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रामदाना की खेती: जानें उन्नतशील प्रजातियां, लाभ और खेती की पूरी प्रक्रिया

Published on: 19-Dec-2024
Updated on: 19-Dec-2024
A cluster of vibrant pink flowers blooming in a lush green agricultural field, showcasing natural beauty and biodiversity
फसल नकदी फसल

किसान भाइयों आज हम आपको एक शानदार आमदनी देने वाली फसल के बारे में जानकारी देंगे।

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार किसान जब तक पारंपरिक खेती से हटकर कुछ नया उत्पादन नहीं करेंगे तब तक उनको एक अच्छी आय होना संभव नहीं है।

इसलिए आज हम ऐसी ही एक लाभकारी फसल की जानकारी देने वाले हैं। दरअसल, हम बात कर रहे हैं रामदाना की खेती के बारे में।

इसका उत्पादन करके किसानों को अच्छा खासा दाना प्राप्त करने में मदद मिलती है। दाने के साथ ही फसल से जानवरों के लिए चारा भी उत्पादित होता है।

इसके अलावा रामदाने का इस्तेमाल लड्डू, पट्टी एवं लइया के रूप में किया जाता है। सिर्फ इतना ही नहीं बहुत सारे लोग इसका उपयोग व्रत में भी करते हैं।

प्रोटीन से युक्त रामदाना की खेती भारत के इन राज्यों में की जाती है?

रामदाना में तकरीबन 12-15 प्रतिशत, वशा (6-7 प्रतिशत) फीनाल्स 0.045-0.068 प्रतिशत एवं एन्टीआक्सीडेन्ट डी०पी०पी० एच 22.0-27.0 प्रतिशत विघमान होता है।

रामदाना की खेती खरीफ एवं रबी दोनों सीजन में की जाती है। भारत में जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, तमिलनाडु, बिहार, गुजरात, पूर्वी उत्तर प्रदेश, बंगाल एवं हिमाचल प्रदेश इत्यादि में माइनर फसल के रूप में उगाते हैं।

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रामदाना की उन्नतशील प्रजातियाँ कौन-कौन सी हैं?

1. जी०ए०-1

रामदाना की यह किस्म 110-115 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। इसके पौधे की ऊँचाई 200-210 सेमी०, बाली का रंग हल्का हरा एवं पीला, 1000 दाने का वजन 0.8 ग्राम, उपज 20-23 कुन्तल प्रति हे० तक होती है।

2. जी०ए०-2

रामदाना की यह किस्म 98-102 दिन में पक कर तैयार होती है। पौधों की ऊँचाई 180-190 से.मी., बाली का रंग लाल, 1000 दाने का वजन 0.8 ग्राम, उपज 23-25 कुन्तल प्रति हे० तक होती है।

3. अन्नपूर्णा

रामदाना की यह किस्म 105-110 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। रामदाने की इस किस्म के पौधों की ऊँचाई 200-205 से.मी., बाली का रंग हरा एवं पीला होता है। अगर इसकी उपज की बात करें तो 20-22 कुन्तल प्रति हे० तक होती है।

भूमि की तैयारी और उपयुक्त जलवायु

रामदाना की खेती के लिए भूमि की एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा 2-3 जुताई देशी हल से या हैरो से करनी चाहिए। जुताई के बाद पाटा लगाकर खेत को भुरभुरा कर लेना बेहद जरूरी है।

रामदाना की फसल से बेहतरीन उपज पाने के लिए गर्म एवं नम जलवायु की अत्यंत जरूरत पड़ती है। जहाँ बारिश कम होती है वहाँ पर इसकी खेती की जा सकती है।

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बुवाई का समय, बीचोपचार और विधि

रामदाना की खेती करने के लिए सही समय की बात करें तो खरीफ में जून के अन्तिम सप्ताह से जुलाई के मध्य तक बुवाई कर देनी चाहिए।

बीज की दर एवं उपचार के दौरान एक किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें। थीरम 2-2.5 ग्राम से 1 किलोग्राम बीज का उपचार करना चाहिए।

बोने की विधि की बात करें तो रामदाना की बुवाई छिटकवा विधि (बीज को खेत में छिड़ककर जुताई करके पाटा चला देते हैं) से की जाती है।

कृषक इस बात का विशेष ध्यान रखें कि लाइन से लाइन की दूरी 45 से.मी. एवं पौधे की दूरी 15 से.मी. रखनी चाहिए। कूड़ की गहराई 2 इंच के फासले पर रखते हैं।

रामदाना की फसल में खाद एवं उर्वरक प्रबंधन

रामदाना की खेती से अच्छा उत्पादन हांसिल करने लिए लिए किसानों को 60 कि.ग्रा. नत्रजन, 40 कि.ग्रा. फास्फोरस एवं 20 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर की जरूरत पड़ती है।

बुवाई के समय नत्रजन की आधी मात्रा फास्फोरस एवं पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा देनी चाहिए। नत्रजन की आधी मात्रा का दो बार में छिड़काव करना काफी ज्यादा सही रहता है।

रामदाना की खेती में सिंचाई प्रबंधन

रामदाना की खेती में सिंचाई पर बात करें तो खरीफ ऋतु में सिंचाई वर्षा के आधार पर ही की जाती है। निराई-गुड़ाई बीज बोने के 20-25 दिन बाद की जाती है।

फसल की दो बार निराई गुड़ाई जरूर करनी चाहिए। वहीं अगर रामदाना की फसल की कटाई-मड़ाई की बात करें तो फसल पीले पड़ने के बाद कटाई-मड़ाई कर लेनी चाहिए।

परिणामस्वरूप, रामदाना की खेती से किसानों को 20-25 कुन्तल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त होती है।

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रामदाना की खेती में कीट

बिहार हेयरी कैटर पिलर कीट

रामदाना की फसल में बिहार हेयरी कैटर पिलर कीट की सूंडी पत्तियों को काफी ज्यादा नुकसान पहुँचाता है। 

बतादे कि केवल इतना ही नहीं कभी-2 तने पर भी यह कीट आक्रमण करता है। फालीडाल 15-20 कि.ग्रा. प्रति हे. की दर से इस्तेमाल करने पर नियन्त्रण हो जाता है।

रामदाना में बीमारियां एवं रोकथाम

रामदाना में ब्लास्ट (झोंका) ब्लास्ट व सड़न आदि बीमारियों का काफी आक्रमण होता है।

खड़ी फसल में डाइथेन जेड 78 पर 0.05 प्रतिशत बेविस्टीन के घोल का छिड़काव से भी रोग का प्रभाव काफी कम हो जाता है।