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किसान भाई इस विधि से करेले की खेती करने पर लाखों का मुनाफा उठा सकते हैं

Published on: 26-May-2023

करेला बागवानी के अंतर्गत आने वाली फसल है। विभिन्न राज्यों में करेले की खेती करने पर कृषकों को अनुदान भी दिया जाता है। करेले की विशेषता यह है, कि इसकी खेती चालू करने में खर्चा बहुत ही कम आता है। वहीं, मुनाफा काफी ज्यादा होता है। पूरे भारत में करेला की खेती की जाती है। करेले के अंदर भरपूर मात्रा में विटामिन्स और पोषक तत्व विघमान रहते हैं। इसी वजह से चिकित्सक करेले के रस का सेवन करने की सलाह देते हैं। करेले को लोग भुजिया और सब्जी, भरता के तौर पर उपयोग करते हैं। चिकित्सकों की माने तो करेले का जूस पीने से ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता है। करेले में विटामिन ई, कैल्शियम, आयरन, विटामिन सी और विटामिन ए भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। यही कारण है, कि इसकी मांग सालों रहती है। ऐसी स्थिति में किसान भाई आधुनिक विधि से इसका उत्पादन कर मोटी आमदनी कर सकते हैं।

करेला बागवानी के अंतर्गत आने वाली एक फसल है

करेला एक प्रकार की बागवानी फसल है। विभिन्न राज्यों में करेले का उत्पादन करने पर किसानों को अनुदान भी प्रदान किया जाता है। करेले की एक ऐसी विशेषता है, कि इसकी खेती चालू करने में बहुत कम खर्चा आता है। जबकि लाभ काफी ज्यादा होता है। यदि किसान भाई करेले की खेती करने की योजना बना रहे हैं, तो बलुई दोमट मृदा में ही इसकी बुवाई करें। क्योंकि बलुई दोमट मृदा करेले की फसल के लिए सबसे उपयुक्त मानी गई है। यदि आप चाहें तो नदी के किनारे भी करेले का उत्पादन कर सकते हैं। जलोढ़ मृदा में इसकी बेहतरीन पैदावार होती है।

करेले की खेती के लिए कितने डिग्री तापमान उपयुक्त रहता है

करेले की फसल गर्म मौसम में तीव्रता के साथ विकास करती है। इसके लिए 20 डिग्री से 40 डिग्री तक का तापमान सबसे अच्छा माना गया है। अब ऐसी स्थिति में करेले की फसल को समुचित सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। हालाँकि, करेले की खेती वर्ष भर की जा सकती है। परंतु, वर्ष में तीन बार इसकी बुवाई की जाती है। यदि किसान भाई जनवरी से मार्च माह के मध्य इसकी बुवाई करते हैं, तो अप्रैल से करेले का उत्पादन शुरू हो जाएगा। यदि किसान भाई बारिश के मौसम में इसकी बुवाई करना चाहते हैं, तो जून से जुलाई माह इसके लिए अच्छा रहेगा। लेकिन, पहाड़ी क्षेत्रों के किसान मार्च से जून माह के मध्य करेले की बुवाई कर सकते हैं।

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बुवाई करने के 70 दिनों में फसल तोड़ने लायक तैयार हो जाती है

करेले की बुआई चालू करने से पूर्व खेत की बेहतर ढ़ंग से जुताई कर लें। उसके बाद खेत को एकसार कर लें। इसके बाद क्यारियां तैयार करके बीज की बुवाई करें। बीज सदैव 2 से 2 .5 सेमी गहराई में ही बोयें। विशेष बात यह है, कि बुवाई करने से पूर्व 24 घंटे तक बीज को पानी में भिगोकर रख दें। इससे बीज अतिशीघ्र अंकुरित होते हैं। जब करेले के पौधे बड़े हो जाएं, तब उसे लकड़ी अथवा बांस की मदद से उंचाई पर ले जाएं। इससे बेहतरीन उत्पादन हांसिल हो पाऐगा। इसी विधि को वर्टिकल फार्मिंग कहा जाता है। इस विधि से खेती करने पर बारिश होने की स्थिति में भी फसल की बर्बादी नहीं होती है। विशेष बात यह है, कि बुवाई करने के 70 दिनों के समयांतराल में फसल पककर तोड़ने हेतु तैयार हो जाती है।

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