कपास संपूर्ण भारत के कृषकों के लिए एक नकदी फसल मानी जाती है। इसकी खेती सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनियाभर में भी की जाती है। लेकिन कपास के उत्पादन में भारत का स्थान सबसे पहले आता है।
चूँकि कपास एक नकदी फसल है, इस वजह से इसकी खेती किसानों की अर्थव्यवस्था में भी अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
विगत कुछ वर्षों में कपास फसल के उत्पादन और कीमत में काफी बढ़ोतरी देखी गई है। कपास की फसल से जहाँ एक तरफ किसान अधिक आय प्राप्त करते हैं, तो वहीं दूसरी ओर किसानों को अपनी फसल से कीटों एवं रोगों की वजह से काफी हानि भी झेलनी पड़ती है।
जी हाँ, अधिकांश तोर पर मौसम में ज्यादा नमी और अनियमितता की वजह से फसल में कई तरह के कीटों का आक्रमण हो जाता है, जो फसलों को काफी हानि पहुंचाते हैं।
साथ ही, किसानों की मेहनत और आमदनी को भी प्रभावित करते हैं। इसलिए यदि आपने भी अपने खेतों में कपास की खेती की है एवं उसमें किसी भी प्रकार के कीटों के हमले का सामना कर रहे हैं, तो आप इस लेख में बताए गए सुझाव के अनुरूप अपनी कपास की फसल को बचाकर रख सकते हैं।
लार्वा पत्तियों, फूलों और छोटे बीजकोषों को खाते हैं। लार्वा पहले पत्तियों को खाते हैं, फिर उनके सिर अंततः उनके शरीर को एक वर्ग में अंदर की ओर धकेल देते हैं या बाकी को बाहर छोड़ देते हैं।
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क्षतिग्रस्त बीजकोषों के आधार पर बड़े गोलाकार छेद नजर आते हैं और छेदों के अंदर मल भरा हुआ होता है। एक अकेला लार्वा 30 से 40 फलदार रूपों या बीजकोषों को समाप्त कर सकता है। बोल्स और प्रभावित हिस्से टूटकर गिर जाते हैं।
ऐसी परिस्थितियाँ जो अमेरिकन बॉलवर्म द्वारा कपास की फसल में संक्रमण को बढ़ावा देती हैं। अनुकूल परिस्थितियों में निरंतर फसल और मोनोक्रॉपिंग तथा फसल के अवशेषों की उपस्थिति व अत्यधिक नाइट्रोजनयुक्त उर्वरक का उपयोग।