दलहनी फसलें बड़ी नाजुक होती हैं। इनमें जरा सा रोग संक्रमण फसल को नुकसान पहुंचाता है। इसका दूसरा कारण यह भी है क्योंकि दलहनी फसलों में खर्चा कम आता है इस लिहाज से किसान अन्य फसलों की तरह चौकन्ना रह कर नियंत्रण नहीं करते।
मसलन धान जैसी फसलों में हर समय निगरानी करनी होती है जबकि दलहन में ऐसा नहीं होता। इस तरह की छोटी छोटी चीजें ही फसल को नुकसान पहुंचा देती हैं।
अंगमारी या बांझ रोग रोधी किस्मों में बीएसएमआर 726, 736, 853,आशा, बहार, एचवाई 3 सी, शरद, पूसा 9, अमर, आजाद, मालवीय।
आल्टरनेरिया ब्लाइट रोग रोधी किस्में में शरद एवं पूसा 9 आदि किस्में हैं।
चना में उकठा रोग देश के काफी बड़े हिस्से में लगता है। यह फ्यूजेरियम आक्सीस्पोरम के कारण लगता है। इसके अलावा जड़ गलन, धूसर रोग, तना गलन एवं एस्कोकाइटा झुलसा रोग प्रमुख रूप से लगते हैं।
बचाव:— कई फफूंद जनित रोगों का कारण बीज को उपचारित करके न बोना होता है। बीज को किसी भी प्रचलित फफूंद नाशक दवा की दो से ढ़ाई ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से आवश्यक रूप से उपचारित करना चाहिए।
रोग रोधी किस्में:— ज्यादातर रोगों के नियंत्रण के लिए जरूरत इस बात की होती है कि वैज्ञानिकों द्वारा तैयार रोग रोधी किस्में ही सरकारी संस्थानों से लें। यदि प्राईवेट कंपनी का बीज ले रहे हैं तो वहां बीज के विषय में इस तरह की जानकारी नहीं मिलती कि बीज रोग रोधी है या नहीं। यदि इस श्रेणी का बीज बाजार में मिलता है तो पक्के बिल के साथ भरोसेमंद दुकान से लेंं।
चने की डीसीपी 92—3, जीएनजी 1581, पूसा 362, पूसा 372, पूसा चमत्कार, राजस, एच 82—2, आरएसजी 963, 888, जीएनजी 469, 663, के डब्ल्यूआर 108, जेजी 74, केजीडी 1168, पूसा 372, 1003, विशाल, बीजीडी, जेजी 11, श्वेता, जीसीपी 105 आदि अनेक किस्में उकठा रोग प्रतिरोधी हैं। किसानों को अपने क्षेत्र के लिए उपयुक्त किसी किस्म का चयन करना चाहिए।
मूंग एवं उड़द में पर्ण बुंदकी, चूर्णिल असिता, पीला चितेरी रोग प्रमुख रूप से लगते हैं। इन्हें रोकने के भी तरीके बीज उपचार, भूमि उपचार, प्रतिरोधी किस्मों के बीजों का खेती में उपयोग करके इन समस्याओं से काफी हद तक निजात मिल सकती है।
निदान:— मूंग के पीला चिरेती रोग की रोकथाम के लिए रोग रोधी किस्म एमयूएम 2, नरेन्द्र मूंग 1,पूसा विशाल ग्रीष्मकालीन, पंत मूंग 6, एचयूएम 1, पंत मूंग 6, केएम 2241, श्वेता, पूसा 105, एचयूएम 12 की बिजाई करेंं। इसके अलावा भी कई नई किस्में सरकारी संस्थानों ने विकसित की हैं। पूरी जानकारी करके ही रोग रोधी किस्मों का अपने क्षेत्र के लिए चयन करें।
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की केयू 300, केयूजी 479, नरेन्द्र उड़द 1, पंत यू 19, केयू 92—1 बसन्तकालीन, टीयू 40 रबी, वीबीजी 8, पंत यू 30 प्रमुख किस्में हैं। पाउड्री मिल्ड्यू रोग रोधी मूंग की पूसा 105, एडीटी 3, बीएम 4, टार्म 2, 18, पूसा 9072 आदि। उक्त रोग रोधी उड़द की एलबीजी 17, 20, एडीटी 4, एकेयू 4, आईपीयू 2, टीयू 40 आदि किस्मों को चुनें।
मटर में चूर्णिल असिता एवं रतुआ रोग का प्रभाव होता है। बचाव के लिए अच्छी रोग रोधी किस्मों का चयन करेंं। चूर्णिल असिता रोग रोधी मटर की लम्बी किस्मों में पंत 5, शिखा, अलंकार, पंत पी 42, मालवीय मटर 2, वीएल 42, गोमती आदि कई किस्में हैं।
बौनी किस्मों में अपर्णा, एचएफपी 29, 9907, पूसा पन्ना, पंत पी 74, उत्तरा, पूसा प्रभात, मालवीय मटर 15, सपना आदि कस्में लगाएं। रतुआ रोग रोधी मालवीय मटर 15, आईपीएफडी 1—10 किस्म लगाएं। मसूर में रतुआ, उकठा, तना गलन, मूल विगलन जैसे रोग लगते हैं।
रतुआ रोग से बचाव के लिए पंत एल 4, डीपीएल 62, 15, आईपीएल 406, केएलएस 218, लेंस 4036 किस्म लगाएं।
मसूर की उकठा रोग रोधी पंत एल 4, डीपीएल 15, पतं एल 406, नरेन्द्र मसूर 1, जेएल 3, आईपीएल 81 आदि किस्में सरकारी संस्थान से लेकर लगाएं।