वैज्ञानिक तरीके से करें हल्दी की खेती और लाखों कमाएं

Published on: 21-May-2021

किसान भाइयों आप अच्छी तरह से जानते हैं कि आज का समय अर्थ युग है यानी पैसे का जमाना है। पैसे के बिना कुछ भी नहीं हो सकता है। प्रत्येक काम के लिए पैसा चाहिये। 

अब ये पैसा कहां से आये? इस पर विचार करना जरूरी है क्योंकि आप खेतों से अधिक से अधिक वो वस्तुएं पैदा कर सकते हैं जो ग़ृहस्थी के काम आतीं हैं। इनके अलावा घर गृहस्थी के लिए कुछ ऐसी भी चीजें होतीं हैं जिन्हें खरीदना ही पड़ता है, जैसे नमक, साबुन, मसाले, कपड़ा, जेवर आदि। 

इसके अलावा खेती के काम आने वाले कृषि यंत्र, खाद, बीज, मजदूरी, सिंचाई आदि के लिए भी पैसों की जरूरत होती है। साथ ही बच्चों की पढाई-लिखाई, शादी-ब्याह आदि के लिए भी तो पैसे चाहिये। 

किसान भाइयों खेती के साथ ही आपको पैसे कमाने पर भी ध्यान देना होगा। जिस तरह से आप खेती के सारे कामों का प्रबंधन करके अच्छी फसल पैदा कर लेते हो, उसी तरह यदि आपने एक बार पैसों को  प्रबंधन कर लिया तो आपको संपन्न होने से कोई नहीं रोक रोक सकता। 

 किसान भाइयों, आपको ऐसी फसलें लेनी होंगी जो इतनी आमदनी दे सकें, जिससे घर की हर कमी को पूरा किया जा सके। इस तरह की फसलों में हल्दी की फसल सबसे अच्छी मानी जा सकती है। 

सामाजिक व धार्मिक कार्यों के अलावा मसाले, सौंदर्य प्रसाधन के साथ औषधि के रूप में भी हल्दी का प्रयोग होता है। रोगों के उपचार में पीली हल्दी से काली हल्दी अधिक लाभकारी होती है। इसलिये मार्केट में काली हल्दी के दाम अधिक मिलते हैं। आइये जानते हैं हल्दी की खेती के बारे में।

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मिट्टी एवं जलवायु

हल्दी की खेती गर्म व आद्र जलवायु में की जाती है। ज्यादा गर्मी और ज्यादा सर्दी दोनों ही हल्दी की फसल के लिए नुकसानदायक होती हैं। हल्दी की खेती 20 से 25 डिग्री वाले तापमान में हो सकती है। 

हल्दी की पैदावार बलुई मिट्टी में सबसे अधिक होती है। इसके अलावा हल्की दोमट मिट्टी भी हल्दी की फसल की पैदावार अच्छी है। हल्दी की खेती  जलभराव वाली काली मिट्टी में नहीं की जानी चाहिये। 

अधिक तेजाबी वाली मिट्टी में भी हल्दी की खेती नहीं की जा सकती है। ऐसे क्षेत्र में यदि कोई किसान भाई हल्दी की खेती करना चाहता है तो उसके लिए दो वर्ष तक खेती की जमीन में आवश्यक उपचार करना होगा।   हल्दी की खेती का तरीका

खेत को कैसे तैयार किया जाना चाहिये

हल्दी की खेती गांठ यानी कंद के लिए की जाती है, जो जमीन के अंदर होती है। इसलिये खेत की गहरी जुताई की जानी चाहिये। किसान भाइयों को चाहिये कि वह अपने खेतों को पलाउ से जुताएं । 

पूर्व की फसलों के अंश व खरपतवार की अच्छी तरह से सफाई करवायें। जुताई के बाद गोबर की खाद डालकर  मिट्टी में मिलायें और पलेवा कर दें। 

एक सप्ताह के लिए छोड़ दें ताकि मिट्टी में कीट आदि सूरज की किरणों से समाप्त हो जायें। पलेवा का पानी सूख जाये तथा खेत में हल्की नमी रह जाये तभी एक बार फिर जुताई करके पाटा चलवायें। जिससे खेत समतल हो जायेगा। इसके बाद खेतों में एक फिट की दूरी पर मेड़ बना दें।

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बिजाई का समय और तरीका

हल्दी की पौधे की बिजाई मई से जून तक अवश्य की जानी चाहिये। यह मौसम हल्दी के लिए सबसे उपयुक्त होता है। क्योंकि आगे बरसात का सीजन आ जाता है। इस समय बिजाई होने से किसान भाइयों को सिंचाई आदि के लिए परेशान नहीं होना पड़ता है। 

फिर भी यदि बरसात के सीजन में पानी न बरसे तो किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा। हल्दी की खेती की बिजाई दो तरीके से की जाती है। 

पहले तरीके में खेत में मेड़ बनाकर उसमें हल्दी के कंद के टुकड़ों को गाड़ देते हैं और दूसरा तरीका यह होता है कि समतल खेत में हल्दी के बीजों को एक फुट की दूरी की लाइन में डाल देते हैं, उसके बाद दो लाइनों के बीच हल चलाकर उनकी मेड़ बना देते हैं। 

हल्दी की बिजाई पहले बीज को उपचारित किया जाना जरूरी होता है जिससे हल्दी में लगने वाले कीट व गलन की बीमारी नहीं होती है। किसान भाइयों को चाहिये बिजाई करने से पहले मैंकोजेब और कार्बेन्डाजिम के घोल में बीजों को आधे घंटे तक भिगो कर रखें और फिर उनको छाया में सुखा लें।  

हल्दी की गांठों को तोड़ते वक्त इस बात का विशेष ध्यान रखें कि प्रत्येक टुकड़े में दो या तीन आंखें यानी जड़ के स्रोत अवश्य होने चाहिये। बिजाई के बाद खेत को पुलाव से ढक दें इससे खेत में नमी काफी समय तक बनी रहती है और हल्दी की फसल खरपतवार से भी बची रहती है।   वैज्ञानिक तरीके से करें हल्दी की खेती

खाद एवं उर्वरक प्रबंधन

बुवाई से एक माह पहले ही पहली जुताई के बाद खेत में गोबर की खाद को डाल कर अच्छी तरह से मिलानी चाहिये। इसके बाद आखिरी जुताई के समय पोटाश, नाइट्रोजन, फास्फोरस और जिंक खेत की मिट्टी की गुणवत्ता और हल्दी की किस्म के अनुसार डालनी चाहिये। 

जब बीज से अंकुर फूटने लगें तब एनपीके के बोरे को तीन हिस्सों में बांट कर एक हिस्से को  खेत में छिड़क देना चाहिये। बाद बाकी शेष दो हिस्सों को डेढ़ महीने और ढाई महीने के बाद डाल दें।

सिंचाई का प्रबंधन कैसे करें

किसान भाइयों वैसे तो हल्दी की खेती बरसात और सर्दी के समय में होती है। इसलिये सिंचाई की अधिक आवश्यकता नहीं होती है लेकिन बरसात में सूखा पड़ जाने या समय पर बरसात न होने पर हल्दी की खेती सूख भी सकती है। 

इसलिये खेत की नमी देखकर सिंचाई करनी चाहिये। सामान्य तौर पर एक या दो सिंचाई अवश्य ही करनी चाहिये। बरसात के सीजन के बाद महीने में एक बार अवश्य सिंचाई करनी चाहिये। सिंचाई का उस समय विशेष ध्यान देना होगा जब हल्दी की कंद की बढ़वार होने को हो वरना पैदावार कम हो सकती है।

मिट्टी चढ़ाना और खरपतवार नियंत्रण

हल्दी की खेती में मिट्टी को चढ़ाना होता है। सिंचाई व बरसात से मिट्टी के बह जाने से हल्दी की जड़ें यानी गांठ वाली जगह खुल सकती है या मिट्टी  कम हो जाती है। मिट्टी को चढ़ाकर हल्दी की जड़ों को मजबूत करना चाहिये। 

किसान भाइयों जड़ की जगह जितनी अधिक होगी कंद उतनी अधिक पैदा होगी। किसान भाइयों हल्दी की खेती में दो या तीन बार निराई गुड़ाई की जानी चाहिये। निराई गुड़ाई करते समय यह ध्यान रखना होगा कि हल्दी की जड़ों के साथ किसी प्रकार की छेड़छाड़ तो नहीं हो रही वरना इससे नुकसान हो सकता है।

कीट एवं रोग प्रबंधन

वैसे हल्दी की खेती में कीट अधिक नहीं लगते हैं और न ही यानी रोग ही लगते हैं। फिर भी कुछ रोग व कीट मौसम व फसल में समय समय पर लग सकते हैं। उनमें थ्रिप्स का रोग कीटों की वजह से होता है। 

ये कीट चितकबरे होते हैं। फसल को काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं। इनकी रोकथाम के लिए किसान भाइयों को पौधे पर कार्बाराइन या डाई मिथियोट का छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर कई बार करना चाहिये। लीफ ब्लाच नामक बीमारी भी लगती है। इसके संकेत पत्तों के पीले होने से मिलते हैं। 

जैसे ही इनका असर दिखे तो उस पर मैकोजेब का छिड़काव करें। प्रकंद विगलन रोग खेत में पानी जमा होने से होता है। इससे जड़ें गलने लगतीं हैं। सबसे पहले खेत में भरे पानी को निकालना चाहिये। इसके बाद इसमें इंडोफिल एम-45 और वेभिस्टीन के मिश्रण पौधे और जड़ों में छिड़कना चाहिये। 

पत्ती धब्बा रोग भी पत्तियों के भूरे होने या भूरे धब्बे दिखने से पता चलता है। किसान भाइयो इस रोग से छुटकारा पाने के लिए ब्लाइटाक्स का छिड़काव प्रति सप्ताह तब तक करना चाहिये जब तक रोग पूरी तरह से समाप्त न हो जाये। तना छेदक रोग कीट की वजह से लगता है। इसकी रोकथाम के लिए ट्राइजोफास का छिड़काव करना चाहिये।

हल्दी की खुदाई और सफाई का तरीका

किसान भाइयों अब कम समय की फसल की  किस्में आ गयीं हैं। इसलिये अब यह फसल सात महीने में तैयार होने लगी। जब पौधों के पत्ते पीले होने लगें तब समझना चाहिये कि आपकी फसल खुदाई के लिये तैयार है। 

यदि बीज तैयार करना हो तो उस हिस्से की फसल को तब तक नहीं खोदना चाहिये जब तक पूरे पत्ते सूख न जायें। खुदाई करने के दो तरीके हैं । इनमें से एक तरीका कुदाल या खुरपा का इस्तेमाल करके खोदने का है। दूसरा तरीका यह है कि पत्तों को हंसिये से काट कर उसमें हल चलवा कर हल्दी की गांठें निकाल लेनी चाहिये।

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किसान भाइयों खेत से निकली इन गांठों को पानी से अच्छी तरह से धो लेना चाहिये जो अदरक के समान दिखतीं हैं। इनकी गांठों को अलग-अलग करके बड़े से कड़ाहे में पानी में थोड़ा सा गोबर या केमिकल मिलाकर चार घंटे तक उबालना चाहिये। फिर उन्हें सुखा कर मार्केट में बिकने के लिए भेजना चाहिये। इस काम के लिए मशीनें भी आ गयीं हैं।

फसल का उत्पादन और लाभ

किसान भाइयों आपको बता दें कि अलग-अलग की किस्मों की हल्दी और भूमि तथा खेती प्रबंधन के बाद औसतन प्रति हेक्टेयर 200 से 500 क्विंटल तक हल्दी का उत्पादन हो जाता है लेकिन जब हल्दी को तैयार करके सुखाया जाता है तब यह चौथाई ही रह जाती है। 

इस तरह से 50 से 125 क्विंटल खेतों से तैयार होती है। इसका बाजार भाव कम से कम 8 हजार रुपये प्रति क्विंटल से लेकर 10 हजार रुपये प्रति क्विटल तक रहता है। इससे आमदनी का अनुमान आप लगा सकते हैं।

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