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किसान ने विपरीत परिस्थितियों में स्ट्रॉबेरी और ब्रोकली की खेती कर मिशाल पेश की

Published on: 19-Nov-2023

राजस्थान के जोधपुर जनपद से संबंध रखने वाले किसान रामचन्द्र राठौड़ विपरीत परिस्थितियों में भी स्ट्रॉबेरी एवं ब्रोकली की खेती कर लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया है। अपनी इस सफलता से उन्होंने बहुत सारे अन्य किसानों को भी प्रेरित किया है। रामचन्द्र विगत 19 वर्षों से खेती कर रहे हैं। जब कोई इंसान कुछ ठान लेता है, तो विपरीत परिस्थितियों में भी उसे हांसिल अवश्य कर लेता है। ऐसी ही एक कहानी है, राजस्थान के जोधपुर जनपद से संबंध रखने वाले किसान रामचन्द्र राठौड़ की, जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी कुछ ऐसी फसलों की खेती करी, जो कोई सोच तक भी नहीं सकता था। सामान्य तौर पर राजस्थान एक कठोर जलवायु परिस्थितियों वाला राज्य है। इसके बावजूद भी रामचन्द्र ने एक बंजर भूमि पर स्ट्रॉबेरी एवं ब्रोकली की खेती कर विभिन्न लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया है। अपनी इस सफलता से उन्होंने बहुत से अन्य किसानों को भी प्रेरित किया है। इसके साथ ही दूर-दूर से किसान भी इनसे प्रशिक्षण लेने आ रहे हैं। राजस्थान के इस किसान ने विपरीत परिस्थितियों एवं काफी चुनौतियों से घिरे होने के चलते भी मिशाल पेश कर दी है। बतादें कि इस किसान ने राजस्थान की रेतीली जमीन में स्ट्रॉबेरी और ब्रॉकली की खेती कर ड़ाली है।

समस्यापूर्ण परिस्थितियों में की कृषि

रामचन्द्र राठौड़ जोधपुर जनपद की लूनी तहसील से ताल्लुक रखते हैं। लूनी पश्चिमी राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र का एक हिस्सा है, जो बंजर जमीन के लिए जाना जाता है। इतना ही नहीं, इस क्षेत्र को प्रदूषित पानी की वजह डार्क जोन के तौर पर वर्गीकृत किया गया है। हाल के दिनों में कुछ सुधार के होते हुए भी, इस रेगिस्तानी इलाके में लोग बार-बार सूखे का संकट झेलने को मजबूर हैं। ज्यादातर युवा नौकरी की खोज में शहरों की ओर पलायन कर गए हैं। परंतु, इस चुनौतीपूर्ण परिदृश्य में भी रामचंद्र राठौड़ ने अपनी पैतृक जमीन पर स्ट्रॉबेरी और ब्रोकोली की सफलतापूर्वक खेती करके बहुत सारे लोगों को हैरान किया है। ऐसा कहते हैं, कि उनके खेत के टमाटर फ्रिज के अंदर दो महीने तक ताजा रहते हैं। रामचन्द्र की कृषि तकनीकों ने वैश्विक कृषि विशेषज्ञों का ध्यान भी खींचा है।

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किसान ने महज 17 वर्ष की आयु में कृषि शुरू की थी

मीडिया खबरों के मुताबिक, रामचन्द्र ने कहा है, कि वे चुनौतियों से भरी परिस्थितियों में बड़े हुए हैं। उनके पिता जी भी एक किसान थे एवं उन्हें अपर्याप्त बरसात की वजह से बार-बार फसल की विफलता का सामना करना पड़ता था। जिसकी वजह से रामचन्द्र को आगे की पढ़ाई करने की जगह खेती में मदद करने के लिए मजबूर होना पड़ा। उन्होंने अपने परिवार का सहयोग करने के लिए सिलाई की तरफ रुख किया एवं स्व-वित्तपोषण के जरिए से 12वीं कक्षा तक अपनी शिक्षा जारी रखी थी। हालांकि, 2004 में अपने पिता की मौत के पश्चात उन्होंने 17 साल की आयु में अपनी पैतृक जमीन पर वापस खेती करने का निर्णय लिया। उन्होंने बताया कि शुरुआत में वे बाजरा, ज्वार और मूंग की खेती किया करते थे। हालांकि, उन्हें प्रदूषित एवं अनुपयुक्त जल के चलते बहुत सारी समस्याओं को सामना भी करना पड़ा।

सरकारी प्रशिक्षण ने जिंदगी को पूर्णतय परिवर्तित कर दिया

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि उनके जीवन में अहम मोड़ तब आया जब उन्हें सरकार की कृषक मित्र योजना के अंतर्गत जोधपुर सीएजेडआरआई संस्थान में सात दिवसीय प्रशिक्षण का अवसर मिला था। इस प्रशिक्षण ने उनको सिखाया कि कृषि के लिए वर्षा जल का संरक्षण किस प्रकार किया जाए। साथ ही, रेगिस्तानी परिस्थितियों में नवीन कृषि पद्धतियों को कैसे अपनाया जाए। बतादें कि प्रशिक्षण ने उन्हें कृषकों की सहायता करने वाली सरकारी योजनाओं की एक श्रृंखला से भी परिचित कराया है। प्रशिक्षण ने उनको इस विश्वास को चुनौती देने के लिए प्रेरित किया कि अकाल एवं बेमौसम बारिश असाध्य समस्याएं हैं। कृषि वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन एवं प्रशिक्षण से अर्जित व्यावहारिक ज्ञान के जरिए उन्होंने वर्षा जल संचयन की क्षमता एवं अनियमित मौसम पैटर्न के विरुद्ध पॉलीहाउस के सुरक्षात्मक लाभों की खोज करी।

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किसान रामचंद्र बहुत सारे कृषकों को प्रेरित कर रहे हैं

जोधपुर जनपद में बागवानी विभाग के एक अधिकारी द्वारा प्रोत्साहित किए जाने पर रामचंद्र ने 2018 में एक पॉलीहाउस का निर्माण किया है। इसके पश्चात उन्होंने 2019-20 में एक फार्म तालाब एवं एक वर्मी-कम्पोस्ट इकाई निर्मित करके अपनी कोशिशों का विस्तार किया। पॉलीहाउस में खीरे की खेती के लिए वर्षा जल का इस्तेमाल करके, उन्होंने केवल 100 वर्ग मीटर में 14 टन का रिकॉर्ड-तोड़ उत्पादन हासिल की, जो कि जोधपुर जनपद के किसी भी कृषक द्वारा बेजोड़ उपलब्धि है। अपने नए-नए इनोवेशन को जारी रखते हुए उन्होंने नकदी फसलों के क्षेत्र में कदम रखा और रेगिस्तानी क्षेत्र में स्ट्रॉबेरी और तोरी की सफलतापूर्वक खेती कर ड़ाली है। उन्होंने अपनी भूमि का एक अहम भाग बागवानी खेती के लिए समर्पित करते हुए जैविक उर्वरक उत्पादन का भी बीड़ा उठाया है। उनकी सफलता की कहानी ने व्यापक असर उत्पन्न किया है। साथ ही, अन्य कृषकों को भी इसी तरह की पद्धतियों को अपनाने के लिए प्रेरित किया गया है।

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