वैज्ञानिक निरंतर रूप से किसानों को अच्छी आय कराने के लिए नए नए शोध करते रहते है। साथ ही, एनडीआरआई द्वारा आईवीएफ क्लोनिंग तकनीक के माध्यम से मुर्रा भैंस के दो क्लोन पैदा किए जा चुके हैं जो कि हाइजेनिक मटेरियल युक्त हैं।
इसके माध्यम से पैदा होने वाली भैंस में अधिक दूध की क्षमता और दूध उत्पादन भी काफी ज्यादा रहता है। इससे अच्छी गुणवत्ता वाली भैंस पैदा होती हैं। बढ़ती जनसँख्या के चलते देश में दूध की मांग में निरंतर बढ़ोत्तरी होती जा रही है,
इसी वजह से समय-समय पर दूध के दाम बढ़ने की खबर भी सुनने को मिलती हैं। ऐसी स्थितियों को देखते हुए भारत में सफेद क्रांति एवं दुग्ध उत्पादन को बढ़ाने के लिए विभिन्न कदम उठाए जा रहे हैं।
किसान और पशुपालकों की आमदनी को अच्छी करने के लिए पशुपालन योजनाओं के जरिए आर्थिक एवं तकनीकी सहायता मुहैय्या कराई जाती हैं। इसी कड़ी में किसानों को दुग्ध उत्पादन हेतु प्रोत्साहित किया जा रहा है।
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साथ ही, पशुपालकों को भी खूब सारी सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं। वैज्ञानिकों द्वारा शोध करके बेहतरीन नस्लें विकसित करली गई हैं। जिसकी सहायता से अच्छी दूध देने वाली भैंस की नस्लों में सुधार करने पर कार्य किया जाएगा।
इसी कड़ी में विभिन्न राज्यों में नस्ल सुधार कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं जिससे कि अच्छी दूध देने की क्षमता वाले एवं गुणवत्तापूर्ण पशुओं की तादात में वृद्धि की जा सके।
भारत की बहुत सी बड़ी संस्थाएं इस पर कार्य कर रही हैं। वहीं, राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान ने आईवीएफ क्लोनिंग तकनीक से सर्वाधिक दूध उत्पादन वाली मुर्रा भैंस के दो क्लोन पैदा किए हैं।
शीघ्र ही मध्य प्रदेश का पशुधन एवं कुक्कुट विकास निगम भी क्लोनिंग की इस तकनीक को राज्य में लेके जा रही है। फिलहाल, निगम के अधिकारियों ने भी यह मान लिया है, कि यह तकनीक पशु उत्पादकता को बढ़ाने में सहायक भूमिका निभा सकती है।
राज्य में इस प्रोजेक्ट को भोपाल के मदरबुल फार्म की आईवीएफ लैब से संचालित किया जाएगा। यहां गाय-भैंस की नस्ल सुधार हेतु इस आईवीएफ तकनीक को उपयोग में लाने की योजना है।
हालाँकि, इससे पूर्व एक आईवीएफ लैब में एंब्रियो के माध्यम होल्सटीन फ्रीजियन नस्ल की गाय का बछड़ा पैदा हो चुका है। वर्तमान में भोपाल में मौजूद मदरबुल फार्म में जिस तकनीक का उपयोग किया जाना है।
इसके क्लोन हाइजेनिक मटेरियल वाले बताए गए हैं। यह पशु की नस्ल सुधार, गुणवत्ता एवं दूध उत्पादन क्षमता को अधिक करने हेतु बड़ी अहम भूमिका निभाएंगे।
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अब आप सोच रहे होंगे कि यह क्लोनिंग तकनीक आखिर होती क्या है ? आपको जानकारी के लिए बतादें कि क्लोनिंग तकनीक में एक विशेष नस्ल के पशु की कोशिकाओं का आईवीएफ लैब में संवर्धन किया जाता है।
इसको सेल कल्चर भी कहा जाता हैं। वर्तमान में संवर्धित कोशिका का मिलान स्लॉटर हाउस से मिली ओवरी केंद्रक रहित अंडाणु से कराया जाता है। इस प्रक्रिया के 8 वें दिन भ्रूण बनकर तैयार हो जाता है। इसके उपरांत भ्रूण को भैंस के गर्भाशय के अंदर हस्तांतरित कर दिया जाता हैं।
इसके उपरांत क्लोन बच्चे पैदा होते हैं, जो कि बिल्कुल साधारण भैंस की भांति दिखाई देते हैं। जैसा कि हम जानते हैं, कि मुर्रा भैंस की दूध उत्पादन क्षमता की मिसाल पूरी दुनिया देती है।
यहां तक कि ब्राजील जैसे देश भी आज मुर्रा भैंस की तर्ज पर बड़ी मात्रा में दूध उत्पादन कर रहे हैं। अगर दूध की बात करें तो एक साधारण मुर्रा भैंस प्रतिदिन 15-16 लीटर दूध देती है।
यही वजह है, कि मध्य प्रदेश से लेकर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के डेयरी किसान मुर्रा भैंस को अपनी पहली पसंद मानते हैं।