मेरीखेती द्वारा नवंबर महीने की किसान पंचायत का आयोजन धर्मपाल सिंह की यूपी के दादरी जनपद के अंतर्गत खंडेरा गॉव में किया गया। इस किसान पंचायत में नवीनतम कृषि तकनीकियों द्वारा अधिक आय के विषय पर चर्चा हुई।
किसान पंचायत के दौरान वरिष्ठ पूसा कृषि वैज्ञानिक डॉ सीवी सिंह, किसान धर्मपाल सिंह मनिंदर सिंह, चमन सिंह, जवाहर शर्मा, आवेद, संजय खान, अमन सिंह, भगत सिंह, वीरेंद्र सिंह, बिहारी लाल, इंद्रजीत, संजय कुमार, ऋषिपाल आदि किसान मौजूद रहे।
किसान पंचायत के दौरान डॉ सीवी सिंह ने किसानों को शर्दियों में फसल की देखभाल से लेकर बेहतर उत्पादन हांसिल करने के लिए कुछ नवीनतम तकनीकों की जानकारी प्रदान की।
डॉ सीवी सिंह का कहना है, कि यदि किसान आधुनिक कृषि तकनीकों का इस्तेमाल करके खेती करते हैं तो उनको अच्छी उपज हांसिल हो सकती है। परिणामस्वरूप, किसानों की आमदनी में भी काफी इजाफा होगा।
डॉ सीवी सिंह ने वर्टिकल फ़ार्मिंग के विषय में किसानों में बताया कि यह एक आधुनिक कृषि तकनीक है, जिसमें खड़ी परतों में फसलें उगाई जाती हैं।
यह विधि साल भर फसल उत्पादन की अनुमति देती है और इसका उपयोग शहरी क्षेत्रों में किया जा सकता है जहाँ जगह सीमित है। वर्टिकल फार्मिंग पारंपरिक खेती के तरीकों की तुलना में पानी के उपयोग को भी कम करती है। क्योंकि पानी पूरे सिस्टम में रिसाइकिल किया जाता है।
वर्टिकल फार्मिंग का एक लाभ यह भी है, कि यह किसानों को उस वातावरण को नियंत्रित करने की अनुमति देता है, जिसमें पौधे उगाए जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप अधिक उपज और बेहतर स्वाद वाली फसलें मिलती हैं। यह विधि कीटनाशकों और शाकनाशियों की जरूरतों को भी समाप्त करती हैं।
क्योंकि, पौधे नियंत्रित वातावरण में उगाए जाते हैं। वर्टिकल फार्मिंग ऊर्जा-कुशल भी है, क्योंकि इसमें सूरज की रोशनी के बजाय एलईडी लाइट का उपयोग किया जा सकता है।
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डॉ सीवी सिंह ने किसानों को हाइड्रोपोनिक्स विधि के विषय में भी जानकारी प्रदान की। उन्होंने हाइड्रोपोनिक्स तकनीक में पौधों को मिट्टी के बजाय पोषक तत्वों से भरपूर पानी के घोल में उगाया जाता है। कृषि की इस पद्धति से वर्ष भर फसल उत्पादन संभव है।
साथ ही, इसका उपयोग सीमित जगह वाले शहरी क्षेत्रों में भी किया जा सकता है। हाइड्रोपोनिक्स पारंपरिक खेती के तरीकों की तुलना में पानी के उपयोग को भी कम करता है। क्योंकि पानी को पूरे सिस्टम में रिसाइकिल किया जाता है।
हाइड्रोपोनिक्स का एक लाभ यह है कि यह किसानों को पौधों के पोषक तत्वों के स्तर को नियंत्रित करने की अनुमति देता है, जिसके परिणामस्वरूप अधिक उपज और बेहतर स्वाद वाली फसलें मिलती हैं। यह विधि कीटनाशकों और शाकनाशियों की आवश्यकता को भी समाप्त करती है। क्योंकि पौधे नियंत्रित वातावरण में उगाए जाते हैं।