किसान भाइयों आप अच्छी तरह से जानते हैं कि आज का समय अर्थ युग है यानी पैसे का जमाना है। पैसे के बिना कुछ भी नहीं हो सकता है। प्रत्येक काम के लिए पैसा चाहिये।
अब ये पैसा कहां से आये? इस पर विचार करना जरूरी है क्योंकि आप खेतों से अधिक से अधिक वो वस्तुएं पैदा कर सकते हैं जो ग़ृहस्थी के काम आतीं हैं। इनके अलावा घर गृहस्थी के लिए कुछ ऐसी भी चीजें होतीं हैं जिन्हें खरीदना ही पड़ता है, जैसे नमक, साबुन, मसाले, कपड़ा, जेवर आदि।
इसके अलावा खेती के काम आने वाले कृषि यंत्र, खाद, बीज, मजदूरी, सिंचाई आदि के लिए भी पैसों की जरूरत होती है। साथ ही बच्चों की पढाई-लिखाई, शादी-ब्याह आदि के लिए भी तो पैसे चाहिये।
किसान भाइयों खेती के साथ ही आपको पैसे कमाने पर भी ध्यान देना होगा। जिस तरह से आप खेती के सारे कामों का प्रबंधन करके अच्छी फसल पैदा कर लेते हो, उसी तरह यदि आपने एक बार पैसों को प्रबंधन कर लिया तो आपको संपन्न होने से कोई नहीं रोक रोक सकता।
किसान भाइयों, आपको ऐसी फसलें लेनी होंगी जो इतनी आमदनी दे सकें, जिससे घर की हर कमी को पूरा किया जा सके। इस तरह की फसलों में हल्दी की फसल सबसे अच्छी मानी जा सकती है।
सामाजिक व धार्मिक कार्यों के अलावा मसाले, सौंदर्य प्रसाधन के साथ औषधि के रूप में भी हल्दी का प्रयोग होता है। रोगों के उपचार में पीली हल्दी से काली हल्दी अधिक लाभकारी होती है। इसलिये मार्केट में काली हल्दी के दाम अधिक मिलते हैं। आइये जानते हैं हल्दी की खेती के बारे में।
हल्दी की पैदावार बलुई मिट्टी में सबसे अधिक होती है। इसके अलावा हल्की दोमट मिट्टी भी हल्दी की फसल की पैदावार अच्छी है। हल्दी की खेती जलभराव वाली काली मिट्टी में नहीं की जानी चाहिये।
अधिक तेजाबी वाली मिट्टी में भी हल्दी की खेती नहीं की जा सकती है। ऐसे क्षेत्र में यदि कोई किसान भाई हल्दी की खेती करना चाहता है तो उसके लिए दो वर्ष तक खेती की जमीन में आवश्यक उपचार करना होगा।
पूर्व की फसलों के अंश व खरपतवार की अच्छी तरह से सफाई करवायें। जुताई के बाद गोबर की खाद डालकर मिट्टी में मिलायें और पलेवा कर दें।
एक सप्ताह के लिए छोड़ दें ताकि मिट्टी में कीट आदि सूरज की किरणों से समाप्त हो जायें। पलेवा का पानी सूख जाये तथा खेत में हल्की नमी रह जाये तभी एक बार फिर जुताई करके पाटा चलवायें। जिससे खेत समतल हो जायेगा। इसके बाद खेतों में एक फिट की दूरी पर मेड़ बना दें।
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फिर भी यदि बरसात के सीजन में पानी न बरसे तो किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा। हल्दी की खेती की बिजाई दो तरीके से की जाती है।
पहले तरीके में खेत में मेड़ बनाकर उसमें हल्दी के कंद के टुकड़ों को गाड़ देते हैं और दूसरा तरीका यह होता है कि समतल खेत में हल्दी के बीजों को एक फुट की दूरी की लाइन में डाल देते हैं, उसके बाद दो लाइनों के बीच हल चलाकर उनकी मेड़ बना देते हैं।
हल्दी की बिजाई पहले बीज को उपचारित किया जाना जरूरी होता है जिससे हल्दी में लगने वाले कीट व गलन की बीमारी नहीं होती है। किसान भाइयों को चाहिये बिजाई करने से पहले मैंकोजेब और कार्बेन्डाजिम के घोल में बीजों को आधे घंटे तक भिगो कर रखें और फिर उनको छाया में सुखा लें।
हल्दी की गांठों को तोड़ते वक्त इस बात का विशेष ध्यान रखें कि प्रत्येक टुकड़े में दो या तीन आंखें यानी जड़ के स्रोत अवश्य होने चाहिये। बिजाई के बाद खेत को पुलाव से ढक दें इससे खेत में नमी काफी समय तक बनी रहती है और हल्दी की फसल खरपतवार से भी बची रहती है।
जब बीज से अंकुर फूटने लगें तब एनपीके के बोरे को तीन हिस्सों में बांट कर एक हिस्से को खेत में छिड़क देना चाहिये। बाद बाकी शेष दो हिस्सों को डेढ़ महीने और ढाई महीने के बाद डाल दें।
इसलिये खेत की नमी देखकर सिंचाई करनी चाहिये। सामान्य तौर पर एक या दो सिंचाई अवश्य ही करनी चाहिये। बरसात के सीजन के बाद महीने में एक बार अवश्य सिंचाई करनी चाहिये। सिंचाई का उस समय विशेष ध्यान देना होगा जब हल्दी की कंद की बढ़वार होने को हो वरना पैदावार कम हो सकती है।
किसान भाइयों जड़ की जगह जितनी अधिक होगी कंद उतनी अधिक पैदा होगी। किसान भाइयों हल्दी की खेती में दो या तीन बार निराई गुड़ाई की जानी चाहिये। निराई गुड़ाई करते समय यह ध्यान रखना होगा कि हल्दी की जड़ों के साथ किसी प्रकार की छेड़छाड़ तो नहीं हो रही वरना इससे नुकसान हो सकता है।
ये कीट चितकबरे होते हैं। फसल को काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं। इनकी रोकथाम के लिए किसान भाइयों को पौधे पर कार्बाराइन या डाई मिथियोट का छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर कई बार करना चाहिये। लीफ ब्लाच नामक बीमारी भी लगती है। इसके संकेत पत्तों के पीले होने से मिलते हैं।
जैसे ही इनका असर दिखे तो उस पर मैकोजेब का छिड़काव करें। प्रकंद विगलन रोग खेत में पानी जमा होने से होता है। इससे जड़ें गलने लगतीं हैं। सबसे पहले खेत में भरे पानी को निकालना चाहिये। इसके बाद इसमें इंडोफिल एम-45 और वेभिस्टीन के मिश्रण पौधे और जड़ों में छिड़कना चाहिये।
पत्ती धब्बा रोग भी पत्तियों के भूरे होने या भूरे धब्बे दिखने से पता चलता है। किसान भाइयो इस रोग से छुटकारा पाने के लिए ब्लाइटाक्स का छिड़काव प्रति सप्ताह तब तक करना चाहिये जब तक रोग पूरी तरह से समाप्त न हो जाये। तना छेदक रोग कीट की वजह से लगता है। इसकी रोकथाम के लिए ट्राइजोफास का छिड़काव करना चाहिये।
यदि बीज तैयार करना हो तो उस हिस्से की फसल को तब तक नहीं खोदना चाहिये जब तक पूरे पत्ते सूख न जायें। खुदाई करने के दो तरीके हैं । इनमें से एक तरीका कुदाल या खुरपा का इस्तेमाल करके खोदने का है। दूसरा तरीका यह है कि पत्तों को हंसिये से काट कर उसमें हल चलवा कर हल्दी की गांठें निकाल लेनी चाहिये।
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किसान भाइयों खेत से निकली इन गांठों को पानी से अच्छी तरह से धो लेना चाहिये जो अदरक के समान दिखतीं हैं। इनकी गांठों को अलग-अलग करके बड़े से कड़ाहे में पानी में थोड़ा सा गोबर या केमिकल मिलाकर चार घंटे तक उबालना चाहिये। फिर उन्हें सुखा कर मार्केट में बिकने के लिए भेजना चाहिये। इस काम के लिए मशीनें भी आ गयीं हैं।
इस तरह से 50 से 125 क्विंटल खेतों से तैयार होती है। इसका बाजार भाव कम से कम 8 हजार रुपये प्रति क्विंटल से लेकर 10 हजार रुपये प्रति क्विटल तक रहता है। इससे आमदनी का अनुमान आप लगा सकते हैं।