Published on: 11-Jan-2023
भारत में शलजम की खेती की तैयारी की जा रही है। शलजम को सर्दी के सीजन की फसल के रूप में जाना जाता है। किसान शलजम का उत्पादन कर लाखों रुपये का मुनाफा हासिल कर सकते हैं। वर्तमान सीजन रबी की फसलों का चल रहा है। अधिकतर क्षेत्रों में फसलों की बुवाई तकरीबन पूर्ण हो गयी है। जिन स्थानों पर बुवाई नहीं हो पा रही है। कृषक बहुत तीव्रता से अपने खेतों में रबी फसलों की बुवाई करने में जुटे हुए हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, खेतों में किसान पारंपरिक उत्पादन को तवज्जो देते हैं। हालाँकि, किसानों को आज के समय में पारंपरिक खेती के अतिरिक्त से अन्य खेती भी करने की अत्यंत आवश्यकत है। जिससे कि किसानों को इनकी बुवाई करके अच्छा खासा मुनाफा प्राप्त किया जा सके। आगे इस लेख में हम आपको इसी तरह की खेती के बारे में बताएँगे जो किसानों को बेहतरीन लाभ दिलाने में सहायक साबित होगी। साथ ही, यह लोगों के स्वास्थ्य एवं शरीर के लिए भी बहुत फायदेमंद होती है।
शलजम का उत्पादन समशीतोष्ण, उष्ण कटिबंधीय एवं उप उष्णकटिबंधीय इलाकों में इसकी खेती की जाती है। वैसे तो, शलजम का उत्पादन सामान्य जमीन में भी किया जा सकता है। शलजम का उत्पादन करने से पूर्व खरपतवार का बहुत ज्यादा ध्यान रखें। सर्व प्रथम 10 से 15 दिन में भूमि को बिल्कुल स्वच्छ और साफ करें। यदि किसान ज्यादा जगह में शलजम का उत्पादन करते हैं तो, खरपतवार पर विशेष रूप से ज्यादा ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता होती है। क्योंकि खरपतवार फसल को सर्वाधिक हानि पहुंचाती है। इसके अतिरिक्त विशेषज्ञों की सलाह पर पेंडीमेथलिन 3 लीटर की मात्रा को 800 से 900 लीटर पानी में मिश्रण कर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना फसल के लिए काफी अच्छा होता है।
शलजम को रोगग्रसित होने से कैसे बचाएं
शलजम की फसल को कीट एवं रोगों से संरक्षित करना बेहद आवश्यक होता है। शलजम की फसल में मुख्यतयः पीला रोग, अंगमारी जैसे फफूंद प्रभावित करने लग जाते हैं। उस स्थिति में शलजम की फसल में कीटनाशक दवा का छिड़काव बहुत जरूरी है। ध्यान रहे अगर कोई पौधा किसी रोग की चपेट में आ गया है, तो उसको जड़ से उखाड़कर फेंक देना ही अच्छा रहेगा। इसके अतिरिक्त शलजम में आमतौर पर गलन रोग भी पाया जाता है। इस संबंध में किसानों को कृषि विशेषज्ञों से सलाह लेकर बीजारोपण से पूर्व थीरम 3 ग्राम से प्रति किलो छिड़काव करना चाहिए। बुवाई के उपरांत नवीन पौधा उपज आए तो आस-पास की मृदा में कप्तान 200 ग्राम को 100 लीटर पानी में मिश्रण कर छिड़काव कर दिया जाये।
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शलजम को इन रोगों से बचाना बेहद आवश्यक होता है
शलजम की फसल में लगने वाले रोग जैसे कि सुंडी, बालदार, कीड़ा, मुंगी, माहू एवं कीट काफी गंभीर रुप से प्रभावित करते हैं। कीटों से संरक्षण हेतु 700 से 800 लीटर पानी में 1 लीटर मैलाथियान का मिश्रण कर फसल में छिड़काव कर दें। इसके अतिरिक्त 1.5 लीटर एंडोसल्फान की मात्रा को उतने ही पानी में मिश्रण कर छिड़काव करना जरुरी होगी। यह मात्रा प्रति हेक्टेयर के अनुरूप से ही करें।
शलजम की फसल कितने दिन में तैयार हो जाती है
शलजम 45 से 70 दिन के अंतराल में पककर खुदाई हेतु तैयार हो जाती है। शलजम की खुदाई को समयानुसार ही करलें, क्योंकि यदि खुदाई में किसी भी कारण वस तो शलजम में रेशे उत्पन्न हो जाते हैं, जो कि फसल को काफी नुकसान पहुंचाते है। इसकी वजह से शलजम का स्वाद अच्छा नहीं रहता है। खुदाई के बाद शलजम को अच्छी तरह से धोना बेहद जरुरी है। इसके बाद शलजम को टोकरी में भरकर मंडी पहुँचा दिया जाए। किसानों को मंडी में शलजम का अच्छा खासा भाव मिल जाता है। सर्दियों के समय उत्पादित होने वाली शलजम जड़ में उत्पन्न होती है। इस वजह से शलजम की जड़ एवं पत्ते ही उपयोग में लिए जाते हैं। इसके अंदर विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन के, कैलशियम इत्यादि प्रचूर मात्रा में पाया जाता है।