बेल वाली फसलों में तोरई, करेला, खीरा जैसी फसलों की कीमत हर समय अच्छी रहती है। हाइब्रिड और देशी किस्म वाले खीरे की कीमतें भी अलग रहती हैं। लौकी, कद्दू, टिन्डा आदि भी इन दिनों में लगाए जाते हैं लेकिन कुछ सब्ज्यिां ऐसी हैं जिनकी कीमतें बहुुत ज्यादा नहीं गिरतीं। इनकी अच्छी कीमत पाने के लिए किसानों को छोटी—छोटी तकनीकों पर काम करना होगा। इन्हें अपनाने से वह अपना मुनाफा आसानी से दोगुना कर सकते हैं।
कहावन अगाया से सबाया हमारी बताई जा रही तकनीक के लिहाज से सटीक है। ज्यादा ठंड के दिनों में किसी भी बीज से अंकुर नहीं निकलता। ऐसे में जागरूक किसान कुछ नए प्रयोगों का सहारा लेते हैं और ठंड के दिनों में झोंपड़ी आदि में पौध तैयार कर जल्दी रोप देते हैं। इससे उनकी फसल अन्य किसानों से काफी पहले आ जाती है और महंगे दामों में बिकती है।
पौध तैयार करने के लिए मिट्टी और सड़ी हुई गोबर की खाद को बराबर मात्रा में मिलाते हैं। इसके अलावा नदी की बालू भी 10 प्रतिशत तक मिलाएं। इसे दौना, प्लास्टिक के ग्लास, मिट्टी के सकोरा आदि में भर लें। इसमें उक्त फसलों के ट्राईकोडर्मा या किसी फफूंदनाशक से उपचारित बीज पानी में भिगोकर लगा देते हैं। मिट्टी—खाद की भराई का काम किसी छप्पर या पालीथिन के बनाए सस्ते पालीहाउस वाली जगह पर ही करते हैं। घास फूंस से इन्हें ढक देते हैं। ढकने के लिए जूट की बोरी का भी प्रयोग कर सकते हैं।
बीच बीच में जरूरी हो तो पानी का छिडकाव भी करते हैं। चंद दिनों में अंकुर निकल आएगा। फरवरी में उपयुक्त तापमान मिलने पर इन पौधों को ग्लास आदि में से निकाल कर खेत में रोप दिया जाता है। इस तरीके से खेती करने से नई सब्जी की बाजार में मांग ज्यादा रहती है। किसान को अच्छी कीमत मिलती है और माल बेचने का झंझट भी नहीं रहता। यह कार्य जितनी जल्दी हो सके करें। ज्यादा बडे स्तर पर नहीं कर सकें तो प्रयोग के तौर पर अपने घर के प्रयोग के लिए करें। इससे आपको अंदाजा हो जाएगा।