गुड़ पूरे साल तो नहीं परन्तु सर्दियों में ज्यादातर घरों में आज भी पसंद किया जाता है। इटावा के निकट के कुछ ढ़ाबों पर विशेषतौर पर गुड़ की चाय बिकती और लोगों द्वारा पसंद की जाती है। जिन इलाकों में गुड़, गन्ना और चीनी को छोड़कर सामान्यतौर पर किसानों द्वारा बनाए जाने वाले गन्ने के उत्पाद खाए जाते हैं वहां पशु और मानव दोनों का स्वास्थ्य भी ठीक रहता है। बात साफ है कि गुड़ यूं तो सामान्यतौर पर खास होता ही है लेकिन यदि इसे और बेहतरी से बनाया जाए तो यह मिठाइयों की कीमतों को भी पीछे छोड़ देता है। उत्तर प्रदेश में लोगोें ने गुड़ में इस तरह की विविधता को पैदा किया है। बाजार में गुड़ भले ही 40 रुपए प्रति किलोग्राम बिक रहा हो लेकिन मेरठ, बुलंदशहर आदि इलाकों के लोग 200 से हजार रुपए तक गुड़ बेच रहे हैं। योगी सरकार ने प्रदेश की इन विभिन्न विविधताओं को देशभर में लोगों तक पहुंचाने और प्रचारित करने को एक योजना बनाई है। इसे एक जिला एक उत्पाद नाम दिया गया है। कौन नहीं जानता कि आगरा का पेठा, फिरोजाबाद का कांच उद्योग, बनारस की साड़ी, मथुरा का पेड़ा, खुर्जा के चीनी मिट्टी के बर्तन अपनी अलग पहचान बना चुके हैं। प्रदेश सरकार ने ब्यापक स्तर पर राजधानी लखनऊ में गुड़ महोत्सव की तैयारी कर ली है। योजना में आयोध्या एवं मुजफ्फरनगर के गुड़ और उससे बने उत्पादों को शामिल किया गया है।