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मेंथा यानी मिंट की खेती से होता है तिगुना फायदा, लागत कम और मुनाफा ज्यादा

Published on: 25-Mar-2023

मेंथा का उत्पादन भारत भर में की जाती है। परंतु, उत्तर प्रदेश में अधिकाँश किसान मेथा का उत्पादन करते हैं। सोनभद्र, फैजाबाद, बदायूं, बाराबंकी, रामपुर, पीलीभीत समेत बहुत से जनपदों में फिलहाल किसान बड़े स्तर पर मेंथा का उत्पादन कर रहे हैं। भारत समेत पूरे विश्व में हर्बल उत्पादों की मांग बढ़ गई है। फिलहाल छोटे से बड़े किसान तक हर्बल के उत्पादन की तरफ रुख किया जाता है। विशेष बात यह है, कि हर्बल उत्पादों का इस्तेमाल लोगों की जिंदगी में बढ़ने से बाजार में हर्बल उत्पादों की मांग में काफी वृध्दि देखने को मिली है। ऐसी स्थिति में अधिक माँग एवं अधिक भाव की वजह से किसान हर्बल खेती की दिशा में बढ़ रहे हैं। अंततः किसान हर्बल का उत्पादन क्यों ना करें, जब इस पर कम खर्च करके अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है। वास्तविकता में हर्बल उत्पादों के अंदर औषधीय गुण विघमान होते हैं। बतादें कि इसका इस्तेमाल आयुर्वेदिक औषधियों एवं सौंदर्य उत्पादों को निर्मित करने के लिए किया जाता है। विशेष रूप से मेथा के तेल से सुगंधित इत्र और काफी महँगी औषधियां निर्मित की जाती हैं। अब ऐसी उपयोगिता वाली फसल का उत्पादन करके किसान कम लागत और कम समय में खूब पैसा कमा सकते हैं। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार यह बताया गया है कि मेथा को कम लागत से ही उत्पादित किया जा सकता है। वहीं आय भी तीन गुना अधिक हो जाती है। इतना ही नहीं इसके उत्पादन से मृदा की उर्वरक क्षमता भी काफी बढ़ जाती है। इसकी वजह यह है कि इसमें बहुत सारे औषधीय तत्व शामिल होते हैं।

मेंथा यानी मिंट से एक एकड़ में उत्पादन करके कितनी आय की जा सकती है

अगर मेंथा की खेती से आमदनी की बात की जाए तो किसान भाईयों की 1 एकड़ भूमि पर उत्पादन करने पर 25 हजार रुपए का खर्च होता है। तो वहीं बाजार में मेंथा के तेल का भाव फिलहाल 1000 से 1500 रुपए किलो है। अगर एक हैक्टेयर में आप मेंथा की खेती करते हैं, तो आप लगभग डेढ़ लाख रुपए तक की आय अर्जित कर सकते हैं।

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भारत में मेंथा के तेल की पैदावार काफी मात्रा में होती है

वैसे तो मेंथा का उत्पादन पूरे भारत में किया जाता है। परंतु, उत्तर प्रदेश में मेंथा का उत्पादन करने वाले काफी किसान हैं। उत्तर प्रदेश के सोनभद्र, फैजाबाद, पीलीभीत, बदायूं, बाराबंकी और रामपुर जनपद समेत विभिन्न जनपदों के किसान वर्तमान में बड़े रकबे में मेंथा का उत्पादन करते हैं। मुख्य बात यह है, कि लोग मेंथा को मिंट के नाम से भी जाना जाता है। मेंथा का इस्तेमाल आयुर्वेदिक औषधियों को बनाने के साथ साथ इसके तेल के माध्यम से सौंदर्य उत्पाद कैंडी व टूथपेस्ट भी निर्मित किया जाता है। भारत में सर्वाधिक मेंथा का उत्पादन किया जाता है।

मेंथा से 1 हैक्टेयर भूमि में 100 लीटर के करीब तेल की पैदावार ली जा सकती है

मेंथा का उत्पादन करने से पूर्व अच्छी तरह खेत की जुताई करके तैयार कर लिया जाना चाहिए। साथ ही, खेत में बेहतर सिंचाई की व्यवस्था करनी काफी आवश्यक है। इसकी वजह यह है, कि मेंथा की खेती के लिए काफी जल की आवश्यकता होती है। अगर हम इसकी तैयार होने की समयावधि के बारे में बात करें तो यदि समय से इसकी बुवाई की जाए तब किसान तीन माह में इससे पैदावार ले सकते हैं। कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक, मेंथा की बुवाई करने हेतु फरवरी से मध्य अप्रैल का माह सबसे उपयुक्त माना जाता है। साथ ही, जून के माह में इसकी फसल की कटाई की जा सकती है। मेंथा की फसल को धूप में सूखाने के उपरांत प्रोसेसिंग के माध्यम से इसका तेल निकाला जाता है। अगर इसके तेल के उत्पादन की बात की जाए तो 1 हैक्टेयर भूमि में इसकी खेती से 100 लीटर के करीब तेल प्राप्त किया जा सकता है।

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