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Isabgol Farming-ईसबगोल की खेती में लगाइये हजारों और पाइए लाखों

Published on: 07-Jul-2021

किसान भाइयों, आज के जमाने में कम लागत में अधिक कमाई कौन नहीं करना चाहता है, फिर किसान भाई ही इसमें पीछे क्यों रहें? ऐसा नहीं कि किसानों के लिये संभव नहीं है, संभव है लेकिन जरा सा उस ओर ध्यान देने की जरूरत है। बाकी आप खेती तो करते हो चाहे गेहूं की खेती करो चाहे जीरा की खेती करो। खेती तो खेती है लेकिन दोनों के बाजार भाव में जमीन आसमान का अंतर होता है। कहने का मतलब यह है कि जिन किसान भाइयों को कम समय में अधिक कमाई करनी है, उन्हें परम्परागत खेती से हट कर खेती करनी होगी। ऐसे किसान भाइयों को सगंधीय व औषधीय फसलों की खेती करनी होगी, उन्हें अपनी मनचाही मंजिल मिल जायेगी। आज हम यहां पर ऐसी ही खेती के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसमें आपको हजारों रुपये की लागत लगानी है और जब फसल तैयार होगी तो आपको लाखों की कमाई होगी। साथ में समय भी बहुत कम लगेगा।

आइये जानते हैं कि ईसबगोल का क्या महत्व है ?

ईसबगोल की खेती

ईसबगोल एक अत्यंत महत्वपूर्ण औषधीय फसल है। औषधीय फसलों के निर्यात में ईसबगोल का पहला स्थान है। मौजूदा समय में भारत से प्रतिवर्ष 120 करोड़ रुपये के मूल्य का ईसबगोल विदेशों को निर्यात हो रहा है।भारत में ईसबगोल का उत्पादन उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, पंजाब, राजस्थान, हरियाणा आदि में होता है। ईसबगोल के बीज पर पाए जाने वाला छिलका ही इसका औषधीय उत्पाद है, जिसे ईसबगोल की भूसी के नाम से पहचाना जाता है। ईसबगोल के बीज में एक चौथाई भूसी होती है। ईसबगोल की भूसी का उपयोग पेट की सफाई, कब्जियत, दस्त, आंव,पेचिस,अल्सर, बवासीर जैसी बीमारियों के उपचार में दवा के रूप में किया जाता है। इसके अलावा इसका उपयोग आइस्क्रीम, रंग-रोगन व प्रिंटिंग उद्योग में भी किया जाता है।

किस प्रकार की जाती है ईसबगोल की खेती?

ईसबगोल की खेती के लिए किस प्रकार की जलवायु, मिट्टी, बीज,खाद, सिंचाई प्रबंधन आदि चाहिये उसके बारे में जानते हैं।

भूमि एवं जलवायु

ईसबगोल की खेती के लिए दोमट और बलुई मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। इसके अलावा जलनिकासी का विशेष प्रबंध होना चाहिये, जलभराव में यह फसल बहुत जल्द खराब हो जाती है। इसकी फसल के लिए मिट्टी का पीएच मान 7-8 होना चाहिये। यह फसल थोड़ी सी क्षारीय व रेतीली मिट्टी में उगाई जा सकती है। ईसबगोल की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु सबसे उपयुक्त मानी जाती है। इसकी खेती रबी की फसलों के साथ की जाती है। इसकी फसल के लिए 25 डिग्री सेल्सियश के आसपास तापमान की आवश्यकता होती है। इसकी फसल को शुरुआत में पानी की जरूरत होती है लेकिन फसल के  पकने के समय पानी से नुकसान हो जाता है। उस समय अधिक गर्मी की आवश्यकता होती है।

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उन्नत किस्में

ईसबगोल की अनेक उन्नत किस्में हैं। इनका चयन क्षेत्र की भूमि, फसल के पकने की अवधि और पैदावार के आधार पर किया जाता है। जवाहर ईसबगोल-4: इस तरह के बीज से रोपाई के लगभग 110-120 दिन बाद फसल पककर तैयार हो जाती है। इसका उत्पादन प्रति हेक्टेयर 15 क्विंटल तक होता है। आर.आई. 89: इसका पौधा छोटे आकार का होता है। इसकी भी फसल 120 दिनों में तैयार हो जाती है और उत्पादन 12 से 15 क्विंटल तक होता है। गुजरात ईसबगोल-2: इस बीज से गुजरात में सबसे अधिक खेती की जाती है। इस बीज से प्रति हेक्टेयर 10 क्विंटल के आसपास उत्पादन होता है। आई.आई.1: अधिक उत्पादन के लिए यह बीज तैयार किया गया है। इस बीज से उत्पादन 16 क्विंटल से 18 क्विंटल तक प्रति हेक्टेयर होता है। हरियाणा ईसबगोल-5: इसकी फसल भी 120 दिन में ही तैयार हो जाती है और इससे उत्पादन 10 से 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है। इसके अलावा अन्य किस्मों में गुजरात ईसबगोल-1, हरियाणा ईसबगोल-2, निहारिका, ट्राबे सेलेक्Ñशन 1 से 10 तक आदि का चयन करके बुआई की जा सकती है। ईसबगोल की उन्नत किस्में

खेत की तैयारी कैसे करें

ईसबगोल की खेती के लिए खेत से पुरानी फसल के अवशेषों को  समाप्त करके मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करनी चाहिये। उसके बाद खेत में गोबर की खाद डालकर उसे मिट्टी में कल्टीवेटर से मिला दें। इसके बाद पानीदेकर उसे छोड़ दें। जब मिट्टी की ऊपरी सतह सूखने लगे तब खेत की रोटावेटर से गहरी जुताई करें। फिर पाटा चलाकर खेत को समतल बना लें ताकि खेत में जलनिकासी की अच्छी व्यवस्था हो सके। जो किसान भाई ईसबगोल की खेती मेड़ों पर करना चाहते हों उन्हें जुताई के बाद खेतों में निश्चित दूरी की मेड़ बना लेनी चाहिये।

बुआई का समय और बुआई के तरीके

ईसबगोल की खेती में समय पर बुआई का बहुत महत्व है। इसकी पछैती खेती में अनेक तरह के रोग लगने की संभावनाएं रहतीं हैं। इसलिये किसान भाइयों को चाहिये कि इसका निर्धारित समय अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से नवंबर के मध्य तक अवश्य बुआई कर लेनी चाहिये। बुआई से पहले बीजों को मेटालेक्जिकल से उपचारित कर लेनाचाहिये। एक हेक्टेयर में लगभग 5 किलो बीज की आवश्यकता पड़ती है। समतल भूमि में ईसबगोल के बीजों की बुआई छिड़काव विधि से की जाती है और मेड़ पर बीजों की बुआई ड्रिल प्रणाली से की जाती है, इसमें किसान भाइयों को चाहिये कि मेड़ों के बीच की दूरी एक फिट के रखें  तथा बीजों की दूरी दो इंच के बराबर रखें तो अच्छा उत्पादन मिलेगा। छिड़काव विधि से बुआई करने के लिए पहले समतल भूमि में बीजों का छिड़काव कर दें उसके बाद कल्टीवेटर के पीछे पाटा बांधकर खेत की दो बार हल्की जुताई कर दें। इससे बीज मिट्टी में अच्छी तरह से मिल जाते हैं। ये भी पढ़े: भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान कि सुझाई इस वैज्ञानिक तकनीक से करें करेले की बेमौसमी खेती

सिंचाई प्रबंधन

ईसबगोल की फसल को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। बुआई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करना लाभप्रद रहता है। यदि बीजों का अंकुरण कम दिखाई दे तो 4-5 दिन बाद हल्की सिंचाई कर देनी चाहिये। अंकुरण के बाद पौधों को मात्र दो-तीन सिंचाई की जरूरत होती है, जिसमें पहली सिंचाई 30 से 35 दिन के बाद और दूसरी सिंचाई 50 से 60 दिन बाद करनी चाहिये। फव्वारा विधि से सिंचाई करने से अधिक लाभ होता है।

खाद प्रबंधन

ईसबगोल की खेती के लिए जुताई के वक्त प्रतिहेक्टेयर 10 गाड़ी गोबर की खाद खेत में देनी चाहिये। इसके साथ एक बोरा एनपीके प्रति हेक्टेयर के हिसाब से देना अच्छा रहेगा। साथ ही 25 किलो प्रति हेक्टेयर सिंचाई के समय डालने से पैदावार और अच्छी होती है।

खरपतवार प्रबंधन

ईसबगोल की खेती में दो बार निराई-गुड़ाई करने की आवश्यकता होती है। पहली बार बुआई के एक माह बाद और दूसरी बार लगभग दो माह बाद निराई गुड़ाई की जानी चाहिये। इसके अलावा खरपतवार नियंत्रण के लिए बुआई के बाद सल्फोसल्फ्यूरॉन या आइसोप्रोट्यून का छिड़काव करना चाहिये।

ईशबगोल के पौधों में लगने वाले रोग और उपचार

हालांकि ईसबगोल के पौधों में रोग बहुत कम लगते हैं, फिर भी कुछ ऐसे भी रोग हैं जिनके लगने से पौधा जल्दी नष्ट हो जाता है। इससे फसल बर्बाद हो जाती है। प्रमुख रोग इस प्रकार हैं:- मोयला: ईसबगोल के पौधे में लगने वाला यह रोग कीटों से लगता है। इस रोग का प्रभाव बुआई के दो माह बाद जब पौधों में फूल आना शुरू होते हैं तभी दिखाई देने लगता है। इस रोग में कीट पौधों का रस चूसने लगते है और पौधा जल्द ही सूख जाता है। किसान भाइयों जैसे ही इस रोग के संकेत मिलें तो तत्काल ही पौधों पर इमिडाक्लोपिड या आॅक्सी मिथाइल डेमेटान की उचित मात्रा का छिड़काव करना चाहिये। फसल बच जायेगी। मृदुरोमिल आसिता : यह रोग ईसबगोल के पौधे पर बाली निकलने के समय दिखाई देता है। रोग लगते ही पौधे की बढ़वार रुक जाती है और पत्तियों पर सफेद रंग का चूर्ण दिखाई देने लगता है। रोग का पता लगते ही पौधों पर कॉपर आक्सीक्लोराइड या मैंकोजेब का छिड़काव करना लाभदायक साबित होगा। ये भी पढ़े: कीटनाशक दवाएं महंगी, मजबूरी में वाशिंग पाउडर छिड़काव कर रहे किसान

फसल की कटाई

ईसबगोल के पौधों की पत्तियां जब पली पड़कर सूखने लगती हैं, तब समझ लेना चाहिये कि अब फसल पक कर तैयार हो गयी है और उसकी कटाई कर लेनी चाहिये। किसान भाइयों कटाई के समय यह ध्यान रखना जरूरी है कि फसल की कटाई सुबह के समय ही करनी चाहिये जिससे बालियों से बीज कम झड़ते हैं। छोटे किसान जो छोटे रकबे में खेती करने वाले छोटे किसान भाई तो इसकी बालियों को सुखाकर हाथ से मसल कर दानों को निकाल लेते हैं जबकि बड़े किसान भाई इसके दानों को मशीनों की सहायता से निकालते हैं। पेड़ो की भूसी पशु चारे के रूप में काम आती है।  इसलिये किसान भाई इसका भी बहुत ध्यान रखते हैं।

किसानोंं को मिलता है कितना लाभ

ईसबगोल की औसतन पैदावार 10 से 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के आसपास पाई जाती है। इसके दानों से मिलने वाली भूसी की मात्रा 25 प्रतिशत के आसपास होती है। इस तरह से औसतन ढाई से तीन क्विंटल प्रति हेक्टेयर भूसी तैयार होती है। इसका बाजार में 11 से 15 हजार रुपये क्विंटल के आसपास रहता है। इस तरह से किसान भाइयों को प्रति हेक्टेयर 3 से 4 लाख रुपये तक की कमाई हो जाती है। यह फसल कुल 110 से 120 दिन में तैयार होती है। इस तरह से किसान भाइयों को मात्र चार महीने में हजारों की लागत से लाखों रुपये की कमाई हो सकती है।

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