फलियाँ और अल्पविकसित प्रतान इस पौधे की सभी विशेषताएँ हैं। इसे पूर्ण परिपक्वता तक पहुँचने में 140 दिन लगते हैं।

यह संक्षारण प्रतिरोधी है और फली छेदक के प्रति उच्च सहनशीलता रखता है। इसके बीज बड़े होते हैं जिनका वजन प्रति 100 बीज 3.5 ग्राम होता है।

इसमें बेहतरीन पाक गुण हैं। यह औसतन प्रति एकड़ 5.1 क्विंटल उत्पादन करता है।

ये भी पढ़ें: मसूर की फसल में रोग एवं कीट नियंत्रण की जानकारी

मसूर की खेती के लिए अन्य किस्म

  • मसूर की बॉम्बे 18 किस्म: यह किस्म 130-140 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसत उपज 4-4.8 क्विंटल/एकड़ होती है।
  • मसूर की डीपीएल 15 किस्म: यह किस्म 130-140 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसत उपज 5.6-6.4 क्विंटल/एकड़ है।
  • मसूर की डीपीएल 62 किस्म: 130-140 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। औसत उपज 6-8 क्विंटल/एकड़ होती है।
  • मसूर की K 75 किस्म: यह किस्म 120-125 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसत उपज 5.6-6.4 क्विंटल/एकड़ है।
  • मसूर की पूसा 4076 किस्म: यह किस्म 130-135 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसत उपज 10-11 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसके अलावा एल 4632 आदि किस्म भी पाई जाती हैं।

मसूर की खेती के लिए भूमि की तैयारी

भूमि की हल्की मृदा के मामले में, बीज-बिस्तर तैयार करने के लिए कम जुताई अथवा मिट्टी में हेरफेर की जरूरत होती है।

भारी मिट्टी के मामले में एक गहरी जुताई के बाद 3-4 क्रॉस हैरोइंग करनी चाहिए। भूमि को उचित रूप से भुरभुरा करने के लिए 2-3 जुताई पर्याप्त होती हैं।

पानी के उचित वितरण के लिए खेत को एकसार भी किया जाना चाहिए। मसूर के बीज की बिजाई के दौरान खेत में उचित नमी मौजूद होनी चाहिए।

मसूर के बीज की बुवाई संबंधी जानकारी

बुवाई का समय अक्टूबर के मध्य से नवंबर के पहले सप्ताह तक बीज बोना चाहिए। मसूर के बीज को 22 से.मी. की दूरी पर पंक्तियों में बोना चाहिए।

देर से बुवाई की स्थिति में, पंक्तियों के बीच का फासला 20 से.मी. तक कम किया जाना चाहिए। बुवाई की गहराई की बात करें तो बीज को 3-4 से.मी. की गहराई पर बोना चाहिए।

बुवाई के लिए पोरा विधि या बीज सह उर्वरक ड्रिल का इस्तेमाल करें। बीज को हाथ से छिड़ककर भी बोया जा सकता है। वहीँ, मसूर की बीज दर 12-15 किलोग्राम प्रति एकड़ सर्वोत्तम होती है।

ये भी पढ़ें: राजमा की खेती कैसे करें - सम्पूर्ण मार्गदर्शन, जलवायु, मिट्टी, और उर्वरक प्रबंधन

मसूर की खेती के लिए बीज उपचार व खरपतवार नियंत्रण

मसूर की फसल में पाए जाने वाले मुख्य खरपतवार चेनोपोडियम एल्बम (बथुआ), विसिया सातिवा (अंकारी), लेथाइरस एसपीपी (चत्रिमात्री) आदि हैं।

इनको 30 और 60 दिनों की समयावधि पर 2 गुड़ाई करके काबू में किया जा सकता है। समुचित फसल और उपज के लिए 45-60 दिनों की खरपतवार मुक्त अवधि बनाए रखना चाहिए।

बुवाई के 50 दिनों के पश्चात एक गुड़ाई के साथ स्टॉम्प 30EC@550ml/एकड़ का पूर्व-उद्भव छिड़काव, प्रभावी खरपतवार नियंत्रण में सहायता करता है।

मसूर की खेती में सिंचाई प्रबंधन कैसे करें?

मसूर की फसल विशेष रूप से वर्षा आधारित फसल के रूप में की जाती है। जलवायु परिस्थितियों के आधार पर सिंचित परिस्थितियों में इसको 2-3 सिंचाई की जरूरत पड़ती है।

एक सिंचाई बुवाई के 4 सप्ताह के उपरांत और दूसरी फूल आने के वक्त करनी चाहिए। फली बनना और फूल आना पानी की आवश्यकता के बेहद महत्वपूर्ण चरण हैं।

Ad