Published on: 21-May-2021
किसान भाइयों आप मेहनत करने के बाद भी वो चीजें नहीं हासिल कर पाते हो जिनके लिए आप पूरी तरह से हकदार हो। आपने वो कहावत तो सुनी होगी कि हिम्मते मर्दा मददे खुदा। जो अपनी मदद करता है, खुदा उसकी मदद करता है। यह बात सही है लेकिन खुदा या ईश्वर साक्षात प्रकट होकर आपकी मदद करने नहीं आयेंगे। इसके बावजूद यदि आप अपने जीवन की तरक्की की बातों को खोजना शुरू कर देंगे तो आपको वो सारे रास्ते मिल जायेंगे जिन्हें आप चाहेंगे। इस विश्वास के साथ आप अपनी मौजूदा माली हालत को देखिये और अपने परिवार की ओर देखिये। उनकी समस्यायें क्या हैं आप खेती करके कितनी जरूरतें पूरी कर पा रहे हैं और कितनी अधूरी रह जा रहीं हैं।
इन सभी बातों पर विचार करेंगे तो आपको रास्ता अवश्य दिख जायेगा। चाहे आप फसल का चक्रानुक्रम बढ़ायें अथवा वो फसलें खेतों में पैदा करें जो अब पारंपरिक फसलों से अधिक आमदनी दे सकें। इस बारे में विचार करें। सरकारी और गैर सरकारी विशेषज्ञों से सम्पर्क करें और कम समय में और कम लागत में अधिक आमदनी देने वाली फसलों को पैदा करने की योजना बनायें तो कोई भी शक्ति आपको आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती। क्योंकि कहा गया है कि चरण चूम लेतीं हैं खुद चलके मंजिल। मुसाफिर अगर हिम्मत न हारे। इसलिये हिम्मत करके आप व्यापारिक फसलों पर अपना फोकस करें। मेथी ऐसी ही फसल है, जो कम लागत में और कम समय में दोहरा या इससे ज्यादा लाभ देने वाली है। जानिये मेथी की खेती के बारे में।
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मेथी के खास-खास गुण
मेथी को लिग्यूमनस फेमिली का पौधा कहा जाता है। इसका पौधा झाड़ीदार एवं छोटा ही होता है। मेथी के पौधे की पंत्तियां और बीज दोनों का ही इस्तेमाल किया जाता है। मेथी की पत्तियों का साग बनाया जाता है और उसके बीज को मसाले के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा पत्तियों को सुखा कर महंगे दामों पर बेचा जा सकता है। मेथी के बीज को औषधीय प्रयोग किया जाता है। इससे आयुर्वेदिक दवाएं बनतीं हैं। मेथी के लड्डू खाने से शुगर डायबिटीज, ब्लेड प्रेशर कंट्रोल होता है। शरीर के जोड़ों के दर्द व अपच की बीमारी में मेथी के बीज फायदेमंद होता है।
किसान भाइयों वैसे तो मेथी की खेती प्रत्येक प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। लेकिन इसके लिए बलुई व रेतीली बलुई मिट्टी सबसे ज्यादा अच्छी होती है। मिट्टी का पीएच मान 6 से 8 के बीच होना चाहिये। मेथी की खेती के लिए ठंडी जलवायु अधिक अच्छी होती है क्योंकि इस के पौधे में अन्य पौधों की अपेक्षा पाला सहने की शक्ति अधिक होती है। किसान भाइयों को इस बात का ध्यान रखना होगा कि मेथी की खेती उन स्थानों पर की जानी चाहिये जहां पर बारिश अधिक न होती है क्योंकि मेथी का पौधा अधिक वर्षा को सहन नहीं कर पाता है। इसलिये जल जमाव वाला खेत भी मेथी की खेती के लिए नुकसानदायक है।
मेथी की खेती करने वाले किसान भाइयों को चाहिये की खेत को तब जुतवायें जब तक मिट्टी भुरभुरी न हो जाये यानी कंकड़ या ढेला न रहे। इसके लिए पाटा का इस्तेमाल करना चाहिये। आखिरी जुताई करने से पहले गोबर की खाद का मिश्रण डालना चाहिये। जिससे खाद मिट्टी में अच्छी तरह से मिल जाये। उसके बाद खेत बिजाई के लिए तैयार हो जाता है। बिजाई के लिए 3 गुणा दो मीटर की समतल बैड तैयार करना चाहिये।
बिजाई का समय व अन्य जरूरी बातें
किसान भाइयों आपको बता दें कि मेथी की खेती के लिए बिजाई का समय मैदानी और पहाड़ी इलाकों के लिए अलग-अलग होता है। मैदानी इलाकों में मेथी की बिजाई सितम्बर-अक्टूबर तक हो जानी चाहिये। पहाड़ी इलाकों में मेथी की बिजाई जुलाई व अगस्त के महीने में की जानी चाहिये। इसकी बिजाई हाथों से छींट करके की जाती है। बिजाई करते समय पौधों की दूरी का ध्यान रखना पड़ता है। लाइन से लाइन की दूरी लगभग एक फुट होनी चाहिये। पौधों से पौधों की दूरी किस्म के अनुसार तय की जाती है। बीज को एक इंच तक गहराई में बोना चाहिये। एक एकड़ में लगभग 12 किलोग्राम मेथी के बीजों की जरूरत होती है। बिजाई से पहले मेथी के बीजों को उपचारित करना जरूरी होता है। उपचारित करने के लिए बीजों को बुवाई करने से लगभग 10 घंटे पानी में भिगो देना चाहिये। फंगस व कीट आदि से बचाने के लिए कार्बेनडजिम, डब्ल्यूपी से बीजों को उपचारित करें। इसके साथ एजोसपीरीलियम ट्राइकोडरमा के मिक्स घोल से बीजों का उपचार करने से किसी भी प्रकार की शंका नहीं रहती है।
यदि कोई किसान भाई मेथी की बुवाई ताजा साग बेचने के लिए करना चाहते हैं तो आपको प्रत्येक 8-10 दिन के अंतर से बुवाई करते रहना होगा। मैदानी इलाके में यह बुवाई सितम्बर से लेकर नवम्बर तक की जा सकती है। इसके बाद बीजों के लिए नवम्बर के अंत में बुवाई करके छोड़ देंगे तो आपको अच्छी पैदावार मिल जायेगी।
मेथी की खेती में खाद और बूस्टर रासायनिक का प्रबंधन बहुत ही लाभकारी होता है। किसान भाई जितना अच्छा इन का प्रबंधन कर लेंगे उतनी ही अच्छी पैदावार ले सकेंगे। इसके लिये समय-समय पर आवश्यक उर्वरकों को सही मात्रा में डालना होगा। साथ ही समय-समय पर बूस्टर रासायनिक डोज भी देनी होगी। इससे तेजी से फसल बढ़ती है। बुवाई करने के समय एक एकड़ में 12 किलो यूरिया, 8 किलो पोटेशियम, 50 किलो सुपर फास्फेड और 5 किलो नाइट्रोजन मिलाकर डालनी चाहिये।
पौधों में तेजी से बढ़वार देने के लिए 10 दिनों के बाद ही ट्राइकोटानॉल हारमोन को पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिये। इसके दस दिन बाद एनपीके का समान मिश्रण करके छिड़काव करने से जल्द ही फसल तैयार हो जाती है। अच्छी फसल के लिए डेढ़ महीने के बाद ब्रासीनोलाइड को पानी मिलाकर घोल का छिड़काव करना चाहिये। इसके दस दिन बाद दुबारा इसी तरह के घोल का छिड़काव करने से फसल तेजी से बढ़ती है। पाला व कोहरे से बचाने के लिएथाइयूरिया का छिड़काव करें।
सिंचाई प्रबंधन
मेथी की खेती में सिंचाई का प्रबंध करना भी जरूरी होता है। समय-समय पर सिंचाई करने से साग का स्तर काफी अच्छा होता है वरना पौधे कड़े हो जाते हैं फिर उनकी भाजी बेचने योग्य नहीं रह जाती है। बिजाई से पहले ही सिंचाई करनी चाहिये। हल्की नमी के समय ही बिजाई करनी चाहिये ताकि उनका अंकुरन जल्दी हो सके। बिजाई के एक माह बाद सिंचाई करनी चाहिये। उसके बाद मिट्टी के पीएच मान के अनुसार दो महीने के आसपास सिंचाई करनी चाहिये। इसके बाद तीन महीने और चौथे महीने में सिंचाई करनी चाहिये। साग वाली मेथी की खेती में सिंचाई जल्दी-जल्दी करनी चाहिये। इसके अलावा जब पौधे मेंं फूल के बाद फली आने लगती है तब सिंचाई पर विशेष ध्यान देना होता है। क्योंकि पानी की कमी से पैदावार पर काफी असर पड़ सकता है।
खरपतवार नियंत्रण कैसे करें
किसान भाइयों किसी भी फसल के लिए खरपतवार का नियंत्रण करना अति आवश्यक होता है। मेथी की खेती में खरपतवार के नियंत्रण के लिए दो बार गुड़ाई-निराई करनी होती है। पहली गुड़ाई-निराई एक महीने के बाद और दूसरे महीने के बाद दूसरी गुड़ाई निराई की जानी चाहिये। इसके साथ ही खरपतवार के कीट यानी नदीनों की रोकथाम के लिए फ्लूक्लोरालिन, पैंडीमैथालिन का छिड़काव बिजाई एक दो दिनों बाद ही करना चाहये। जब पौधा दस सेंटीमीटर का हो जाये तो उसको बिखरने से रोकने के लिए बांध दें। ताकि छोटी झाड़ी बन सके और अधिक पत्तियां दे सके।
मेथी की उन्नत व लाभकारी किस्में
मेथी की खेती के लिए वैज्ञानिकों ने जलवायु और मिट्टी के अनुसार अनेक उन्नत किस्में तैयार कीं हैं। किसान भाइयों को चाहिये कि वो अपने क्षेत्र की मृदा व जलवायु के हिसाब से किस्मों को छांट कर खेती करेंगे तो अधिक लाभ होगा। इन उन्नत किस्मों में कुछ इस प्रकार हैं:-
- कसूरी मेथी: इस किस्म के पौधे की पत्तियां छोटी और हंसिये की तरह होतीं हैं। इस किस्म के पौधे से पत्तियों की 2 से 3 बार कटाई की जा सकती है। इस किस्म की फसल देर से पकती है। इसकी महक अन्य मेथी से अलग और अच्छी होती है। इसकी औसत फसल 60 से 70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।
- पूसा अर्ली बंचिंग: मेथी की यह किस्म जल्दी तैयार होने वाली किस्म है। इसकी भी दो-तीन बार कटाई की जा सकती है। इसकी फलियां आठ सेंटीमीटर तक लम्बी होतीं हैं। इसकी फसल चार महीने में पक कर तैयार हो जाती है।
- लाम सिलेक्शन: भारत के दक्षिणी राज्यों के मौसम के अनुकूल यह किस्म खोजी गयी है। इसका पौधा झाड़ीदार होता है। साग और बीज के अच्छे उत्पादन के लिये यह अच्छी किस्म है।
- कश्मीरी मेथी: पहाड़ी क्षेत्रों के लिए खोजी गयी इस नस्ल की मेथी के पौधे की खास बात यह है कि यह सर्दी को अधिक बर्दाश्त कर लेता है। इसके फूल सफेद रंग के होते हैं। इसकी फसल पकने में थोड़ा अधिक समय लगता है।
- हिसार सुवर्णा, हिसार माधवी और हिसार सोनाली: जैसे नाम से ही मालूम होता है कि मेथी की इन किस्मों की खोज हरियाणा के हिसार कृषि विश्वविद्यालय के द्वारा की गयी है। इस किस्मों की खास बात यह है कि इनमें धब्बे वाला रोग नहीं लगता है। बीज व साग के लिए बहुत ही अच्छी किस्में हैं। राजस्थान और हरियाणा में इसकी खेती होती है, जहां किसानों को अच्छी पैदावार मिलती है।